आज हमलोग जो भी कुछ हैं, अपने अतीत के आधार पर वजूद में हैं| अर्थात आज हमारी समस्त भावनाएँ, विचार, व्यवहार एवं कार्य का नियमन, नियंत्रण और सञ्चालन अतीत में तैयार सामग्रियों यानि विचारों एवं संस्कारों के द्वारा होता है| हमारे विचार और संस्कार अतीत के हमारे मानवीय चेतना तथा मूल्यों से उत्पन्न होते हैं| अतीत का साधारण अर्थ हुआ – बिता हुआ काल, जो अब नहीं है, लेकिन यह इतिहास से कुछ अलग होता है। आधुनिक इतिहासों में सिर्फ संस्कृतियों के रुपांतरण का क्रमानुसार ब्यौरा ही होता है, जबकि अतीत में सभी, साधारण और सामान्य, घटनाओं को स्थान मिलता है।
अतीत से हमें
भौतिक और अभौतिक सामग्री प्राप्त होते हैं| भौतिक पदार्थ का तो समय के साथ क्षरण भी
हो सकता है, लेकिन मानवीय चेतनाओं एवं मूल्यों में निरंतरता रहती है, भले ही समय
के साथ बदलता रहे| भौतिकीय पदार्थ सभ्यता का आधार होता है, और अभौतिक सामग्री यानि
मानवीय चेतना एवं सामाजिक- सांस्कृतिक मूल्य संस्कृति का आधार होता है| सभ्यता की
निरंतरता समाप्त हो सकती है, जैसे सिन्धु घाटी सभ्यता और माया सभ्यता की निरंतरता
तलाशना अब भी कठिन है| लेकिन किसी की संस्कृति उस मानव समाज के मन मस्तिष्क में
निवास करता रहा है| हम भौतिकीय पदार्थ यानि सभ्यता को सामाजिक- सांस्कृतिक तंत्र
का ‘हार्डवेयर’ कह सकते हैं और अभौतिक सामग्री यानि संस्कृति को सामाजिक- सांस्कृतिक तंत्र का ‘साफ्टवेयर’ कह
सकते हैं, जो अदृश्य रहकर भी समाज को संचालित करता रहता है|
यदि हम ठहर
कर विचार करे तो हम पाते हैं कि हमारे वर्तमान चिंतन का आधार हमारे सामाजिक-
सांस्कृतिक मानवीय चेतना और मूल्यों से ही नियमित एवं निर्धारित होता है| हमारा यह
चिंतन वर्तमान को समझने के लिए होता है और भविष्य की तैयारी के लिए होता है| इसी
चिंतन से हम वर्तमान की समस्यायों का समाधान पाते है और जीवन की सफल यात्रा कर पाते
हैं| ऐसा ही अतीत के हर काल एवं क्षेत्र में होता रहा है| इसी चिंतन के परिणाम और
प्रभाव से मानव जीवन विकसित होता रहा है| हमारी सोच, हमरे मानक एवं मूल्य,
लोकाचार. प्रतिमान, अभिवृति, सभी कुछ हमें अपनी विरासत से मिलता है, जो अतीत का
होता है|
लेकिन हमें
मानवीय चेतना और मूल्यों की अवधारणा को स्पष्ट करना चाहिए| मानव की चेतना एक
व्यापक शब्द है, जो मानव की समझ यानि बुद्धि को इंगित करता है| चेतना किसी भी जीवन
का संवेदनशील समझ है, यानि उसकी क्रिया एवं प्रतिक्रिया देने की अवस्था है| मानव
की चेतना में उसकी भावनाएँ, विचार एवं व्यवहार शामिल होता है| किसी भी जीव में
व्यवहार तो शामिल होता है, लेकिन विचार करने और भावनाएँ व्यक्त करने की स्पष्ट दशा
तो सिर्फ मानव में ही होती है| एक पशु सोच सकता है, लेकिन सिर्फ मानव ही अपनी सोच
