आधुनिक भारत
(MODERN INDIA
)
जब
शासक
वर्ग (Ruling Class)
कुछ
खास
वर्गो
का
ही
प्रतिनिधित्व
करती
हो
और
जब
शासक
वर्ग
की
इच्छाएँ
समाज
के
बाकी
वर्गो
पर
थोपी
जाती
हो
तो
कार्ल मार्क्स याद आते हैं। कार्ल मार्क्स ने राज्य की परिभाषा में
पूर्णत: स्पष्ट किया
-
“राज्य एक ऐसी शक्ति है जिसके द्वारा शासक वर्ग की इच्छाएँ समाज के बाकी वर्गो पर थोपी जाती है।” ऐसा करने का राज्य का प्रयास रहता है कि वह समाज के अन्दर परम्परावादी व्यवस्था को बरकरार रखे और वर्ग व्यवस्था को जीवित रखे।
हालांकि भारत के वैसे विद्वान जो परम्परावादी व्यवस्था को, जाने या अनजाने, यथास्थिति में बनाए रखने के पक्षधर हैं, जाति को विश्व पटल पर अँगरेजी में “Caste” (कास्ट) के रुप में भ्रामक रुपान्तरण (Misleading Translation, Transformation) कर रखते हैं ताकि विश्व के विभिन्न विद्वान इसकी अनूठी विशेषताओं एवं विशिष्ट उद्देश्यों को नहीं समझ सके और यह व्यवस्था लम्बी अवधि तक संचालित रहे।“जाति” का अनुवाद “कास्ट” में करना भी एक ऐसा ही प्रयास माना जाना कदापि असंगत नहीं होगा। “कास्ट” एक पुर्त्तगाली शब्द है जो वहाँ की परम्परागत सामाजिक समूह को चिन्हित करता है जो उपरी तौर जाति का पर्यायवाची दिखता है। “जाति” जन्म पर आधारित तो होता है परन्तु इसके साथ ही पूर्ण स्थायी होता है। एक व्यक्ति जिस जाति में जन्म लेता है, उसी में ही मरता है; भले ही वह अपनी आर्थिक या धार्मिक स्थिति बदल लें। “कास्ट” में स्थायित्व नहीं रहता। उसमें बदलाव लाया जा सकता है। इस तरह यह स्पष्ट है कि “जाति” का विश्व भाषा - अंगे्रजी में अनुवाद “जाति” ही होना चाहिए जैसे “साडी” एवं “धोती” का अंग्रेजी अनुवाद भी यही रहता है।
इसी के क्रम में देश की सरकारी सेवाओं में जाति समूह की आबादी में भागीदारी के अनुरुप प्रतिनिधित्व देने का विशेष प्रयास किया गया ताकि अश्पृश्य, नीच, निर्योग्य, एवं पिछडी माने जाने वाली जातियों के लोग राष्ट्र अर्थात् सर्वजन की सेवा में अपनी भागीदारी दे सकें। भारत में जाति एक अटल वर्ग है जिसे और मजबूत करने का सजग एवं सशक्त प्रयास किया जा रहा है। यह एक कटु तथ्य है और सत्य भी है। कुछ बुद्धिजीवी कार्यपालिका या अन्य तंत्र के माध्यम से सर्वजन की सेवाओं को जीविकोपार्जन हेतु नौकरियों से प्रतिस्थापित समझते हैं। नौकरियों का मूल भावार्थ रोजगार पाना है, आर्थिक उपार्जन करना है ताकि परिवार की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके। रोजगार की जरुरत सबको है परन्तु सरकारी सेवाओं के माध्यम सर्वजन की सेवा में सभी को नही लगाया जा सकता है।
सरकारी सेवाओं के माध्यम सर्वजन की सेवा को रोजगार समझ लेने से ही भ्रष्टाचार बढता है क्योंकि रोजगार कमाने का साधन है, अमीर बनने का साधन है।अधिकांश लोग सरकारी सेवाओं के माध्यम सर्वजन की सेवा को नौकरी मानते हैं, रोजगार मानते हैं और इसी से अमीर बनना चाहते हैं। रोजगार का विकल्प स्वरोजगार है परन्तु सरकारी तंत्र में हिस्सेदारी का विकल्प स्वरोजगार नही है। सत्ता में हिस्सेदारी या भागीदारी का विकल्प स्वरोजगार नही हो सकता। लोग शब्दों के प्रतिस्थापन से भ्रमित हो जाते हैं और राज्य को यथास्थितिवाद बनाए रखने में या पुनर्स्थापित करने में सहायता मिलती है। इस हिस्सेदारी या भागीदारी से समाज और देश से अपनापन जुडता है। इसी कारण सशक्त राष्ट्र निर्माण के लिए भारतीय समाज की वास्तविकता जाति के आधार पर ही सेवाओं में समुचित प्रतिनिधित्व देने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गयी। व्यवस्था आज भी जाति व्यवस्था समाप्त करने के लिए सजग एवं सतत प्रयास नही किया है। यदि आज भी ईमानदार प्रयास किया जाय तो बहुत कम समय इसे समाप्त किया जा सकता है।
किसी
भी बिमारी के ईलाज के लिए गहराई से समझना होगा ताकि बिमारी की उत्पत्ति एवं प्रसार के कारण और निराकरण के प्रभावी उपाय जाना जा सके। भारत को अपंग राष्ट्र बनाने
वाली
व्यवस्था
को
यदि
कुछ
लोग
या
कुछ
वर्ग
बनाए
रखना
चाहते
हैं
तो
ऐसा
या
तो
अज्ञानतावश
किया
जा
रहा
है
या
स्वार्थवश
किया
जा
रहा
है।
आज
भारत विश्व की सबसे बडी मानव संसाधन के बावजूद विश्व की अर्थव्यवस्था में सातवें पायदान पर है जबकि एक को छोड अन्य की मानव संसाधन की तुलना में भारत की स्थिति शर्मनाक हो जाएगी। यदि भारत का प्रत्येक आदमी अपनी क्षमता के अनुरुप देश में योगदान करेगा तो यह देश बहुत आगे रहेगा। भारत में क्षमता एवं दक्षता की कमी नही है, कमी है तो सिर्फ अवसर एवं समुचित व्यवस्थापन की।
यह देश यदि इस जाति व्यवस्था का र्इमानदारीपूर्वक निराकरण का प्रयास कर ले तो यह देश विश्व पटल पर सर्वोच्च शक्ति बन जाएगा। यह जातिवाद भारत में सामंत काल की आर्थिक परिस्थिति की उपज है। इसकी जडें हजार साल भी पुरानी नही है। इसे इस दृश्टिकोण से देखा ही नही गया है। जातिविहीन समाज की स्थिति सुख, शान्ति, और
समृद्धि की होगी।
यहाँ फिर कार्ल मार्क्स याद आते हैं।
उनकी
अवधारणा
रही
है
कि
राज्य
या
वर्ग
विशेष का वर्चस्व विलुप्त हो जाएगा। जब जन्म आधारित वर्ग का विलोप हो जाएगा तो क्षमता आधारित समुदाय की स्थापना होगा। तब राज्य की शक्तियों एवं आवश्यकताओं का स्वरुप बदल जाएगा।
स्वैच्छिक सेवानिवृत राज्य कर संयुक्त
आयुक्त, बिहार, पटना।
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