आज
अमेरिका का पतन होते देखा जा रहा है| अमेरिका द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ‘विश्व व्यवस्था’ (World Order)
में प्रथम स्थान पर आया और अभी तक बरक़रार रहा| इस वक्तव्य से यानि ‘अमेरिका का पतन’
से कई प्रश्न जुड़े हुए हैं| पहला प्रश्न यह है कि यह ‘पतन’ किसके सापेक्ष (Relative)
है, क्योंकि हर चीज सापेक्षिक होती है? अर्थात यह ‘पतन’ किसके ‘उत्थान’ के सापेक्ष
हो रहा है? यह पतन कैसे माना जाय? यदि वास्तव में पतन हो रहा है, तो इसके लिए
जिम्मेवार कारक कौन कौन हैं, यानि इस पतन के ‘अभिकर्ता’ (Agent) कौन हैं?
यदि
इस पतन के तीन मौलिक एवं महत्वपूर्ण कारणों को ही समझा जाय, जो अतिविशिष्ट एवं
अदृश्य है, तो यह सभी कुछ का स्पष्ट तार्किक समाधान भी करता है| इसके साथ ही इस
चरित्र एवं विशिष्टता की मौलिकता को धारण करने वाले हर समाज, संस्कृति एवं देश को
स्पष्ट चेतावनी भी देता है| इस आधार पर कोई भी सामान्य बौद्धिक व्यक्ति किसी भी
समाज, संस्कृति एवं देश की स्थिति एवं भूमिका का निकट भविष्य और दूर भविष्य में सटीकता
से पूर्वानुमान कर सकता हैं| इस आधार पर कोई भी अपनी भावी रणनीति निर्धारित कर
सकता है, क्योंकि वह भविष्य की परिस्थितियों एवं सन्दर्भों को भी बहुत अच्छी तरह
से देख एवं समझ रहा होता है|
यह
पतन ‘चीन’ (People’s Republic of China) के सापेक्ष हो रहा है| चीन की वर्तमान
सैन्य क्षमता किस स्तर की है, अब किसी से छिपी हुई नहीं है| विगत दस वर्षों में
चीन ने जापान को अर्थव्यवस्था के वैश्विक द्वितीयक स्थान से हटाते हुए अमेरिका के
बाद द्वितीयक स्थान पर तेजी से आ गया है और बड़ी स्थिरता एवं तीव्रता से बहुत जल्दी
ही अमेरिका को पछाड़ते हुए वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रथम स्थान बनाता जा रहा है|
सैन्य शक्ति में चीन अकेले अमेरिका को टक्कर देने में पूरी तरह से सक्षम है| चीन को विज्ञान एवं प्रावैधिकी में भी अन्य कई क्षेत्रों के अलावे ‘अन्तरिक्ष’ एवं उर्जा के क्षेत्र में ‘नाभिक संलयन’ (Nuclear Fusion) में तेजी से छलांग लगाते देख विश्व
अचम्भित है| पश्चिम मीडिया के चटपटी ख़बरों से बेअसर स्थिर एवं गंभीर गति से पसरता
हुआ और आगे बढ़ता हुआ चीन को समझना बहुत आवश्यक है|
आज अमेरिका जिन दो प्रमुख देशों के कर्ज (Debt)
में डूबा हुआ है, उसमे प्रथम
स्थान जापान का 1.25 ट्रिलियन डालर के कर्ज के साथ है और दुसरा स्थान 1.20 ट्रिलियन डालर
के कर्ज के साथ चीन का है| इस सूचि में महत्वपूर्ण यही दो ही देश है, अन्य नहीं है| अमेरिका
इन दोनों देशों के कर्ज में कोई ऋण लेकर नहीं डूबा है, यानि इन देशों से कोई उधार
लिया हुआ धन नहीं है| यह ऋण ‘भुगतान संतुलन’ (Balance of Payment) के कारण है, जिसमे ‘व्यापार संतुलन’ (Balance of Trade)
भी शामिल है| ‘व्यापार संतुलन’ में वस्तुओं के निर्यात एवं आयात के लिए होने वाले भुगतान के संतुलन से सम्बन्धित है, जबकि ‘भुगतान संतुलन’ में ‘व्यापार संतुलन’ के अलावे अन्य
