भारत में जाति (Jati), कास्ट (Caste) और पेशा (Profession) की अवधारणा में बहुत से भ्रम एवं त्रुटियाँ हैं| यह तीनों
अवधारणा अलग अलग हैं, परन्तु भारत के सम्बन्ध में, यानि
भारत के सन्दर्भ में यह बड़ी सूक्षमता से एक दुसरे से गुंथा हुआ भी है| इसीलिए ही इसे समझना बहुत जरुरी है|
‘पेशा’ का उदय एवं विकास “बुद्धिवाद”
यानि ‘बुद्धि’ के उदय
एवं विकास के साथ साथ हुआ, यानि प्राचीन काल में हुआ| ‘जाति’
का उदय एवं विकास “सामन्तवाद” यानि ‘समानता के अंत’ के उदय
एवं विकास के साथ साथ हुआ, यानि मध्य काल में हुआ| ‘कास्ट’ का
उदय एवं विकास “आधुनिकवाद” यानि ‘आधुनिकता’ के उदय एवं विकास के साथ हुआ, यानि आधुनिक युग में ‘पुर्तगालियों’ के आगमन के साथ हुआ| दरअसल कास्ट एक अलग अवधारणा नहीं होते हुए भी एक बौद्धिक
षड्यंत्र है, और इसके षड्यंत्र को
समझना है।
लेकिन किसी भी इतिहास को जानने एवं समझने की जो प्रविधि (Technologies) एवं क्रियाविधि (Mechanism) उपयुक्त एवं सम्यक है,
वही प्रविधि एवं क्रियाविधि ही भारत में पेशा, जाति, एवं कास्ट के इतिहास को भी जानने समझने के लिए
जरुरी है|किसी भी क्षेत्र के और किसी भी काल के इतिहास को उपभोग, उत्पादन,
वितरण और विनिमय के साधनों एवं शक्तियों और उनके अन्तर्सम्बन्धों के
आधार पर ही वैज्ञानिक ढंग से समझा जा सकता है।
जाति भारतीय समाज को विभाजित करने वाली जन्माधारित और पेशा आधारित एक
व्यवस्था है, जिसे कोई भी व्यक्ति अपने एक जन्म काल में कभी बदल
नहीं सकता है| भारतीय जाति व्यवस्था एक ही साथ समाज
का क्षैतिज (Horizontal) विभाजन भी करता है, और समाज का खड़ा (Vertical) विभाजन भी करता है|
अर्थात यह एक दुसरे के सापेक्ष उच्चता एवं निम्नता की व्यवस्था भी
है| यह जाति की मौलिक प्रकृति है| ‘कास्टा’ या 'कास्ट' समाज का क्षैतिज विभाजन तो करता है, लेकिन खड़ा विभाजन नहीं करता है| सामाजिक विभाजन की
ऐसी कोई भी व्यवस्था, जो जाति के सामानांतर हो, का विश्व में कोई दूसरा उदाहरण नहीं है, यानि यह
अद्वितीय है|
इसी अद्वितीय संरचना के कारण बहुत से समाजशास्त्री ‘जाति’
का अंग्रेजी अनुवाद पुर्तगाली अवधारणा "Casta" पर आधारित अंग्रेजी में ‘Caste’ को सही नहीं मानते
हैं| जैसे भारतीय ‘साड़ी’ एवं ‘धोती’ का अंग्रेजी ‘Sari’
एवं ‘Dhoti’ ही होता है, और कोई दूसरा शब्द नहीं हो सकता| इसी कारण पश्चिमी
दुनिया ‘जाति’ को पुर्तगाली ‘Casta’
के अनुरूप ही समझता है और ‘जाति’ को सही ढंग से नहीं समझ पाता है| इसीलिए बहुत से
समाजशास्त्री ‘जाति’ का अंग्रेजी
अनुवाद ‘Jaati’ (Jati) ही रखने के पक्ष में हैं| इसे और अच्छी तरह समझने के लिए आप फ्रेंच दार्शनिक जाक देरिदा
के ‘विखंडनवाद’ (Deconstructionalism) का
अवलोकन कर सकते हैं|
शब्द ‘Caste की संरचना वस्तुत: ’पुर्तगाली
शब्द ‘Casta’ की अवधारणा पर आधारित है| यह पुर्तगाली संस्कृति एवं उपनिवेशवाद से व्युत्पन्न अवधारणात्मक शब्द है,
जिसका भारतीय जाति से कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है| किसी भी शब्दों की संरचना को अच्छी तरह से समझने के लिए आप स्विस दार्शनिक फर्दिनांड
दी सौसुरे की ‘संरचनावाद’ (Structuralism) का
अवलोकन कर सकते हैं| इसलिए भारतीय जाति के लिए अंग्रेजी में ‘Jati’
