विभिन्न
फोरमो पर यह बात अक्सर उठती रहती है कि ‘हमारी सांस्कृतिक विरासत’,
‘हमारी समस्याएँ’, ‘हमारे लोग’, ‘हमारे दुश्मन’, ‘हमारा इतिहास’, ‘हमलोग’ ... आदि आदि। एक बार बिहार
के राजगीर में एक संगोष्टी सत्र में ‘उद्धाटन वक्ता’ के रुप में मुझे भी 'हमारी सांस्कृतिक विरासत' पर बोलना था। यहाँ मुझे
तीन शब्द मिले - 'हमारी', 'सांस्कृतिक',
एवं 'विरासत'। मेरे
अनुसार मुझे लगा कि आगे बढने से पहले मुझे इन तीनों शब्दों से संरचित अवधारणाओं को
स्पष्ट करना चाहिए। मैं यहाँ आपको सिर्फ ‘हमारी’ (WE) शब्द पर स्थिर करना चाहूँगा|
मैं यहाँ शेष दोनों शब्दों 'सांस्कृतिक' एवं 'विरासत' को अभी छोड़ रहा
हूँ| लोग किसी भी विषय पर बडी़ बड़ी और लम्बी लम्बी बातें तो कर लेते हैं, लेकिन उन्हें उन अवधारणाओं की स्पष्टता भी होनी चाहिए।
जब
हम भाषा विज्ञान में शब्दों, वाक्यों और
वाक्यांशों को अच्छी तरह से समझना चाहते हैं, तो हमें भाषा
विज्ञान के कुछ महत्वपूर्ण अवधारणाओं और उपकरणों (टूल्सों) को समझना होगा। इनमें
दो - 'संरचनावाद' (Structuralism)
और 'विखंडनवाद' (Deconstructionism) सबसे प्रमुख हैं।
स्विट्जरलैंड
के भाषा विज्ञानी एवं दार्शनिक फर्डीनान्ड डी सौसुरे अपने ‘संरचनावाद’ में समझाते
हैं कि प्रत्येक शब्दों, वाक्यों और वाक्यांशों की
अपनी विशिष्ट एवं भिन्न भिन्न संरचना होती है, और इसीलिए एक
ही शब्द, वाक्य और वाक्यांश के बदलते संदर्भ, परिस्थिति और समय में उनका अर्थ बदल जाता है। एक ही शब्द, वाक्य और वाक्यांश के सतही अर्थ भी होते हैं, और उसी
के निहित अर्थ भिन्न हो जाते हैं। अर्थात एक ही शब्द, वाक्य
और वाक्यांश के अर्थ उसके बदलते संदर्भ, परिस्थिति और समय में
उपलब्ध ढाँचा के अनुसार बदलता रहता है।
‘अर्थ’
(Meaning) समझने एवं समझाने की अगली कड़ी में फ्रांसीसी दार्शनिक जाक देरिदा अपने ‘विखंडनवाद’
में समझाते हैं कि एक लेखक या वक्ता के शब्द, वाक्य
और वाक्यांश के अर्थ लेखक या वक्ता के तो अपने होते हैं, परन्तु
उन शब्दों, वाक्यों और वाक्यांशों के अर्थ पाठकों या श्रोताओं
के अपने अपने होते हैं। मतलब यह हुआ कि लेखको और वक्ताओं के शब्दों, वाक्यों और वाक्यांशों के अर्थ एवं भाव इनके मानसिक स्तर, समझ
और उनकी ‘सांस्कृतिक जड़ता’ (Cultural Inertia) से निर्धारित होती है, लेकिन उसके अर्थ और भाव (Essence) उसके पाठकों एवं श्रोताओं के मानसिक स्तर,
समझ और उनकी ‘सांस्कृतिक जड़ता’ से निर्धारित होने के कारण भिन्न
भिन्न हो जाता है। हमलोग अभी ‘हम’, यानि ‘हमारे’ या ‘हमारी’ शब्द के सन्दर्भ में
बात कर रहे हैं|
