हमारे समाज में कई तरह के क्रन्तिकारी और शूरवीर मिल जायेंगे| मैं
इन्हें “तथाकथित क्रन्तिकारी शूरवीर” कहता हूँ| ‘तथाकथित’ इसलिए कि ये अपने को तो
क्रन्तिकारी शूरवीर समझते होते हैं, परन्तु इन्हें क्रांतियों एवं इनकी क्रियाविधियों के बारे में ही कुछ पता नहीं होता|
इनका
क्रांतिकारिता वैचारिक तो होती नहीं, शारीरिक ही होती है और इसीलिए सभी को दिख भी जाती है|
कहने का अर्थ यह है कि इनकी तथाकथित क्रांतिकारिता को आँखों से हर कोई देख सकता
है, और इसीलिए यह अपने निर्धारित आकार (Shape) लेने से पहले ही यह नष्ट हो जाता है, या नष्ट कर
दिया जाता है| यह क्रांतिकारिता एक कदम भी नहीं चल पाता| इनकी क्रांतिकारिता स्पष्ट आँखों
से दीखता है, क्योंकि ये चीखते हैं, चिल्लाते हैं,
अपने विरोधियों को गालियां देते हैं| इन तथाकथित क्रन्तिकारी शूरवीरों को सृजनात्मक
कार्यों को छोड़ कर सभी कार्य करने आते हैं, अर्थात सारे नकारात्मक यानि नकारा कार्य करने आता है| ऐसी क्रांतिकारिता अपने स्थान पर ठिठका
हुआ होता है, या किसी दुसरे अन्य क्रांतियों को रोके रहने में सफल रहता है, क्योंकि यह अन्य लोगों को एवं उनके संसाधनों को भावनात्मक आधार पर उलझाएं रखता हैं|
यह आलेख इन तथाकथित क्रान्तिकारी शूरवीरों की पहचान में मदद करेगी|
इसके साथ ही आप इनकी असफलता के वास्तविक कारणों को समझ सकेंगे| इसके साथ ही
“आस्तीन के सांप” की तरह रहने वाले इन “शातिर तथाकथित क्रन्तिकारी शूरवीरों” की
दलाली भी समझ सकेंगे|
ये
तथाकथित क्रान्तिकारी अपने को शूरवीर भी समझते हैं, क्योंकि हमेशा मर –मिटने की ही
बात करते हैं| ये अपने को भावी शहीद की श्रेणी में कहलाना पसंद करते हैं| लोग मर
कर समाज और मानवता को क्या देते हैं, मैं आज तक नहीं समझ पाया| यह भावनात्मक दोहन का एक अचूक हथियार
भले ही हो, परन्तु ‘मर जाने का लक्ष्य’ कोई काम का नहीं| मरना तो सभी को है, पर
लक्ष्य कुछ करने का होता है, मरने का नहीं|
ये दुनिया की सफल क्रांतियों के बारे में बताएंगे, पर ध्यान रहे कि ये तथाकथित क्रान्तिकारी हमेशा सिर्फ राजनीतिक क्रान्तियों की ही बात करेंगे| ये कभी आर्थिक क्रान्ति, या वैचारिक क्रान्ति, या वैज्ञानिक क्रान्ति, या सांस्कृतिक क्रान्ति, या शैक्षणिक क्रान्ति की बात नहीं करेंगे| इन क्रांतियों के बारे में तो इनकी कोई सोच या विचार की ही पहुँच नहीं होती है| ये जिन वैश्विक राजनीतिक क्रांतियों की बात करते हैं, उन नेतृत्वों के अध्ययन के बराबर इनका अध्ययन भी नहीं होता| ये समझते हैं कि चीखने, चिल्लाने और गाली देने से ही बदलाव हो जाता है|या यह सब जानते हुए भी लोगों के भावनात्मक दोहन तक ही अपने को सीमित रहते हैं।
ऐसे लोग कभी कभी ही राजनीतिक रूप में सफल भी होते हैं, और यदि कभी सफल
हो भी गए हों, तो तुरंत असफल भी हो जाते हैं| ये समुद्री लहरों की तरह ऊपर उठते
है, और उसी तरह ध्वस्त भी हो जाते हैं| इनकी राजनीतिक सफलता भी सत्ताधारियों के
प्रति जनाक्रोश के कारण मिलती है| अर्थात सत्ता की असफलता
ही इन विरोधियों को सत्ता का मौका देता है, जिनमे इन विरोधियों के योगदान का महत्व
देना और नहीं देना, दोनों बात बराबर है| अर्थात इन तथाकथित क्रन्तिकारी शूरवीरों
की सफलता में इन तथाकथित क्रन्तिकारी शूरवीरों का कोई योगदान नहीं होता है|
इनके कुछ स्पष्ट लक्षण यानि विशेषता को मैं रेखांकित करना चाहूँगा|
