रविवार, 29 दिसंबर 2024

एक कहानी कैसे मिथक या इतिहास बनता है?

घरों में जब छोटे बच्चे रोते हैं, मचलते हैं, विखलते हैं, यानि जब बेचैन होकर परिवार को परेशान करते रहते हैं, तो उन्हें भालू के आ जाने की “कहानी” (Story –कथा, किस्सा) सुना कर चुप करा देते हैं| कहानी यह होती है कि शाम या रात के अँधेरे में एक जंगली भयानक पशु - भालू आता है और रोते हुए बच्चे को पकड़ कर ले जाता है| इस छोटी से कहानी को उसके परिवार वाले बड़े ही भावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करते है, और वह बच्चा उसे ‘वास्तविकता’ मान कर चुप होकर सो भी जाता है| इसी तरह, दिन के समय एक ‘ढोलवाला’  आता है और रोते हुए बच्चे को पकड़ कर अपने ‘ढोल’ (Drum) में छुपा कर ले जाता है| ऐसी कहानियाँ इन ‘बाल- बुद्धि’ पर काफी कारगर होती है, परन्तु इसकी प्रस्तुति ‘वास्तविक’ बताने के लिए इसको भावपूर्ण बनाना होता है| ऐसे कहानी की प्रस्तुति को भावपूर्ण बनाने में परिवार के अन्य सारे सदस्य उसी भाव भंगिमा आ कर वैसा ही समां बनाने में सहयोग करते हैं|

इसी तरह, अधिकतर ‘वयस्कों’ (मात्र उम्र से) की “बाल-बुद्धि” की बेचैनी, बेकरारी एवं तड़प को शान्त कराने के लिए भी. यानि उन्हें डराने और लोभ दिलाने के लिए उन्हें कहानियाँ सुनानी होती है| लेकिन ये वयस्क अपने को समझदार भी समझते हैं और दुनियादारी का कुछ अनुभव भी प्राप्त किए होते हैं, इसीलिए इन कहानियों को विश्वसनीय बनाने के लिए ‘ऐतिहासिकता’ के अहसास का आधार देना होता है| इन कहानियों को धार्मिक या ऐतिहासिक बता कर उन्हें विश्वास दिलाया जाता है| तब ये कहानियाँ “मिथक” (Myth) के रूप में समाज के सामने आती है| यहाँ अधिकतर ‘वयस्कों’ की संख्या उस समाज के ज्ञान –विश्लेषण एवं मूल्याङ्कन क्षमता के स्तर पर निर्भर करता है, यानि उस समाज के सांस्कृतिक वैज्ञानिक चेतना के स्तर पर निर्भर करता है, और वयस्कों की यह संख्या इसी क्षमता एवं स्तर के सापेक्ष होता है| ऐसे ‘बाल –बुद्धि’ वाले लोग अविकसित एवं विकासशील देशों में बहुसंख्यक होते हैं|

जब इन कहानियों को ऐतिहासिकता की कसौटी पर कसा जाता है, और जब यह इस कसौटी पर यह खरा उतरता है, तब ही वे “कहानियाँ” किसी काल खंड के इतिहास का हिस्सा बनने का दावा करता है और “इतिहास” कहलाता है| ‘ऐतिहासिकता की कसौटी’ के लिए उन बातों को तथ्य आधारित, साक्ष्य आधारित एवं तर्क आधारित होना चाहिए और यह तीनों ही वैज्ञानिकता के प्रमाणों से पुष्ट होना चाहिए| इसी वैज्ञानिकता के कारण जो घर, पुल, नहर, सड़क, कुआँ आदि मानव निर्मित मान कर किसी इतिहास का अभिन्न हिस्सा मान लिया जाता रहा, आज उसे किसी प्राकृतिक या किसी अन्य जैवीय प्राणी के उत्पादन का  प्रतिफल माना जा रहा है| और इसी कारण वह पूरा विषय ही ‘इतिहास’ की श्रेणी से बाहर हो जाता हैं| इसी कारण, कल तक जो ‘इतिहास’ हुआ करता था, आज महज एक ‘मिथक’ बन कर गया है, भले आपकी या किसी “आस्थाएँ” कुछ भी मानती हो| कोई भी विषय इतिहास है या मिथक है, उसी जानने का एक साधारण तरीका है, कि यदि वह विषय इतिहास की पाठ्य पुस्तक में है, तो वह इतिहास है, अन्यथा वहाँ का प्राधिकार भी उसे इतिहास नहीं मानता है, और वह महज एक मिथक है| ध्यान रहे कि मैं किन्ही के ‘आस्था’ या ‘मान्यताओं’ का विश्लेषण नहीं कर रहा हूँ|

