पुरोहित प्रशिक्षण एवं शोध मिशन ( भाग - 6 )
एक
सेवानिवृत कर्मचारी या कारोबारी अक्सर अपने को समाज से कटा हुआ यानि अलग थलग पाता है| इससे उसे काफी बोरियत होती
है, और एकान्त जीवन जीने को बाध्य रहता है| वह निराश हो जाता है| वह समाज से
सम्मान चाहता है|
सेवा निवृत्त कर्मियों के पास एक न्यूनतम आवश्यक शैक्षणिक योग्यता होता है, उसे बीस से चालीस वर्षों का एक सार्वजनिक जीवन का अनुभव होता है, उसमे सामाजिक समझ के साथ सामाजिक परिपक्वता होता है, और उसमे समाज को देने की ‘आत्म संतुष्टि’ की ललक भी होती है।
वह भी समाज से अन्तरंग रुप से जुड़ना चाहता है| ऐसी स्थिति में ये सेवा
निवृत कर्मचारी या कारोबारी पुरोहित और संस्कारक बनने पर गंभीरता से विचार करे| यह आपको उस समय उस अवस्था में वह सब कुछ देगा,
जिसकी आवश्यकता आपको अनिवार्य रूप से होती है|
ऐसे व्यक्ति यदि समाज का पुरोहित और संस्कारक होता है, तो उस समाज को एक गुणवान, गुणवत्तापूर्ण, समर्पित, संस्कारी और शिक्षित पुरोहित और संस्कारक मिलता है।
समाज को एक ऐसा जीवन
सलाहकार मिलता है,
जिसने व्यापकता और गहराई के साथ जीवन जिया है। वह समाज के सदस्यों को अपने व्यवहारिक अनुभव के साथ समाधान भी देगा| इसे गंभीरता से, और ठहर कर
सोचने की जरुरत है|
और ऐसे अनुभवी पुरोहित और संस्कारक का ‘जीवन उद्देश्य’ (Purpose of Life) बहुत बड़ा हो जाता है और तब उसे लम्बे समय तक जीने की प्रेरणा मिलती है, उसे लम्बे समय तक जीने की ‘आंतरिक शक्ति’ भी मिलती है|
और इसीलिए उसको भी एक लम्बी उम्र मिल जाती है, क्योंकि उसे और
जीवन
जीने का सार्थक उद्देश्य
मिल जाता है। तब वह जीवन के हर आवश्यक क्षेत्र में फिर से सक्रिय हो उठता है| इससे उसे ‘आत्म
संतुष्टि’ भी मिलती है| इसे ही प्रसिद्ध अमेरिकी मनोवैज्ञानिक अब्राहम मैसलों “स्वीकरण” कहते हैं|
इसीलिए
हमें ऐसे लोगों के बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए।
अब
हमको और आपको ही आगे आना है।
विचार
कीजिए।
आचार्य
प्रवर निरंजन
सीनियर सिटिजन के लिए एक सकारात्मक एवं अत्यंत प्रेरक संदेश।
जवाब देंहटाएंसंपूर्ण मानवता के हित, मानव संस्कृति के परिष्कार तथा भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान, परिष्कार एवं भारत को एक बार पुनः आधुनिक विज्ञान और तकनीकी युग की पृष्ठभूमि में विश्वगुरू के पद पर आसीन कराने के महती प्रयास में संलग्न बोधिसत्व स्वरूप आचार्य प्रवर स्वामी निरंजन जी सत् सत् नमन्।