सबकी भागीदारी! आर्थिक आजादी! प्रगतिशील आबादी!
विकसित भारत - सशक्त भारत
(Developed India – Empowered
India)
भारत को एक सशक्त एवं सम्पन्न राष्ट्र बनना है तो सबकी गुणवत्तापूर्ण भागीदारी सुनिश्चित कराना होगा। आबादी के प्रौढ़ उम्र के वर्ग की एक विशिष्ट आदत बन गयी है- नकारात्मकता, पुरातनता का जड़त्व, तर्क को नहीं सुनना और समझना, तथा उनकी बची हुई छोटी आयु। इन्हीं कारणों से ऐसे प्रौढ़ों की सोच बन गयी कि सामाजिक- आर्थिक रूपान्तरण के मामलों में इनके पिछड़ने का सारा दोष व्यवस्था का है और उस व्यक्ति विशेष की कोई सक्रिय भूमिका नहीं है। इन मामलों में इन्हीं कारणों से इनका सोच है कि वे सही हैं और उनके सोच को बदलने की जरुरत नहीं है। ऐसी स्थिति में तीव्र रूपान्तरण के लिए प्रौढ़ों की तुलना में इन युवा वर्ग में ज्यादा संसाधन और ज्यादा ऊर्जा लगाना तुलानात्मक रूप से उपयुक्त है। वर्ष 2020 तक भारत की कुल आबादी का 53 प्रतिशत हिस्सा 30 वर्ष से कम आयु वालों का हो गया है। वर्त्तमान में एक अनुमान के अनुसार 35 वर्ष से कम आयु वर्ग का आबादी में हिस्सेदारी 60 प्रतिशत से अधिक का है।
विश्व प्रसिद्ध मार्केटिंग चिंतक फिलिप कोटलर ने अपनी पुस्तक ‘मार्केटिंग- 4’ में बताया है कि वर्त्तमान समय में आर्थिक-सांस्कृतिक रूपान्तरण में युवा, महिला, एवं नेटीजन (नेट पर सक्रिय रचनात्मक नागरिक) की प्रभावी भूमिका है। प्रौढों की तुलना में युवाओं को नई, तार्किक, एवं वैज्ञानिक बातें समझाना, समझना और उसको अपनाना आसान है। युवा उत्साही, ऊर्जावान, विद्रोही, परिवर्त्तनकारी एवं प्रयोगधर्मी होने के कारण जल्दी अनुकरण करते है। ये ट्रेंड सेटर्स है क्योंकि इनको तात्कालिक परिणाम चाहिए और नये को पाने के लिए उद्विग्न रहते हैं। ये वरिष्ठों के लिए अनुकरणीय उदाहरण पेश करते हैं। नए परिवर्त्तनों के प्रति अतिशीघ्र प्रतिक्रिया के कारण ही इन्हें गेम चेन्जर भी कहा जाता है। कम उम्र में बेहतर आय और एकाकी परिवार ने युवाओं को अपने मर्जी का मालिक बना दिया है जिसके कारण वे बुजुर्गों के अनुदेशों एवं आदेशों का अवहेलना भी करते हैं। आज का युवा तीव्र संचार एवं नए तकनीक के साथ जल्द ही विचारों में परिपक्व हो जा रहे हैं। स्मार्ट मोबाइल फोन के साथ युवाओं के मुठ्ठी में सारी जानकारियाँ है और इसी कारण वे अपने सामाजिक समूह में ज्यादा स्मार्ट हो गए हैं। युवा महिलाएं बढ़ती शिक्षा एवं जागरूकता के साथ ज्यादा महत्वाकांक्षी हो गयी हैं और बदलाव में उसकी हिस्सेदारी बढ़ गयी हैं। इन्टरनेट एवं आधुनिक सोशल मीडिया के कारण अपनी सकारात्मक एवं रचनात्मक भूमिका से नेटीजन (नेट पर सिटीजन के लिए प्रयुक्त शब्द) सामाजिक-सांस्कृतिक रूपान्तरण में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। नागरिकों की सीमाएं भौगोलिक क्षेत्रों से निर्धारित देश से इन्टरनेट के कारण सीमाविहीन हो गया है। उध्र्वाकार सीमाएं अब क्षैतिज हो गयी है। ये युवा ही अपने सामाजिक वर्ग में चेन रिएक्टर की भूमिका में हैं। अपनी बढ़ती आबादी के कारण ही युवा वर्त्तमान एवं भविष्य के जागरूक मतदाता है और इसी कारण प्रजांतत्र में सरकार के भाग्य विधाता हैं।