के स्थान पर ‘Caste’ लिखने, यानि प्रयोग करने से पश्चिम की दुनिया मानवता के इस वीभत्स चेहरे का
अनुमान भी नहीं लगा पाते हैं| इस शब्द का प्रचलन
पुर्तगालियों के भारत आगमन से शुरू हुआ, लेकिन इसे अब इस
यथास्थिति में बनाये रखने के लिए तत्कालीन भारतीय बौद्धिक ही दोषी हैं|
जाति एवं वर्ण का कोई भी पुरातात्विक एवं प्राथमिक प्रमाणिक साक्ष्य
प्राचीन काल से सम्बन्धित नहीं है, अर्थात किसी भी तथाकथित जाति एवं वर्ण का कोई भी
अस्तित्व प्राचीन काल में नहीं था| प्राचीन काल में पेशा
आधारित सामाजिक विभाजन था, जो सात पेशा में वर्गीकृत थे| प्रारंभिक सामन्ती काल में सर्वव्याप्त पेशा आधारित ‘गतिशील जाति व्यवस्था’ ही थी| प्राचीन काल के समापन पर यही पेशा अपने अपने क्षेत्रों
की संस्कृतियों, भाषाओं
एवं बोलियों के अनुरूप गतिहीन अर्थव्यवस्था में विभिन्न जातियों में नामित होकर
वर्तमान स्वरुप ले लिया| एक ही जाति के एक
ही पेशा होने के बावजूद भी भिन्न भिन्न शब्दावली का प्रयोग इन्हीं आधार पर किया
जाता है|
वस्तुत: जाति एवं वर्ण की उत्पत्ति ही मध्ययुगीन है, जिसे
ऐतिहासिक सामन्ती शक्तियों की क्रियाविधियों ने ही मध्य काल में जन्म दिया है| मध्य काल
में जाति व्यवस्था एवं वर्ण व्यवस्था एक दुसरे के पूरक और एक दुसरे पर आधारित
सामानांतर व्यवस्था थी| "वर्ण व्यवस्था" उस समय की "सामन्ती शासन की कार्यपालिका
व्यवस्था" थी, जो आधुनिक युग के कार्यपालिका व्यवस्था की ही तरह
थी| सामाजिक सांस्कृतिक रूपांतरण की इस क्रियाविधि
की गत्यात्मकता (Dynamism of Mechanics) को समझे बिना 'जाति' के इतिहास को नहीं समझा जा सकता है| इस तरह यह स्पष्ट है कि किसी भी जाति का इतिहास मध्य युग के पहले, यानि प्राचीन काल में नहीं जा सकता है| अत: किसी भी
जाति एवं वर्ण के इतिहास को प्राचीन काल में बताना गलत और अवैज्ञानिक है|
जातियों का इतिहास को पेशा के रूप में प्राचीन काल में ले जाया जा
सकता है, क्योंकि प्राचीन काल में तो पेशागत कार्यों का
विभाजन था, और यही पेशा ही मध्य काल में जातियों के कार्य का
आधार भी बना| यही जातियाँ वर्ण व्यवस्था के लिए, यानि
सामन्ती कार्यपालिका के लिए उपयुक्त उम्मीदवार देता रहा, जो
बाद में स्थायी वर्ण व्यवस्था बन गया।
पाषाण युग में आधुनिक वर्तमान मानव के पूर्वज पहाड़ों पर रहते थे, और वे
पूर्णतया पत्थरों पर ही निर्भर थे| उन्हें अपनी एवं अपने
समूह की शारीरिक आवश्यकताओं से ही फुर्सत नहीं थी और इसीलिए पाषाण काल में किसी भी
सभ्यता एवं संस्कृति का उद्भव नहीं हो सका था|
दरअसल सभ्यता एवं संस्कृति का उद्भव ही कृषि कार्य के प्रारंभ से ही
और कृषि कार्य के कारण ही हुआ| कृषि कार्य कोई 12000 साल पहले, यानि दस हजार
साल ईसा पूर्व में प्रारंभ होना इतिहास में स्थापित है| जब
लोग पत्थरों की निर्भरता से मुक्त होकर और धातुओं के उपयोग के साथ पहाड़ों से उतर
कर नदी घाटी के मैदानों में आ गये, तो कृषि कार्य प्रारंभ हो
गया| कृषि कार्य सबसे पहले नदियों के कछारों में शुरू
हुआ| इस तरह वर्तमान मानव, यानि
होमो सेपियंस सेपियंस का पहला पेशा कृषि कार्य हुआ| कृषि
कार्यों से कृषि कार्यों में लगे हुए लोगों के अतिरिक्त वैसे लोगों के लिए भी भोजन
