शनिवार, 20 नवंबर 2021

भगवान राम और भगवान बुद्ध में सम्बन्ध

भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी ने हाल ही में एक संदर्भ में बताया कि भगवान श्री राम और भगवान बुद्ध में गहरा संबंध है। तो मैं यह सोचने पर विवश हो गया कि दोनों में क्या संबंध हो सकता है? चूंकि यह विचार माननीय के हैं, तो गहराई से अवलोकन की आवश्यकता हो गई।

मैने इस पर विचार किया और गहराई से छानबीन किया| तत्पश्चात इनमें समानताओं को एकत्र करना शुरू कर दिया। तब मुझे आश्चर्यजनक रूप से कई क्षेत्रों में समानता मिलनी शुरू हो गईं। ये समानताएं महानता, भगवान की उपाधि, वैवाहिक जीवनप्रदेश, अवतार, उद्देश्य एवं व्यवस्था आदि कई क्षेत्र में हैं| मिथक एवं ऐतिहासिकता एक ही भाव की दो अलग अवधारणाएं(Concepts) हैं| मिथक बिना साक्ष्य अर्थात कल्पना पर आधारित कहानी होता है, जबकि इतिहास साक्ष्य युक्त सत्यता यानि वास्तिवकता पर आधारित कहानी होता है| अर्थात समानता कहानी की होती है, मिथक में आधार विहीन विश्वास होता है, जबकि इतिहास में ठोस साक्ष्य युक्त विश्वास होता है|

महानता:

ये दोनों ही भारत भूमि पर अपने अपने काल में लोगों के आदर्श रहे एवं लोकप्रिय रहे| बुद्ध प्राचीन भारत में भारतीय समाज के आदर्श रहे, तो राम मध्यकालीन भारत में भारतीय समाज के आदर्श रहे| इन दोनों की लोकप्रियता की स्थिति भी ऐसी ही है|

भगवान की उपाधि:

दोनों के नाम के आगे विशेषण यानि उपाधि भगवान लगाया जाता है - भगवान श्री राम और भगवान बुद्ध। लेकिन दोनों "भगवान" के अर्थ में काफी अंतर है। श्री राम के आगे भगवान (संस्कृत का शब्द) का अर्थ 'ईश्वर' है, जबकि बुद्ध के दर्शन में ईश्वर का अस्तित्व ही नहीं है। बुद्ध के भगवान (पालि का शब्द) वे व्यक्ति हैं, जिसने अपने राग (Attachment) एवं द्वेष (Detachment) को भग्न (Eliminate / Destroy) कर लिया है। इन शब्दों में समान अक्षरों की समान बनाबट के बावजूद भी भावार्थ में अंतर है।

वैवाहिक जीवन:

दोनों के वैवाहिक जीवन असामान्य रहे| दोनों का अपनी पत्नियों से अलग रहने की कहानी है| बुद्ध को रोहिणीनदी के जल उपयोग विवाद में गणराज्य के परिषद् (Council) के निर्णय के आलोक में राज्य त्यागना पड़ा| राम को भी घरेलू विवाद में राज्य का त्याग करना पड़ा| बुद्ध के राज्य एवं गृह त्याग पर अलग अलग मत है, पर दोनों को राज्य का त्याग करना पडा| दोनों को ही राज्य त्याग के प्रक्रम में ही पत्नी से भी अलग रहना पड़ा| बहुत बाद में पत्नी से मिलना भी हुआ, तो वैवाहिक जीवन में कोई सुखद अनुभव नहीं रहा|

प्रदेश:

जब इन दोनों महापुरुषों के जन्म प्रदेश यानि इलाका (क्षेत्र) पर ध्यान गया तो उसमें भी समानता दृष्टिगत हुई| दोनों कोशल प्रदेश से जुड़े हुए हैं। बुद्ध कोशल के अधिराज्य (Dominion) शाक्य गणराज्य से थे, तो श्री राम भी कोशल प्रदेश के अयोध्या से थे। ध्यान रहे कि शाक्य गणराज्य कोशल राज्य का एक सीमांत (Frontier) प्रदेश था और कोशल नरेश का अधिराज्य था| दोनों मध्य गंगा के मैदान के हैं और एक ही भौगोलिक क्षेत्र के हैं। बुद्ध का ससुराल पडोसी कोलिय गणराज्य था, तो राम का ससुराल पडोसी राज्य मिथिला था|

अवतार:

दोनों को ही भगवान विष्णु का अवतार (Incarnation) माना गया है| 'सामंत काल' (9वीं से 12वीं शताब्दी) में बुद्ध को विष्णु की परम्परा में शामिल बताया गया| यह 'सामंत काल' की आवश्यकता थी| भगवान राम को शुरू से ही विष्णु की परम्परा में शामिल बताया गया|