सेवाओं के भी भुगतान शामिल हो जाते है| चीन की अमेरिका पर यह कर्ज राशि भारत के
सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की राशि 2.61 ट्रिलियन डालर के लगभग 40 % होता है| ध्यान
रहें, चीन की सकल घरेलू उत्पाद की राशि कोई 14.72 ट्रिलियन डालर है| वैसे चीन के
द्वारा विश्व के कई देशों को जो कर्ज की राशि दी गई है, वह 7.10 ट्रिलियन डालर है,
जो भारत की सम्पूर्ण घरेलू उत्पाद से दो गुना से बहुत ज्यादा है| इस तरह चीन ने
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में ‘डालर’ के स्थान पर अपनी मुद्रा “आर एम बी” (RenMinBi, लोकप्रिय नाम युआन) को स्थान दिलाता
जा रहा है| उपरोक्त झलक से कोई भी चीन के उत्थान को
समझ सकता है|
अब
हमें यह देखना और समझना है कि अमेरिका जैसे विकसित और सावधान, सतर्क एवं सजग
राष्ट्र का भी पतन इतना जल्दी कैसे हो रहा है? मैं उन देशों के पतन का उदाहरण नहीं
दे रहा हूँ, जिनका अभी उदय ही नहीं हुआ है| वैसे तेजी से उदय होने का दावा कई देश
कर सकते हैं, या करते हैं, परन्तु उपरोक्त आंकड़ों एवं निम्न विश्लेषण उन सभी हवाई
दावेदारों के लिए भी है, जो कुछ समझना और सीखना चाहते हैं| आज यदि कोई देश अपनी
तुलना अपनी भौगोलिक क्षेत्रफल का दसवां भाग (10% of Area) वाले देश से या कोई देश अपनी कुल आबादी के बीसवां भाग (5% of
Population) वाले आबादी के देश (फ़्रांस, ब्रिटेन, इटली) से करे, और
इस आधार पर कोई इसकी विकास गति से संतुष्ट हो जाय; तो धन्य हैं ऐसे विद्वान्|
अब
उन तीन कारणों पर फोकस करते हैं -----
प्रथम, अमेरिका में निवासित वे बाहरी समुदाय (कुल आबादी का 13.7%) जो अपनी ‘तथाकथित योग्यता एवं कौशल’ के आधार पर वहां स्थायी या अस्थायी रूप में रह रहे हैं| इन अधिकतर लोगों में तथाकथित योग्यता एवं कुशलता तो थी या है और इसी आधार पर उन्हें प्रमुख एवं महत्वपूर्ण पद भी दिए गए, परन्तु वे अपनी “सांस्कृतिक जड़त्व” (Cultural Inertia) से गहरे रूप में बंधे हुए थे यानि गतिहीन थे और आज भी हैं| इस ‘सांस्कृतिक जड़त्व’ में ‘ईश्वरीय शक्ति’, ‘आत्मा’, ‘पुनर्जन्म’, ‘अंधविश्वास’ आदि कारक प्रमुख हैं| इसे आप अपनी “सामन्ती धार्मिक आस्था” में पके हुए लोग भी कह सकते हैं| ऐसे लोग अपनी अल्प आबादी के होते हुए भी और अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद भी अपने वैज्ञानिक एवं प्रावैधिकी के क्षेत्र में कोई ‘पैरेड़ाईम शिफ्ट’ (Paradigm Shift) नहीं कर पाते| लेकिन अपने वातावरण में “सांस्कृतिक जड़त्व का नकारात्मक विषाणु” (Virus) का तेजी से संक्रमण फैलाते हैं|इसमें वैसे देशों के लोग ही शामिल माने जाने चाहिए, जिनके मूल देशों में अभी भी अमानवीय एवं अवैज्ञानिक यथास्थितिवादी सांस्कृतिक जडत्व बना हुआ है।
उपरोक्त
को आप महान वैज्ञानिक न्यूटन के उदहारण
से समझ सकते हैं| एक महान वैज्ञानिक होते हुए भी न्यूटन को एक धर्म परायण ईसाई
होने के कारण ‘ईश्वरीय शक्ति एवं सता’ में अटूट विश्वास था| उनका दृढ विश्वास था
