गुरुवार, 20 मार्च 2025

हम जीवित क्यों हैं?

एक बड़ा ही अहम सवाल है कि ‘हम जीवित क्यों हैं’? ‘जीवन क्या है’? अर्थात ‘जीवन का उद्देश्य क्या है’? वैसे प्रथम दृष्टया यह सब बड़ा ही साधारण एवं सरल सवाल लग सकता है, लेकिन इसका उत्तर बहुत ही व्यापक एवं गहन है, और इसका प्रभाव भी बहुत ही दूरगामी है| यदि अब तक आपने इस प्रश्न पर ठहर कर विचार नहीं किया है, तो आपका जीवन उद्देश्यहीन गेंद की तरह ही इधर उधर लुढकता रह सकता है, या उद्देश्यहीन भटकता रह सकता है| स्पष्टतया सभी जीवित मानव को यह अवश्य ही जानना एवं समझना चाहिए कि ‘हम जीवित क्यों हैं’? ‘जीवन क्या है’? अर्थात ‘जीवन का उद्देश्य क्या है’?

दरअसल कोई भी चीज यदि जीवित है, तो यह स्पष्ट है कि वह ‘चेतन’ (Conscious) है, यानि उसमे ‘चेतना’ है| किसी भी बदलती रहने वाली स्थिति या परिस्थिति के प्रति सचेत रहने की, यानि ‘चेते’ (Alert) रहने की प्रवृति, यानि प्राकृतिक स्वभाव ही ‘चेतना’ है| ‘चेत जाना’ एक स्वभाव है, जो अपने पर्यावरण के बदल जाने की स्थिति में उसके प्रति अनुकूलित (Adjust/ Adopt) हो जाने के लिए तैयार एवं तत्पर रहता है, चैतन्य रहता है, सचेत रहता है| इसी कारण किसी ‘विचार- शून्य मानव’ को समाज ‘चलता फिरता लाश’ भी कह देता है, मान लेता है| इसी प्राकृतिक स्वाभाव को, इसी स्वाभाविक एवं सहज गुण को ‘चेतना’ (Consciousness) कहते हैं| इस ‘चेतना’ को आप दूसरे शब्दों में, मानव के सन्दर्भ में ‘मन’ (Mind) कह सकते हैं, ‘आत्म’ (Self) भी कह सकते हैं, लेकिन इसे आप ‘आत्मा’ (जो अजर अमर है, और अपने कर्मों के साथ पुनर्जन्म भी लेती है) नहीं कह सकते हैं| यही गुण, स्वभाव, प्रकृति ही किसी चीज को सजीव बनाती है, अन्यथा वह निर्जीव कहलाती है| अत: ‘सचेत’ रहने की ‘चैतन्य अवस्था’ ही ‘जीवन’ है|

हम जीवित क्यों है? किसी “जीवित” के सम्बन्ध में हम आधुनिक वैज्ञानिक भाषा में, यानि भौतिकी के ‘क्वांटम क्षेत्र सिद्धांत’ (Quantam Field Theory) की भाषा में कह सकते हैं कि ‘जब किसी वस्तु के एक खास रासायनिक जैवकीय संरचना, यानि कोई ‘क्रोमोजोम’ (Chromosome) या ‘क्रोमोजोम के सेट’ प्रकृति के ‘अनन्त प्रज्ञा’ (Infinite Intelligence) से, यानि ‘एकीकृत क्षेत्र बलों’ (Unified Field Forces) से एक ख़ास किस्म की ऊर्जा ग्रहण करता है, तब वह जीवित हो उठता है, और जबतक उस ऊर्जा का वह आदान प्रदान करता रहता है, तब तक वह जीवित कहलाता है’| इस ऊर्जा को आप "जीवन- ऊर्जा" (Life Energy) कह सकते हैं। और उसकी शारीरिक कोशिकाएँ अपने ‘क्रोमोजोम’ (Chromosome) या ‘क्रोमोजोम के सेट’ को उसकी मौलिक संरचना में यथावत एवं कार्यकारी बनाए रखने की शक्ति अपने ‘जीवन उद्देश्य’ से ही प्राप्त करता है| अर्थात जब तक उसका ‘जीवन उद्देश्य’ स्थिर, सुनिश्चित एवं व्यापक नहीं होता है, तब तक उसे जीवन जीने की शक्ति या प्रेरणा भी नहीं मिल पाता है| चूँकि ‘वनस्पति जीवन’ या ‘सूक्ष्म जीवन’ चिंतन मनन नहीं कर सकता है, इसीलिए उसका जीवन उद्देश्य प्रकृति द्वारा ही उसके क्रोमोजोम में निर्धारित एवं सुनिश्चित रहता है|

