सोमवार, 15 सितंबर 2025

भारत में राष्ट्र कहाँ हैं ...... ?

कुछ देशों में ‘राष्ट्र’ (Nation) किसी धर्म/ पन्थ में खोज लिया जाता है, तो कुछ देशों में राष्ट्र का आधार भाषा हो जाता है, कहीं भौगोलिक क्षेत्र भी आधार बन जाता है, आदि आदि ..। इसीलिए कुछ विद्वान राष्ट्र की अवधारणा (Concept) में, उसकी परिभाषा में और उसके आधार में इन्हीं तत्वों की जांच पडताल करता  हैं। लेकिन इन आधारों पर बहुत से बडे़ एवं प्रमुख देशों की राष्ट्रों की अवधारणा में समस्या आ जाती है। संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत, जनवादी गणराज्य चीन, रूसी संघ, कनाडा, स्विट्ज़रलैंड, आदि अनेक देश इन अवधारणाओं में राष्ट्र की शर्तों में नहीं आता, लेकिन ये सभी सशक्त एवं समृद्ध राष्ट्र हैं| परन्तु इन आधारों पर भारत में राष्ट्र कहाँ है, यह एक बड़ा और गंभीर सवाल है?

‘राष्ट्र’ की अवधारणा को समझने के लिए एक ही अवधारणा काफी है, जिसे भूतपूर्व सोवियत संघ (वर्तमान रुसी संघ) के जोसेफ स्टालिन ने 1913 में अपनी लेख/ पुस्तक "Marxism and the National Question' में दिया । उनके अनुसार  "राष्ट्र एक ऐतिहासिक रूप से गठित, स्थायी मानव समुदाय है’। स्पष्ट है कि राष्ट्र लम्बे काल तक एक साथ रहने से उत्पन्न ‘ऐतिहासिक एकापन’ (Historical Oneness) की भावना है। इस तरह एक राष्ट्र भौतिक स्वरुप की कोई ठोस वस्तु नहीं है, अपितु यह एक ‘काल्पनिक वास्तविकता’ (Imaginary Reality) है, जो काल्पनिक होते हुए भी एक वास्तविकता होती है। ‘राष्ट्र’ को एक ‘संस्था’ (Institution, not an Institute) समझा जा सकता है| एक संस्था के रुप सभी सम्बन्धित लोग इनसे भावनात्मक लगाव रखते हैं| इसीलिए एक राष्ट्र काल्पनिक होते हुए भी असंख्य लोगों को बहुत मजबूती से अपने साथ को जोड़ लेता है और वास्तविक की तरह अपने परिणामों में प्रभावशाली होता है|

यह सही है कि एक राष्ट्र के लिए एक ‘साझा भाषा’ (Common language), एक ‘साझा भौगोलिक क्षेत्र’ (Common territory, एक ‘साझा आर्थिक जीवन’ (Common economic life) एवं एक ‘साझा सांस्कृतिक मनोवृत्ति’ (Common psychological make-up) जैसे तत्व महत्वपूर्ण हैं| ये सब एक राष्ट्र को सहज और सरल ढंग से मजबूत बनाता है, लेकिन ये सभी तत्व एकसाथ इनके लिए अनिवार्य नहीं हैं। इजराइल 1948 से पहले एक देश (Country) और एक राज्य (State, not Province) नहीं था, लेकिन एक ‘राष्ट्र’ के रुप में अपनी भावनात्मकता की वास्तविकता में बहुत सशक्त रही| इजरायल 1948 में एक देश भी बना और एक राष्ट्रीय राज्य भी बना। यह भी सही है कि ‘बाजार की शक्तियाँ’ यानि ‘आर्थिक शक्तियाँ’ ही इतिहास बदलता रहता है और इसीलिए इन्हें ‘ऐतिहासिक शक्तियाँ’ भी कहा जाता है। आज यही ‘बाजार की शक्तियाँ’ ही पूरे विश्व को एक नए किस्म के ‘राष्ट्र’ में बदल रहा है| स्पष्ट है कि एक राष्ट्र ‘एकापन’ (Oneness) की एक मानसिकता है, एक संस्कृति है, एक भावना है, एक अध्यात्म है।

