शनिवार, 3 जुलाई 2021

एक वैश्विक राजा की कहानी

(शांत लेकिन वर्तमान वैश्विक गतिविधियों पर एक आलेख) 

मैं आज आपको एक वैश्विक राजा (Global King) की कहानी सुना रहा हूं। कहानी आज की है, यानि वर्तमान की है, तो निश्चितया यह आधुनिक युग की वर्तमान और निकट भविष्य एवं दूर भविष्य की कहानी ही होगी। यह कोई परम्परागत घिसी-पिटी या किसी पौराणिक कहानी के आधार पर कोई नई कहानी नहीं होगी। यह कई स्वरूपों में नया, अनूठा, अजूबा, सांदर्भिक, उपयोगी और नई चिंतन को आधार देने वाली होगी। दरअसल यह एक आलेख है, जो एक कहानी के स्वरुप में आपको वर्तमान बदलते वैश्विक परिदृश्य को समझने में दिशा देगी। यह भविष्य में आपके सफलता का सूत्र भी हो सकता है।

पहले इस वर्तमान राजा के स्वरूप को समझते हैं, कि यह कैसा राजा है? राजा की कहानी से आप यह मत समझ लीजियेगा कि इसमें राजा की अवधारणा किसी परम्परागत अवधारणा की ही तरह होगी। राजा का वास्तविक मतलब होता है - एक ऐसा व्यक्ति जो 'शासन' का वास्तविक नियंत्रक होता हो अर्थात 'व्यवस्था' का वास्तविक सूत्रधार होता हो। राजा के अर्थ में उसके लिंग पर भी मत जाइएगा। वह पुरुष भी हो सकता है, या स्त्री भी हो सकती है, या इन दोनों से भिन्न भी हो सकता है। लेकिन यह एक वास्तविक राजा ही होगा, कोई कल्पित वास्तविकता (Imaginary Reality) नहीं होगा। इसलिए राजा अवश्य ही एक प्राकृतिक  व्यक्ति (Natural Person, not Artificial or Legal Person) होगा। हां, यह जरूरी नहीं कि राजा एकल  (Single) व्यक्ति ही हो, वह समूह में भी हो सकता है, यानि समूह को भी अभिव्यक्त कर सकता है। अर्थात समूह में भी सम्मिलित हो सकता है। ...तो एक ऐसे ही राजा की कहानी, मैं आज आपको सुना रहा हूं। कहानी आधुनिक है और लोग अर्थात जनता (श्रोता) भी बौद्धिक एवं विवेकशील हैं| इसलिए यह कहानी आपकी बौद्धिकता की मांग भी करेगी और विवेकशीलता को भी रेखांकित करेगी।

पहले के राजा के राज्य का क्षेत्रफल अधिकतम कुछ लाख वर्ग किलोमीटर तक सीमित हो सकता था, और इन राज्यों की आबादी कुछ करोड़ तक की हो सकती थी। परन्तु आज के वैश्विक राजा के राज्य का क्षेत्रफल वर्तमान  पृथ्वी के सम्पूर्ण स्थलीय एवं सागरीय क्षेत्र को अपने में समेटे हुए है। इतना ही नहीं, बल्कि इसके दायरे में इसके नीचे का (अंत: सागर- Inner Sea) और ऊपर का 'गहन आकाश' (Deep Space) का भी हिस्सा शामिल है।

 इन राजाओं के लिए वर्तमान राजनीतिक सीमाएं यानि वर्तमान देशों की सीमाएँ व्यर्थ की अवधारणा हैं| ये राजनीतिक सीमाएँ तो मात्र दिखावटी हैं, और यह आम लोगों को तथाकथित राष्ट्रीयता के नाम पर आत्ममुग्ध करने वाली भी हैं। विभिन्न देशों के लिए, यानि विभिन्न संस्कृतियों के समाजों के लिए इन राजाओं को मात्र प्रबंधकों की जरुरत  है| अतः आज के तथाकथित राज्याध्यक्ष (राष्ट्रपति/ साधारण राजा) या शासनाध्यक्ष (प्रधानमंत्री) उस राजा की इच्छा और मन्तव्य के अनुसार अपने अपने देशों में यही कार्य कर रहें हैं, और इस प्रकार  इस राजा की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता की पूर्ति हो जा रही है| इस तरह प्रचलित व्यवस्था भी यथावत दिखती है, और क्रन्तिकारी परिवर्तन भी होता रहता है|इन वैश्विक राजाओं का काम होना चाहिए, जो हो ही रहा है| परिवर्तन का मनोविज्ञान भी यही कहता है| इससे यानि व्यवस्था में यथास्थिति दिखाने से जनता में असंतोष नहीं होता है, क्योंकि यथास्थिति की गर्माहट बनी दिखती रहती है|