की सुनिश्चित व्यवस्था हो गयी, जो कृषि कार्य नहीं कर रहे थे| इस तरह
समुदाय में अर्थव्यवस्था के द्वितीयक एवं तृतीयक सेक्टरों के अतिरिक्त ज्ञान सृजन
का चौथा सेक्टर एवं नीतियों के निर्धारण का पंचम सेक्टर का भी उदय हो गया, और उसका विकास
होने लगा|
इसी के साथ ही सभ्यता एवं संस्कृति का उद्भव एवं विकास होने लगा|
कृषि कार्य एक ही साथ नदियों के कछार में स्थलीय खेती और जलीय खेती
के रूप में शुरू हो गया| अनाज उत्पादन के अतिरिक्त स्थलीय खेती के साथ साथ पशुओं, शाक
- सब्जी तथा जल से खाद्य उत्पादन शुरू हो गया| एक ही मानव
समूह में, यानि एक समुदाय में, यानी एक
ही समाज में एक ही साथ अनाज उत्पादन, पशुपालन, शाक- सब्जी, मछली एवं अन्य जलोत्पादन करने वाला
पेशाओं का उदय हो गया| कालांतर में और बढती एवं गतिशील आबादी की यही
पेशा मध्य काल में जाति का स्वरुप ले लिया, जो आज भी मौजूद
है| कालांतर में कोई समुदाय ‘अनाज’
की प्रमुखता से उत्पादन में लगे रहे। इसी तरह पशुपालन की विविध
जातियाँ बनी, जो कृषि कार्य का ही एक प्रमुख हिस्सा रहा। इसी
तरह जल उत्पादन से सम्बन्धित जातियाँ बनी। अत: कृषक, पशुपालक,
एवं मत्स्य पालक आदि पेशा एक ही मानव समूह या समुदाय से उत्पन्न हुआ|
शेष भारतीय सभी जातियों का उद्भव इसी एक ही समुदाय से हुआ, जब
इन समुदायों ने इतना भोजन का उत्पादन सुनिश्चित कर दिया कि इस खाद्य उत्पादन के
अतिरिक्त अन्य कार्य किए जा सके। इसी से अर्थव्यवस्था
में प्राथमिक प्रक्षेत्र (Primary Sector) के अलावे द्वितीयक प्रक्षेत्र (Secondary
Sector), तृतीयक प्रक्षेत्र (Tertiary Sector), चतुर्थक प्रक्षेत्र (Quaternay Sector) और पंचम
प्रक्षेत्र (Quinary Sector) को जन्म दिया और विकसित होने का
आधार दिया।
आपकी जातियों का जन्म विश्व में कहीं भी हुआ और कभी भी हुआ है, उसका
वास्तविक आधार यही है, भले ही आप अप्राकृतिक और कल्पनीय
मनमानी कहानियाँ गढ़ लीजिए। इसी प्रक्रियाओं ने और इन्हीं पेशाओं ने ही सभ्यता एवं
संस्कृति को जन्म का आधार दिया|| इन आधारों पर ये उपरोक्त सभी पेशागत जातियाँ ही
शेष अन्य जातियों का “पिता जाति” (Parent Jati) हुआ| इसे आप चार्ल्स
डार्विन के ‘उद्विकासवाद’ (Theory of Evolution) से
समझ सकते हैं|
अब आप ‘पेशा’, ‘जाति’ एवं ‘कास्ट’ की संकल्पना समझ
गए होंगे| इसके ही साथ आप जातीय इतिहास को भी समझ गये होंगे,
जो अपने में जाति, कास्ट, एवं पेशाओं के इतिहास को समेटे हुए है| यही
वैज्ञानिक एवं मानवीय इतिहास है, इसे ध्यानपूर्वक समझिए|
आचार्य प्रवर निरंजन
जाति, कास्ट और पेशा के वास्तविक अंतर्संबंधों को रेखांकित करते हुए जाति और कास्ट के अंतर को आपने भली-भांति समझाया है।साथ ही आपने यह भी अच्छी तरह से समझाया है कि पेशा ही वह आधारभूत तत्व है, जिसने उपभोग, उत्पादन, वितरण और विनिमय की आर्थिक शक्तियों के प्रभाव में कास्ट और जाति को जन्म दिया। मानव के उद्विकास में कृषि क्रांति वह टर्निंग प्वाइंट है, जिसने वास्तविक अर्थों में मानव सभ्यता और संस्कृति को गति प्रदान किया और व्यवस्था के चतुर्थक एवं पंचम उच्च स्तरों को जन्म दिया। आचार्य प्रवर को बहुत बहुत धन्यवाद।
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