The Depth Psychology of Present Political System
आज़ हमलोग वर्तमान
भारतीय राजनीति के एक "गहरे मनोविज्ञान" (The
Depth Psychology)
को समझने की कोशिश करते हैं। यानि वर्तमान भारतीय राजनीति का आधुनिक
विश्लेषण करते हैं, या दूसरे शब्दों में कहें तो वर्तमान
भारतीय राजनीतिक परिदृश्य और उसकी क्रियाविधि (Mechanism) को
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करते हैं। तय है कि किसी भी क्रियाविधि का
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने में उसका आधार तार्किक होना चाहिए, उसे तथ्यात्मक होना चाहिए और उस विषय पर कुछ आधुनिक वैज्ञानिकों की भी
मंतव्य की प्रस्तुति होनी चाहिए। स्पष्ट है कि उपरोक्त तथ्यों और प्रक्रियाओं के
अभाव में यह विश्लेषण छिछला, छिछोरा और "बनने
दिखाने" का एक भद्दा प्रयास होगा। तो हमलोग आगे बढ़ते हैं।
आप यह स्पष्ट रहें कि मैं एक गैर राजनीतिक व्यक्ति हूं, परन्तु अकादमिक
पृष्ठभूमि के कारण अकादमिक ही रहना चाहता हूं। इसीलिए यहां किसी भी राजनीतिक
विचारधारा, राजनीतिक दल और किसी राजनीतिक व्यक्ति या संगठन
का नाम भी शामिल नहीं करुंगा। लेकिन
गैर राजनीतिक होने मात्र से ही मैं अपने समाज,
मानवता, प्रकृति और भविष्य की उपेक्षा ही कर
दूं, यह समुचित भी नहीं होगा। भविष्य को सजगता से
अज्ञानता में रखना अमानवीय भी होगा, गैर सामाजिक भी होगा और
इसके लिए भविष्य भी क्षमा प्रदान नहीं करेगा। तो हमें इस विषय पर, यानि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर एक आधुनिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से
प्रकाश डालना ही चाहिए, ताकि भारतीय लोकतंत्र की गणतांत्रिक
व्यवस्था में वह सशक्तता आ सकें, जिसके बदौलत भारत एक बार
फिर से "आभा" से
"रत" (आभा + रत = भारत) यानि आभा युक्त हो सके।
इसे आज़ हम 'गहरा मनोविज्ञान' (The Depth Psychology) से समझने
की कोशिश करेंगे। वैसे इसे व्यापक रूप से समझने के लिए हमें सिग्मंड फ्रायड के "मनोविश्लेषणात्मक" (Psycho Analytical) अवधारणा और अब्राहम मैसलो की "मानवतावादी मनोविज्ञान" (Humanistic Psychology) की उपेक्षा भी नहीं कर सकते,
लेकिन उन्हें बेहतर ढंग से समझने के लिए यहां फिर से विस्तार से
नहीं जाना चाहूंगा। मैं आज फिर से संयुक्त राज्य अमेरिका की पूर्व संस्थान "The Institute of Propaganda Analysis" के सातों तकनीक
(प्रविधि) का स्थिर और शांतिपूर्ण अवलोकन एवं अध्ययन किए जाने की भी गहरी अनुशंसा
तो सभी राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों - संस्थाओं से अवश्य करना चाहूंगा। इससे कोई भी अपने समाज में हो रहे या बदलते हुए परिदृश्यों को भी 'प्रचार तंत्र' (Media System) के संदर्भ में समझ
सकता है और समझना भी चाहिए।
बात जब "गहरे मनोविज्ञान" (The Depth Psychology) पर जाती है, तो स्पष्ट है कि गहरे मनोविज्ञान की बातें मानव के अचेतन स्तर पर
चली जाती है और स्वत: संचालन एवं नियंत्रण के मोड में चली जाती है। लेकिन यह