जब हम उपरोक्त तीनों यथा ‘कहानी’, ‘मिथक’ एवं ‘इतिहास’ का समुचित ‘विश्लेषणात्मक’ एवं ‘समीक्षात्मक मूल्याङ्कन’ करते हैं, तो इन तीनों में कुछ समान तत्वों के रहने के कारण ये तीनों ही में कुछ समानता भी रहती है, बहुत कुछ असामनता भी रहती है, और इसीलिए सामान्य जनों में इनके सम्बन्ध में बहुत कुछ भ्रम भी रहता है|  ‘समीक्षात्मक मूल्याङ्कन’ से तात्पर्य यह होता है कि ऐसा ‘मूल्याङ्कन’ जिसमे कई भिन्न भिन्न आयामों से उन ‘निष्कर्षों’ पर सवाल खड़े किए जाएँ, ताकि एक “सामान्यीकृत निष्कर्ष’ या “सिद्धांत” (Theory) बनाया जा सके| तय है कि इस ‘विश्लेषणात्मक’ एवं ‘समीक्षात्मक मूल्याङ्कन’ के सभी आधार अद्यतन वैज्ञानिक होंगे, जो तथ्यात्मक होने के साथ साथ प्रमाणिक भी होंगे| इस वैज्ञानिक आधार के बिना कोई भी विषय महज एक ‘बकवास’ साबित होता है|

यहाँ यह भी ध्यान रहे कि किसी भी “प्रमाण” को मात्र किसी पुस्तक या किसी पौराणिक या किसी प्राचीन पुस्तक का ही ‘भाग’ (part) का दावा कर लेने या हिस्सा (sharing) हो जाने से ही वह “प्रामाणिक” नहीं माना जा सकता है, या मान लेना चाहिए| आज उन पुस्तकों को या उनके हिस्सों को “इतिहास” मान लेने पर कई आयामों से सवाल खड़े किए जा रहे हैं| इन किस्सों में ऐसे समाज एवं परिवार की चर्चा है कि एक ही परिवार में पुरुष जिस भाषा को जानता था, और उसी परिवार की स्त्रियाँ उसी भाषा को नहीं जानती थी, यानि उनके बीच संवाद करने के लिए कोई भी अन्य सामान्य भाषा नहीं थी, तो यह सवाल उठता है वह उस परिवार में पति –पत्नी, पिता –पुत्री, माता –पुत्र, एवं भाई –बहन के बीच संवाद कैसे होता रहा? इस तरह ‘परिवार’ नामक संस्था का निर्माण कैसे हो पा रहा था और यह संस्था कैसे अपना प्रकार्य करता रहा? स्पष्ट है कि ऐसा साहित्य, या कहानी हो सकता है, या मिथक हो सकता है, लेकिन उस साहित्य का सामाजिक, सांस्कृतिक, एवं आर्थिक विवरण किसी भी इतिहास का हिस्सा नहीं ही सकता है| यह एक उदाहरण है, लेकिन ऐसे उदाहरण भरे पड़े हुए हैं, जो इतिहास होने का दावा करता है|

एक कहानी (किस्सा), मिथक, एवं इतिहास, इन तीनों में एक समान ही तत्व होते हैं, भले ही उनकी गुणवत्ता एवं मात्रा में विचलन रहा होता है| किसी भी किस्सा में, या मिथक में, या इतिहास में कोई एक “विषय” (Subject) होता है, जो किसी भी एक खास ‘कालखंड’ का होता है, या माना जाता है| इसी तरह उस विषय का ‘प्रस्तुतकर्ता’ भी एक कहानीकार या इतिहासकार के रूप में कोई व्यक्ति होता है, जो स्पष्टतया वर्तमान काल का होता है| यह ‘विषय’ तथ्य आधारित ‘इतिहास’ हो सकता है, या कल्पना आधारित एक ‘कहानी’ या ‘मिथक’ हो सकता है| किस्सा में यह ‘विषय’ वास्तविक या काल्पनिक हो सकता है| ‘मिथक’ में यह ‘विषय’ स्पष्टतया काल्पनिक यानि मनगढ़ंत ही होता है, और ऐसा ही साबित भी होता है| जब वह ‘विषय’ तथ्य आधारित एवं प्रमाणिक होता है, तब वह ‘विषय’ इतिहास हो जाता है|

स्पष्ट है कि ‘बाल –बुद्धि’ वाले कहानियों को और मिथकों को भी ‘तथ्य’ यानि ‘सत्य’ मान लेते हैं, और तब वह विषय ही इतिहास मान लिया जाता है| कुछ संस्कृतियों में कुछ समय पहले तक ‘मिथकों’ को ही ‘इतिहास’ माना जाता था, लेकिन आज ऐसी कई विषय इतिहास की पुस्तकों से बाहर हो गयी है| इन विकासशील अर्थव्यवस्था की संस्कृतियों में आज भी कई विषय इतिहास’ की पुस्तकों में नहीं हैं, फिर भी ‘सत्य’ एवं ‘तथ्य’ माना जाता है| इसके अलावा, इन विकासशील अर्थव्यवस्था की संस्कृतियों में आज भी कई विषय ऐसे हैं, जो वैज्ञानिक तर्क की कसौटी पर खरा नहीं उतरते हैं, और उनके समर्थन में कोई भी “प्राथमिक प्रमाणिक साक्ष्य” उपलब्द नहीं है| इन संस्कृतियों में ऐसे विषय आज भी इतिहास की पुस्तकों में उपस्थिति पाए हुए हैं, जिनकी चर्चा किसी भी अन्य समकालीन वैश्विक साहित्य में नहीं है, जिनका कोई पुरातात्विक साक्ष्य खोजे नहीं मिलता, सिर्फ और सिर्फ कागजी साक्ष्य मिलता है, जो सभी के सभी मध्ययुगीन काल के होते हैं|

