कुछ
लोग ‘समता’, ‘स्वतंत्रता’ एवं ‘बंधुता’ को ‘प्राकृतिक न्याय’ के अवयवी तत्व समझते हैं,
मानते हैं| इसमें भी अधिकांश या बहुसंख्यक लोग ‘समता’ (Equality) एवं ‘समानता’
(Equity) पर ही बहुत अधिक जोर देते हैं| समाज में ‘समरसता’ (Harmony) की कहीं कोई
चर्चा ही नहीं होती है| ‘समरसता’ को ही ‘समस्वरता’ भी कहते हैं, ‘सामंजस्यता’ भी
कहते हैं, ‘शांतिपूर्ण एवं माधुर्यपूर्ण सहअस्तित्व’ भी कहते हैं, और ‘समुचित एवं
पर्याप्त तालमेल’ भी कहते हैं| यही हमारे अस्तित्व को, हमारे विकास यात्रा को और
हमारे भविष्य को आधार देता है, यही हमारे वर्तमान और भविष्य का ‘लांचिंग पैड’ है| ऐसी
स्थिति में हमें ‘समता’ एवं ‘समरसता’ को समझना चाहिए| इसके साथ ही हमें संवैधानिक
प्रावधानों को भी देखना चाहिए|
भारतीय
संविधान का सभी मूल उद्देश्य इसकी ‘उद्देशिका’ (Preamble) में वर्णित है| यही
भारतीय संविधान का ‘आधारभूत ढाँचा’ (Basic Structure) है, जिसके पूर्ति के लिए ही सभी
तंत्र एवं व्यवस्था कार्यरत हैं| भारतीय संविधान में ‘’समता’ (Equality) शब्द तो
है, परन्तु ‘समरसता’ (Harmony) शब्द उल्लेखित नहीं है| तब सहज एवं साधारण प्रश्न
यह उभरता है कि संविधान के उद्देशिका में या संविधान के अनुच्छेदों में इतना
महत्वपूर्ण अवधारणा क्यों और कैसे छूट गया, या जानबूझ कर नहीं लिखा गया? आपने भी
ध्यान दिया होगा कि संविधान के किसी भी अनुच्छेदों, अनेक भारतीय अधिनियमों की
धाराओं, नियमावली के नियमों या आदेशों में ‘प्राकृतिक न्याय’ (Natural Justice) के
मूल एवं मौलिक तत्वों की चर्चा नहीं होती है| यह ‘प्राकृतिक न्याय’ की अवधारणा अपने
विस्तृत एवं गहन रुप में ‘विधि एवं न्याय के सभी दर्शन’ में सर्व व्याप्त होता है|
अर्थात यह कहीं भी लिखित नहीं होते हुए भी सर्व व्याप्त और अधि प्रभावी होता है| यह
‘न्याय का दर्शन’ (Philosophy of Justice) सभी विधानों का सार तत्व होता है| इसके
बिना किसी भी न्याय को समुचित एवं पर्याप्त नहीं माना जा सकता है| शायद इसी कारण
एवं मौलिक अन्तर्निहित स्पष्ट उद्देश्य से यह शब्द “समरसता” भी संविधान में कहीं भी अभिव्यक्त
नहीं है|
भारतीय
संविधान की ‘उद्देशिका’ में ‘समता’ शब्द उल्लखित है, लेकिन यह साधारण एवं सामान्य
‘समता’ नहीं है| यह ‘समता’ अपनी दो विशिष्ट अवस्था के साथ है, अर्थात अपनी कुछ विशिष्टताओं
के साथ है| यहाँ स्पष्ट लिखा हुआ है कि ‘प्रतिष्टा’ एवं ‘अवसर’ की समता’| अर्थात
सभी को ‘प्रतिष्टा’ और ‘अवसर’ की समता’ सुनिश्चित किया गया है| इस बात से यह
स्पष्ट होना चाहिए है कि ‘प्रतिष्टा’ और ‘अवसर’ की समता’ का आधार क्या है? इसका
स्पष्ट उद्देश्य एवं सन्देश यह है कि प्रत्येक लोग को उनकी ‘योग्यता’ एवं ‘कुशलता’
के आधार पर ‘प्रतिष्ठा’ सुनिश्चित किया गया है| इसी तरह, उनकी ‘योग्यता’ एवं ‘कुशलता’ के
आधार पर ‘अवसर’ की समता भी सुनिश्चित किया गया है| मतलब यह हुआ कि सभी को अपनी ‘योग्यता’ और
‘कुशलता’ को अपनी रुचि, क्षमता, एवं लगन के आधार पर विकसित करना है| लेकिन इसका यह
अर्थ कदापि नहीं है कि कोई ‘विधि’ ही नहीं पढ़े और ‘समता के अधिकार’ के साथ न्यायिक
अधिकारी बन जाय, या कोई चिकित्सा ही नहीं पढ़े और ‘समता के अधिकार’ के साथ चिकित्सक
या चिकित्सा अधिकारी बन जाय| उसे अपेक्षित योग्यता और कुशलता हासिल करना ही करना
होगा|
‘समरसता’
का अर्थ होता है कि सभी के बीच सामंजस्य हो, सहयोग हो, माधुर्य हो, और सभी अपनी
क्षमता, योग्यता, कुशलता के साथ उस ‘योजना’ को सफल बनाएँ, जिसके वे तत्व हैं, अवयव
हैं, घटक हैं| यह ‘योजना’ कोई भी ‘परियोजना’ हो सकता है, समाज हित का कोई ‘कार्य’
हो सकता है, राष्ट्र निर्माण का कोई ‘भावनात्मक कार्य’ हो सकता है, व्यापक मानवता के