इन राजाओं के निकट योजना  में सौर मंडल के अन्य हिस्सों एवं आकाश गंगा के अन्य हिस्सों पर भी ध्यान है। आप इसे दुबारा पढ़कर ध्यान में रखें। पहले के राजा अपने अपने क्षेत्र के सर्वेसर्वा थे। आज के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, राज्याध्यक्ष, शासनाध्यक्ष इत्यादि आज भले ही अपने क्षेत्र के राजा दिखते हैं, परन्तु ये वास्तविक राजा होते नहीं हैं| इनके नागरिकों या प्रजाओं को लगता है, कि ये ही इनके वास्तविक राजा हैं। ये दिखावटी राजा अब वैश्विक राजाओं के कठपुतली मात्र रह गए हैं। मैं राजाओं के स्वरुप में हो रहे अंदरूनी बदलाव और निकट भविष्य में होने वाले बदलाव से आपको अवगत कराना चाह रहा हूं। आज़ के वास्तविक वैश्विक राजा वे नहीं है, जो हमें प्रत्यक्ष दिखते हैं और जिसे हम समझते हैं।

आज के "वैश्विक राजा बड़े-बड़े कारपोरेशनों (Corporations) के बड़े बड़े शेयर धारक हैं, जिन्हें हम प्रचलित भाषा में मालिक (Owner) समझते हैं"। चूंकि कारपोरेशन एक 'कल्पित वास्तविकता' है, और इसलिए यह वास्तविक राजा नहीं है। मैंने पहले ही कहा है कि यह वैश्विक राजा प्राकृतिक व्यक्ति हैं, जो समूह में काम करते हैं, या कर सकते हैं। ऐसे ही एक-एक राजाओं की व्यक्तिगत सम्पत्ति छोटे- बड़े देशों की अर्थव्यवस्था से बड़ी होती है। भारत जैसे विशाल एवं प्रभावशाली देश की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था से भी बड़ी सम्पत्ति किसी व्यक्ति की हो सकती है। ऐसी स्थिति में एक बड़ा सवाल है कि विश्व को कौन चला रहा है,  यानि विश्व का राजा कौन हैं - इन देशों के शासनाध्यक्ष या राज्याध्यक्ष या इन कारपोरेशनों के मुख्य शेयर धारक? आपको मेरा यह सवाल अटपटा लग रहा होगा, पर यह अटपटा नहीं है। चूंकि यह अवधारणा आपके उम्मीद के अनुरूप नहीं है, इसीलिए आपको समय से थोड़ा आगे जाना होगा। तब आपको सबकुछ स्पष्ट दिखाई देगा। जब आपको सबकुछ स्पष्ट दिखाईं देगा, तो आप आने वाले समय के लिए तैयार भी रहेंगे। जब सब लोग व्यथित रहेंगे, तब भी आप आगे बढ़ते रहेंगे।

 फिर आप तथाकथित सम्प्रभुता को ध्यान में लायेंगे| बड़े देशों की हो रही पूछ का ध्यान करेंगे| बड़े देश या तो अर्थव्यवस्था में बड़े होंगे या आबादी में बड़े होंगे| बड़े आबादी वाले देशों को लगता है, कि उनकी पूछ का कारण उनकी संस्कृति या उनके प्रधानमंत्री का व्यक्तित्व, या उनकी शक्ति है, तो आप भ्रम में हैं| इन बड़ी आबादी वाले देशों की पूछ इनके बाजार के आकार एवं उनकी क्रय क्षमता से है| इसीलिए आप देखेंगे कि किसी बडी आबादी वाले देशों के शासनाध्यक्ष की पूछ उनके व्यक्तिगत प्रभाव से नहीं होकर, उन देशों की खाने-पचाने की क्षमता के कारण होती है और इनके बदलने के बाद भी नए वाले को कोई मामूली अंतर ही नहीं पड़ता है|

