गुरुवार, 12 दिसंबर 2024

पुरोहिताई से कौन लोग चिढ़े हुए रहते हैं।

 पुरोहित प्रशिक्षण एवं शोध मिशन  (भाग - 20) 

कुछ लोग या *अधिकतर लोग पाखंड, ढोंग, अंधविश्वास और कर्मकांड की सही संकल्पना को नहीं समझते* हैं, और इन सबों के उपयुक्त प्रयोग में असावधान हो जाते हैं। 

किसी बौद्धिक को यदि ऐसा लगता है कि

वे कोई पाखंड, ढोंग, अंधविश्वास और कर्मकांड नहीं करते हैं, तो वे नादान है।

क्या ये तथाकथित बौद्धिक लोग किसी सामाजिक संस्था का निर्माण बिना किसी औपचारिकता के भी पूरा करते हैं? तब उन्हें विवाह की भी घोषणा की क्या आवश्यकता है? ध्यान रहे कि विवाह परिवार, समाज आदि सामाजिक संस्था है। बिना कर्मकांड के किसी भी संस्था का निर्माण नहीं होता। 

तब समाज को कैसे पता होगा कि

कोई नयी सामाजिक संस्था बनी है, या

किसी पूर्वर्ती सामाजिक संस्था में कोई बदलाव हुआ है?

 हर सामाजिक संस्थाओं का निर्माण बिना किसी औपचारिकता के पूर्ण ही नहीं होता है, भले ही वे वैधानिक प्रक्रियाओं के अन्तर्गत किसी “वैधानिक पुरोहित” के द्वारा किया गया है। 

परिवार और समाज के सदस्यों के बदलते कर्म, अधिकार और उत्तरदायित्व  की विधिवत घोषणा समाज के समक्ष करनी होती है। इन्हीं औपचारिक घोषणाओं से ही सामाजिक संस्था निर्मित होती है। यही कर्मकांड है। 

इन्ही औपचारिकताओं के घोषणाओं से ही संबंधित होता है  -

ये पाखंड, ढोंग, अंधविश्वास और कर्मकांड।

इसे समझिए। और परोहिताई से कम से कम चिढ़िए । और

अपनी ऊर्जा, समय, संसाधन, उत्साह और वैचारिकी के सकारात्मक बदलाव के लिए उपयोग कीजिए।

इसे समझिए। और पुरोहित बनिए। 

आचार्य प्रवर निरंजन

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