कि इस ब्रह्माण्ड की रचना ईश्वर ने की है, और वही समस्त ग्रहों का सञ्चालन एवं
नियमन करता है| वे ब्रह्माण्ड के जिन पिंडों के संचालन एवं नियमन के ज्ञात अनियमितताओं की व्याख्या नहीं कर सके, उसके लिए ‘ईश्वरीय
हस्तक्षेप’ के सिद्धांत का सहारा लिया| इन अनियमितताओ को बाद में नास्तिक वैज्ञानिक लाप्लास ने शुद्ध किया। जब न्यूटन जैसे वैज्ञानिक के लिए ‘सांस्कृतिक
जडत्व’ की अवधारणा महत्वपूर्ण रूप से हावी था, तो सामान्य तथाकथित वैज्ञानिक
मानसिकता वाले ‘प्रबुद्धो’ की दशा क्या होगी? इसी ‘सांस्कृतिक जडत्व’ की अवधारणा की
महत्ता को समझते हुए चीन के माओ त्से तुंग
ने “सांस्कृतिक क्रान्ति की शक्ति” (Power of Cultural Revolution)
को समझा| इसने 1966 – 76 की दस वर्ष की अवधि में चीन
की सभी ‘यथास्थितिवादी’, ‘जड़तावादी’, ‘सामन्तवादी’, ‘ढोंगी’, ‘पाखंडी’, ‘अन्धविश्वासी’,
एवं ‘फिजूल कर्मकांडी’ प्रत्येक ‘चिन्ह’, ‘संकेत’, ‘पुस्तक’, ‘संस्थान’ (Institution, not Institute), ‘विचार’ आदि को नष्ट कर दिया| इसी “सांस्कृतिक क्रान्ति की
शक्ति” का चमत्कारिक परिणाम है, आज का उभरता चीन|
दूसरा,
अमेरिका के पतन का दूसरा प्रमुख कारण इसका “दोहरा
चरित्र” (Dual Character) है| इसे चरित्र का ‘दोहरापन’ कहते हैं, और
भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में “दोगलापन” कहते हैं| इसे ही आधुनिक भाषा में “न्यायिक चरित्र का अभाव” (Lack of Judicial Character) भी
कहते हैं| जब यह किसी भी व्यक्ति, या राजनेता, या देश के प्रमुख के द्वारा दिए
गए “वचन” का उसी व्यक्ति, या उसी राजनेता, या उसी देश के प्रमुख के लिए कोई मतलब
नहीं रहता है, और जब इसमें निरन्तरता (Continuity) हो जाती है, तो यह उसका “चरित्र”
बन जाता है| यह जल्दी ही स्थिरता ले लेता है, और अन्य इसी के अनुरूप अपने निर्णय
लेने लगते है| जब तक इन्हें कोई ‘विकल्प’ नहीं दिखता
है, तबतक अमेरिका जैसे देश सही साबित होते हैं, परन्तु विकल्प मिलते ही इन पर भरोसा छोड़ दिया जाता
है| वैश्विक परिदृश्य में आधुनिक (यानि वर्तमान) इतिहास में कई उदाहरण
देखने को मिलेंगे, जब अमेरिका ने अपनी ‘स्पष्ट वचनबद्धता” नहीं निभाई है, और इस ‘विश्वास’
पर बने रहने वाले ने बड़ी धोखा खाई है|
तीसरा,
आज वैश्विक जगत में चीन ने अमेरिका का एक स्पष्ट एवं दृढ विकल्प की उपलब्धता सुनिश्चित
करायी है| इसी तरह अन्य समाजवादी देशों का भी इतिहास रहा है| परिणाम अमेरिका का दरकता
हुआ ‘साख’ (Credit) है| और इसके साथ ही अमेरिका सभी
क्षत्रों में पतनशील होता जा रहा है|
उपरोक्त तीनों कारकों के संयुक्त प्रभाव के आधार पर कोई भी किसी व्यक्ति,
समाज, राजनेता या देश का भविष्य समझ सकता है, और आप भी समझ सकते हैं|
निरंजन सिन्हा
www.niranjansinha.com
बहुत उम्दा, सारगर्भित, तथ्यात्मक, वैज्ञानिक इनपुट एवं data के साथ निरपेक्ष एवं धारा के विपरीत जबर्दस्त सटीक एनालिसिस किये हैं सर।
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