अब इन राजाओं की क्रियाविधि समझिए, इनका मनोविज्ञान देखिए, इनकी दूरदर्शिता को जानिए और इनकी आवश्यकताओं को महसूस कीजिए। इसके साथ वर्तमान कठपुतली  राजाओं की बाध्यताओं को बढ़िया से परखिए। किसी भी देश के इन्हीं कठपुतली राजाओं को हम आजकल के शासनाध्यक्ष (प्रधानमंत्री) कहते हैं। ये आधुनिक राजाओं जैसे दिखते तो हैं, परन्तु वास्तविकता में हैं नहीं। वैसे इन वैश्विक आधुनिक राजाओं के समूह में कौन-कौन कार्यकारिणी (Executive) में हैं, कौन- कौन समर्थन मंडल में हैं और कौन-कौन नीति निर्धारण मंडल में हैं; निश्चितता के साथ कहना बहुत आसान नहीं है। लेकिन यह निश्चित है कि ये सभी  बौद्धिकता में उत्कृष्ट स्तर के और सम्पत्ति के मामलों में शिखर पर हैं| इन सबों की क्रियाविधियों को समझने के लिए आपको इतिहास के झरोखे में ले जाऊँगा और अर्थव्यवस्था के विभिन्न प्रक्षेत्रों (sectors) को बताऊंगा|

समाज का स्वरूप अर्थव्यवस्था के उत्पादन (Production), वितरण (Distribution) विनिमय (Exchange) एवं उपभोग के साधनों एवं उनकी शक्तियों तथा उनकी क्रिया- विधियों (Mechanics) से नियंत्रित, निर्धारित एवं संचालित होता है| इसी कारण समाज के परिवर्तन की कहानी पाषाण युग, धातु या लौह युग में भी जारी रही| इसके लम्बे काल के बाद सामंत युग आया| यूरोप में सामंतवादी युग के अवशेष पर व्यापारिक (Mercantile) युग आया| जल्दी ही इसके बाद औद्योगिक (Industrial) युग भी आया| यह  दोनों  (अर्थात व्यापारिक एवं औद्योगिक) साम्राज्यवाद (Imperialism) की क्रमश: पहली एवं दूसरी अवस्थाएं थीं| लेकिन साम्राज्यवाद का यह स्वरूप कब "वित्तीय साम्राज्यवाद" (Financial Imperialism) में बदल गया, लोगों को इसका पता ही नहीं चला| वित्तीय रूप से समृद्ध देशों के अलावा अन्य उपनिवेशों के देश ही उत्पादन के केंद्र बन गए और खपत के बाज़ार सिद्ध भी हुए| 

 इन साम्राज्यवादियों को सिर्फ निवेश (Investment) की सुरक्षा एवं अपना समुचित लाभांश (Dividend) चाहिए| यही वित्तीय साम्राज्य का वास्तविक स्वरूप है| चूँकि विषय वस्तु यह नहीं है, इसलिए इसे संक्षिप्त ही रहने दें| इसी वित्तीय साम्राज्यवाद के कारण इन उपनिवेशों को, आज जो दिखती हुई (Visible) राजनितिक स्वतंत्रता (Political Freedom) मिली है, वह वास्तविक नहीं है| साम्राज्यवाद का यह स्वरूप द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आया और समस्त बड़े उपनिवेशों को आज की दिखती हुई राजनितिक स्वतंत्रता मिल गयी| ये उपनिवेश भी अपनी जनता को भ्रमित करने के लिए स्वतंत्रता संग्राम की उपलब्धियों की अच्छी-अच्छी कहानियाँ गढ़ लिए| इससे आम जनता का ध्यान वित्तीय साम्राज्यवाद की ओर नहीं गया| ....और वित्तीय साम्राज्यवाद का यह स्वरूप आज बदस्तूर जारी है|

 इसी प्रसंग की अगली कड़ी  इन वैश्विक राजाओं पर जाती है| इसी को उद्धृत करने के लिए ही मैं इतिहास के झरोखों में आपको ले आया|

