लोगों (सामान्य जनता) को नियंत्रित कैसे
करें, या लोगो को कैसे नियंत्रित किया जाता है, को समझने के लिए वैश्विक परिदृश्य
में यह आलेख है| इस आलेख से आप
अपने पड़ोसी से लेकर अपने या किसी और देश के शासनाध्यक्ष या राष्ट्राध्यक्ष को ही नियंत्रण
में करने की क्रियाविधि (Mechanism) को समझ सकते हैं| इसी कड़ी में आप आम आदमी को
भी समझ सकते हैं| लोगों को नियंत्रित करना एक
शुद्ध मनोविज्ञान है, कोई अर्थशास्त्र या क्वांटम भौतिकी समझना नहीं है। जब लोगों को
नियंत्रित करना एक शुद्ध मनोविज्ञान है, तो निश्चिंतया यह पशुओं पर लागू नहीं होगा| पशुओं के लिए
अन्य दंडात्मक विधि है, जो यहाँ का विषय नहीं है| वैसे पशुओं की श्रेणी में दो पैरों वाला होमो सेपियंस भी आता है। मतलब यह मनोविज्ञान दो पैरों वाले पशुओं के लिए
नहीं है बल्कि सिर्फ इंसान के लिए ही है। इंसान के लिए इसीलिए होमो सोशियस (Homo Socius – सामाजिक मानव) और
होमो फेबर (Homo Febar – निर्माता मानव ) शब्दावली का उपयोग किया जाता है।
लोग यानि मनुष्य में दिमाग (Brain) भी होता है और मन
(Mind) भी होता है। चिकित्सा विज्ञान के विद्वान बताते हैं कि मानव की भावनाओं,
विचारों एवं व्यवहारों को नियांत्रित करने मे मानव के मन और दिमाग के अतिरिक्त
उनका ‘रिफ्लेक्स एक्सन’ (Reflex Action) यानि “स्वत:
स्फूर्त अनुक्रिया” भी होता है। दरअसल ‘रिफ्लेक्स एक्सन’ एक ‘अनुक्रिया’
(Action) नहीं होकर एक ‘प्रतिक्रिया’ (Reaction) है, जो किसी शारीरिक संवेग का “रक्षात्मक
क्रियाविधि” (Defence Mechanism) है और यह स्वत: स्फूर्त होता है। इस
अनुक्रिया में ‘दिल’ (मन) और ‘दिमाग’ (मस्तिष्क) की कोई भूमिका नहीं होती। मन को
ही दिल कहा जाता है, और यह भावनाओं की अभिव्यक्ति मानी जाती है। दिमाग को तर्क
शक्ति का केंद्र माना जाता है, जो तार्किक आधार खोजता है| किसी भी क्रिया पर यदि कोई तुरंत प्रतिक्रिया देता है, और
दिमाग नहीं लगाता है, तो इसे ही सामान्यता पाशविक
प्रवृत्ति (Reflex Action) माना जाता है, क्योंकि यह सभी पशुओं में पाया जाता है।
ऐसे पाशविक प्रवृत्ति के दो
पैरों वाले लोगों को उनसे प्रतिक्रिया लेकर ही उन्हें नियंत्रित करना सरल, सहज एवं
आसान है| इसीलिए चतुर
यानि बुद्धिमान लोगों का समूह या संस्था ऐसे प्रवृति यानि स्तर के लोगों को नियंत्रित
करने के लिए इन्हें कुछ कुछ मुद्दे नियमित रूप से व्यवस्थित ढंग से देते रहते हैं|
ऐसे प्रवृति के लोगो से इन व्यवस्थित एवं नियमित मुद्दों पर प्रतिक्रिया लेते रहते
हैं। ऐसे लोगों को प्रतिक्रिया देने के बहाने अपनी सतही विद्वता दिखाने का मौका
मिलता रहता है, और ये सतही लोग सामान्यजन के नायक बने रहते हैं| मैंने इन्हें सतही
विद्वता इसलिए कहा, क्योंकि इन सामान्य जनों की मूल एवं मौलिक समस्याओं की स्थिति एवं
स्वरुप यथावत बनी रहती है, इसमें कोई विशेष बदलाव नहीं होता है। ऐसे सतही विद्वान अपनी तथाकथित विद्वता लिए उन्ही
