शनिवार, 19 दिसंबर 2020

छद्म धर्मनिरपेक्षता : एक विश्लेषण

 

छद्म धर्मनिरपेक्षता : एक विश्लेषण

आज मैं बहुचर्चित शब्द ‘धर्मनिरपेक्षता’ (Secular) को जानने और समझने का प्रयास कर रहा हूँ एवं एक नया विशेषण “छद्म” (Disguised) के साथ उसके बदलते रंग पर भी प्रकाश डालने का कोशिश करूँगा| जब सापेक्षता (Relativity) शून्य (Nil) हो जाती है तो उसे निरपेक्ष (Neutral) कह दिया जाता है| इसे तटस्थता या निष्पक्षता भी कहा जाता है| कहने का तात्पर्य यह है कि जब आप किसी भी भाव (Emotion) या प्रभाव (Effect) या झुकाव (Inclination) के बिना किसी विषय या घटना पर विचार या निर्णय करते हैं तो आपको निरपेक्ष कहा जाता है| इसी भाव या प्रभाव या झुकाव के निपेक्षता को विज्ञान का मूल (Original) एवं मौलिक (Fundamental) आधार भी माना जाता है| लेकिन आप यदि सोचते हैं कि आप एक मानव के होते हुए भी पूरी तरह तटस्थ हो सकते हैं तो शायद आप गलत भी हो सकते हैं| अल्बर्ट आइंस्टीन ने 1905 में अपने “सापेक्षता के विशेष सिद्धांत” और  1915 में अपने “सापेक्षता के साधारण सिद्धांत” में ‘समय’ (Time), ‘द्रव्यमान’ (Mass) एवं ‘उर्जा’ (Energy) को भी सापेक्ष बता दिया| जब विज्ञान जैसे विषय पूर्णतया निरपेक्ष नहीं हो सकते तो आप भी पूर्णतया निरपेक्ष नहीं हो सकते| परन्तु इसका यह भी मतलब नहीं हो सकता कि भारतीयता या मानवीयता का कोई मतलब नहीं होता| आप भारतीय गणतंत्र के नागरिक हैं और प्राणी जगत में आप होमो सेपिएन्स सेपिएन्स हैं| और इसीलिए हर भारतीय को भारतीयता का और हर मानव को मानवीयता का सम्मान करना चाहिए|

धर्मनिरपेक्षता में धर्म एवं निरपेक्षता दो शब्द होता है| हिन्दी में धर्म (Dharma) संस्कृत के धर्म – दोनों एक ही है पर पालि का धम्म (Dhamma) संस्कृत के धर्म से बहुत भिन्न है, पालि के धम्म का अर्थ लोक आचार है जो समाज के सम्यक विकास एवं समृद्धि के लिए आवश्यक है| पालि में धम्म को इस तरह परिभाषित किया गया है- धारेति ति धम्मो| जो धारण करने योग्य हो वह धम्म है अर्थात जो किसी भी वस्तु का स्वाभाविक गुण या स्वभाव है वह उसका धम्म है जैसे पानी का धम्म शीतलता प्रदान करने एवं अग्नि को बुझा देना है| उसी तरह एक आदमी का धम्म दुसरे आदमी के सम्यक विकास एवं समृद्धि में सहायक बनना ही है| अरब के मजलिश के आचार- व्यवहार- संस्कृति को मजहब कहा गया| यूरोप के रीजन (Region) की संस्कृति को रिलिजन (Religion) कहा गया| इस तरह उत्पत्ति एवं क्षेत्र विशेष की आवश्यकताओं, आचार, व्यवहार, संस्कृति के अनुरूप अलग अलग क्षेत्रों में आस्था के अलग अलग प्रतिमान (Pattern) स्थापित किए गए| इन्हें वर्गीकरण के ख्याल में एक ही शब्द में सबको शामिल कर दिया जाता है जो कुछ अर्थों में अनर्थ भी होता है| क्या साडी, धोती का उपयुक्त अंग्रेजी शब्द दिया जा सकता है या अंग्रेजी के ब्रेड (Bred) का उपयुक्त हिन्दी अनुवाद रोटी में किया जा सकता है? शायद नहीं या जबरदस्ती हाँ| आस्था के कारोबारियों को भी तो अपना कारोबार चलाना होता है| ऐसी स्थिति में आस्था के सभी कारोबारी मिलजुल कर सामान्य लोगों पर अपना अपना प्रभाव क्षेत्र बना लेते हैं और एक दुसरे को भरपूर सहयोग भी करते हैं| देखने में ऐसा लगता है कि ये सभी एक दुसरे के खून के प्यासे हैं और मौका मिलने पर दुसरे को समाप्त कर ही देंगे तो आप पूरी तरह से भ्रम में हैं| आस्था के सभी कारोबारियों में मूल एवं मौलिक सहमति एवं समानता है| आपने भी देखा होगा कि किसी भी क्षेत्र में जब एक ही दर्शन या आस्था का प्रभाव बढ़ जाता है तो आपस में प्रतिद्वंदी पक्ष बना लिया जाता है जैसे रोमन एवं कैथोलिक, शिया एवं सुन्नी, महायान एवं हीनयान, शैव एवं वैष्णव इत्यादि इत्यादि|