जब उस वस्तु, या जीवित जीव के कोशिकाओं के ‘क्रोमोजोम संरचना’ छिन्न भिन्न होने लगती है, यानि उस ‘एकीकृत क्षेत्र बलों’ से ऊर्जा प्राप्त करने में असमर्थ हो जाती है, तो वह वस्तु या जीवित जीव मृत्यु को प्राप्त कर लेती है, और निर्जीव हो जाती है| यह विशिष्ट उर्जा किसी ख़ास कम्पन (Frequency) पर ही कार्य करता है, अन्यथा वह कार्य ही नहीं करता है| इस पैरा को दुबारा बड़े ही ध्यान से अवलोकन करें| उर्जा की यह क्रियाविधि कोशिकाओं के प्रत्येक ‘क्रोमोजोम’ के स्तर पर निरन्तर चलता रहता है, और इसीलिए किसी जीवित की मृत्यु के उपरान्त भी उसके विभिन्न अंगों का प्रत्यारोपण संभव हो जाता है| स्पष्ट है कि यह चेतना या आत्म की एक एकीकृत ‘शक्ति- पुंज’ की तरह नहीं होती है, और इसीलिए यह किसी ‘आत्मा’ की अवधारणा का खण्डन भी करता है|

लेकिन एक मानव अपने बदलते स्थिति एवं परिस्थिति में अनुकूलन (Adoptation) करने के लिए चिंतन मनन कर सकता है, इसीलिए एक मानव अपने ‘जीवन उद्देश्य’ का निर्धारण एवं सुनिश्चयन भी कर सकता है| विज्ञान भी मानता है कि चिन्तन मनन की क्षमता, यानि ‘बुद्धि का प्रकाश’ प्रत्येक मानव में प्राकृतिक रूप में विद्यमान है, वह प्रयास करके तो देखे| तो हमारे ‘जीवन का उद्देश्य क्या है’? इस प्रश्न एवं उत्तर को समझने से पहले एक वास्तविक प्रसंग प्रस्तुत करना चाहता हूँ| मैंने (शायद) एक TEDx आयोजन (Event) में एक मेडिकल सर्जन की आपबीती सुन रहा था| आप इस प्रसंग के सार (Essence) पर ही ध्यान देंगे, लेकिन संज्ञावाचक (नामों) तथ्यों पर ध्यान नहीं देंगे|

उसने बताया कि एक दिन अपने क्लिनिक से निकलने वक्त एक 26 वर्षीय युवा की लगभग मृत शरीर उपचार के लिए लाया गया| खैर, उसे बचा लिया गया| जब उसके ‘क्रोमोजोम संरचना’ सम्बन्धी प्रतिवेदन उपलब्ध हुआ, तो वह चिकित्सक आश्चर्यचकित था| उस ‘क्रोमोजोम संरचना’ सम्बन्धी प्रतिवेदन में उसकी ‘क्रोमोजोम संरचना’ इस तरह छिन्न भिन्न थी, कि उसकी उम्र कोई सत्तर से अस्सी वर्ष के मध्य बताया गया था| उसके परिजनों से यह पता लगा कि वह युवक चार्टर्ड अकाउंटेंट था, उसकी पत्नी एक साफ्टवेयर इंजीनियर थी, उसको चार माह की एक बच्ची भी थी, और उसका विगत चार माह से तलाक की प्रक्रिया न्यायलय में विचाराधीन था| वह चिकित्सक समझ गया कि उस युवक का ‘जीवन उद्देश्य’ उसके केन्द्रित परिवार तक ही सीमित था, उससे अलग होने की प्रक्रिया के बाद उसका ‘जीवन उद्देश्य’ ही समाप्त हो गया था, और तब वह क्यों जीवित रहता?| इस जीवन उद्देश्य को समझ लेने के बाद वह परिवार फिर से एक हो सका|