उलझनों में उलझे रहते हैं, तब फिर उन्हें नए मुद्दे दे दिए जाते हैं| ऐसे में अधिकतर मुद्दों को विवादास्पद प्रकृति का स्वरूप भी दे
दिया जाता है, ताकि इन सतही नेताओं में “स्वत: स्फूर्त प्रतिक्रिया” तुरंत उत्पन्न
हो जाय।
प्रतिक्रिया देने में इन लोगों को अपना
बहुमूल्य समय, संसाधन, धन, ऊर्जा, जवानी का उत्साह और बौद्धिक संपदा को व्यय करना होता है। यदि इन कारकों का उपयोग सकारात्मक और
सृजनात्मक किया जाता, तो शायद इनका उपयोग जनता के उत्थान में हो जाता| और शायद ये
लोग बौद्धिकता या समृद्धि के स्तर पर कुछ आगे आ जाते, या आगे निकल जाते। ऐसे प्रतिक्रिया देने वाले पाशविक
प्रवृत्ति के लोगों के पास अपनी कोई कार्य योजना नहीं होता,
जिसका
क्रियान्वयन वे कर सके। ये बेरोजगार बेचारे
लोग मात्र प्रतिक्रिया देने को ही अभिशप्त हैं। प्रतिक्रिया देना ही इनकी
बौद्धिकता है, और इनकी बौद्धिक क्षमता की पराकाष्ठा भी है। प्रतिक्रिया देने से आगे देखने की इनका अपना कोई विज़न (Vision) ही नहीं होता।
इसीलिए जब आप अपने आसपास देखते हैं, तो ऐसे लोग मात्र प्रतिक्रिया देने में व्यस्त दिखते हैं। ऐसे
ही प्रतिक्रिया देने वाले पाशविक प्रवृत्ति के लोग “सोशल डिजिटल मीडिया” में ‘कन्टेंट’
(Content) को मात्र फारवर्ड करना ही जानते हैं, और इसके आगे उन्हें कुछ नहीं आता। ऐसे लोगों को नियंत्रित करने का सबसे
आसान तरीका है कि उनसे प्रतिक्रिया लेते रह कर उन्हें उलझाए रखना|
व्यक्ति को संचालित,
नियंत्रित और
नियमित करने में “मन” की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। ध्यान रहे कि दिमाग (Brain) का आकार
सीमित होता है और मन (Mind) का आकार असीमित होता है। दिमाग व्यक्ति के ‘मन’ का “मोड्यूलेटर”
(Modulator) होता है, जो मन की भावनाओं और विचारों को मानवीय संवेगों (Impulse)
में अनुवादित करता है। मन के कार्य स्तर
का कई सोपान है, यथा अचेतन, चेतन एवं अधिचेतन। व्यक्ति के अचेतन स्तर पर मन की जो
स्थिति होती है, वह व्यक्ति को अचेतन स्तर से ही मानव को संचालित और
नियंत्रित करती है, और इसीलिए इसकी क्रियाविधि को वह व्यक्ति भी नहीं समझ पाता
है। किसी व्यक्ति के अचेतन स्तर पर वही भावना या विचार मजबूत होता है,
जो उस व्यक्ति
के लिए किसी कारण से अतिमहत्वपूर्ण होता है। व्यक्ति की संस्कृति भी
ऐतिहासिक रूप से उस व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि
तथाकथित संस्कृति से उसका ऐतिहासिक लगाव होता है, या ऐसा माना जाता है। ऐतिहासिक
का मतलब ही होता है कि किसी लम्बे काल का सम्बन्ध| भले ही कोई संस्कृति काल्पनिक भी होता है,
लेकिन इसका प्रभाव वास्तविक ही होता है,
क्योंकि उससे लम्बे सम्बन्ध की मान्यता के कारण एक विशेष अपनापन पैदा हो जाता है। इस तरह संस्कृति भी अचेतन अवस्था से ही सक्रिय रहता है। इसीलिए संस्कृति के नाम पर भी लोगों को नियंत्रित और
संचालित किया जाता है। ध्यान रहे कि धर्म और सम्प्रदाय भी किसी संस्कृति का एक
महत्वपूर्ण हिस्सा ही होता है। धर्म और संस्कृति इतनी महत्वपूर्ण होती है
