वैसे तो बाजार (Market) एक
अर्थशास्त्रीय अवधारणा है, लेकिन यह सामाजिक एवं
सांस्कृतिक ढांचा (Frame work) और संरचना (Structure) को नए सिरे से गढ़ने वाला एक महत्वपूर्ण उपकरण (Tool) भी है। तो सबसे
पहले 'बाजार' को समझा जाए, और इसके
बाद ही इसके सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव को जाना समझा जाए। तब ही समाज को नए
सिरे से गढ़ने में हम अपनी भूमिका समझ सकेंगे, या युवाओं को
सोचने एवं कार्यान्वित करने के लिए आवश्यक दिशा दे सकेंगे।
वैसे सामान्यतः अर्थशास्त्रीय अवधारणा में बाजार एक वैसा स्थान होता
है, जहां क्रय-विक्रय किया जाता है। लेकिन आजकल के डिजिटल दुनिया में बाजार
अपने भौतकीय वास्तविक स्वरूप के अलावा 'आभासी स्वरुप'
में भी कार्यरत हो रहा है। इस तरह एक बाजार
मांग और आपूर्ति की कड़ी जोड़ने का स्थल (Place) या क्षेत्र (Space) होता है, और
इस मांग एवं आपूर्ति में वस्तु, सेवा, सम्पदा, पूंजी और सूचना आदि शामिल रहता है। इसी
अर्थशास्त्रीय बाजार की अवधारणा में आज़ व्यक्ति, परिवार, समुदाय, वर्ग, समाज और देश
अपनी सक्रिय भूमिका निभाने के लिए समाजशास्त्रीय, सांस्कृतिक
और मनोवैज्ञानिक अध्ययन कर रहा है और इन संबंधों एवं प्रक्रियाओं को जानने समझने
का प्रयास कर रहा है।
आज़ बाजार अपने विविध स्वरूपों में, अपनी
विविध भूमिकाओं में और प्रक्रियाओं में व्यक्ति, परिवार,
समुदाय, वर्ग, समाज और
देश को बदलने में सबसे शक्तिशाली, सबसे सक्रिय और सबसे
प्रभावशाली भूमिका निभा रहा है। तब हमें व्यक्ति के रूप में और परिवार, समुदाय, वर्ग, समाज और देश के
सदस्य के रूप में अपनी भूमिका समझनी है। हम इस भूमिका को जान
समझ कर ही सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और
राजनैतिक ढांचा और संरचना बदल सकते हैं। बाकी सब सामाजिक, सांस्कृतिक
और राजनैतिक बदलाव का नारा, आन्दोलन और कार्यक्रम ढकोसला है,
बकवास है, सतही है और इसीलिए एक बड़ा तमाशा भी
है।
आपको एक ही जीवन मिला है, समय भी सीमित है,
संसाधन एवं धन का अभाव भी है, इसीलिए आप अपनी
जवानी, उर्जा और उमंग को चिल्लाने और दुहराने में बर्बाद मत
कीजिए। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आप सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक बदलाव में हिस्सा नहीं लीजिए, बल्कि मैं यह कह रहा हूं कि आप इन चीजों को गहराइयों से जाने और समझें,
और तब ही आगे बढ़े। व्हाट्सएप विश्वविद्यालयों के सतही, भावनात्मक और अपील करता पुकारों और आह्वानों को समझिए, मनन मंथन कीजिए और तब ही उसमें आगे बढ़िए। इसमें अपना और अपने परिवार,
समुदाय, वर्ग, समाज और
देश का हित भी समझिए। आपके बौद्धिक, मानसिक और आध्यात्मिक अस्तित्व भी आपके भौतिक शरीर में ही निवास करता है,
या इसी पर आधारित है। इसे भी समझिए।
बाजार एक ऐसा व्यवस्था (Arrangement), या तंत्र (System), या पद्धति (Method), या क्रियाविधि (Mechanics) होता है, जिसमें शामिल सभी सदस्य यथा व्यक्ति, परिवार,
समुदाय, वर्ग, समाज और