जब कोई तथाकथित धर्म भी एक ही सर्वकालिक एवं सर्वशक्तिमान आस्था के प्रति आसक्त होते हुए भी एक नहीं है तो उसमे निरपेक्षता खोजना कितनी समझदारी होगा? हमलोग जितने पढ़े लिखे हैं और जितना समृद्ध हैं, उतना ही धूर्त एवं लोभी भी हैं| हमलोग अपने स्वार्थ में अपने समाज एवं अपने राष्ट्र की हर गतिविधियों को धर्म सापेक्षता के दृष्टिकोण से हर चीज को देखने के आदि हो चुके हैं| समाज के दो व्यक्तियों या दो अपराधियों या दो गिरोहों के लड़ाई में धर्म खोजना हमारी धूर्तता एवं दुष्टता ही हो सकता है, समझदारी नहीं| वाराणसी में हिन्दू विश्वविद्यालय या अलिगढ में मुस्लिम विश्वविद्यालय खुलने को धर्म के नजरिये से देखना कितना उचित होगा जब हम उसके खुलने ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को समझना नहीं चाहते| ब्रिटिश शासन भारतीय सभ्यता संस्कृति को हेय दृष्टि से देखता था और उस समय भारतीय राष्ट्रवाद का उभार इसी रूप में हो रहा था – पुरातन भारतीय संस्कृति को हिन्दू संस्कृति के रूप में एवं मध्यकालीन संस्कृति को मुस्लिम संस्कृति के रूप में ब्रिटिश सोच के विरुद्ध साक्ष्य के रूप में उपस्थापित किया गया| यह भारतीय राष्ट्रवाद का ब्रिटिश नजरिया का प्रतिउत्तर था| ‘हिन्दू’ अखबार या हिन्दू कालेज भी इसी का उदहारण है| बादशाह अकबर के हरम में हिन्दू महिलाओं की अधिकता को धर्म सापेक्षता में देखना हमारी अज्ञानता है क्योंकि हम समकालीन सामंतवाद के स्वाभाव एवं अनिवार्यताओं को नहीं समझ रहें है – सामंतवाद में हर छोटा सामन्त बादशाह के समक्ष अपनी निष्ठा दिखने के लिए अपने प्रिय एवं बहुमूल्य सामानों को बादशाह को अर्पित करता रहा और घर की महिलाए भी दान देने योग्य वस्तु ही थी जैसे कन्यादान| शायद इसी कारण दक्षिण के मंदिरों में अपनी बच्चियों को दान देने की ‘देवदासी प्रथा’ भी थी और वह काल भी सामंतवाद का ही काल और प्रभाव रहा| मैं किसी भी स्थिति को न्यायिक या न्यायोचित साबित नहीं करना चाहता; मैं सिर्फ सापेक्षता की स्थिति समझना चाहता हूँ|

यदि आप धर्म, धम्म, मजहब, रिलिजन, पंथ एवं दर्शन को समझते हैं तो सापेक्षता एवं निरपेक्षता भी समझ गए होंगे| जब आप यह सब समझ गये होंगे तो आपको छद्म निरपेक्षता समझाने की आवश्यकता नहीं है, वह छद्म शब्द तो ओस (Dew) है जो सूर्य की पहली किरणों के प्रभाव में ही उड़ (Disappear) जाता है यानि अस्तित्वहीन हो जाता है|

यदि हम किसी के गरीबी, अशिक्षा, पिछड़ापन, जाहिलपन, धूर्तता, मुर्खता, दुष्टता आदि को किसी के आस्था से जोड़ देते हैं तो यह हमारी बौद्धिकता पर ही बड़ा प्रश्न है; मैं क्षमा चाहता हूँ क्यांकि मेरा उद्देश्य किसी की बड़े नाजुक भावनाओं को आहत करना नहीं  है और आप भी नाहक आहत नहीं हों| यदि आप व्यवस्था के संचालक सदियों से रहे हैं तो दोष इन्हें क्यों देते है; आपने इसे बदलने के लिए सक्रिय एवं सार्थक रूप में क्या किया? सभी समस्यायों की जड़े शिक्षा पर जाती है और इसीलिए कहा गया है कि अविद्या ही सभी समस्यायों की मूल है| शिक्षा को डिग्री समझने के ही विरुद्ध भारत सरकार की नयी शिक्षा नीति है जो “राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020” (National Education Policy 2020) के नाम से आयी है जिसमे वैज्ञानिक मानसिकता (Scientific Temper) एवं विश्लेषणात्मक मौलिक चिंतन (Critical Thinking) को प्रमुखता दिया गया है जो तथ्य (Fact), तर्क (Logic), विश्लेषण (Analysis), परीक्षण (Experiment) एवं विवेक (Rational) पर आधारित व्यस्थित ज्ञान (Systematic Knowledge) है| आप इसी के आधार पर समाज में न्याय, समानता, स्वतंत्रता एवं बंधुत्व स्थापित कर सकते है जो समाज में सुख, शान्ति, समृद्धि एवं संतुष्टि स्थायी बना सकता है| यही मानवतावाद है और यही भारतीयवाद है| यही भारत को एक उन्नत, सशक्त एवं संपन्न राष्ट्र बना सकता है| आइए, हम हम भी गंभीरता से विचार करें|

निरंजन सिन्हा

व्यवस्था विश्लेषक एवं चिन्तक|                  

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत कुछ सिखा आप के इस लेख से।👌

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  2. Sir मैं राजलक्ष्मी..... आज आपके इस लेख ने बहुत सरल शब्दों में मुझे धम्म और धर्म की परिभाषा समझा दिया... वैसे यह लेख उचित रूप से किसी और समस्या के निदान के लिए है लेकिन इससे मेरी धम्म और धर्म की अवधारणा स्पस्ट हो गई..🙏🙏धन्यवाद sir

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  3. Great analysis and synthesis of thoughts and providing an insight about the widely used word 'छद्म धर्मनिरपेक्षता'

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