उद्यमिता:
भारत की सम्पूर्ण आबादी का मात्र 3.00 प्रतिशत ही सरकारी नौकरियाँ हैं। वर्ष 2004 में पेंशन प्रणाली समाप्त हो गयी है और अधिकतर सेवाएं अनुबन्ध पर ली जा रही है। तकनीक में सुधार एवं ऑटोमेशन से भी नौकरियाँ कम होती जा रही है। ऐसी स्थिति में उद्यमिता स्थानीय समस्याओं के समाधान के साथ -साथ स्वयं के अलावा अन्य को रोजगार प्रदान भी करता है और आय भी सुनिश्चित करता है। भारत के विशाल बाजार में प्राथमिक क्षेत्र के अलावे द्वितीयक क्षेत्र (निर्माण) तथा तृतीयक क्षेत्र (सेवा) में काफी संभावनाएँ हैं। सूचना तकनीक, वित्तीय प्रबन्धन, पर्यटन, कन्सलटेंसी, बौद्धिक सम्पदा नई उद्यम की संभावनाओं को बढ़ाती है।
“लाभ के साथ समस्या का समाधान करना” ही उद्यमिता है। आइडिया या लाभ को उपलब्ध कराने के लिए वस्तुएँ एवं सेवाएँ माध्यम होती है। उद्यमिता एक कौशल (Skill ) है जिसे सीखा जा सकता है। उद्यमिता एक नजरिया (Attitude) है जिसे बदला जा सकता है। उद्यमिता एक सोच (Thought) है जिसे अपनाया जा सकता है। उद्यमिता एक तकनीक (Technique) है जिसका अनुकरण किया जा सकता है। उद्यमिता एक कार्य संस्कार (Work Culture) है जिसे विकसित किया जा सकता है। इस तरह उद्यमिता एक जन्मजात गुण नहीं है, अपितु यह सीखा जाना है और कोर्इ भी सीख सकता है। प्रत्येक दस उद्यम (उपक्रम) में आठ उद्यम (उपक्रम) असफल हो जाता है परन्तु प्रत्येक दस उद्यमी में नौ उद्यमी सफल होता है; इस पर ध्यान देने की जरूरत है।
इसके प्रशिक्षण में सबसे बड़ी गडबडी यह है कि भारत में उद्यमिता वे सीखाते हैं जिनको कभी उद्यमी बनने की इच्छा नहीं रही और खुद नौकर (किसी दूसरे की सेवा में) हैं। उद्यमी बनना वास्तव में मालिक बनना है जो गुण सरकारी या निजी प्रतिष्ठानों में सेवा देने वालों में नहीं होता है। इनसे युवा सरकारी अनुदान, सरकारी सहायता देख कर प्रेरित (मोटिवेट) तो हो जाते है पर वास्तव में अन्त:प्रेरित (इन्सपायर) नहीं हो पाते। उद्यमी बनने के लिए तकनीकी, वित्तीय एवं वैधानिक पहलू के साथ - साथ भावनात्मक पहलू पर भी ध्यान दिया जाना आवश्यक हैं। उद्यमिता एक संस्कृति है और इन पक्षेां को ध्यान में रखकर उद्यमिता को कौशल विकास मिशन में शामिल किया जा सकता है। उद्यमिता को सफल बनाने के लिए सामाजिक माहौल भी बनाना जरुरी है। आज भारत में नौकरियों को इस तरह गौरान्वित किया जा रहा है मानो सभी बेरोजगार परीक्षाओं की तैयारी कर सरकारी नौकरियॉं पा लेगें। नौकरियॉ सीमित है जबकि उद्यमिता असीमित है, इस बात पर घ्यान नहीं दिया जाता है। उद्यमिता को अलग नजरिए से देखे जाने की जरुरत है।