मैं
अपने उस मंच से जब “'हमारी' सांस्कृतिक विरासत” की बात कह रहा था, तो श्रोता गण उस ‘हमारी’ का अर्थ
अलग अलग समझ रहे थे| कोई 'हमारी' में
अपनी जाति, कोई अपने ‘जाति समूह’ कोई अपने सम्प्रदाय,
पंथ या धर्म, कोई अपने क्षेत्र, कोई अपने भाषा, कोई अपनी प्रजाति, कोई अपनी राष्ट्रीयता, कोई अपने देश के सन्दर्भ में ‘लोगों’
को शामिल कर या समझ रहा था। हमारे आपके जैसे लोग तो उस “हमारे” में अन्य लोगों के
अतिरिक्त सन्दर्भ के सापेक्ष समस्त ‘मानवता’, ‘प्रकृति’ और ‘भविष्य’
को भी शामिल कर लेता है। आपने देखा कि एक ही शब्द, वाक्य और
वाक्यांश के अर्थ लेखक या वक्ता के तो अपने होते हैं, लेकिन उन्हीं
के अर्थ एवं भाव पाठकों एवं श्रोताओं के अपने समझ के अनुसार अलग अलग ढाँचे एवं
संरचना के संदर्भ में भिन्न भिन्न हो जाता है।
भारतीय
संविधान का प्रथम शब्द ही ‘हमारे‘ (WE) की अवधारणा को स्पष्ट करता है| यह भारतीय
संविधान की ‘उद्देशिका’ (Preamble) के प्रथम शब्द "हम,
भारत के लोग" (WE, the PEOPLE of India) में निहित है| ध्यान रहे
कि इस ‘हमलोग’ में भारत के समस्त लोग शामिल हैं| लेकिन इस ‘लोग’ के स्थान पर
‘नागरिक’ (Citizen) या ‘व्यक्ति’ (Person) शब्द प्रयुक्त नहीं है| ‘नागरिक’ कहने से ‘अ नागरिक’ (Non Citizen) छूट
जाते हैं, और ‘व्यक्ति’ कहने में ‘कृत्रिम’ व्यक्ति (कम्पनी/ संस्थान आदि) भी शामिल हो जाते हैं, जो
अनुचित है| ये सभी लोग भारत देश की भौगोलिक सीमाओं के अन्तर्गत निवासित लोग हैं|
लेकिन इनमे विश्व की शेष आबादी, यानि विश्व की 83 % आबादी इस ‘हमारे’ से बाहर रह
जाती है|
लेकिन
मैं तो ‘मेरे (अपने) लोग’ में और भी बहुत कुछ शामिल करता हूँ| यदि हमलोग ‘संयुक्त
राष्ट्र विकास कार्यक्रम’ (UNDP) के सभी 17 ‘धारणीय लक्ष्य’ (Sustainable Goals) पर
ध्यान केन्द्रित करते हैं, तो और बहुत कुछ स्पष्ट होता है| तब हमारे चिन्तन एवं
हमारी समझ का ‘बहु आयामीय’ (Multi Dimensional) विस्तार हो जाता है| इससे उस
‘हमारे’ में सम्पूर्ण ‘मानवता’ (Humnity) और ‘प्रकृति’ (Nature) भी समाहित हो जाता
है, ताकि मानवता का भविष्य और संवर्धित एवं सुरक्षित हो सके| बुद्ध के ‘हमारे’ (We)
में मानवता, प्रकृति एवं भविष्य भी शामिल रहा हैं| इसीलिए मेरे शब्द “हमारे” में ये सभी शामिल हैं|
और
आपके ‘हमलोग’ शब्द की अवधारणा में कौन कौन शामिल हैं? बताइयेग|
आचार्य प्रवर निरंजन जी
दार्शनिक, शिक्षक एवं लेखक
अध्यक्ष, भारतीय अध्यात्म एवं संस्कृति संवर्धन संस्थान, बिहटा, पटना, बिहार|
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