अब इस वित्तीय साम्राज्यवाद में सुचना तकनीक (Information Technology) का डाटावाद (Dataism) भी शामिल हो गया है| अब फिर आपका ध्यान समाज के बदलते स्वरूप में अर्थव्यवस्था के उत्पादन, वितरण, विनिमय एवं उपयोग के साधनों, शक्तियों एवं उनकी क्रिया- विधियों की भूमिका की ओर खींचना चाहता हूँ| अर्थव्यवस्था के पाँच प्रक्षेत्र (Sector) होते हैं| पहला प्रक्षेत्र – प्राथमिक प्रक्षेत्र (Primary Sector) है, जिसमें प्रकृति से प्रत्यक्ष लाभ लिया जाता है, जैसे कृषि, पशुपालन, वानिकी, खनन इत्यादि| दूसरा प्रक्षेत्र (Secondary Sector) वह है, जिसमे प्रथम प्रक्षेत्र से प्राप्त वस्तुओं एवं सेवाओं में मूल्यवर्धन (Value Addition) होता है, जैसे औद्योगिक उत्पादन| तीसरा प्रक्षेत्र (Tertiary Sector) वह है, जिसमे उपरोक्त दोनों सहित को सेवा उपलब्ध कराया जाता है| चतुर्थ प्रक्षेत्र (Quaternary Sector) वह है, जिसमें ज्ञान का विविध उपयोग होता है| इस चौथे प्रक्षेत्र में ज्ञान आधारित सलाह एवं अन्य ज्ञान शामिल हैं| पंचम क्षेत्र (Quinary Sector) नीति निर्धारण क्षेत्र है, जो डाटावाद पर आधारित है| इसीलिए आप बड़े-बड़े अर्थशास्त्रियों को डाटा की अशुद्धता,अपरिपूर्णता, अनुपलब्धता पर ज्यादा जोर देते हुए देखते हैं| इस पैरा में मैं यह सब इसलिए बता रहा हूँ, ताकि आप यह समझ सकें कि इन आधुनिक कारपोरेशनों की वर्तमान एवं भविष्य की आवश्यकताएं क्या हैं?

अब आप वैश्विक अवस्था या वैश्विक व्यवस्था के स्वरूप को समझिये| इससे आपको उनकी आवश्यकताओं को समझने में सहायता मिलेगी| आज सूचना तकनीक (Information Technology), कृत्रिम बुद्धिमता (Artificial intelligence), ब्लाकचेन तकनीक (Block Chain Technology), वस्तुओं का इन्टरनेट (Internet of Things), रोबोटिक्स (Robotics), क्रिप्टोकरेंसी (Crypto Currency), जेनेटिक इंजीनियरिंग (Genetic Engineering), नैनो तकनीक (Nano Technology) और डाटावाद (Dataism) का युग है| इसने प्राथमिक प्रक्षेत्र एवं द्वितीय प्रक्षेत्र में मानव की भूमिका अत्यन्त सीमित कर दिया है| इतना ही नहीं, इसने तृतीयक  प्रक्षेत्र में भी मानवीय भूमिका को सीमित कर दिया है| अब इन आधुनिक कारपोरेशनों को अर्थव्यवस्था के चतुर्थक एवं पंचम प्रक्षेत्र के लिए ही मानवों की आवश्यकता रह गयी है| अब हमें यह समझना है कि इन कारपोरेशनों को अर्थव्यवस्था के चतुर्थक एवं पंचम प्रक्षेत्रों के लिए कैसे मानवों की आवश्यकता है?

ये वैश्विक राजा यानि इन आधुनिक कारपोरेशनों के मालिक क्या सोचते हैं और क्यों सोचते हैं। उनकी चिंता है, उनके भावी पीढ़ियों के लिए विश्व को सुखमय बनाना और इस पृथ्वी का प्रभाव  ब्रह्मांड के अन्य हिस्सों तक बढ़ाना। पर इस योजना में पृथ्वी के सभी होमो सेपियंस शामिल हैं या नहीं; यह एक बड़ा ही विवादास्पद प्रश्न होगा? वास्तव में इस पृथ्वी पर इनके लिए दो ही तरह के लोग हैं – पहला, निकट भविष्य के लिए उपयोगी लोग एवं दूसरा, निकट भविष्य के लिए अनुपयोगी लोग| लोगों की उपयोगिता समय एवं स्थान के अनुसार बदलती रहती है| यह तकनीक एवं विज्ञान की आवश्यकता और अवस्था के अनुसार बदलता रहता है| कल तक जो उपयोगी था, यह जरूरी नहीं है, कि वह आज भी उपयोगी  हो| इसलिए आपको भविष्य की रूप रेखा बता रहा हूँ, ताकि आप उसमे सहज रहें एवं भविष्य के बदलाव के लिए तैयार रहें|

