रूपांतरण की शक्तियां
(Transformational
Forces)
सामाजिक रूपांतरण परिवर्तन की उस प्रक्रियाओं को कहते है
जिसके कारण समाज के स्थान एवं समय काल के बदलाव के साथ साथ संस्थागत सम्बन्धों,
सामाजिक प्रतिमानों, सामाजिक मूल्यों और सामाजिक पदानुक्रमनों के संबंधों में बदलाव होता जाता है| यह परिवर्तन अपेक्षाकृत स्थायी
होता है| यह सामाजिक रुपान्तारण मुख्यत: आर्थिक शक्तिओं और उनके आपसी
अंतर सम्बन्धों के प्रभाव में होता है; परन्तु इन्ही आर्थिक प्रभावों में विज्ञान
एवं तकनीकी नवाचार (Science and Technological
Innovation) और राजनितिक उथल- पुथल (Political Upheavals) की भी भूमिका महत्वपूर्ण हो
जाता है| सामाजिक रूपान्तरण का अर्थ समाज की
संरचना एवं उनके प्रकार्य में परिवर्तन या रूपांतरण है| इसके अंतर्गत बुनयादी
ढांचा एवं बुनियादी संरचना मे बदलाव होता है| इस तरह रूपांतरण एक व्यापक, प्रभावी और स्थायी
प्रक्रिया है| समाज के किसी भी क्षेत्र में व्यापक विचलन को सामाजिक
रूपांतरण कहते हैं और इसमे इसके अन्य पक्षों को भी शामिल करते हैं| यह विचलन
सकारात्मक या ॠणात्मक
भी हो सकता है| सामाजिक रूपांतरण में सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक, धार्मिक, नैतिक
और भौतिक बदलाव आ जाते हैं|
जो रूपांतरण की शक्तियों
को समझते हैं और उसके प्रभाव को समझते हैं, वे भविष्य को देखते एवं समझते हैं| वे भविष्य
को बनाने एवं भविष्य को अपने पक्ष में व्यवस्थित करने में बहुत अच्छी तरह से सफल होते
हैं| मानव जाति के उदविकास (Evolution) में किसी समय होमो
इरेक्टूस और नियंडरथल अपने शारीरिक क्षमता के आधार पर विश्व के बड़े भू- भाग
में फैले थे और प्रभावकारी थे| ये लोग होमो सेपियन्स के बुद्धिमता के आगे टिक नही सके
और उनको दुनिया से विदा होना पड़ा|
“आज जो होमो सेपियन्स (बुद्धिमान मानव)
अपना भविष्य को नहीं देख और समझ पा रहे हैं,
वे जल्दी ही अपने जीवन में होमो ड्युयस (देवता मानव)
के सामने लुप्त होने वाले हैं|”
पहले पिछड़ी तकनीक के कारण रुपान्तरण में दशक नहीं,
अपितु सदियों लगती थी; पर अब रोज नई आती तकनीक में सदियाँ नहीं, दशक भी ज्यादा समय
लगता है| डाटावाद बहुतों को
दिख ही नहीं रहा; प्रभाव की बात ही छोड़ दिया जाय| कृत्रिम बुद्धिमता,
रोबोटिक्स, जीन इंजीनियरिंग और डाटावाद कैसे होमो सेपियन्स
को समाप्त करने की ओर अग्रसर है, देखना और समझना आवश्यक हो गया है| यह प्रक्रिया तेजी से अपने उद्देश्य पर अग्रसर है|
खैर, यहाँ मेरा विषय इतिहास है;
भविष्य नहीं है| लेकिन वर्तमान एवं भविष्य को जानने और समझने के लिए इतिहास यानि अपनी
जड़ो को समझना जरुरी है| रूपांतरण
में यानि इसके कारण स्थापित व्यवस्था और संगठन में विचलन होता है| यह विचलन प्राकृतिक शक्तियों या
उत्पादन की शक्तियों के द्वारा होता है| इस विचलन को धार्मिक या अध्यात्मिक स्वरुप