वैसे 'बुद्ध' भी एक परम्परा का ही नाम है, जो नगरीय समाज एवं राज्य के उदय के साथ भारत भूमि पर शुरू हो गयी थी। गोतम बुद्ध, जिन्हें सिद्धार्थ गौतम भी कहा जाता है, बुद्धों की परम्परा में 28 वें बुद्ध हुए। इस परंपरा में विशिष्ट बुद्धि वाले को बुद्ध कहा गया, और उस समय की संस्कृति को बौद्धिक संस्कृति कहा गया। भगवान श्री राम भी "भगवानों की परम्परा" में एक कड़ी माने जाते हैं।

उद्देश्य एवं व्यवस्था:

दोनों का उद्देश्य लोगों का व्यापक हित रहा है। दोनों ने नए संदर्भ काल में व्यवस्था बनाने का काम किया। दोनों ने अपने समय के शैतानोंको मारने का काम किया| एक शैतान के शारीरिक अस्तित्व को सदा के लिए समाप्त कर देते थे, ताकि उसकी शैतानी सदा के लिए समाप्त हो जाय| जबकि दुसरे जन व्यक्ति के मानसिक शैतान को मार कर उस व्यक्ति को सकारात्मक एवं सृजनात्मक बना देते थे| एक हथियार का प्रयोग कर शैतान को नष्ट करते थे, जबकि दुसरे जन बुद्धि का प्रयोग कर शैतान को नष्ट करते थे| परन्तु दोनों शैतान को ही नष्ट करते रहे| इन दोनों का उद्देश्य एक ही रहा|

यह अलग बात है कि बुद्ध की 'व्यवस्था' बौद्धिक संस्कृति की आवश्यकता थी, परन्तु राम की 'व्यवस्था' सामंतवादी संस्कृति की आवश्यकता थी। दोनों ने ही अपने समय की आर्थिक शक्तियों के अनुरूप सामाजिक व्यवस्था बनाने का प्रयास किया और उसमें सफल भी रहे| इसे बढ़िया से समझने के लिए 'बौद्धिक संस्कृति' एवं 'सामंतवादी संस्कृति' को तथा तत्कालीन आर्थिक शक्तियों को अच्छी तरह समझना होगा|

आर्थिक शक्तियों में उत्पादन, वितरण, विनियम और उपभोग को प्रभावित करने वाली शक्तियों और उनके अन्तर्सम्बन्धों को लिया जाता है| इसके आधार पर इतिहास यानि 'सामाजिक रूपांतरण' की व्याख्या वैज्ञानिक तौर पर एवं समुचित ढंग से हो जाती है

मिथक और इतिहास:

इन दोनों में एक 'मिथक' (Mythology) है, और दूसरा 'इतिहास' (History) है| फिर भी इस मामले में दोनों में समानताएं हैं| किसी की ऐतिहासिकता के लिए सबसे जरूरी बात यह है, कि संबंधित व्यक्ति अर्थात व्यक्तित्व का ऐतिहासिक होना जरूरी होता है। अर्थात ऐतिहासिक व्यक्तित्व को इतिहास की पुस्तकों में दर्ज किया हुआ होता है| यदि किसी व्यक्ति को इतिहास की पुस्तकों में स्थान नहीं दिया गया है, तो स्पष्ट है कि कोई भी प्राधिकार (Authority) उसे ऐतिहासिक नहीं मानता है। ऐतिहासिक होने के लिए ठोस ऐतिहासिक साक्ष्य होना चाहिए अर्थात उसे इतिहास के किसी काल खंड में वास्तविक जीवन में होना चाहिए। यदि ऐसा नहीं है, तो उसे मिथक ही कहेंगे; इतिहास एवं ऐतिहासिक बिल्कुल नहीं कहेंगे।

इतिहास में कोई 28 बुद्धों की चर्चा मिलती है, और 7 बुद्धों के तो आज भी पुरातात्विक साक्ष्य उपलब्ध हैं, एवं समकालीन विदेशी साहित्य में भी उन्हें स्थान प्राप्त है। इस तरह गोतम बुद्ध, जो तथागत बुद्ध के नाम से भी जाने जाते हैंएक ऐतिहासिक व्यक्ति रहे हैं । लेकिन  जिसकी कहानी इतिहास की पुस्तकों में दर्ज नहीं है, वह व्यक्ति ऐतिहासिक नहीं है, और इसलिए ऐसे व्यक्तियों को ऐतिहासिक नहीं माना जाता है। राम की कहानी को भारत के किसी भी इतिहास की पुस्तकों में स्थान अभी तक नहीं दिया गया है| इसमें समस्या यह है कि ऐतिहासिक व्यक्ति होने के लिए ऐसे ठोस पुरातात्विक साक्ष्य प्रस्तुत किए जाने चाहिए, जिसे वैश्विक मान्यता मिले। आज विश्व एक वैश्विक गांव (Global Village) हों गया है, और कोई इस मुख्य धारा से अलग नहीं रह सकता। यदि किसी भी बात को विश्व नकारता है तो इसका अर्थ है कि उसे विश्व की आबादी का 83% का समर्थन है। वैश्विक मान्यता की उपेक्षा आज के समय में नहीं किया जा सकता है।