वित्तीय साक्षरता:
मानव ही समाज एवं राष्ट्र के विकास का सबसे महत्वपूर्ण संसाधन है और वित्तीय रुप में टूटा हुआ व्यक्ति विकास में सहयोगी तो नहीं होता, अपितु बाधक ही होता है। वित्तीय साक्षरता लोगो में आत्मविश्वास बढाता है, स्वनियंत्रण लाता है, सशक्तिकरण उपलब्ध कराता है, व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास के कारकों को सहज उपलब्ध कराता है। भारत में बेरोजगारी, बिमारी, एवं बुढापा वित्तीय साक्षरता के अभाव में समाज को दयनीय बना रखा है। यदि हमारी स्वास्थ्य समस्याएं हमारी स्वास्थ्य जागरुकता के अभाव के कारण है तो हमारी वित्तीय समस्याएं भी निश्चितया हमारी वित्तीय साक्षरता एवं जागरुकता के अभाव से होती है। आर्थिक अध्ययनों से यह स्पष्ट है कि भारत में वित्तीय संकट का एक महत्वपूर्ण कारण वित्तीय समावेशन, वित्तीय जागरुकता एवं वित्तीय साक्षरता का अभाव है। आज के युग में विश्व की सारी अर्थव्यवस्था का एक दूसरे पर अन्तरनिर्भरता वित्तीय संकटों को और उलझा देता है।
ग्रामीण आबादी का बडा हिस्सा एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था भारत के बडे भागों की विशिष्टता है। सामाजिक सुरक्षा का अभाव, कम आय का स्तर, बचत की कम दर, सामाजिक बनाबट इसका विचारणीय विषय है। भारत के बडे भागों में बचत एवं निवेश के स्वरुप को वित्तीय समझदारी नहीं कहा जा सकता। यहाँ अधिकतर बचत राशि बैंको में बचत खाता एवं सावधि जमा में निवेशित है जिन पर ब्याज की दर मुद्रास्फीति के दर के आसपास है। लोगों को बचत एवं निवेश के स्वरुप एवं प्रक्रिया का समुचित जानकारी नहीं है। भारत में वित्तीय बाजार की गतिविधियाँ कुछ प्रमुख नगरों के बाहर लगभग नगण्य ही है। भारत में स्टॉक मार्केट का औसतन दैनिक कारोबार लगभग तीस हजार करोड़ रुपये का है जिसपर न्यूनतम कमीशन आधा प्रतिशत की दर से एक सौ पचास करोड़ रुपये प्रतिदिन बनता है। भारत की आबादी, अर्थव्यवस्था, और इसकी बौद्धिकता को देखते हुए वित्तीय व्यवसाय भी एक अच्छी एवं महत्वपूर्ण संभाव्यता है।
वित्तीय साक्षरता से व्यक्ति, परिवार, समाज और राज्य की स्थिति में बेहतरी आएगी। लोगों के जीवन में दैनिक, लघु, एवं दीर्घ अवधि का धन प्रबन्धन का प्रभाव बहुत ही महत्वपूर्ण है। अवकाश प्राप्त जीवन में सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बीमा एवं पेंशन योजना जानना जरुरी हैं। वित्तीय साक्षरता एक जीवन पर्यन्त चलने वाली अवस्था है जो शिक्षण प्रशिक्षण से विकसित होता है तथा सक्रिय भागीदारी से निरन्तरता बनी रहती है। इससे उत्पन्न विश्वास और आत्मनियंत्रण वित्तीय तंत्र में हिस्सेदारी बढाता है। वित्तीय समावेशन एवं साक्षरता एक दूसरे के पूरक के रुप में गरीबी के विरुद्ध कार्य करती है।
Organisation for Economic Cooperation and Development