एक आधुनिक वर्तमान मानव वस्तुत: ‘होमो सेपियंस सेपियंस’ है, और एक स्तनपायी पशु ही है| एक पशु बच्चे पैदा करता है, उसे पालता पोषता है, और फिर उसे ही देखता हुआ मर भी जाता है| यदि कोई दो पैरो वाला पशु (मानव) भी ऐसा ही करता है, तो यह स्पष्ट है कि उस मानव का जीवन उद्देश्य भी एक पशु की ही तरह बहुत ही सीमित होता है| और जब उसका उस छोटे पारिवारिक इकाई से कोई निराशा, हताशा, या खिन्नता, या अलगाव पाता है, तो उसका ‘जीवन उद्देश्य’ ही खण्डित हो जाता है, या नष्ट हो जाता है और फिर उसके जीवित रहने की प्रेरणा शक्ति ही समाप्त हो जाती है| यदि कोई अपने ‘जीवन उद्देश्य’ में विस्तृत समाज को, मानवता को भी समा लेता है, तो वह महान हो जाता है| यदि कोई अपने ‘जीवन उद्देश्य’ में ‘प्रकृति’ सहित ‘भविष्य’ को भी समाहित कर लेता है, तो वह “बुद्ध” हो जाता है| जब किसी का ‘जीवन उद्देश्य’ बहुत ही व्यापक, गहन और विस्तृत हो जाता है, उसके ‘जीवन उद्देश्य’ की प्रेरक शक्ति भी बहुत ही व्यापक, गहन और विस्तृत हो जाता है| उसके जीवन में किसी भी छोटे मोटे कारकों के विपरीत होने से भी उसकी जीवित रहने की प्रेरणा शक्ति कमतर नहीं होती| तब वह जीवित रहने के लिए वह हर संभव सजग एवं सतर्क प्रयास करता रहता है, जो उसके ‘जीवन उद्देश्य’ की प्राप्ति के अनिवार्य होता है|

मैं अपने 08 मार्च 2025 के आलेख – “मैं कौन हूँ” (niranjan2020.blogspot.com) में भी इन स्थितियों को स्पष्ट किया हूँ| यह प्रकृति का स्पष्ट नियम है कि कोई भी वस्तु –निर्जीव या सजीव, सदैव ही किरणें वितरित करती रहती है, यानि वह सदैव ही वितरित करती रहती है; यदि वह उसका तापमान शून्य (0 – Zero) डिग्री केल्विन से अधिक हो, और सभी वस्तुओं का तापमान सदैव ही इस न्यूनतम से अधिक ही होती है| लेकिन यदि कोई सजीव आपतित से अधिक ही वितरित करता है, तो उसे नष्ट होना ही है| इसलिए अपने ‘जीवन उद्देश्य’ में ‘वितरित करना’ यानि ‘देना’ भी सुनिश्चित करें, अन्य चीजों के अतिरिक्त आप अपना प्यार- स्नेह, ज्ञान, विचार, वैचारिकी, दृष्टि, समय भी दे सकते हैं, ताकि आपके जीवन के बाद भी इसके लिए आपको मानवता याद करे| प्रकृति के इन नियमों के विपरीत जाने की सोचना भी बहुत ही घातक है|

इसलिए,

अपने ‘जीवन उद्देश्य’ पर विचार कीजिए,

और मानवता के भविष्य को कुछ देते रहिए|

आचार्य प्रवर निरंजन जी

अध्यक्ष, भारतीय अध्यात्म एवं संस्कृति संवर्धन संस्थान| 

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