शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2024

“राजनीति” का ‘राज’ समझिए

 (Understand the 'Secret' in 'Politics')

आप “राजनीति” को ‘राज्य’ की ‘नीति’ (Policy) समझते हैं, या ‘राज्य’ पर ‘शासन’ करने की ‘नीति’ समझते हैं, तो आप ग़लत नहीं है। लेकिन मैं आज़ “राजनीति” के एक भिन्न आयाम पर आपको लाकर कुछ गहरे रेखांकन का अवलोकन कराना चाहता हूं। दरअसल “राजनीति” में ‘राज्य के लिए नीतियों’ का ‘राज’ (Secracy/ Mystery) बहुत गहरा होता है। मतलब यह है कि “राजनीति” में नीतियों को ‘राजदार’ यानि ‘गुप्त’ यानि ‘रहस्यमयी’ रखना पड़ता है, या रहता ही है। यानि आपको ‘राजनीति’ में जो ‘विचार’ (Thought), ‘भावना’ (Emotion) और ‘व्यवहार’ (Behaviour) सामान्य शारीरिक आंखों से दिखता है, समझ में आता है, वही तक राजनीति की वास्तविकता नहीं होती है| बल्कि उससे भी बहुत आगे और उससे भी अलग कुछ गहराई का उद्देश्य होता है। और ऐसे विश्लेषण के लिए गहरी आलोचनात्मक (Critical) एवं विश्लेषणात्मक (Analytical) मूल्याङ्कन क्षमता की आवश्यकता की जरुरत होती है, अन्यथा वह गहरी राजनीति ही नहीं है।

हम कह सकते हैं कि राजनीति में नीति का राज बहुत गहरी होता है, और गहरी राजनीति को सामान्य आदमी समझ ही ले, तो स्पष्ट है कि वह राजनीति ही बहुत छिछली (सतही) होगी।ऐसी स्थिति में वह दिखती राजनीति वास्तव में राजनीति ही नहीं है। इसीलिए एक सधे राजनीतिज्ञ के अगले कदम की आहटें भी उनके निकटस्थ को भी पता नहीं चल पाता है| और यदि उसके संगठन के अधिकतर सदस्यों को एक कुशल एवं सधे राजनीतिज्ञ की हर अगली चाल की संभावनाओं का पता ही चल जाय, तो वह कुशल राजनीतिज्ञ हैं ही नहीं। असली और कुशल राजनीतिज्ञ को पूरा समझ लेने का सामान्य लोगों का आत्मविश्वास ही हास्यास्पद है। इसीलिए गहरी राजनीति के प्रतिफल से वे लोग बहुत ज्यादा हताश-निराश भी हो जाते हैं, जो आज बहुत खुश हैं, या खुश दिखते हैं और ‘अंध भक्त’ की तरह अतिउत्साही समर्थक भी हैं।

हालांकि मैं ‘राजनीति’ में विकासात्मक कार्यों के कार्यान्वयन की रणनीति की बात नहीं कर रहा हूं, क्योंकि विकास सभी राज्यों की यानि राजनेताओं की नीतियों में शामिल होती ही है। दरअसल हर राजनीति में कोई एक या कुछ विशिष्ट सिद्धांत होता ही है और उसी के इर्दगिर्द उनकी राजनीति के रण के लिए चक्र घूमता है| सिद्धांत कुछ भी हो सकता है, और किसी विशिष्ट सिद्धांत का नहीं होना भी एक सिद्धांत ही होता है| कुछ के लिए सिद्धांत ‘कुर्सी से चिपके रहना’, ‘अपने परिवार तक के लिए रणनीति बनाना’, या ‘किसी दूर या बहुत दूर में जाकर गहरा बदलाव करना’ भी एक सिद्धांत हो सकता है| विकासात्मक कार्यों और योजनाओं के रणनीति, परिणाम और अन्य समीक्षाएं राजनीतिक मुद्दा नहीं होकर प्रशासनिक विकासात्मक मुद्दा है। वैसे कुछ राजनीतिक खिलाड़ी सीमेंट (निर्माण सामग्री) की खपत की ‘वृद्धि’ (Growth) को ही ‘विकास’ (Development) का पर्याय बताकर भी राजनीति करते हैं। जैसे कुछ राजनेता  सीमेंट के निर्माण को ही विकास समझ लेते हैं और ऐसा ही सामान्य जनता को समझा भी देते हैं| जबकि ‘वृद्धि’ ‘विकास’ का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते हुए भी उससे मौलिक रूप में भिन्न है। “विकास” (Development, not Growth) का सबसे महत्वपूर्ण अवयव मानव को एक उत्पादक संसाधन में बदलना होता है| क्योंकि एक मानव ही सबसे महत्वपूर्ण संसाधन हैं, जो किसी भी चीज को एक महत्वपूर्ण संसाधन बना देता है, या बना सकता है। चूंकि मानव एक सांस्कृतिक जड़ता (Cultural Inertia) में जड़ा (Rooted/ Fix) एक चेतनायुक्त अस्तित्व है, इसीलिए उसे सम्हालने और विकसित करने के लिए भी राजनीति करनी पड़ती है एवं उसके राज को रहस्यमयी रखना पड़ता है। 

