गुरुवार, 12 दिसंबर 2024

पुरोहित का प्रकाश

पुरोहित प्रशिक्षण एवं शोध मिशन  (भाग - 21) 

हर किसी वस्तु या व्यक्ति का मूल्यांकन

उसके ध्रकाश में आने पर, या

उसके प्रकाशित होने पर ही होता है।

आपकी वेशभूषा ही

सबसे पहले आपको प्रकाशित करती है,

आपको सबसे अलग करता है,

आपको विशिष्टता देता है।

“आग का रंग” अन्य रंगों की अपेक्षा सबसे पहले दिखाई पड़ता है।

इस रंग को केसरिया, लाल, गेरुआ आदि भी कहते हैं।

यह विरोधाभासी (Contrasting) रंग आपको सामान्य जन से अलग कर देता है,

सभी को आकर्षित करता है।

“एक पुरोहित का पोशाक” ऐसा ही और सबसे अलग होता है।

आप इसमें *हमेशा लोगों की नजरों में* रहते हैं।

आप दूसरो से ज्यादा दिलचस्प और ज्यादा महान माने जाते हैं। 

कुछ बौद्धिक इतने अस्थिर होते हैं कि उन्हें *पुरोहित का सिर्फ व्यक्ति वाचक ही अर्थ समझ में आता है और समूह एवं गुण वाचक अर्थ उनके दृष्टि से गायब हो* जाता है। वे इसे सिर्फ किसी एक " *वाद* " से जोड देते हैं और अन्य का ध्यान नही रखते। वे ये नहीं देख पाते हैं कि अन्य पंथों सम्प्रदायों में पुरोहित को विशिष्ट रूप में दिखाने के लिए विचित्र रँग, डिजाइन के साथ साथ उन्हें विशिष्ट स्थान पर आसीन किया जाता है। कानून के घर पर में भी सामाजिक संस्थाओं के निर्मात्री भूमिका वाले व्यक्ति को उच्चतर और अलग स्थान रहता है, जो वैधानिक पुरोहित की भूमिका अदा करते हैं। 

जो व्यक्ति प्रकाशित रहता है, या

प्रकाश में रहता है,

वही आंखों में टिकता है,

चर्चा में रहता है।

अंधेरे के गुमनाम व्यक्ति मत बनिए।

पुरोहित बनिए और अपने परिवार और अपने समाज का शान बनिए।

 आचार्य प्रवर निरंजन 

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