कि इनके नाम मात्र के आधार पर ही किसी को भी किसी भी दिशा में हांक लिया जाता है।
इसके लिए आपको जो करना है, कीजिए; आप अपनी मंशा को सिर्फ उनके आस्था की संस्कृति और धर्म से
जोड़ दीजिए। यदि सामने वाले लोगों की विश्लेषणात्मक मूल्यांकन की क्षमता सतही है, या नहीं है (जैसा सामान्यत: होता है),
तो आप वहाँ धुन्ध पैदा कर अपने मनोनुकूल व्याख्या
से उन्हें संतुष्ट कर सकते हैं और उसे भावनाओं में बहा ले जा सकते हैं।
कभी कभी या अक्सर, आप अपने ‘विरोध आन्दोलन’
या ‘विरोधी विचारधारा’ का नेतृत्व कर भी ऐसे लोगो को नियंत्रित किया जाता है। इसे दूसरे शब्दों में कहें,
तो जो जन समूह या लोग किसी नीति, या
योजना, या विचारधारा का विरोध करते हैं, तो ऐसे लोगों को नियंत्रित करने के लिए आप उनके विरोध के
नेतृत्व को अपने नेतृत्व में ले लेते हैं। आपको सिर्फ इतना करना है कि उनके विरोध
करने के तरीके से आपका विरोध ज्यादा उग्र दिखे, या असंयमित दिखे, यानि सामान्य लोगों के सामने आपकी बेचैनी ज्यादा दिखे| ऐसा लगे कि आप ही वास्तविक मानवता के पुजारी हैं,
आप ही गहरे समाजवादी या साम्यवादी दिखें।
इससे वह विरोध आन्दोलन आपके नियंत्रण में होगा, और इसीलिए उनके अनुगामी भी आपके नियंत्रण
में होगा। भारत में ऐसे कई आन्दोलन है, जो कभी राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित रहे थे,
और आज हाशिए पर
भी नहीं बचें है; ऐसे आन्दोलन ऐसे ही हादसे के शिकार है, और आज भी हो रहे हैं। आप नजर उठाकर देखिए,
आपको कई उदाहरण मिलेंगे। कभी कभी अपने ही
विरोधी दुसरे संगठनों को फण्ड देकर भी, अन्य सहायता देकर भी खड़ा किया किया जाता
है, जो आपका ही विरोध करता दिखता है, लेकिन वह आपके प्रमुख विरोधी के विरोध में ही प्रतिफलित होता है| कहने का तात्पर्य यह है कि आपके द्वारा खड़ा किया गया संगठन
आपके विरोध में होता है और आपके प्रमुख विरोधी के समर्थन में जाता होता है। ऐसे जन समूह को आपके प्रमुख
विरोधी के समर्थन से हटाता है, और वस्तुत: आपको लाभ पहुंचाता है| यह भी अपने
विरोधियों को नियंत्रित करने का ही तरीका है|
कुछ लोग जीवन जीने का, यानि अपनी शारीरिक अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद में ही जूझ रहे हैं, उनके लिए शारीरिक अस्तित्व बचाना ही जीवन का एकमात्र लक्ष्य होता है। ऐसे जीवों की चिन्तन क्षमता और चिन्तन शक्ति समाप्त हो जाती है। कहा भी गया है कि पेट की आग सबसे भयानक विपदा है और वह सब कुछ नष्ट कर सकता है। ऐसे लोगों को नियंत्रित करने का साधन कुछ राशन पानी भी बन जाता है। किसी यूरोपीय तानाशाह की कहानी है, जो अपनी जनता की मानसिकता को दर्शाने के लिए एक मुर्गी का उदाहरण पेश किया था। उसने मुर्गी के सारे पंख उखाड़ दिए और ठंड में मरने के लिए छोड़ दिया, लेकिन जब उसे खानें के लिए दाना दिया गया, तो वह मुर्गी उस तानाशाह का अनुयाई बन गया। यह ऐसे सभी जीवों के लिए मान्य है, जो अपने शारीरिक वजूद बचाने की संघर्ष में लगे हुए हैं। मतलब उन्हे सिर्फ जिन्दा रखने की व्यवस्था कर दीजिए, उससे ज्यादा नहीं, वे आपके अनुयायी बने रहेंगे।
