पुरोहित प्रशिक्षण एवं शोध मिशन (भाग - 23)
सामाजिक सांस्कृतिक
तंत्र या व्यवस्था में परिवर्तन भौतिक एवं मानसिक, दोनों
स्तर पर होता हैं, हालांकि ये दोनों ही क्रिया और प्रभावों
में आपस में गुंथे हुए होते है।
भौतिक परिवर्तन तो 'आर्थिक
शक्तियों' के द्वारा होता है, जिसे
आधुनिक काल में "बाजार की शक्तियां" कहते हैं। भौतिक
वस्तुएं भौतिक परिवर्तन से प्रभावित होता है, जिसके द्वारा ही सामाजिक
सांस्कृतिक व्यवस्था एवं तंत्र का “हार्डवेयर”
बनता है|
लेकिन मानसिक परिवर्तन तो
सांस्कृतिक और आध्यात्मिक शक्तियों के द्वारा ही होता है, जिसे अक्सर धार्मिक,
आध्यात्मिक, सम्प्रदायिक या वैचारिक मानसिकता का पर्याय_समझा
जाता है। यह मानसिक परिवर्तन या सञ्चालन ही सामाजिक सांस्कृतिक व्यवस्था एवं
तंत्र का “साफ्टवेयर” बनता है| यह अदृश्य रहकर सामाजिक एवं सांस्कृतिक तंत्र एवं व्यवस्था चलाता
रहता है|
इस तरह एक “पुरोहित” ही इस सामाजिक
सांस्कृतिक व्यवस्था एवं तंत्र के “साफ्टवेयर” के सञ्चालन करने वाला “साफ्टवेयर इंजीनियर”
होता है|
मानसिक परिवर्तन के
लिए कथा (कहानियां), कथानक (Narrative), मिथक,
इतिहास, दर्शन, साहित्य और विज्ञान का सहारा लिया जाता है।
एक पुरोहित भी अपने
कथा,
कथानक (इसे गढा जाता है), मिथक (कल्पना पर
आधारित अतार्किक), इतिहास, दर्शन,
साहित्य और विज्ञान के द्वारा अपने श्रोताओं को वह हर बात समझाता रहता है, जिसे वह बताना चाहता है, समझाना चाहता है।
इसलिए *आप भी पुरोहित और संस्कारक बनिए।*
इसके लिए आप " *पुरोहित प्रशिक्षण एवं संस्कारक मिशन"* से जुड़िए।
और एक “पुरोहित” के रुप में इस सामाजिक सांस्कृतिक व्यवस्था एवं
तंत्र के “साफ्टवेयर” के सञ्चालन करने वाला सफल, कुशल एवं योग्य “साफ्टवेयर इंजीनियर”
बनिए|
(पुरोहित प्रशिक्षण
एवं शोध मिशन से सम्बन्धित इस सीरिज के मेरे अन्य सभी आलेख niranjan2020.blogspot.com पर उपलब्ध है)
आचार्य प्रवर निरंजन
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