सावधान
तो रहना है, पर किससे? शायद यह प्रश्न आज बहुत ही विचारणीय
है|
ऐसा इसलिए है कि आज
हमारे ही समाज के लोग और देश के लोग दोहरे चरित्र में जीते हैं| जो लोग सैद्धांतिक रुप में
कोई बात बोलते हैं, पूरी गंभीरता से समझते हैं, लेकिन आचरण एवं व्यवहार में पूरा
इसके विपरीत करते हैं| ऐसा नहीं है कि इस दोहरे चरित्र के लोग सिर्फ सामान्य जन ही
है, बल्कि इसमें बड़े बड़े अधिकारी, बुद्धिजीवी, राजनेता भी शामिल हैं| भारत की सबसे मुख्य समस्या
यही दोहरा चरित्र है|
मेरा
सन्दर्भ अपने समाज के लोगों के बात एवं व्यवहार के प्रतिरूप के सम्बन्ध में है| इनका दोहरापन निर्वाचन
के समय, कर्तव्यों के निर्वहन के समय और राष्ट्र प्रेम के
सम्बन्ध में सबसे मुखर होकर दिखता है| ऐसे दोहरे चरित्र वाले लोग अपनी सिद्धांतों
की बड़ी बड़ी बात करेंगे, किसी ख़ास राजनीतिक दलों के सिद्धांतों के विरुद्ध आग उगलेंगे,
लेकिन निर्वाचन में जब मत देना होगा, तब जाति एवं धर्म के नाम पर अपना मत उसी को
या उसी गठबंधन को देंगे|
इसी तरह कुछ लोग जातिवादी व्यवस्था के कट्टर विरोधी होंगे, लेकिन जाति को
मजबूत करने के लिए जाति का कट्टर समर्थक भी होंगे| यही दोहरा चरित्र है| ऐसे लोगों की जमात से सावधान
रहना है| ऐसे लोगों के साथ आप सिर्फ अपना समय, संसाधन, उर्जा और वैचारिकी नष्ट कर
रहे हैं|
एक
सामान्य आदमी को ‘मूर्ख’, ‘धूर्त’, ‘समझदार’ और ‘नादान’ की
श्रेणी में विभाजित किया जा सकता है| “मूर्ख” उसको कहा जाता है जो बिना
तर्क और विश्लेषण किये ही किसी भी बात को तथ्य एवं सत्य मान ले और उस तथाकथित सत्य
पर मर मिटने को उतारू भी हो जाए| ऐसे आस्थावानों को क्या कहा जाय, जो किसी भी भावनात्मक सूचना को सही मान
कर ही उड़ने लगते हैं| “धूर्त” उनको कहा जाता है, जिनके पास विश्लेषण एवं
तर्क क्षमता दोनों होता है और सारी बातो को समझते हुए भी अपने परिवार तथा संकुचित
समुदाय के हितलाभ के लिए राष्ट्र एवं बृहत् समाज के विरुद्ध चला जाना सामान्य बात समझते
है| और जो व्यक्ति
इन दोनों श्रेणी में नहीं होता है, उसको “नादान” कह सकते हैं| “समझदार” उसको कहेंगे जो वैज्ञानिक मानसिकता रखता है और
तार्किक विश्लेषण भी करता है एवं सम्पूर्ण मानवता तथा शान्ति- समृद्धि की समझ भी
रखता है|
सभी
लोग राष्ट्र की बात करते हैं, राष्ट्र की समृद्धि एवं विकास की बात करते हैं,
लेकिन उनका प्रेम और समर्पण अपने समुदाय, अपनी जाति, अपने धर्म या अपने अपने परिवार
के प्रति सबसे पहले होगा, और उसमे राष्ट्र कहीं नहीं होगा| यह भी हो सकता है कि ये लोग
राष्ट्र, देश एवं राज्य को समझते ही नहीं हो| अवधारणाओं (Concept) को नहीं जानना
समझना कोई गलत बात नहीं है| पर यदि कोई बुद्धिजीवी इसे
समझना भी नहीं चाहता है, तो यह समाज के लिए दुखदायी बात हो जाती है| सरकार भी शिक्षा में वैज्ञानिक मानसिकता (Scientific Temper) और विश्लेषणात्मक चिंतन (Critical Thinking) पर
जोर दे रही है| जो व्यक्ति आसानी से भावनाओं में बह
जाएँ और संकीर्ण दायरों में बंध जाए ; वैसे
व्यक्ति दूर तक देख भी नहीं पाते हैं|
बहुत
दुःख होता है, जब एक बुद्धिजीवी भी, जो सालों भर राष्ट्र, देश, समाज, विकास, समृद्धि
के समर्थन में और शोषण के विरुद्ध एवं फांसीवाद के विरुद्ध लम्बी - लम्बी बाते
कहते मिलेंगे, लेकिन चयन के निर्णायक दिन (चुनाव के दिन) में ये सारी बातें बदल
जाती है| ये
तथाकथित बुद्धिजीवी अपनी जातियों एवं धर्मों में ही राष्ट्रवाद, विकासवाद एवं मानवतावाद
देखने लग जाते और व्यवस्था में सकारात्मक परिवर्तन भी खोजने लग जाते हैं| सालों भर वे चीन से, अमेरिका से, जर्मनी से आगे निकलने की बातें
करेंगे और चुनाव के एक दिन वे विश्लेषणात्मक एवं तार्किक क्षमता ताखे (पहुँच के
बाहर सामान रखने का स्थान) पर रख देते हैं| मैं ऐसे
भावुक बुद्धिजीवियों के विरोध में नहीं हूँ, लेकिन मैं
सिर्फ इतना बताना चाहता हूँ कि ग्रामीण क्षेत्रों में इसी व्यवहार को दोगलापन भी कहते हैं| किसी भी सफलता के लिए चरित्र में अखंडता (Integrity)
बहुत जरुरी होता है|
मैं
सोचता हूँ कि मैं आपको खुश कर दूँ| आपको खुश करना बहुत ही साधारण बात है – आप
जो जानते हैं, उसी में दस प्रतिशत और जोड़ देना ही आपको
खुश करने के लिए काफी है| इसी से आप मुझे जानकर मान लेंगे और आप भी सही साबित हो जायेंगे| पर समाज के कुछ ‘खट खट’ लोग इस व्यवहार को ‘चाटुकारिता’ या ‘चापलूसी’ कह कह कर मन को ही ख़राब कर
देते हैं| पर ऐसे
लोग गलत नहीं कहते, सिर्फ मेरे मन के उल्टा कह देते हैं| आपके मन में बैठी अवधारणाओं को सिर्फ खंडित नहीं किया जाना ही आपको खुश
करने के लिए काफी है, यानि आप अपने बने हुए अवधारणाओं को ही बचाना चाहते हैं और
कोई अप्रत्याशित संशोधन या बदलाव भी नहीं चाहते| ऐसे तो
आपको कोई भी कर खुश देगा, तो फिर मुझे लिखने का क्या औचित्य है? मैं आपको खुश नहीं करना चाहता; मैं तो आपको ठिठका देना चाहता हूँ| थोडा तो आप भी ठिठक जाइये, ठहरा हुआ व्यक्ति ही
गहराइयों में उतर पाता है और एक गंभीर दृश्य देख पाता है|
अब
आप भी कुछ लोगों से सावधान रहिए, और भारत को फिर से महान बनाने के लिए इस चिन्तन में
उतर जाइए|
आचार्य प्रवर निरंजन
व्यवस्था विश्लेषक एवं चिन्तक |
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