बात किसी व्यक्ति के निजी व्यक्तित्व के ही अचेतन तक सीमित नहीं रहती है, बल्कि यह बात उसके "सामूहिक अचेतन" (collective unconscious) यानि
"सामाजिक अचेतन" (Social unconscious) तक चली जाती है। तब तो स्विट्जरलैंड के मनोविज्ञानी कार्ल जुंग (Carl Gustav Jung) के अध्ययन को समझना भी जरूरी हो
जाता है। यह चेतन व्यवहार और अचेतन मन की संरचनात्मक
ढांचा (Structural Framework) एवं परिवेशीय व्यवस्था के
संबंध को अभिप्रेरक (Motivational) अवस्थाओं और बाह्य
उद्दीपन (External Stimuli) की परिवेशीय व्यवस्थाओं के
संदर्भ में समझाना चाहते हैं। यह मानवीय चेतना की
चेतन अवस्था और अचेतन अवस्था के साथ साथ उसके अभिप्रेरणा और उसके मन के प्रतिरूपों
(Pattern of Mind) और उसके गत्यात्मकता (Dynamism) के संबंधों पर आधारित है। यहां व्यवहार में भावना, अभिव्यक्ति
और शारीरिक क्रियाविधि भी शामिल रहेगा। यहां 'सामूहिक अचेतन' यानि 'सामाजिक अचेतन' को ही उस समाज की "संस्कृति" (Culture) कहना उचित होगा। सामूहिक
अचेतन ही सामासिक और समेकित स्वरुप में संस्कृति ही होती है, जो समाज को नियमित, नियंत्रित
और संचालित करती रहती है।
बहुत से राजनीतिक संगठन अपने प्रभाव क्षेत्र के मतदाताओं
में यह देखते हैं कि अधिकांश मतदाता अभिप्रेरणा के पिरामिड में किस स्तर पर है? जैसे भारत में अधिकतर मतदाता अपनी शारीरिक आवश्यकताओं और उनसे संबंधित
सुरक्षाओं से अभिप्रेरित हैं। इसीलिए अधिकतर
राजनीतिक रणनीतिकार की रणनीतियां उनकी शारीरिक आवश्यकताओं और उनसे संबंधित
सुरक्षाओं के इर्द-गिर्द ही घूमती रहती है। इसके लिए अब्राहम मैसलो की आवश्यकताओं का सिद्धान्त यानि अभिप्रेरणा का सिद्धान्त का पिरामिड पर्याप्त सहायता करता है। आप भी
अपने आसपास के परिदृश्य में इन मौलिक अभिप्रेरणाओं को संतुष्ट करने के सरकारी
प्रयासों में मुफ़्त या अनुदान के साथ व्यवस्था देखते हैं।
लेकिन 'गहरा मनोविज्ञान' तो जीवन की और गहराईयों में
उतरता चला जाता है। कार्ल
जुंग मानते हैं
कि सभी जीवन और सभी मन
(चेतना) अन्ततः किसी थीम (विषयगत) के प्रकार में या किसी प्रतिरूप (आंतरिक बुनावट
या बनाबट) में कथानक (Narrative) बनाने में, यानि मिथक बनाने में, या मिथकीय चित्रण में अचेतन स्तर पर लगे रहते हैं। कुछ समझदार राजनीतिक दल ही इस कथानक यानि मिथकीय चित्रण की प्रक्रिया को
समझते है और इसीलिए कुछ ही राजनीतिक दल इसका अवलोकन और विश्लेषण कर पाते हैं। ऐसे
ही समझदार राजनीतिक संगठन इसके अनुकूल अपने राजनीतिक रणनीतियों को क्रियान्वित कर
पाते हैं।
किसी के अचेतन स्तर पर किया गया प्रयास चुपचाप और सदैव
कार्यरत रहता है और सदैव परिणाम देता रहता है। इसी मिथकीय चित्रण में सामान्य
वर्ग अपने सामान्य बुद्धि-विवेक के अनुसार ही मन की विभिन्न तरंगों में
उतरते-डूबते -तैरते रहते हैं। मिथकीय चित्रण, यानि
कथानक, यानि मिथक मात्र पौराणिक कथाएं नहीं होती है, बल्कि किसी भी चीज या घटना या प्रक्रिया की पुरातनता के नाम पर काल्पनिक
व्याख्याएं है। कोई चीज
यदि पुरातन है, तो वह विरासत भी