स्वयं “इतिहास” भी दो तत्वों से मिलकर बनता है| पहला तत्व, ऐतिहासिक तथ्य हैं, जो किसी ऐतिहासिक काल का होता है. और दूसरा तत्व, ‘इतिहासकार’ होता है, जो वर्तमान काल का होता है| ऐतिहासिक तथ्य भी वही बोलता है, जो वह इतिहासकार उससे बोलवाना चाहता है| यही बात कहानी एवं मिथक के बारे में भी सही है| अर्थात किसी भी विषय को कहानी बनना, या मिथक बनना, या इतिहास बनना उस प्रस्तुतकर्ता पर निर्भर करता है| लेकिन उसे सही मान लेना पाठक की बौद्धिकता पर निर्भर करता है| यह सब कुछ पाठक के समीक्षात्मक विश्लेषण एवं मूल्याङ्कन क्षमता एवं स्तर पर निर्भर करता है| यह समीक्षात्मक विश्लेषण एवं मूल्याङ्कन का विषय वह प्रस्तुतकर्ता का व्यक्तित्व भी होना चाहिए| यदि पाठक उस लेखक या प्रस्तुतकर्ता का समीक्षात्मक विश्लेषण एवं मूल्याङ्कन नहीं कर पा रहा है, तो प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो० एडवर्ड हैलेट कार किसी के इतिहास समझने क्षमता के सम्बन्ध में कड़ा सवाल करते हैं| आप प्रो० एडवर्ड हैलेट कार की प्रसिद्ध पुस्तक “इतिहास क्या है” को भी देख सकते हैं|

शायद आप कहानी, मिथक एवं इतिहास के संबंधों को समझ हए होंगे|

आचार्य प्रवर निरंजन 

3 टिप्‍पणियां:

  1. अद्भुत प्रतिभा है आपमें किसी कांसेप्ट को समझाने की | किसी विवाद को छुए बिना ही आपने एक सामयिक मुद्दे को उठाया है और विश्लेषित करते हुए तार्किक परिणति दी है उसे |
    वाह,बहुत अच्छा|

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  2. कोई भी लेखक या कवि अपनी रचना के पात्रों से जो कुछ भी अभिनय या बात चीत कराता है उसका सूत्र धार स्वयं होता है अर्थात स्वयं की विचारधारा पात्रों के माध्यम से समाज में परोसी जाती है लेकिन समाज के लोग उन पात्रों को ही नायक या खलनायक मानकर घृणा या सम्मान करने लगते हैं यही अंधविश्वास धर्म संस्कृति परंपरा आदि के साथ इतिहास का स्वरूप लेने लगता है।

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  3. कहानी,मिथक, इतिहास और कहानीकार या इतिहासकार की मानसिक संरचना(Mental Makeup)के आपसी संबंधों को आपने बहुत ही सुन्दर एवं तार्किक ढंग से प्रस्तुत किया है। वास्तव में इन चारों घटकों अर्थात कहानी, मिथक, इतिहास तथा कहानीकार या इतिहासकार की मानसिक संरचना में से कोई भी घटक विशुद्ध (Pure) नहीं है, बल्कि वह उपरोक्त सभी घटकों का एक मिश्रण मात्र है।
    NCERT की कक्षा 9 की विज्ञान की पुस्तक में एक अध्याय है, ... "Is Matter arround us Pure?" । इस अध्याय को पढ़ने के बाद यही पता चलता है कि हमारे इकोसिस्टम में, हमारे आसपास मौजूद कोई भी पदार्थ, चाहे वह हवा हो या पानी या मिट्टी , वह विशुद्ध या Pure नहीं है, बल्कि विशुद्ध पदार्थों -तत्व और यौगिकों (Elements and Compounds) का एक मिश्रण मात्र है।
    ठीक ऐसे ही कहानी, मिथक, इतिहास और इतिहासकार या कहानीकार में से कोई भी घटक विशुद्ध नहीं है, बल्कि उपरोक्त चारो का एक अद्भुत मिश्रण मात्र है।
    आचार्य प्रवर स्वामी निरंजन जी को उनकी अद्भुत प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

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