दे देने से इस विचलन का प्रभाव लंबे समय तक बना रहता है| यह धार्मिक या अध्यात्मिक
प्रभाव इस जन्म के बाद भी निरंतरता का दावा कर लोगों को प्रभावित करता रहता है| इस
तरह यह बताया और समझाया जाता है कि जीवन की अनन्त एवं लम्बे
यात्रा में वर्तमान जीवन तो एक बहुत छोटा और बहुत ही तुच्छ हिस्सा है| इस तथाकथित
छोटे जीवन को झेल लेने के बाद आगे के जीवनों में मजा ही मजा है| इस काल्पनिक दुनिया में अधिकतर लोग
अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं, पर तकनीकी परिवर्तनों के कारण स्थिति में तेजी से बदलाव
हो रहा है|
यह रूपांतरण मानव समाज के द्वारा
भी योजनाबद्ध तरीके से किया जा सकता है, परन्तु इसमे भी उत्पादन की शक्तियों को ही
प्रभावित करना होता है| उत्पादन में सभी की सहभागिता एवं सभी को क्षमता के अनुसार अवसर सुनिश्चित करना
भी सकारात्मक सामाजिक रूपांतरण है| सामाजिक रूपांतरण की गति समय एवं परिस्थितियों के अनुसार
बदलती रहती है| तकनीकी बदलाव से रूपांतरण की गति में
तेजी आती है क्योंकि यह उत्पादन की
शक्तियों को प्रभावित एवं परिवर्तित करता है| तकनीकी बदलाव के कारण ही
औद्योगिकीकरण हुआ, नगरीकरण हुआ, साम्राज्यवाद स्थापित हुआ| तकनीकी परिवर्तन के
कारण ही साम्राज्यवाद भी व्यापारिक साम्राज्यवाद में, फिर व्यापारिक साम्राज्यवाद
भी औद्योगिक साम्राज्यवाद में रूपांतरित हुआ| अब औद्योगिक साम्राज्यवाद भी वितीय
साम्राज्यवाद में रूपान्तरित हो गया है| इसी के आने के कारण ही द्वितीय विश्वयुद्ध
के बाद कतिपय देशों को राजनितिक आजादी प्रदान की गयी, भले वहाँ के राजनेता अपनी तथाकथित
भूमिका के पक्ष में हवा बनाते रहें और आजादी का साख स्वयं लेते रहें| वित्तीय
साम्राज्यवाद अभी भी सभी पुराने उपनिवेशों में सहज उपस्थित है| उत्पादन की शक्तियों में ही
परिवर्तन के कारण संगणन (Computing) युग आया, सूचनाओं का युग आया| वर्तमान युग
डाटा का है, कृत्रिम बुद्धिमता का युग है, रोबोटिक्स का युग है, और जेनेटिक
इंजीयरिंग का युग आ रहा है| इससे समाज में बहुत बड़ा परिवर्तन यानि रूपांतरण होना है|
इसके बाद तकनीक सामाजिक बदलाव का एक स्वसंचालित शक्ति बन जाती है| सामाजिक रूपांतरण के साथ
व्यक्ति, परिवार और वर्ग का प्रस्थिति, स्तर, योग्यता, निर्योग्यता, मूल्य, अधिकार,
व्यवहार और अपेक्षाएं बदल जाती है या नए ढंग से निर्धारित एवं स्थापित होती है| इस
तरह सामाजिक रुपंतारण में सांस्कृतिक
रूपांतरण एक दीर्घकालीन एवं महत्वपूर्ण हिस्सा होता है|
सामाजिक
रूपांतरण के पाँच प्रकार बनाए जा सकते हैं- आवर्ती परिवर्तन (Rotational Change), परावर्तित परिवर्तन (Reflectional Change), अनुवादित परिवर्तन (Translational Change), पुन- आकृतिग्रहण (Re-shaping) और विरूपित परिवर्तन (De- formation, Distortional Change)| आवर्ती परिवर्तन जलवायविक परिवर्तन या इसी तरह के अन्य परिवर्तन के