पर भी सोच सकता है| सोच पर ही सोचने को चिंतन कहते हैं, जिससे विचार उत्पन्न होते
हैं| यही विशिष्टता एक पशु मानव को एक ‘बुद्धिमान मानव’ (होमो सेपियंस) बनाया|
इसलिए मानवीय चेतना में बुद्धि का सर्वोच्च स्थान है| इसीलिए मानवीय चेतना अन्य
जीवों में सर्वश्रेष्ट है|
मानवीय मूल्य
हमारी भावनाओं, विचारों, व्यवहारों एवं कार्यो को नियमित करनी वाली वे सामाजिक- सांस्कृतिक
मानक होते होते हैं, जिन्हें हमारी संस्कृति निर्धारित करती है| ये मूल्य अपने
सदस्यों एवं समाज की भावनाओं, विचारों एवं व्यवहारों को उन मनको के अनुरूप व्यक्त किए
जाने की अपेक्षा रखता है| इसे उस जीवन सिद्धांत के रूप में लिया जा सकता है, जो
हमें जीवन में भावनाओं, विचारों, कार्यों एवं निर्णयों का मार्गदर्शन करते हैं| ये
हमारे सामाजिक- सांस्कृतिक आदर्शों, उद्देश्यों एवं विश्वासों की अनुभूति समझाते
हैं| दरअसल यह सब सामाजिक- सांस्कृतिक व्यवस्था बनाये रखने के लिए उद्भूत किए जाते
है और इसे विकसित किया जाता है| किसी बुजुर्ग को सम्मान दिया एक सामाजिक मूल्य है,
जिसे हम कई रूपों में व्यक्त करते हैं, जो प्रतिमान के रूप में भिन्नताएं देते
हैं|
इस तरह हम
पाते हैं कि सभ्यता एवं संस्कृति के कई पक्ष होते हैं, या हो सकते है| सभ्यता एवं
संस्कृति के विभिन्न पक्ष ही अतीत के विभिन्न आयामों को स्पष्ट करते हैं| लेकिन जब
हम अतीत के स्थायी आयामों की बात करते हैं, यानि यदि हम अतीत की निरंतरता की बातें
करते हैं, तो हमें स्थायी आयामों में कुछ आयाम को ही चिह्नित करना होता है| मानवीय
मूल्य में सामाजिक- सांस्कृतिक प्रतिमान, परम्परा, लोकाचार, आदर्श, विश्वास,
उद्देश्य आदि शामिल हो जाते हैं| इसी तरह मानवीय चेतना में मानवीय बुद्धि यानि
बौद्धिकता के कई स्वरुप एवं स्तर शामिल हो जाता है| चेतना अव्यक्त चेतन यानि
अवचेतन स्तर और अधिचेतन स्तर पर भी कार्य करता है| बुद्धिमता में आजकल भावनात्मक
बुद्द्गिमता, सामाजिक बुद्धिमता और बौद्धिक बुद्धिमता (Wisdom Intelligence) शामिल
हो गया है| इस तरह मानवीय चेतना और मानवीय मूल्य इतना व्यापक अवधारणा है कि यह
लगभग समस्त मानवीय भावना, विचार एवं व्यवहार को ही अपने में समाहित कर लेता है| यह
सब हमें अपने अतीत से ही प्राप्त होता है|
इसलिए यह
कहना समुचित और सत्य है कि “अतीत मानवीय
चेतना तथा मूल्यों का स्थायी आयाम है|” अतीत के बाकी अय्याम तो अस्थायी हो सकता है, यानि बदलते
रहने वाला हो सकता है, लेकिन मानवीय चेतना और मानवीय मूल्य अतीत के नहीं बदलने
वाला आयाम है|
(इसे आयोग की परीक्षाओं में ‘निबंध’ को ध्यान में रख कर लिखी गयी है)
आचार्य
निरंजन सिन्हा
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