जोसेफ स्टालिन द्वारा अवधारित राष्ट्र की अवधारणा (Concept)  ही यदि वैज्ञानिक, सही, पर्याप्त और समुचित है, तो भारतीय लोगो के लिए राष्ट्र (राष्ट्रीयता) की भावना उनकी जाति, धर्म, पन्थ, भाषा, क्षेत्र, आदि से गुंथी हुई है। यह अनुचित और गलत है| सामान्य भारतीय लोग अपनी भावनात्मक, आध्यात्मिक एवं ऐतिहासिक जुडाव अपनी जाति, सम्प्रदाय, पंथ, धर्म, भाषा, क्षेत्रीयता, एवं स्थानीय परम्परा से ज्यादा रखते हैं। सामान्य भारतीय इन्हें ही राष्ट्र समझते हैं और मानते हैं| इन सामान्य भारतीयों में हमारे बड़े बड़े राजनेता गण, उच्चस्थ नौकरशाही, विश्विद्यालयों के प्रोफ़ेसर, परम्परागत मीडिया एवं अन्य बुद्धिजीवी गण भी शामिल हैं| सामान्य भारतीयों में राष्ट्र (राष्ट्रीयता) की भावना को उभारने एवं उसे सशक्त करने के लिए कागजी प्रावधानों के अतिरिक्त वास्तविक रुप में सजग, सतर्क, सशक्त एवं सहज प्रयास व्यवस्था द्वारा किया जाना समझ में नहीं आता है| इसीलिए भारतीय संविधान सभा ने भारतीय संविधान की ‘उद्देशिका’ (Preamble) में ‘राष्ट्र की एकता एवं अखंडता’ की बात की है। इसमें देश, राज्य एवं प्रान्त की एकता एवं अखंडता की बात नहीं की गयी है।

भारत 1947 के पहले भी एक देश था और इसके बाद भी एक देश है। भारत 1947 के पहले भी एक राज्य नहीं था और उसके बाद ही एक सम्प्रभुता सम्पन्न राज्य बन सका| ऐसा इसलिए हुआ कि क्योंकि भारत में एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र, एक स्थिर निवासित आबादी और व्यवस्था के लिए एक (ब्रिटिश) सरकार तो था, लेकिन सम्प्रभुता नहीं होने से राज्य नहीं था। भारत के ब्रिटिश काल में राष्ट्र की भावना उभरने लगी और तब भारत एक राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर हुआ। इसीलिए भारतीय संविधान सभा को संविधान में अपने ‘उद्देश्य’ को ‘उद्देशिका’ में स्पष्ट करना पड़ा| लेकिन इसकी सफलता की मात्रा का मूल्यांकन आप कर सकते हैं।

भारत में ‘राष्ट्र की संस्कृति’ (Nation- Culture) ही नहीं है| प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक कार्ल जुंग की अवधारणा में, भारत का ‘सामूहिक अवचेतन’ (Collective Un Consciousness) में राष्ट्र है नहीं| यदि प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक और अर्थशास्त्र के नोबल पुरस्कार विजेता डेनियल कुहनमैंन (Thinking Fast and Slow के लेखक) के शब्दावली में भारतीय लोगों के ‘सिस्टम एक’ (System One) में राष्ट्र की अवधारणा नहीं है|

अब आप ही बताइए कि भारत में राष्ट्र को कहाँ खोजूं? 

आचार्य प्रवर निरंजन जी

दार्शनिक, शिक्षक एवं लेखक

अध्यक्ष, भारतीय अध्यात्म एवं संस्कृति संवर्धन संस्थान, बिहटा, पटना, बिहार|

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