कारण होता है| गरीबी का दुष्चक्र भी आवर्ती परिवर्तन होता है| परावर्तित परिवर्तन
में सामानांतर चल रहे अन्य परिवर्तनों के प्रभाव के कारण होता है| ब्रिटिश शासन
में लोगों में परिवर्तन को अनुवादित परिवर्तन कह सकते है जो ब्रिटिश संस्कृति का
अनुवाद मान सकते हैं| इसे परावर्तित परिवर्तन की श्रेणी में भी रख सकते हैं| पुन-
आकृतिग्रहण परिवर्तन में मूल अवस्था पाने का दावा हो सकता है जो बहुधा होता ही
नहीं है| विरूपित परिवर्तन में पहले से स्थापित व्यवस्था में विरूपण के कारण
परिवर्तन होता है जैसे सामंत काल में बौद्धिक या सम्यक संस्कृति में विरूपण के
परिवर्तन हुआ| ऐसा परिवर्तन उस काल में विश्वव्यापी रहा| इन पाँचों प्रकार का उदहारण भारत के सामंती काल में देखने को मिलता है क्योंकि इस
काल में बहुत से मौलिक और सतही परिवर्तन हुए है जिसे सामाजिक एवं सांस्कृतिक
(धार्मिक) रूपांतरण भी कह सकते हैं| सामाजिक
रूपांतरण के कुछ स्रोतों में खोज (Discovery),
आविष्कार (Invention), प्रसार (Diffusion), आतंरिक विभेदीकरण (Internal Differention) तथा उत्पादन की शक्तियों (Forces of Production) का प्रभाव रहता है|
रूपांतरण की शक्तियों में कई कारकों को गिना जाता है- भौतिक कारक (Physical
Factor), आर्थिक कारक (Economic Factor), जनान्कीय कारक (Demographic
Factor), सांस्कृतिक कारक (Cultural Factor), सामाजिक कारक (Social Factor), राजनीतिक कारक (Political Factor) और तकनीकी कारक (Technological
Factor)| भौतिक कारक में भौगोलिक कारणों को गिना जाता है जैसे
स्थान का बदलाव, मौसम का बदलाव, पर्यावरण का बदलाव, भू- आकृति में बदलाव, वनों का
विनाश या वनीकरण इत्यादि| आर्थिक कारणों में उत्पादन की शक्तियों और उनके आपसी
अंतर्संबंधों में बदलाव आ जाता है जैसे कृषि
(Agricultural) क्रान्ति, सामंती क्रान्ति (Feudal), वाष्प (Steam) क्रान्ति, विद्युत् (Electricity) क्रान्ति, संगनात्मक (Computing) क्रान्ति, बुद्धिमता (Intelligence) क्रान्ति, डाटा (Data) क्रान्ति आदि| जनान्कीय कारक में युवाओं और बुजुर्गो
का जनसंख्यात्मक अनुपात में बदलाव आता है| महिलाओं के घर से बाहर निकलने के कारण समाज
के गतिविधियों में हिस्सेदारी से आबादी में आनुपातिक वृद्धि आदि प्रमुख है|
यदि हम सामाजिक रूपांतरण के प्रारूपों को समझना चाहें तो इसे उद्विकास, प्रगति,
विकास, और क्रान्ति के रूप में कर सकते हैं| उद्विकास शब्द का प्रथम प्रयोग जीव
वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन के द्वारा माना जाता है| इसने इसके द्वारा पृथ्वी पर
जीवों की उत्पत्ति और वर्तमान के जैविक व्यवस्था को समझाया है| उत्परिवर्तन एवं
प्राकृतिक चयन की भूमिका समझाया है पर हमारा सन्दर्भ यहाँ समाजिक रूपांतरण है, जैविक रूपांतरण नहीं समझना है| आजकल
उद्विकास को भी विकास के सामान्य क्रमिक विकास के रूप में माना एवं समझा जाता है| क्रमिक
