शिक्षक दिवस पर .......
भारत में ‘महाभारत’
नाम का एक भयंकर युद्ध हुआ था| ऐसा युद्ध पहले नहीं हुआ था| नाम से भी स्पष्ट है कि इस युद्ध में भारत शामिल
था, यानि तत्कालीन सम्पूर्ण भारत ने हिस्सा लिया था| ‘तथाकथित’ बुद्धिजीवियों से
अनुरोध है कि वे इसकी ऐतिहासिकता की सत्यता पर अभी नहीं जाएँ| माना कि यह मिथक ही
रहा हो, लेकिन मैं सिर्फ इसके मूल सन्देश पर ही जमा रहना चाहता हूँ, जो मुझे समझ
में आया| यानि मैं आपको फिलहाल इसके मिथकीय होने या ऐतिहासिक होने के द्वन्द में लाना
नहीं चाहता| मैं यहाँ आपको यह बताना चाहता हूँ कि कोई भी युद्ध कैसे जीत जाता है?
‘महाभारत’ है, तो इसके मूल
में युद्ध है| पांडवों ने इस युद्ध को जीत लिया| इस युद्ध का महान योद्धा ‘अर्जुन’
ने पांडवों को जीत दिलायी| तो सवाल यह है कि महान अर्जुन इस युद्ध को कैसे
जीत सका? उसने इस युद्ध को जीतने के लिए क्या किया, या क्या क्या किया? वह अपने
किस हथियार के प्रयोग उपयोग कर उस महाभारत युद्ध को जीत सका? या अर्जुन की किस
रणनीति ने उसे महाभारत का सफल नायक बनने दिया? यह तो स्पष्ट है कि अर्जुन अपने
जीवन का सबसे भयंकर, कठिन एवं दुरुह युद्ध को अपने अल्प संसाधनों के साथ जीत लिया|
लेकिन यह सब कैसे संभव हो सका? यदि आपको भी अपने जीवन का कोई भयंकर, कठिनतम और
दुरुह युद्ध जीतना हो, तो आप कौन सा
हथियार चलाएंगे, या कौन से रणनीति पर चलेंगे, जो आपको विजयी बनायेंगे? यह
विश्लेषण एवं समझ आपके जीवन को बदल दे सकता है| वह कौन सी समझ होती है,
जो एक झटके में ही सब कुछ उलट देता है?
यदि सभी चीजें,
स्थितियाँ और परिस्थितियाँ भी एक ही समान हो, तो भी सिर्फ ‘नजरिया’ (Attitude),
यानि ‘दृष्टिकोण’ (Perspective) बदल जाने मात्र से सारा खेल ही उलट जाता है| लेकिन सबसे
महत्वपूर्ण सवाल यह है कि यह ‘नजरिया’ यानि ‘दृष्टिकोण’ क्या होता है, जो सारे खेल
को पलट देता है? इसे हार्वर्ड विश्विद्यालय के भौतिकी एवं दर्शन के प्रसिद्ध
प्रोफेसर थामस सम्युल कुहन ने अपनी पुस्तक ’’’The Structure of
Scientific Revolution’ में ‘नजरिया’ यानि ‘दृष्टिकोण’ में बदलाव को ही ‘पैरेड़ाईम
शिफ्ट’ (प्रतिमान बदलाव) (Paradigm Shift) कहा है| लेकिन यह ‘नजरिया’ यानि
‘दृष्टिकोण’ बनता एवं बदलता कैसे है, और यह बदलाव कहाँ से एवं कैसे आता है? यानि यह
‘नजरिया’ यानि ‘दृष्टिकोण’ विकसित एवं संवर्धित (Improve) कैसे किया जाता है? यानि
इसे विकसित एवं संवर्धित करने के लिए क्या किया जाना चाहिए? इस ‘नजरिया’
यानि ‘दृष्टिकोण’ को ‘दर्शन’ का ज्ञान एवं समझ ही बनाता एवं बदलता है, और यह बदलाव
भी ‘दर्शन’ का ज्ञान एवं समझ से ही आता है|
थामस कुहन के इस
पैरेड़ाईम शिफ्ट के सिद्धांत के अनुसार, अर्जुन को युद्ध जीतने के लिए बदलते हुए चीजॉ,
स्थितियों और परिस्थितियों को सदैव समझना देखना था, और उस बदलाव के अनुकूल रणनीति
में तत्काल ही पैरेड़ाईम शिफ्ट करना होता था| यदि यह किसी के जीवन की कोई
सामान्य या असामान्य समस्या होती, तो भी इन समस्यायों के समाधान के लिए इसे एक बार