दरअसल अगर राज्य (राष्ट्र/ देश) के राजनेताओं की नीतियों का ‘राज’ (Secret) को सामान्य साधारण जनता समझ ही ले, तो वह कैसा राज है? यानि वह कैसा रहस्य है, जिसे सब जानते ही हैं, या जान ही जाए। आपने भी ध्यान दिया होगा कि चलती ट्रेन से कोई उतरता है, तो उसे ट्रेन की दिशा में ही चलने या दौडने की मजबूरी होती है, अन्यथा उसे झटका लगता है और वह गिर जाता है। इसी तरह क्रिकेट मैच में किसी बल्लेबाज को मैदान से बाहर (आउट/ Out) करने के लिए गेंद को जब किसी खिलाडी को सफल ‘कैच’ लेना होता है, तो कैच लेने वाले खिलाड़ी गेंद पकड़ते वक्त अपने हाथ को  आती गेंद की ही दिशा में पीछे ले जाना होता है। अर्थात वह खिलाड़ी गेंद को पकड़ने वक्त आती गेंद के विरुद्ध दिशा में कोई प्रतिरोध पैदा नहीं करता है, और अपने हाथ को गेंद की आती दिशा में कर गेंद कैच कर खिलाड़ी को ही मैदान से बाहर कर देता है। इसी तरह एक कुशल और सफल राजनीतिज्ञ को भी सामान्य एवं बहुसंख्यक जनता की ‘सांस्कृतिक मनोदशा’ (Cultural Sentiment) की दिशा में ही आगे बहता हुआ (सबसे आगे) दिखकर ‘राजनीति के मैदान’ के अन्य ‘राजनीतिक खिलाड़ियों’ को मैदान से बाहर कर देना होता है। इसे आप समाज की ‘सांस्कृतिक मनोदशा की आवेग' यानि “सांस्कृतिक आवेग” (Cultural Momentum) भी समझ सकते हैं। इसे समाज के सामान्य बहुसंख्यक जनता की ‘सांस्कृतिक जड़ता’ (Cultural Inertia) की मांग भी कह सकते हैं| इसे ध्यान से पढ़ें और इसकी गहराइयों को समझने का प्रयास कर सकते हैं| कहने का तात्पर्य यह है कि इस “सांस्कृतिक आवेग” के ध्वजवाहक दिखने की कवायद में आप किसी राजनीति का राज समझ ही लेने की भूल भी हो जा सकती है|

स्वभाविक है कि प्रत्येक समाज का सदस्य ‘सांस्कृतिक जड़ता’ के अनुरूप ही अपने विचार, भावना और व्यवहार को अभिव्यक्त करता है। ‘संस्कृति’ (Culture) किसी भी समाज का ‘समेकित मानसिक निधि’ होता है, जो किसी (कम्प्यूटर) तंत्र के साफ्टवेयर की तरह अपने अदृश्य रहकर भी उस विशिष्ट समाज के विचार, भावना और व्यवहार को संचालित, नियंत्रित और नियमित करता रहता है। एक चतुर और समझदार राजनीतिज्ञ इस "संस्कृति" एवं ‘सांस्कृतिक आवेग’ (Cultural Momentum) को  समझ कर ही उसी के अनुरूप ही अपनी रणनीति के विचार, भावना और व्यवहार को व्यक्त करता है और उस विशिष्ट समाज में अपनी लोकप्रियता को भंजाता है। 

सत्ता ही बदलाव का सबसे महत्वपूर्ण उपकरण होता है| और इसीलिए राजनीतिक दलों की यह बाध्यता रहती है कि वह विधायी सदन में बहुमत अच्छी तरह बनाए रखे, ताकि ‘सत्ता’ पर प्रभावशाली नियंत्रण रख सके। इसीलिए यदि किसी राजनीतिक दल की कोई अन्य भी मंशा रहती है, जो उस समाज की परम्परागत 'सामाजिक-सांस्कृतिक प्रतिरूप' से अलग यानि भिन्न हो, तो उस नई एवं अलग "राजनीतिक- सामाजिक-सांस्कृतिक प्रतिरूप' का विरोध करता दिख सकता है। ऐसी स्थिति में स्पष्ट एवं स्थायी बहुमत के अभाव में किसी नई यानि अद्भुत एवं एकदम अलग “राजनीतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक प्रतिरूप” (Political-Social-Cultural Pattern) को स्थापित नहीं किया जा सकता है। तब उस राजनेता को ऐसी बहुमत की स्थिति आने तक इंतजार करना पड़ेगा।