अब आप भी समझिये, कि किसी के लिए अनुपयोगी वस्तुओं का कोई क्या करेगा? स्वाभाविक है, कि उसे कूड़ेदान में फेंक देगा| इस तरह प्राथमिक प्रक्षेत्र एवं द्वितीयक प्रक्षेत्र के लिए बहुत कम मानवों की आवश्यकता होगी| तृतीयक प्रक्षेत्र में भी कृत्रिम बुद्धिमता एवं ब्लाकचेन तकनीक अपना प्रभाव बढाती जा रही है| तृतीयक प्रक्षेत्र में इन तकनीकों ने इन रट्टू शिक्षकों, रट्टू अभियंताओं, रट्टू चिकित्सकों, रट्टू सुपरवायजरों, एवं अन्य रट्टू सेवाप्रदाताओं का स्थान ले लिया है| रट्टू और आस्था वाले लोगों को उतना ही दिखता और समझ में आता है, जितना ये आधुनिक वैश्विक राजा लोगों को दिखाना चाहते हैं। चूंकि इन रट्टू एवं आस्थावान लोगों में अपनी तार्किकता, विश्लेषण क्षमता और विवेकशीलता नहीं होती है, इसलिए इन्हें इन गतिविधियों का आभास (Inkling) भी नहीं होता है, कि इन्हें कोई खास दिशा में हांक (To Stalk) करके ले जा रहा है। ऐसे लोग तर्कहीन होते हैं| ये लोग उतना ही जानते हैं एवं सोच सकते हैं, जितना पहले ही जाना जा चुका है, और सोचा जा चुका है| इसके आगे जान लेना और सोच लेना इनके वश की बात नहीं होती | इसीलिए इन समाजों में रहने एवं बढ़ने वालों में कोई खास नवाचार (Innovation) नहीं होता| इसीलिए नोबल पुरस्कार की सूची में इन समाजों की हिस्सेदारी नहीं होती है| यदि कोई होता भी है तो वह विज्ञान का क्षेत्र नहीं होगा| यदि वह विज्ञान का क्षेत्र है भी, तो वह वैज्ञानिक निश्चितया किसी बाहरी संस्कृति के समाज में ही रहकर एवं अध्ययन कर इसे पाया होगा| या इन नियमों के अपवाद (Exception) होंगे|

अर्थव्यवस्था के चतुर्थ एवं पंचम प्रक्षेत्र के लिए कैसे लोगों की आवश्यकता है? यहां वस्तुत: वैसे लोगों की जरूरत है, जो लोग ज्ञान रखते हैं, और डाटा का समुचित विश्लेषण कर सही निष्कर्ष निकाल सकते हैं| इसके लिए वैज्ञानिक मानसिकता (Scientific Temper), तर्कशीलता, विश्लेषण क्षमता, विवेकशीलता और ज्ञान की आवश्यकता होती है| जिन लोगों में वैज्ञानिक मानसिकता नहीं होगी, उनमे तर्कशीलता नहीं होगी, और वे प्राकृतिक शक्तियों एवं उनके मानवीयस्वरूप (Personification) में  अंतर को और उसके पीछे के षड्यंत्र (Conspiracy) को नहीं समझ पाते हैं| ऐसे लोग आस्थावान होते हैं अर्थात ऐसे लोग रट्टू होते हैं| इनमे सोचने के लिए पैराडाईम शिफ्ट (Paradigm Shift) नहीं हो सकता है| यानि ये लोग किसी चीज को एकदम नए नजरिये से नहीं सोच सकते हैं| अब आप ही बताइए कि, ऐसे अनुपयोगी लोगों को ये कार्पोरेशन क्या करेंगे? इनको तर्कशील लोग चाहिए, ऐसे तर्कहीन लोग नहीं चाहिए| हाँ, इनको कुछ विवेकशून्य लोग चाहिए होंगे, जिन्हें वे नहीं लौटने वाले अन्तरिक्ष यानों पर ख़ुशी ख़ुशी भेज सकें| इन्हें मशीनी मानव कह सकते हैं|

मानव भी एक जीव है| हर जीव की भांति मानव भी मरना नहीं चाहता| इसलिए हर मानव शारीरिक असुरक्षा से डरता है| और इसलिए वह खतरों एवं रोगों से डरता है| आपका शरीर  खतरों एवं रोगों से मुक्त रहें, इसीलिए ऐसी व्यवस्था की जा रही है, कि इन खतरों एवं रोगों की नियमित जानकारी होती रहे| हमलोगों के शरीर में इसी के लिए जल्दी ही माइक्रोचिप्स लगाये जायेंगे| “न्यूरोलिंक” कम्पनी ने एक माइक्रोचिप्स बना लिया है, जो एक सेंटीमीटर गुने एक सेंटीमीटर के आकार का है, और यह नब्बे हजार न्यूरॉन (Neurons) को जोड़ता है| इसका सफल प्रयोग एक भेड पर किया जा चूका है| जल्दी ही यह मानवों पर भी सफल परिणाम देगा| ये चिप्स आपको आपका तापमान, धड़कन की गति, रक्तचाप, रक्त में शर्करा की मात्रा इत्यादि तो बतायेगा ही, परन्तु आपसे सम्बंधित हजारों एवं लाखों सूचनाओं को इनके मालिक कम्पनी को देगा| जैसे आज “फेसबुक” कुछ सुविधाए आपको देता है, परन्तु वह बहुत से आंकड़ों का संकलन भी करता है, जिसकी जानकारी हमें नहीं है और जो हमारे लिए महत्वपूर्ण भी नहीं लगता है| कोई भी जानकारी यानि सुचना महत्वपूर्ण है या नहीं, उस सूचना से निर्धारित नहीं होता है| इसकी महता उसके उपयोगकर्ता की आवश्यकता, उसके दृष्टिकोण, उसके स्तर एवं विश्लेषण क्षमता पर निर्भर करता है|

