लड़ाईयां सिर्फ वर्चस्व के लिए ही नहीं होती, लड़ाईयां बदलाव
के लिए भी होती है| इस बदलाव को
रूपांतरण (Transformation) या विकास (Development) भी कहते हैं| तीव्र रूपांतरण
या विकास को ही क्रान्ति (Revolution) कहा जाता है| बदलाव, रूपांतरण एवं विकास
का क्रान्ति सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक या राजनैतिक किसी भी क्षेत्र में हो सकता
है| किसी भी क्षेत्र में जीतने के लिए रणनीति की जरुरत होती है| सभी क्षेत्रों
में जीत के लिए रणनीति में मौलिक समानता है|
सवाल यह है कि इसे सफलतापूर्वक कैसे जीता जाएँ? यदि रणनीति में मौलिक समानता है, तो हमें कुछ रणनीति (Strategic)
के उदहारण सामाजिक, सांस्कृतिक, वैधानिक, सैन्य, वैज्ञानिक क्षेत्र इत्यादि में देखने चाहिए| थामस कुहन (Thomas Kuhn) ने एक पुस्तक– “The Structure of Scientific Revolution” सन 1962
में लिखी| इन्होने यह पुस्तक तो वैज्ञानिक क्रान्ति के सन्दर्भ में लिखी, परन्तु
यह किसी भी क्रान्ति के सन्दर्भ में भी पूरी तरह सही है| उन्होंने किसी भी
क्रान्ति के लिए नजरिया (Attitude) एवं दृष्टिकोण (Perspective) में पैराडाईम शिफ्ट (Paradigm Shift) करने के लिए कहा| यह
एक ऐसा महत्वपूर्ण अवधारणा है, तकनीक है , जिससे कोई कम समय में, कम संसाधन से एवं
कम उर्जा के साथ लड़ाई को जीत जाता है|
इस पैराडाईम शिफ्ट में लड़ाई के आधारभूत
हथियारों (Weapons), तकनीको (Techniques), अभियंत्रण (Engineering) एवं रणनीतियों (Strategies)
के आधार (Base), सन्दर्भ (Reference), पृष्ठभूमि (Background) के साथ साथ नजरिया (Attitude)
एवं उपागम (Approach) बदल दिए जाते हैं| यह सब कुछ आसान कर देता है| असम्भव सम्भव हो जाता है| यह बहुत महत्त्वपूर्ण है, जिसे
हर रणनीतिकार समझता है; हम समझें या नहीं समझें|
द्वितीय विश्व युद्ध में परमाणु बम का गिरना इस महत्वपूर्ण
रणनीति का हिस्सा रहा| आपने सुना या जाना होगा कि किसी न्यायलय के लम्बे वाद या
विवाद में किसी पक्ष ने कोई पैराडाईम शिफ्ट कर लिया और वह मुकदमा आसानी से जीत
लिया| किसी लम्बे विद्वतापूर्ण तथ्यों एवं क़ानूनी बारीकियों के उपस्थापन के बातों
को छोड़ कर अन्य पक्ष ने किसी मूल (Basic) एवं मौलिक (Original) प्रश्न खड़ा कर
दिया| तब सारी विद्वतापूर्ण उपस्थापन बेकार चला जाता है|
भारत में सामाजिक रणनीति के अन्तर्गत भारत की बड़ी आबादी का
मनोबल (Moral / Psychic Force) तोड़ने और गिराने के लिए उन्हें “नीच” (Inferior) बनाने का अभियान चलाया जा रहा है| भारत की बहुत बड़ी “अवर्ण” आबादी का “शुद्रिकरण” किया जा
रहा है| सवर्ण अर्थात ‘वर्ण’ के साथ’
के चार श्रेणियां हैं – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शुद्र| ये सभी “स - वर्ण”