देखना समझना होता और एक बार नजरिये में अवश्य ही पैरेड़ाईम शिफ्ट करना होता| जीवन
के किसी भी समस्या के समाधान के लिए उन समस्यायों को यथास्थिति में देखना समझाना होता
है| भारत में इस विधा को ‘दर्शन’ (Philosophy) कहते हैं, जिसका अर्थ होता है –
देखना| अर्थात सम्यक रूप में उन समस्यायों को देखना एवं समझाना ताकि उन समस्यायों
का समुचित समाधान पाया जा सके|
कोई भी समस्या मात्र
इसलिए समस्या होती है, क्योंकि उसका अबतक कोई समाधान नहीं मिल रहा होता है| और कोई भी समाधान
इसलिए नहीं मिल रहा होता है, क्योंकि उस समस्या को और उसके कारको एवं कारणों को यथास्थिति
में, यानि वह समस्या वास्तव में जैसा है, उसे उसी अवस्था में पूरी समग्रता एवं
व्यापकता में नहीं देखा समझा नहीं जा रहा है| किसी भी स्थिति, परिस्थिति,
संरचना एवं ढाँचा को यथास्थिति में समग्रता और व्यापकता से देखना समझना ही ‘दर्शन’
है|
यदि आप सम्पूर्ण महाभारत को समझेंगे, और महाभारत के युद्ध को जीतने का कोई एक ही मूल, मौलिक एवं महत्वपूर्ण कारण या कारक खोजेंगे, तो आप स्पष्ट होंगे कि अर्जुन की पूरी सफलता उसके मात्र एक ही निर्णय में समाहित है| अर्जुन ने अपने युग के एक महान दार्शनिक श्रीकृष्ण को अपने पक्ष में कर लिया और महाभारत का भयंकर एवं विनाशकारी युद्ध को जीत लिया| यदि आप कोई अन्य महत्वपूर्ण कारक खोजेंगे, तो शायद आपको इतना महत्वपूर्ण एवं मुख्य कोई अन्य कारक या कारण नहीं मिलेगा| दार्शनिक वह होता है जो समसयाओ का समाधान ढूंढने में सहायक होता है। यहाँ यह समझना बहुत महत्वपूर्ण होगा, इस दर्शन की समझ या ज्ञान कैसे प्राप्त किया अता है? और यह कैसे कार्य करता है? यह दर्शन ही जीवन की सभी समस्यायों का समाधान सुझाता या बताता है|
इसके लिए हमें दर्शन का अध्ययन करना चाहिए। दर्शन भी दो प्रकार का होता है| एक, अपने लिए, यानि जीवन की वास्तविकताओं को समझने के लिए, और दूसरा, दूसरों को ठगने के लिए, ऐसा भी कुछ लोगों का मानना है। जिस दर्शन का विषय वस्तु जीवन की वास्तविकताओं को देखने समझने का ज्ञान देना है, उस दर्शन के अनुयायियों ने जीवन की वास्तविकताओं में अन्य से बहुत आगे निकल गए है| दूसरों को ठगने वाला दर्शन जीवन की वास्तविकताओं को काल्पनिक बता देता है और इस जीवन के पार की काल्पनिक दुनिया को ही ‘वास्तविक’ बता देता है| मतलब, यह दूसरा दर्शन इस शरीर की आवश्यकताओं को ही नकार देता है और इस शरीर के अन्त यानि नष्ट हो जाने के बाद की मनगढ़ंत कहानियों में उलझा देता है| हालाँकि दर्शन के इस दूसरे पक्ष को, यानि शरीर के अन्त के बाद के जीवन को विज्ञान एकदम नहीं मानता|
वैसे मुझे इस दूसरे दर्शन को
ही सही मानने पर भी मेरी कोई आपत्ति नहीं है, क्योंकि किसी भी व्यक्ति का समझ उनके
चेतना के स्तर के अनुसार ही होता है| किसी भी समझ का आधार किसी का अज्ञानता भी
हो सकता है और उसके ज्ञानता के विभिन्न स्तरों के अनुरूप भी हो सकता है| अकसर चतुर
लोग दर्शन के दोनों ही स्वरुपों को एक साथ उपयोग एवं प्रयोग करते हैं – अपने लिए
