बात उन दिनों (वर्ष 2005) की है, जब मेरी
पदस्थापना कोषागार पदाधिकारी के रूप में प्रसिद्ध साहित्यकार फणीश्वर नाथ रेणु के शहर फारबिसगंज
में हुई थी| फारबिसगंज भारत नेपाल सीमा पर सीमांचल के अररिया जिला का एक
व्यावसायिक नगर है| रेणु जी का गाँव ‘औराही
हिंगना’ इसी प्रखंड में है| योगदान देने के अगले रविवार को ही मैं
औराही हिंगना में था| उनके घर पर काफी समय दिया, उस समय उनके बड़े और मंझले लड़के गाँव
पर ही रहते थे| शाम में मैं वापस अपने आवास पर आया और उसी रात मैंने ‘रेणु’ जी के
प्रेरणा से अपने जीवन का पहला आलेख “मैं क्या लिखूँ” लिखा| और इस तरह मेरे लिखने
की शुरुआत हुई|
उन दिनों फारबिसगंज में मोबाइल सेवा बंद रहता
था| मेरी पत्नी बच्चे के साथ पटना में रहती थी| एक रात मेरी नींद टूट गई| मैंने एक
कार्ड बोर्ड पर पत्नी के नाम एक पत्र लिखा| इस पत्र को मेरे कम्पूटर आपरेटर
मृत्युंजय ने लिख कर प्रिंट निकाल दिया| उसी समय एक सांस्कृतिक साहित्यिक पत्रिका –
“परती पलार” के सम्पादक मेरे पास आए हुए
थे, जिन्होंने इसे देखा| और इसकी एक प्रति ले ली और इसे अपनी पत्रिका में प्रकाशित
भी कर दिया| ‘परती पलार’ का नाम रेणु जी की ऐतिहासिक कृति ‘परती परिकथा’ से लिया गया था| मेरे इस प्रकाशित
पत्र की काफी प्रशंसा हुई|
पुन: आपके अवलोकनार्थ इस पत्र को प्रस्तुत कर
रहा हूँ| शायद यह सबके लिए पठनीय है|
एक पत्र पत्नी के नाम
मेरी प्यारी रानी, नीलम,
मैं समझता हूँ, मैं
स्वीकारता हूँ कि मैं दुनिया का शायद सबसे सौभाग्यशाली व्यक्ति हूँ, जिसे तुम जैसी
पत्नी मिली है|
तुम प्यारी हो, सुन्दर हो
- मन से, शरीर से, भावनाओं की अभिव्यक्ति में, व्यवहार में|
तुम बेहतरीन सहयोगी हो| तुम दयालु हो, तुम्हारा मानव
के प्रति जो प्रेम है, उस सन्दर्भ में भी महान हो| तुम उदार हो, समझदार हो,
तार्किक हो| और मैं ऐसा सौभाग्यशाली हूँ कि तुम मेरी पत्नी हो|
मैं तुम्हारी वित्तीय समझदारी एवं प्रबन्धकीय
दुनियादारी का दिवाना हूँ| मैं ही नहीं, समाज के अनेक लोग, जो इस क्षेत्र के हस्ती
हैं और तुम्हे जानते हैं; का भी ऐसा ही मानना है|
तुम मेरे लिए मुस्कुराती हो| तुम्हारा मुस्कुराना,
तुम्हारी हँसी, तुम्हारा खुशनुमा चेहरा मुझे बहुत अच्छा लगता है; चाहे उसकी कीमत
कुछ भी हो, चाहे समाज के स्थापित नियमावली से ही विचलित क्यों न होना पड़े| तुम
जानती हो कि तुम्हारे मुस्कुराते रहने से मेरे भाग्य का विस्तार होता है| तुम्हारी
मुस्कराहट से ही तो मुझे सुख, शांति और संतुष्टि मिलती है| तुम्हारी मुस्कुराहट के
लिए मैं तुम्हे वह सब कुछ उपलब्ध कराने के लिए सदैव तत्पर हूँ, जो तुम्हारी
मुस्कराहट के लिए जरुरी है| समय के अनुकूल चलना एवं दूर- दृष्टि रखना बेहतरीन नियम
है| अर्धांगिनी की मुस्कराहट के बिना शायद ही किसी का सर्वोत्तम विकास होता है|
मैं यह सोचकर ही बहुत खुश रहता हूँ कि तुम समझती
हो, स्वीकार करती हो कि तुम्हारी मुस्कुराहट से ही हमें सुख, शांति, संतुष्टि
मिलती है और इसे दिलाने के लिए तुम तत्पर रहती हो| ऐसी भावनाएं दुनिया में अनेक
पत्नियाँ अपने पति के लिए रखती हैं, परन्तु व्यवहारिक परिणाम विपरीत होते हैं| चूँकि
उनमे तार्किकता नहीं होती, इस स्तर का विचार नहीं होता, इस स्तर का व्यवहार नहीं
होता, व्यवहार में लचीलापन नहीं होता, इसीलिए उनमे इच्छा के बावजूद स्थितियाँ विपरीत
और भयावह होती है| इस सन्दर्भ में भी मैं धन्य हूँ कि तुम जैसी विचारवान,
तार्किकता से परिपूर्ण, दयालुता के सागर सम, सहनशील, उदार, शिष्ट पत्नी मिली|
तुमने बड़ी सहजता के साथ अपने को बेहतरीन बनाया है,
परन्तु तुम्हारी मौलिकता के लिए मैं तुम्हारे (स्व०) पिता के साथ ही, तुम्हारी
माता का और अपने (सम्पूर्ण) परिवार का भी आजन्म आभारी हूँ, कि तुम्हें ढालने में
पूरा सहयोग दिया है|
दुनिया में तुम्हारी जैसी ही पत्नी की संख्या
करोडो- अरबों में हो .,,.. यही मेरी कामना है|
पुन: तुमको पाकर मैं धन्य हूँ|
तुम्हारा जीवनसाथी
निरंजन
बहुत ही मर्मस्पर्शी 👌👌👌🙏🙏
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