(OECD) ने वर्ष 2008 में सदस्य देशों में वित्तीय साक्षरता एवं विकास के लिए International
Network on Financial Education ( INFE ) की स्थापना की। इसका मुख्य उद्देश्य वित्तीय साक्षरता पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग एवं सुविधाएं विकसित करना है। इसके बाद ही भारत सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक एवं अन्य बैंको ने इस पर कार्यक्रम चलाने शुरु किए। भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड ( सेबी ) ने वित्तीय नियामक होने के नाते प्रशिक्षण के प्रमाणीकरण एवं प्रशिक्षण के लिए संस्थानों का स्थापना किया।
उपरोक्त परिस्थिति में भारत के दूरस्थ क्षेत्रों के संदर्भ में वित्तीय साक्षरता महत्वपूर्ण एवं अनिवार्य है। चीन एवं गुजरात के विकास में वित्तीय साक्षरता की भूमिका का अध्ययन किया जा सकता है क्योंकि वित्तीय साक्षरता एवं वित्तीय जनभागिता ही चीन एवं गुजरात को वर्त्तमान विकसित अवस्था में पहुंचाया है। भारत में भी वित्तीय साक्षरता एवं वित्तीय जनभागिता ही भारत की दशा एवं दिशा बदल सकती है। इसके साथ ही हम समावेशी विकास पा सकते हैं।
सामाजिक अंकेक्षण:
सामाजिक अंकेक्षण सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार समाप्त करने का अमोघ अस्त्र है। इसमें व्यक्ति या समिति सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत सरकारी धन से संचालित योजनाओं एवं कार्यक्रम की जानकारियाँ प्राप्त करता है। फिर इन जानकारियो एवं प्रगति का सत्यापन उस क्षेत्र में किए गए कार्य का मिलान लाभार्थी एवं स्थल से करता है और सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य एवं प्रक्रिया के आलोक में अंकेक्षण करता है। इससे भ्रष्ट प्रक्रिया पर अंकुश लगता है और बेहतर परिणाम के लिए सुझाव आते हैं। इसका प्रशिक्षण युवाओं में नवनिर्माण के लिए सकारात्मक जोश पैदा करेगा तथा सरकारी तंत्र भ्रष्टाचार से बचेगा। सूचना का अधिकार अधिनियम एवं लोक शिकायत निवारण अधिनियम की सम्यक जानकारी एवं व्यवहारिकता को उपलब्ध कराने से इसे गति मिलेगा। यह सजग युवाओं को भ्रष्टाचार रोकने के लिए उत्साहित करता है। इसका व्यवहारिक पहलू यह है कि इसकी उपयोगिता सामाजिक अंकेक्षण को कई गुणा फैलाता भी है।
सामाजिक विकास का इतिहास:
भारत के लोग जाति, वर्ण, और धर्म के आधार पर कई वर्गो में बटे हुए हैं और कई अतार्किक पूर्वाग्रहों में उलझे हुए हैं। भारत का सामाजिक विकास का इतिहास काफी विकृत है। इस इतिहास पर सामन्तवाद के प्रभाव का सम्यक अध्ययन नहीं किए जाने से सामन्तवादी मानसिकता को मजबूती मिला हुआ है। मानव की उत्पत्ति, प्रवास, एवं सामाजिक वर्गो का विकास की गाथा भी यथास्थितिवाद को ही समर्थन देने के लिए व्याख्यापित है। सामन्तवादी प्रभाव को ऐतिहासिक बताने के लिए अवैज्ञानिक, अतार्किक, एवं मनगढन्त व्याख्या किया गया है और इसके कारण राष्ट्र का सशक्तिकरण प्रक्रिया काफी धीमी पड़ी हुई है। अत: पुरातात्विक एवं वैज्ञानिक साक्ष्य के आधार पर सामाजिक विकास का इतिहास समाज में गत्यात्मकता और सौहार्द लाएगा जो विकास एवं सशक्तिकरण के लिए आवश्यक है। इस समझ के बिना समाज में वृद्धि (ग्रोथ)