लाभार्थ कोई ‘वैचारिकी या कार्यान्वयन’ हो सकता है या किसी प्राकृतिक संरक्षण या
संतुलन के लिए कोई विशद ‘आयोजना’ हो सकता है| सभी का उद्देश्य व्यापक मानवता के
वर्तमान एवं भविष्य निर्माण की संकल्पना को साकार करना होता है|
यदि
कोई चाहे कि एक यन्त्र या संयंत्र में सभी तत्व एक समान ही हो, यानि सभी एक जैसे समान
ही हो, तो वह यन्त्र या संयंत्र कार्यरत हो ही नहीं सकता| यदि उसमे सभी लीवर ही
हो, या सभी पुल्ली ही हो, तो वह यन्त्र या संयंत्र हो ही नहीं सकता है| यदि किसी
कार में सभी यदि टायर ही हो, या सभी इंजन ही हो, या सिर्फ सीट ही हो, तो वह कार हो
ही नहीं सकता| उस कार के सभी अवयवों, यथा इंजन, पहिया, सीट, गीयर आदि आदि में
अवश्य ही कोई संयोजन हो, सामंजस्य हो, सहयोग हो और सभी अपनी क्षमता, योग्यता,
कुशलता, एवं निश्चित दायित्वों का निर्वहन बिना किसी घर्षण के, बिना किसी बाधा के करे,
तभी वह कार अपने उद्देश्य पूर्ति में सफल हो सकता है| यही स्थिति परिवार, समुदाय,
समाज, राष्ट्र एवं मानवता सहित भविष्य निर्माण के लिए भी सही, समुचित एवं अनिवार्य
है| यही समरसता है|
मानव समाज में विविधता प्राकृतिक होती है और उसी
में एकता, समरसता, सामंजस्य, एवं सहयोग भी आवश्यक है| मानव समाज में लिंग,
प्रजाति, कार्य या पेशा, पोशाक, भोजन, रीति रिवाज, परम्परा, संस्कृति, धर्म, सम्प्रदाय,
भाषा, क्षेत्र, इतिहास एवं भूगोल सहित जैवकीय ढाँचा एवं संरचनात्मक गठन के
साथ विविधता होती है| यह सब प्राकृतिक
होता है और यह इतिहास एवं भूगोल के साथ ‘अनुकूलन’ (Adaptation) का ‘उदविकासीय (Evolutionary)
परिणाम’ का उत्पाद होता है| यह ‘जीवितता’ (Survival) एवं ‘निरन्तरता’ (Contunuity)
के लिए अनिवार्य तत्व है| यही विकास का आधार भी होता है|
इसीलिए
‘समता’ नहीं, बल्कि “समरसता” ही प्राकृतिक स्वभाव है, प्राकृतिक न्याय है, मानवता
के समुचित एवं पर्याप्त विकास का वैज्ञानिक आधार है| इसे समझना है और इसे बनाए
रखना है| यही निर्माण, रचना और अभिनवता (Innovation) की पृष्ठभूमि है|
आचार्य
प्रवर निरंजन
जी
दार्शनिक, शिक्षक
एवं लेखक
अध्यक्ष, भारतीय
अध्यात्म एवं
संस्कृति संवर्धन
संस्थान, बिहटा, पटना, बिहार|
सर, समरसता भेदभावमूलक है और असमानता को बढ़ावा देती है, जबकि समता वास्तविक में समतामूलक तथा मानवतावादी समाज के यथार्थ को फलीभूत करता है। समरसता बरसों से चले आ रहे भेदभाव ऊँच नीच और असमानता को कायम रखने की बात करती है अर्थात यह आर्थिक सामाजिक धार्मिक और राजनीतिक रूप से लोगों को ऊँच या नीच मानती है। भारतीय संविधान में यदि समरसता की बात नहीं की गई है तो यह कोई इफाक नहीं है बल्कि संविधान निर्माताओं की सोची समझी रणनीति है।
जवाब देंहटाएंसंक्षेप में, समरसता का अर्थ यह हुआ कि अगर कोई ब्राह्मण कुल कै हैं तो वो जन्म से श्रेष्ठ है और नीचे के सभी जातियों को इसे मान लेना चाहिए कि वे पूज्नीय हैं और उनकी गलतियां माफ है।। अगर प्राचीनकाल से चली आ रही व्यवस्था को स्वीकार करते हैं तो समाज में कोई उत्पात नहीं होगा और समाज शांतिपूर्वक चलता रहेगा। अगर कोई अधिकार की मांग कर रहा है तो यह समरसता के खिलाफ है।
समरसता का समर्थन उच्च वर्ग/ जाति और समाज के धनाढ्य - सम्पन्न,इलिट वर्ग करता है ताकि गरीब, मजदूर, कमजोर, किसान वर्ग और सामाजिक रूप से निम्न,छोटा, अधिकार रहित समुदाय इन इलिट वर्ग/ वर्ण का विरोध नहीं करे, कोई विद्रोह नहीं करें, कोई आवाज नहीं उठाए और असमानता, अन्याय, शोषण, गरीबी, भूखमरी का सहन करते हुए देश/समाज में सौहार्दपूर्ण और शांति बनाए रखते हुए ताकि स्थिति कायम रहे।
जवाब देंहटाएंRSS/दक्षिणपंथी और पूंजीपति इसी समरसता की दलिल देते हैं।