आज भारत के लोग पीछे लौटने पर आमदा हैं, या ऐसे ही विवाद पर व्यस्त हैं, परन्तु विकसित समाज कुछ और की ही तैयारी कर रहा है| हम भारतियों को तो यह भी पता नहीं चल रहा है, कि वहाँ कुछ नया हो भी रहा है? अब आप समझ सकते हैं कि वैश्विक राजा की आवश्यकताओं में हम भारतीय लोगों की क्या स्थिति है? आज हमें वैश्विक राजाओं की आवश्यकताओं एवं उनकी क्रिया विधि को समझना है, ताकि हम भविष्य के लिए उचित तरीके से तैयार रहें|

(कृपया टिप्पणी एवं सुझाव अवश्य अंकित करें, ताकि हमें अपेक्षित दिशा भी मिलती रहे|)

 आचार्य निरंजन सिन्हा

चिन्तक, व्यवस्था विश्लेषक एवं बौद्धिक उत्प्रेरक|

 

 

 

 

7 टिप्‍पणियां:

  1. प्रणाम सर। आपका लेख हमेशा ही प्रासंगिक और ज्ञानवर्धक होता है। आपका लेख हमें हमारा मार्गदर्शन भी करता है।
    बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।

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  2. और अंततः हमलोग इसी डाटावाद के साथ वैश्विक राजाओं के गुलाम बने रहेंगे....क्योंकि असल चाभी तो उनके ही पास है.......
    बहुत ही सूक्ष्म अवलोकन सर...धन्यवाद

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  3. शायद तृतीय नेत्र खुलना इसे ही कहते होंगे।
    प्रशंसा के लिए शब्द कम पड़ रहे थे, इसलिए उन विशिष्ट शब्दों को अभिव्यक्त करने का साहस न जुटा सका।
    ऐसे ही प्रकाशवान बने रहे सर, ये प्रकाश अपना असर अवश्य दिखायेगा।
    मेरी शुभकामनाएं सदैव आपके साथ है।।

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  4. प्रणाम महोदय।
    बहुत सुन्दर,प्रासंगिक आलेख पूर्ण सहमत हूँ । भविष्य में जो भी देश (छोटा या बड़ा मायने नहीं रखता) अपनी तकनीक व विधा को उन्नत व आगे रखेगा विश्व व ब्रह्माण्ड पर राज करेगा।तकनीकी विहीन राष्ट्र विकास के लिए कटोरा फैलाए उनके आगे उनकी हर शर्त को मानते हुए कतार में खड़ा होगा।जो राष्ट्र तकीनीकी रूप से सक्षम होंगे उनको पूरा सम्मान व सहयोग मिलेगा। सादर

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  5. प्रणाम आदरणीय सिन्हा सर!
    आपका लेख प्रासंगिक, ज्ञानवर्धक है इस उच्च कोटि का लेख लिखना अपने आप में बहुत ही कठिन कार्य है क्योंकि जिस स्तर की आपने जानकारी दी है उसके लिए हमें बहुत रिसर्च करनी पड़ेगी। वैश्विक शक्तियां डाटावाद के आधार पर क्या करने वाली है भविष्य में, इसका अपने प्राथमिक क्षेत्र से शुरू करके पंचम क्षेत्र में विभाजन किया है, जो वह एकदम सही है।
    हम सभी गौरवान्वित हैं की एक तर्कशील, विद्वान व्यक्ति इस ग्रुप में शोभित है। सर, ऐसे ही लेख लिख रहे जिससे हम सभी तर्कवादी बने।
    सादर
    🙏🏻

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