तो दिख सकता है, पर सम्यक विकास (डेवलपमेंट) का अभाव रहेगा। आर्थिक वृद्धि दिखना ही विकास नही है, सभी सदस्यों की सहभागिता से ही उस राष्ट्र का सम्यक विकास माना जाता है। हालांकि कई आर्थिक वृद्धि भी विकास के समुचित सूचकांक एवं संकेतक माने जाते हैं। सभी की सम्यक भागीदारी सुनिश्चित कराने के लिए सामाजिक विकास का अध्ययन एवं प्रसार आवश्यक है। सम्यक इतिहास जाने बिना नया इतिहास नहीं लिखा जा सकता।
वैज्ञानिक, तार्किक, और ऐतिहासिक साक्ष्यों पर आधारित सामाजिक रुपान्तरण यानि सामाजिक विकास का इतिहास भारत की सभी समस्याओं की जड पर कुठाराघात करता है क्योंकि भारत की सभी समस्याओं की जड़ समाज में व्याप्त सामंतवादी मानसिकता है। इसीलिए भारत के परवर्ती काल के इतिहास का सामन्तवादी व्याख्या का उपस्थापन सर्वजन के लिए आवश्यक है। भारत में आज भी सामंतवाद सामाजिक, राजनैतिक, परिवारिक, धार्मिक, राजनैतिक जीचन में व्याप्त हैं।
अन्त:प्रेरणा का विज्ञान:
विचार एवं मानसिकता कैसे भौतिकता में रुपान्तरित होता है और क्रियाओं को कैसे संचालित करता है - जानना जरुरी है। विचार, इच्छा, आस्था, आत्मसुझाव, निर्णय, समूह की शक्ति, अचेतन मस्तिष्क तथा मन की क्रियाविधि समझना जरुरी है जो व्यक्ति में अन्त:प्रेरणा पैदा करता है। संघ या समूह की शक्ति की आवश्यकता एवं क्रिया विधि भी जानना जरुरी है। समूह के बिना उद्देश्य की निरन्तरता बनी नही रह पाती है। युवाओ को प्रेरित एवं अन्त:प्रेरित किए जाने की आवश्यकता है। अन्त:प्रेरणा एवं संगठन का विज्ञान समझ कर ही समाज में अन्त:प्रेरणा पैदा किया जा सकता है और संगठन की शक्ति बनायी एवं फैलायी जा सकती है। तथागत बुद्ध ने संघ की शक्ति को मान्यता दी, तो डा० भीमराव आम्बेडकर ने शिक्षित बनने, मनन करने के साथ -साथ संगठित होने ( Educate,
Agitate, Organise) का आह्वान किया।
इस तरह हम युवाओं एवं महिलाओं को इन कार्यक्रमों के माध्यम से जाग्रत कर परिवार, समाज एवं राष्ट्र के लिए उपयोगी बनाएगें। इन शैक्षणिक प्रशिक्षण से इन वर्गों में सरकार के प्रति झुकाव बढे़गा। यही वर्ग समाज का वर्तमान आक्रामक मतदाता है और निकट भविष्य का संभाव्य मतदाता भी है जिनकी भागीदारी विकासकारी सरकार में सुनिश्चित होना आवश्यक है। इनके भागीदारी से ही भारत विकसित देशों के श्रेणी में आएगा।
ई0 निरंजन सिन्हा,
बी0 टेक (सिविल इंजी0),
स्वैच्छिक सेवानिवृत राज्य कर संयुक्त आयुक्त,
बिहार, पटना।
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