एवं धीमी विकास को उद्विकास कहना ज्यादा समुचित है|
प्रगति सर्वकल्याण एवं सामूहिक हित
की दिशा में परिवर्तन है| सामन्तवाद समानता का अंत कर स्थापित होता है जो समुचित
न्याय नही कहा जा सकता| जहाँ समानता नहीं हो, वहाँ स्वतंत्रता और
बंधुत्व भी नहीं हो सकता| इसलिए सामंतवाद को प्रगति का स्वरुप तो नहीं कहा
जा सकता| विकास को उद्विकास के समान माना जा सकता है| सामंतवाद से पूंजीवाद या
समाजवाद की ओर जाने को बहुतेरे विद्वान विकास मानते हैं| विश्व इतिहास में कई
समाजो में क्रांतियों के द्वारा सामाजिक परिवर्तन हुए हैं पर यह छोटे देशों और
छोटे आबादी वाले देशों में संभव हो सका है| हम भारत में सामंतवाद के कारण परिवर्तन
को, क्रमिक एवं धीमी गति के कारण, उद्विकसीय परिवर्तन या रूपांतरण मानते हैं|
सामाजिक रूपांतरण एक विश्वव्यापी प्रक्रिया है जो हर समाज में हर काल में
चलता रहता है, परिवर्तन की गति में भिन्नता हो सकती है| यह परिवर्तन किसी व्यक्ति
या परिवार तक सीमित तक नहीं होती, अपितु समाज के सभी वर्ग भिन्न मात्रा में महसूस
करते हैं जैसे जंगल में आग लगने से जंगल के सभी जीव प्रभावित होते हैं, मात्र में अंतर
हो सकता है| प्रत्येक समाज में विभिन्न स्तर पर सहयोग, संघर्ष, समायोजन,
प्रतियोगिता, सामंजन, आदि होता रहता है| कभी यह परिवर्तन एकरेखीय या कभी बहुरेखीय
होता है| कभी यह परिवर्तन चक्रीय तो कभी उद्विकसीय होता है|
यह परिवर्तन सामान्यत: सापेक्षिक होती है और इसलिए ही पूर्ववर्ती
विशिष्टताओं का लक्षण व्याप्त रहता है| यह माना जाता है कि सामाजिक पुनरोत्थान की
गति तेज होती है| तकनीकों के बदलाव के साथ परिवर्तन की गति बहुत तेज हो गई
है| यो तो परिवर्तन की गति सामाजिक जीवन के सभी क्षेत्रो में देखी जाती है, परन्तु भौतिक जीवन की गति विचारों एवं
संस्थाओं की तुलना में ज्यादा तेज होती है| अर्थात विचारो एवं संस्थाओं में
परिवर्तन धीमी गति से होती है| भौतिक संरंचना में बहुत जल्दी बदलाव लाया जा सकता है,
परन्तु लोगों की मानसिकता में बदलाव धीमी गति से होता है| मानसिकता में बदलाव संस्कृति में बदलाव है और इसीलिए यह सामान्यता
काफी धीमी गति से होता है| इस डिजिटल ज़माने में और नए उम्र के लोगों के कारण इस
मानसिकता में भी यानि इस संस्कृति में भी बहुत जल्दी बदलाव लाए जा सकते हैं| आज के
युग में सुनियोजित एवं सुविचारित परिवर्तन ही लक्षित परिणाम निर्धारित समय में दे
सकता है| आज के तकनीकों के साथ हम छोटे अंतराल में ही
बड़ा सामाजिक रूपांतरण कर सकते हैं|
यह आलेख बौद्धिक दर्शन की रूपांतरण को समझने और समझाने के लिए रूपांतरण की
प्रक्रिया की पूर्व भूमिका है, जिसके अवलोकन हेतु आपको सुलभ किया गया है|
निरंजन सिन्हा,
व्यवस्था- विश्लेषक एवं चिन्तक|
(निरंजन सिन्हा की प्रकाशनाधीन पुस्तक- “बुद्ध : दर्शन एवं रूपांतरण” से )
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