समुचित राजनीति में अगले कदम को ‘राज’ ही रखना पड़ता है, अन्यथा उनके अगले कदम को उसके प्रतिद्वंद्वी या अन्य विरोधी समय आने से पहले ही उसे समाप्त कर देंगे। आपने भी देखा होगा कि जो राजनीतिक दल अपने हर क़दम की घोषणा खुले मैदान में करते हैं, वह कभी सफल नहीं होता है। इसीलिए हर सफल राजनीतिक दल खुले मैदान में घोषणा कुछ करता है और जमीनी क्रियान्वयन के लक्ष्य में कुछ और ही रखता है। इसी ‘राज का खेल’ “राजनीति” है। हमने प्रकृति की व्यवस्था में भी देखा है कि जंगल के राजा शेर को भी शिकार करने के लिए चुपचाप और अचानक झपट्टा मारना पड़ता है। वह कभी भी आवाज देते हुए यानि हुँकार करते हुए शिकार के लिए आगे नहीं बढ़ता है। अत: रणनीति में ‘चुपचाप’ और ‘अचानक’ की नीति ही रहस्यमय होता है, जो कार्यान्वयन तक ‘राज’ ही रहता है| यही राजनीति है।

आपने समाज में कई चीखते चिल्लाते तथाकथित क्रांतिकारी राजनेताओं को देखा होगा, जो राजनीति की गहरी समझ का दावा करते हुए विचार व्यक्त करते हैं। ऐसे तथाकथित क्रांतिकारी राजनेता अपनी सोच और नीतियों का खुले आम घोषणा करते हैं और कोई उन्हें ‘काउन्टर’ (प्रतिरोध) भी नहीं करता है। दरअसल ये घोषणाएं और विचारों का रेला ही पूरा बकवास होता है, जिसका कोई सकारात्मक वास्तविक प्रभाव उनके बोलने की दिशा में नहीं रहता है| और इसीलिए ऐसे राजनेताओं को कोई भी समझदार राजनेता काउंटर करने में अपना समय, संसाधन, धन और ऊर्जा बर्बाद नहीं करना चाहता है। ऐसे बकवास घोषणाओं यानि विचारों को अभिव्यक्त करने वाले नेताओं का कोई काउंटर नहीं करता। ऐसी स्थिति में ये तथाकथित राजनेता अपनी वाहवाही लूटने में मशगूल रहते हैं और सामान्य जनता को यह समझाते हैं कि उनके विचारों और धारणाओं का कोई माकूल जवाब उनके विरोधियों के पास नहीं है। ऐसी स्थिति में सामान्य बहुसंख्यक जनता भी अपने ऐसे नेताओं की अभिव्यक्ति को सही और सच्चा मानते हैं और भ्रमित रहते हैं| दरअसल ये ‘थके हुए’, ‘पके हुए’ और ‘बिके हुए’ तथाकथित राजनेता उन्हीं विरोधियों का हित साधन करते हैं और इसकी समझ बिके हुए को छोड़कर अन्य ‘पके हुए’ और ‘थके हुए’ को नहीं होता है। ये अपने को क्रांतिकारी नेता समझते रहते हैं, जबकि इन्हें राजनीति की कोई समझ ही नहीं होती।

इसलिए आप बहती राजनीति की निहितार्थ को सामानयत: ठीक तरह से समझ लेने के भ्रम से बाहर निकलिए| कुछ लोग वर्षों की राजनीति करते हैं और इसमें सत्ता के व्यक्ति को बदल देने मात्र की राजनीति होती है, इसीलिए ऐसी सतही एवं क्षुद्र राजनीति को समझ लेना थोडा सरल होता है| लेकिन कुछ राजनीति सदियों के लिए होती है, जिसमे प्रभाव के लिए सदियों या दशको का भी इन्तजार हो सकता है| सदियों की राजनीति के लिए  ‘संस्कृति की राजनीति’ (Politics of Culture) की जाती है| अत: आप किसी भी राजनीति को समझने के लिए उसके राज यानि उसके मूलभूत सिद्धांत पर भी ध्यान रखिये, आपको बहुत कुछ समझ में आने लगेगा|

आचार्य निरंजन सिन्हा

भारतीय संस्कृति का ध्वजवाहक 

1 टिप्पणी:

  1. शानदार ,,सामयिक और पढ़ने वालों के लिए जानदार ज्ञानवर्धक पोस्ट ।
    इस पोस्ट से हजारों सकर्म परिवार के सदस्य लाभान्वित हों,इस आशय से लगभग 40 ग्रुप में शेयर कर रहा हूं।

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