है| शुद्र सामंतों के व्यक्तिगत सेवक होते थे, जो शायद
अब कहीं नहीं हैं| इन्ही कारणों से इस शुद्र पर बहुत से प्रतिबन्ध एवं
निर्योग्यताएं निर्धारित थे| समाज में “वस्तुओं
एवं सेवाओं” के उत्पादक जातियां “अवर्ण” श्रेणी में थे, जो वर्ण व्यवस्था से बाहर
थे| विदेशी संस्कृति को मानने वाले भारतीय भी “अवर्ण” श्रेणी के ही
दुसरे हिस्से रहे| अब इन अवर्णों को शुद्र बनाने का
सघन अभियान जारी है|
आर्थिक क्षेत्र में क्रान्तिकारी बदलाव के लिए दो
महत्त्वपूर्ण संस्थान (Institution) का
बहुत बड़ा योगदान है| प्राचीन काल में मुद्रा (Currency)
एवं आधुनिक काल में कम्पनी (Company) ऐसे
ही पैराडाईम शिफ्ट के उपज के स्पष्ट उदहारण हैं|
लड़ाईयां लड़ने वालों की चूक कहाँ हो जाती है? वे अक्सरहाँ
विरोधियों के बिछाएं गये में जाल में ही उलझे रहते हैं और ख्वाव जीतने का देखते
रहते हैं| ऐसे लोग विरोधियों के ही आक्रमण के इन्तजार में रहते हैं| समाज के विकास
का विरोधी व्यवस्था ही होता है, जिस पर कुछ स्वार्थी लोग येन केन प्रकारेण कब्ज़ा
जमायें रहतें है और यथास्थितिवाद को ही मजबूत करते रहते है| विकास के पक्ष में बदलाव की चाहत रखने वालों का यदि कोई
अपना स्पष्ट मुद्दा (Issue / Agenda) नहीं होता, कोई स्पष्ट दृष्टि (Vision) नहीं
होती, तो ऐसी स्थिति में वह यथास्थितिवादी व्यवस्था के द्वारा जानबूझकर या चूक से
दे दिए मुद्दों पर ही निर्भर करता हुआ होता है| इन मुद्दों के अभाव में वह
बेरोजगार होकर फिर किसी मुद्दों के इन्तजार में होता है| ऐसे तथाकथित
बदलाव के क्रान्तिकारी लोग वस्तुत: हवा हवाई ही होते हैं| ऐसे लोग छोटे समय के लिए
लाभार्थी भी हो सकते हैं, परन्तु बदलाव की बातें बेमानी हो जाती है| लोग ठगे महसूस
करते हैं और पीढियाँ गुजरती रहती है|
इन लड़ाइयों को जीतने लिए यानि सामाजिक, आर्थिक एवं सांकृतिक क्षेत्र में
क्रान्तिकारी बदलाव के लिए हमें अपने मौलिक हथियार, उपकरण, तकनीक, अभियंत्रण,
रणनीति चाहिए| इसके लिए हमें अपने शब्द. अपनी अवधारणा,
अपने विचार और अपना नजरिया निर्धारित करना होगा| अन्यथा हम व्यवस्था के
शब्द, अवधारणा (Concept), रणनीति एवं अभियंत्रण (Engineering) में उलझें रहेंगे| और
विकास के नाम पर जनता की ठगी जारी रहेगा|
विक्टर ह्यूगो ने कहा था कि एक विचार एक उपयुक्त समय पर बहुत शक्तिशाली होता है|
लेकिन कोई उपयुक्त समय नहीं आता, उपयुक्त विचार बनाने होते हैं|
साफ्टपावर हमेशा हार्डपावर से ज्यादा प्रभावी एवं शक्तिशाली होता है|
आपसे एक बार फिर अनुरोध रहेगा कि आप भी समाज, राष्ट्र एवं
मानवता के हित में अपने विचार में पैराडाईम शिफ्ट करके देखियें| भारत फिर से विश्व गुरु होगा|
निरंजन सिन्हा
मौलिक चिन्तक, व्यवस्था विश्लेषक एवं बौद्धिक उत्प्रेरक