यदि आपको मध्यम वर्गीय लोगों
को नियंत्रित करना है, तो आप इन्हें ‘धर्म’, ‘राजनीति’
और ‘चारित्रिक नैतिकता’ के नाम पर किसी भी दिशा में बहा ले जा सकते हैं। ये मध्यम वर्गीय लोग अपने धन,
वेशभूषा, पद, डिग्री या अन्य विशिष्ट अवस्था के कारण किसी भी दशा में हो,
इन मध्यम वर्गीय
लोग की सटीक पहचान यह है कि ये ‘धर्म’, ‘राजनीति’ और ‘चारित्रिक नैतिकता’ के मामले में निर्णय दिल
से लेते हैं, दिमाग से नहीं। कहने का तात्पर्य यह है कि ये मध्यम वर्गीय लोग ‘धर्म’,
‘राजनीति’, और ‘चारित्रिक नैतिकता’ के मामले में भावनात्मक
होते हैं, तार्किक नहीं
होते। ये हमेशा धर्म, राजनीति और चारित्रिक नैतिकता की बात करते रहेंगे,
यानि ये अपने को इन मामलों के विशेषज्ञ ज्ञानी
समझते हैं। इसीलिए ऐसे लोगों को नियंत्रित करने के लिए आपको उनके आस्था के अनुरूप
यानि विश्वास के अनुरूप ही धर्म, राजनीति और चारित्रिक नैतिकता का समर्थन करता दिखना चाहिए,
भले ही आप उनसे पूरी तरह असहमत हो।
यदि आपको लोगों को नहीं, अपितु किसी खास व्यक्तित्व को नियंत्रित
करना है और वह युवा पीढ़ी का है, तो उसकी जवानी का ध्यान रख सकते हैं। जवानी यानि उस उम्र
की यौनिकता काफी प्रभावशाली होती है। इसीलिए अपराध अनुसंधान में जब पुलिस को
कोई सूत्र नहीं मिलता, तो वह अपराध अनुसंधान को यौन आनंद की ओर मोड़ कर सफलता
प्राप्त करता है। अतः युवा उम्र में इस आधार पर भी नियंत्रण का विचार बहुतों की
रणनीति में भी होती है।
बाकी दिमाग वाले लोगों को वास्तविक लाभ
दे कर या वास्तविक लाभ दिलाने का विश्वास दिलाकर पक्ष में किया जाता है,
लेकिन इनके लिए ‘नियंत्रण’
शब्द उचित नहीं होगा। दरअसल यही बुद्धिमान लोग राजनीतिक लोगों को नियंत्रित कर
सामान्य वर्ग को नियंत्रित करता है। ये राजनीतिक लोग अपने विभिन्न
स्वरूपों में व्यवस्था के नियामक मात्र होते हैं, लेकिन मूल रूप में ये राजनीतिक लोग इन बौद्धिक
लोगों के ही साधन यानि‘उपकरण’ (Tools) होते हैं। वित्तीय
साम्राज्यवाद के इस वर्तमान युग में सभी देशों के शासनाध्यक्ष और राष्ट्राध्यक्ष
अपने अपने देशों की राष्ट्रीय सीमाओं के अन्दर व्यवस्था बनाए रखने के “प्रबंधक” (Manager)
मात्र है। आप इन शासनाध्यक्षों और राष्ट्राध्यक्षों को ‘अपने अपने राज्यों
के प्रबंधक’ (State Manager) भी कह सकते हैं| इस आधुनिक वर्तमान युग में ‘सम्प्रभुता” की अवधारणा
मात्र सैद्धांतिक रूप में किताबों में रह गयी है| यह
‘संप्रभुता” की अवधारणा अब वित्तीय साम्राज्यवादियों के नियंत्रण में चली गई है। वैश्विक सन्धियाँ, समझौते, करार, सहयोग
अनुबंध, और वित्तीय अनुदान, सहयोग, कर्ज आदि ने व्यावहारिक रूप में संप्रभुता को
ही दफ़न कर दिया है|
अपने नजरों को, शारीरिक
और मानसिक दोनों दृष्टि को, दौड़ाइए और देखिए कि कौन
किसको कैसे नियंत्रित कर रहा है। आपको बहुत बेहतरीन नजारे दिखेंगे।
आचार्य निरंजन सिन्हा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें