पुरोहित प्रशिक्षण एवं शोध मिशन (भाग - 8)
मैंने पूर्व के सीरिज में भी बताया है कि परम्परागत, खानदानी, ज्ञानी, उच्च स्तरीय, एवं संस्कारी पुरोहितों के वंशजों के विभिन्न सेवाओं और उद्यमों में चले
जाने से समाज में शिक्षित, संस्कारी,
ज्ञानी’ प्रशिक्षित और स्तरीय पुरोहितों एवं संस्कारकों की भारी कमी
हो गयी है।
ऐसा आप भी अपने समाज में भी महसूस किया होगा|
इसी
कारण अब समाज में उपलब्ध पुरोहित एवं
संस्कारक अशिक्षित है, अज्ञानी हैं, संस्कारहीन
है, स्तरहीन भी हैं, लोभी भी है, कामी भी
है, घमन्डी भी है, और बदतमीज़ भी है।
ऐसी
स्थिति में अपने अपने समाज की या अपनी अपनी विचारधारा या पंथ, सम्प्रदाय या धर्म के
महान सांस्कृतिक विरासत की निरंतरता के लिए हमें आगे आने की आवश्यकता है। हमें अब निश्चिन्त नहीं
बैठना है| अब हमें सक्रिय होना है, सजग होना है, और इसके लिए तैयार भी होना है|
हमारे
लोग विभिन्न पंथो एवं सम्प्रदायों (जैसे बौद्ध, अर्जक, गायत्री, आर्य समाजी, संवैधानिक,
इस्लाम, ईसायत आदि आदि) में आगे आकर ‘पुरोहिताई’ और ‘संस्कारक’ का कार्य भी कर रहे हैं,
लेकिन
अभी उपलब्ध ये पुरोहित एवं संस्कारक “विधिवत एवं मान्य मानकों” (Formal
Authorised Standard) के अनुरूप प्रशिक्षित नहीं है, समुचित रुप में व्यवस्थित एवं सं’गठित भी
नहीं है,
और वैज्ञानिक आधुनिक बदलते
समय के अनुकूल भी नहीं है।
स्पष्ट
शब्दों में, ऐसे
लोगों के लिए एक पुनरीक्षण संक्षिप्त प्रशिक्षण की भी आवश्यकता है। इन्हें एक
प्रामाणिक प्रमाण पत्र की भी आवश्यकता है। इनको
सशक्तिकरण एवं संगठित करने के लिए एक राष्ट्रीय प्लेटफार्म और संगठन की अनिवार्यता
भी है।
ऐसा
विकल्प "पुरोहित प्रशिक्षण एवं शोध मिशन" उपलब्ध करा रहा है और आगे भी कराएगा।
समुचित
प्रशिक्षण के बाद आवश्यक प्रमाण पत्र भी मिलेगा।
आप
अपने पसन्द की और अपने स्वेच्छा से पंथ, धर्म, सम्प्रदाय
का चुनाव कर सकते हैं।
अब
हमको और आपको ही आगे आना है।
विचार
कीजिए।
आचार्य
प्रवर निरंजन
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