आस्था को ऐतिहासिकता का विकल्प नहीं माना जा सकता। ऐसा लगता है,कि बुद्ध की जीवनी पर आधारित मिथक ही राम की जीवनी है। इसी संबंध से इन दोनों में संबंध स्थापित किया जा सकता है, और जिसके बारे में माननीय प्रधानमंत्री जी ने इशारा किया है।

हम जानते हैं कि जब किसी ऐतिहासिक व्यक्ति के जीवन पर आधारित कोई कहानी लिखी जाती है, या फिल्म बनाई जाती है, तो तत्कालीन समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप ही एक 'संशोधित मॉडल' को अपनाया जाता है। ऐसा किया जाना सामान्य घटना होता है। ऐसा ही कालान्तर के सामंतवादी काल में बुद्ध की जीवनी पर आधारित सामंतवादी व्यवस्था के अनुरूप एक मिथक की आवश्यकता रही। और ध्यान रखने वाली बात है, कि जिस कहानी में ऐतिहासिकता नहीं होती है, उसे मिथक ही कहेंगे।

यह समानताएं बहुत गहरी हैं, और दोनों लोक आस्थाओं से जुड़ी हुई हैं। चूंकि दोनों में ही संबंध है, इसलिए यह लोक संस्कृति का भाग है। चूंकि दोनों दो भिन्न-भिन्न संदर्भों और आवश्यकताओं के परिणाम रहे, इसलिए संदर्भ के अनुसार चरित्र एवं आदर्श के विवरण में शाब्दिक समानता नहीं है, परन्तु भावनात्मक समानताएं पर्याप्त हैं।

इतने महत्वपूर्ण संबंध को रेखांकित करने के लिए मैं माननीय प्रधानमंत्री जी को सादर नमन करता हूं। ऐसा गहन एवं व्यापक संबंध किसी अलौकिक प्रतिभा संपन्न व्यक्तित्व की दृष्टि में ही आ सकता है। इसे  नए सन्दर्भों, दृष्टिकोणों, संबंधों और आर्थिक बदलाव की प्रक्रियात्मक "पैरेडाईम शिफ्ट"  के नजरिए से देखें जानें की आवश्यकता है। इससे भारतीय लोक आस्थाओं को सही, तथ्यात्मक और वैज्ञानिक आधार पर मजबूत किया जा सकता  है।

(आप मेरे अन्य आलेख    www.niranjansinha.com या   niranjan2020.blogspot.com  पर  देख सकते हैं।)

निरंजन सिन्हा|

6 टिप्‍पणियां:

  1. मैं टिप्पणी करने की धृषटता नहीं कर सकता। आप तो उस एक वाक्य में वो सब देख लिए जो कहने वाले ने....उनके ज्ञान की अभी तो चर्चा होती है, कल इतिहास में शायद...

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  2. भगवान राम और भगवान बुद्ध में संबंध लेख के माध्यम से आपने बहुत ही रोचक जानकारी प्रस्तुत किया है।
    बहुत बहुत आभार।

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  3. सार्थक!! प्रधानमंत्री जी तो वैसे ही इतने महान हैं, कि उनके अनुयायी देश की आजादी का श्रेय 'श्री नरेन्द्र मोदी जी" को दे रहे हैं। तो फिर आपने तो .... उनकी प्रसंसा में इतना साक्ष्य अवष्य दे दिया कि राजा रामचन्द्र प्राचीन काल नहीं पैदा हुए, वे मध्यकाल में पैदा हुए.....

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  4. डा मेधन्कर साहब,
    आपकी टिप्पणी से यह स्पष्ट है कि आपने इसे गंभीरता से नहीं पढ़ा।
    आपने मिथक और इतिहास की अवधारणा पर ध्यान नहीं दिया। आपने व्यक्ति और व्यक्तिव में अंतर नहीं किया।

    आपने आलेख को पढ़ा, धन्यवाद।

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  5. दोनों बकवास हैं। जितना ज्यादा शोध करेंगे, उतना ही निराशा हाथ लगेगी।

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