मानी जाएगी और सनातन भी मानी जाएगी । ऐसी अवस्था मे हर पुरातन हमारे लिए गौरवमयी
भी हो जाती है और इसलिए अनुकरणीय भी हो जाती है। इसमें मानव के आश्चर्यजनक एवं
अलौकिक घटनाओं के नाम पर चित्रात्मक, कल्पनात्मक, विषयगत, प्रायोजित, प्रारुपित
कहानी का विवरण ही होता है। चूंकि व्याख्याएं
पुरातन मानी जाती है या होती है, तो निश्चिंतया ऐसी व्याख्या
अवैज्ञानिक भी होगी, अतार्किक भी होगी, गैर तथ्यात्मक भी होगी, अविवेकी भी होगी, और इसीलिए यह अलोकतांत्रिक भी होगी, अमानवीय भी होगी
एवं ग़लत भी होगी।
तो हमारे मन में यह कौंधता है कि मिथक की क्या उपयोगिता है और इसकी क्यों आवश्यकता होती है? मिथक साधारण रूप में एक कथानक (Narrative) ही है, जो
ऐतिहासिकता और तथ्यात्मकता के आड़ में जन सामान्य को अपनी बातों को मनवाने और सहमत
कराने के लिए गढ़ा जाता है। एक मिथक यानि एक
कथानक के द्वारा ही कोई किसी भी गूढ़ बात को सामान्य जन के बौद्धिक स्तर तक उतर कर
उसे समझा सकता है। एक मिथक यानि एक कथानक के द्वारा ऐतिहासिक तथ्यों को अपने पक्ष
में तोड़ मरोड़ या उसे दिग्भ्रमित कर सकते हैं। एक मिथक यानि एक कथानक के माध्यम से ही इतिहास को बदला जाता
है, जो अन्ततः संस्कृति को ही
बदल डालता है। इसीलिए लेखक जार्ज आरवेल कहते
हैं कि जो इतिहास (और इतिहास के नाम पर मिथक यानि कथानक) पर नियंत्रण रखता है, वह वर्तमान और भविष्य को भी नियंत्रित करता है।
इन्हीं मिथकों यानि कथानकों के माध्यम से ही लोगों के
इस वर्तमान जीवन को तुच्छ और नगण्य बताया जाता है और 'इस जीवन के बाद के
जीवन' यानि 'पुनर्जन्म' (जो जीवों में होता ही नहीं है) को महत्वपूर्ण बताया जाता है। इसीलिए आप एक
राजनीतिक दल के रूप में अपने मतदाताओं को संतुष्टि के स्तर तक भविष्य के जन्म के
या काल्पनिक स्वर्ग नर्क के बहाने बेहतरीन काल्पनिक जीवन की व्यवस्थाओं को उपलब्ध
कराने का आश्वासन दे सकते हैं। कोई राजनीतिक दल वर्तमान को सुधारने का प्रयास
दिखाना चाहता है, तो कोई इस जन्म के पार की जीवन की
व्यवस्थाओं का आश्वासन देता है।
कोई "व्यक्तिगत चेतन और अचेतन" को संतुष्ट
करना चाहता है और कोई इसके अतिरिक्त "सामूहिक अचेतन" को संतुष्ट करना चाहता है। इस तरह कुछ राजनीतिक दल सत्ता में बैठे व्यक्ति को बदलने की, यानि सत्ता बदलने की राजनीतिक दृष्टि रखता
है, तो कोई व्यवस्था यानि संस्कृति को ही बदलने का सुनियोजित
और सुनिश्चित मजबूत दृष्टि रखता है। कुछ राजनीतिक दल संस्थागत हो कर प्रयास करते हैं और अधिकतर
व्यक्तिवाद तक ही सीमित रह जाता है। स्पष्ट शब्दों में कहा जाए तो कुछ राजनीतिक दल सदियों की राजनीति की रणनीति पर काम करते
हैं और अधिकतर कुछ वर्ष या वर्षों की राजनीति की ही दृष्टि रखते हैं। अपने आसपास नजर घुमाने से आपको बहुत कुछ स्वत: स्पष्ट हो जाएगा। इसीलिए
मैंने पूर्व में अपने एक ब्लाग के आलेख में लिखा है कि 'कथानक ही शासन करता है'।
आचार्य निरंजन
सिन्हा
स्वैच्छिक सेवानिवृत्त
राज्य कर संयुक्त आयुक्त, बिहार, पटना।
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