देश सोचता तो अपने अपने हित के लिए ही है, लेकिन इसके
परिणामस्वरूप इसमें शामिल सभी का भी हित सधता रहता है। इस बात को एडम स्मिथ ने
सबसे पहले व्यवस्थित रूप में स्थापित किया था। एक बाजार में हरेक खरीददार और
विक्रेता अपने निर्णय में तर्कसंगत होता है, इसलिए बाजार एक
आर्थिक ढांचा एवं संरचना के अतिरिक्त एक सामाजिक, सांस्कृतिक,
और राजनैतिक ढांचा और संरचना भी होता है। अर्थात एक
बाजार समाज के सामाजिक, सांस्कृतिक, और राजनैतिक
ढांचा और संरचना को प्रभावित और संचालित करने वाला एक नियंत्रणकारी जबरदस्त उपकरण
है। इसलिए आप भी इस बाजार पर नियंत्रण करने और उसे संचालित करने वाले
वर्ग या समूह में हिस्सेदार बने। तब ही आप अपने परिवार, समुदाय,
वर्ग, समाज और देश के सामाजिक एवं सांस्कृतिक
ढांचा और संरचना का वर्तमान और भविष्य को बदल सकते हैं।
कार्ल मार्क्स ने भी ऐतिहासिक भौतिकवाद' में समझाया है कि सभी
आर्थिक व्यवस्थाएं सामाजिक व्यवस्थाएं भी है। इसलिए
एक अर्थव्यवस्था में धन और पूंजी के योगदान के अतिरिक्त लोगों के रिश्तों यानि 'संबंधों' का भी योगदान होता है। इस बाजार ने
श्रम और कौशल को भी एक वस्तु के रूप में, यानि 'सामान' (पण्य/ Commodity) में बदल दिया, जिसे
कोई भी खरीद और बेच सकता है। इस प्रक्रिया को पण्यीकरण (Commoditisation)
भी कहते हैं। भारत में एक पीढ़ी पहले के लोगों में 'पेय जल' खरीद बिक्री की अवधारणा में शामिल नहीं था,
यह भी बदलाव का यानि, पण्यीकरण एक उदाहरण है। समस्या का
समाधान लाभ के साथ करना, या समस्या का अहसास दिला कर लाभ के साथ समाधान करने का
तंत्र ही उद्यमिता है।
आज़ बाजार उदारीकरण, निजीकरण और भूमंडलीकरण की प्रक्रियाओं के साथ ही
कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर आधारित डिजीटलीकरण के कारण बहुत बदल गया है, और बहुत प्रभावशाली हो गया है। आज़ बाजार में आपके
उपयोग का स्तर, तरीका और स्थिति आपकी सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक हैसियत (Capacity) तथा प्रस्थिति (Status) निर्धारित भी करती है, और आप एवं आपका परिवार, समुदाय, वर्ग, समाज और देश अब बाजार
में मात्र एक उपभोक्ता (Consumer) ही होते है।
चूंकि उद्यमी और व्यापार करने वाले व्यक्ति, परिवार,
समुदाय, और वर्ग गतिशील रहते हैं, अपना आर्थिक महत्व रखतें हैं और सामाजिक आर्थिक वित्तीय व्यवस्था पर
नियंत्रण रखते हैं, इसलिए विश्व के हर संस्कृति, तंत्र और व्यवस्था में ऐसे लोग महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इसीलिए आप
भी ऐसे ही महत्वपूर्ण व्यक्ति बनने की दिशा में सोचिए, बढ़िए
और चलिए। आपका सब कुछ बदल जाएगा। आप अब उद्यमी बन कर
आगे बढिए।
अब सारा विश्व आपका बाजार है, सारा विश्व आपका उपभोक्ता
हैं। अब बहुत कुछ बदल गया है। सिर्फ रोते और चिल्लाते ही मत रहिए। फिर आपको याद
दिला दूं कि आपको इसके अलावा और कोई जीवन नहीं मिलने जा रहा है। ठहरिए और विचार
कीजिए।
आचार्य प्रवर निरंजन
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