प्रथम दर्शन एवं दूसरों को ज्ञान देने के लिए दूसरा दर्शन, जो इस जीवन के पार का
होता है|
अब आपको तय करना है कि आपको अपने इस वास्तविक जीवन की समस्यायों का समाधान चाहिए? या इस शरीर के मर जाने पर बतायी गयी काल्पनिक समस्यायों का समाधान चाहिए? अर्जुन ने महाभारत युद्ध को जीतने लिए अपने पक्ष में उस काल के सबसे बड़े दार्शनिक श्रीकृष्ण को चुना|
निम्न स्तर के लोग सिर्फ अपनी पाँचों ज्ञानेनेद्रियों
के मदद से ही सूचनाएँ प्राप्त करते हैं, और उस पर क्रिया या प्रतिक्रया दे सकते
हैं| चेतना के विकास के विभिन्न चरणों यानि स्तरों के अनुसार कोई उन
पाँचों ज्ञानेन्द्रियों के अतिरिक्त अपने मानसिक (Mental) स्तर से, कोई चैतसिक (Emotional)
स्तर से और कोई अध्यात्मिक (Spiritual) स्तर से सूचनाओं को प्राप्त करता है|
यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि उपरी स्तर के लोग निम्नतर सभी स्तरों के सूचनाओं को
समाहित करता होता है| अर्जुन के सहयोगी दार्शनिक श्रीकृष्ण उपरोक्त वर्णित सभी
स्तरों को अपने में समाहित किए हुए थे, इसीलिए श्रीकृष्ण अद्वितीय दार्शनिक
हुए|
एक दार्शनिक
का दर्शन दुनिया के सभी संयुक्त सेनाओं एवं हथियारों पर अकेले भारी पड़ता है| आपको यदि जीवन का जंग जीतना है, तो दर्शन को समझिए, दर्शन
को पढ़िए, दर्शन का मनन मंथन कीजिए, और उसे व्यवस्थित भी कीजिए| अब आप अपने जीवन
जंग को जीत चुके हैं| आप भी अर्जुन जैसा ही समझदार बनिए|
आचार्य
प्रवर निरंजन जी
दार्शनिक,
शिक्षक एवं लेखक
अध्यक्ष, भारतीय अध्यात्म एवं संस्कृति संवर्धन संस्थान, बिहटा, पटना, बिहार|
आपके विचार सटीक व सामयिक हैं किन्तु आज के औपनिवेशिक दासता से मुक्त भारत में तथाकथित रूप से बाबा साहब डॉ बी आर आंबेडकर निर्मित संविधान की सुरक्षा में जुड़े सत्ता, जिसे मैं सत्य ही नहीं, बल्कि सच्चाई व अच्छाई का हंता, हत्यारा या अंता समझता हूं और उसकी पड़ताल विश्व पटल पर भूतकाल के आईने की शान- इतिहास एवं वर्तमान में काल के कृपांक रहित मूल्यांकन के साथ ही विवेक के नज़रिए से सत्ता में बने रहने व पुनर्स्थापित होने की कोशिश में क्रमशः पक्ष व विपक्ष की हठधर्मिता के बीच जनता में उन्माद की स्थिति से वास्तविकता की पहचान की जा सकती है, और विपक्ष की एका की चक्की में में जनता की जरूरत को पीसने की प्रायिकता निर्धारण में सम्भावना का निर्धारण व बच निकलने की सुनिश्चितता की तलाश की जा सकती है किन्तु अर्जुन की भूमिका निभाने का दायित्व निर्वहन करना तो दूर अपने कर्त्तव्य से दूर रहते हुए कीचड़ उछाल दुर्वृति से लैस होकर कृष्ण को कलंकित करने एवं गाली देने के लिए गाहे - बगाहे अवसर बनाने की ताक में लगे रहते हैं जो बेज़मीरी के आलम को प्रदर्शित किए बिना रह नहीं पाती है - ऐसा मैं समझता हूं किन्तु मेरा दृढ़ विश्वास है कि इससे इतर स्थिति व असहमति ज्ञान को मानवता की सेवा में उच्चतर आयाम प्रदान करेगी ।
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