सामान्यत:
इनकी उम्र पैंतीस या तीस से अधिक ही होगी| मतलब ये अपने विचारों, व्यवहारों और
आदर्शों के प्रतिरूप में “पके” (Ripen, matured) हुए होंगे|
इसी कारण इनकी समस्या यह हो जाती है, कि इनको लगता
है कि वे सब कुछ जानते हैं और इन्हें अब कुछ नया नहीं जानना है| परिणाम यह होता है
कि इनकी तार्किकता और विवेकशीलता ठहरी हुई होती है| ये समझने लगते हैं कि सारी कमियां सामान्य
लोगो में ही है, जो इनको समर्थन नहीं देते| इनको कमी उन चीजों में दिखती है, जो इनके
पास नहीं होती, जैसे धन की कमी, समर्थन की कमी, लोगों की समझने की कमी आदि| इनको व्यक्ति एवं समाज के
मनोविज्ञान का कोई समझ नहीं होता| इसी कारण ये अपने विचारो एवं व्यवहारों में लोगो
के मनोविज्ञान के अनुरूप कोई बदलाव नहीं लाते हैं| ये समझते हैं कि लोग इन्हें समझ
नहीं पा रहे हैं, क्योंकि ये सामान्य लोग मुर्ख हैं| लोग मुर्ख हैं, इसीलिए तो आपके जैसे
विद्वानों की इन्हें जरुरत हैं, इन्हें यह समझना चाहिए, जो यह समझ नहीं पाते|वास्तव में समझ में कमी इनकी होती है और कमियां लोगों में खोजते हैं।
ये
‘तथाकथित क्रान्तिकारी शूरवीर’ कोई दूसरा भिन्न विचार सुनना नहीं चाहते| इनमे नए चीजो
को जानने एवं समझने की क्षमता नहीं होती, क्योंकि ये कोई नया अध्ययन करना नहीं
चाहते| ये कोई तर्क भी सुनना नहीं चाहते| ये चाहते हैं कि लोग इन्ही को सिर्फ सही
ही साबित करें, कोई विपरीत तर्क नहीं करें| ये यह समझना भी नहीं चाहते हैं कि
मानवीय मनोविज्ञान का भी इसमें कोई खेल होता है| जैसे कोई इन्हें पशुओं की तरह
हांक लेते हैं, वैसे ही ये चाहते हैं कि ये भी सब को हांक लें|
इन ‘तथाकथित क्रान्तिकारी शूरवीरों’ की एक ख़ासी विशेषता यह होती है कि
ये समाज के स्थापित महान विचारकों के नाम तो जानते हैं, परन्तु उनके विचारों से इन्हें कोई लेना देना नहीं होता है| इन विचारकों का सम्यक अध्ययन कोई तथाकथित क्रन्तिकारी शूरवीर नहीं करता, सिर्फ इनके बारे में जो वे सुन लिए होते हैं, वहीं तक सीमित रहते
हैं| इसी कारण इनके क्रन्तिकारी विचारों का आधार घिसा पिटा वकवास विचार ही होता
है, क्योंकि इनमे अध्ययन की न तो इच्छा होती है, न तो अध्ययन की योग्यता एवं
क्षमता होता है, और न ही इसकी आवश्यकता समझते हैं|
तथाकथित
क्रन्तिकारी शूरवीर उन स्थापित विचारकों के सामाजिक समूह के सामाजिक वर्गों के
आधार पर अपने ज्ञान का सम्बन्ध स्थापित करते हैं, मतलब अपनी विद्वत्ता का आधार उन विचारकों की जातियों की समानता में बनाते हैं | इनके तथाकथित ज्ञान का आधार इनका
यही सामाजिक वर्ग की समानता होता है| इन सम्बन्धों के आधार में ‘जाति’ या ‘जाति समूह’ ही प्रमुख होता है|
ये लोग नए हो रहे शोधों एवं विज्ञान तथा तकनीकों के विकास की पूरी उपेक्षा कर देते
हैं| यदि आप उन स्थापित विचारकों में नए शोधों एवं
विज्ञान- तकनिकी विकास के आलोक में कोई सकारात्मक संशोधन कर देते हैं, तो ये
शूरवीर आपको उन स्थापित विचारकों का विरोधी बता देंगे, मानों उन विचारों के
कार्यान्वयन का ठेका उन्ही को मिला हुआ है, या उनको एकाधिकार प्राप्त है|
इन शूरवीरों को इन विचारकों के सन्दर्भ में समाज में हुए जनान्कीय (Demographic) परिवर्तन
के साथ साथ अन्य कोई परिवर्तन के कारण विचारों एवं रणनीति में बदलाव होना चाहिए, नहीं
दिखता है|
सिर्फ “विरोध और संघर्ष करना”, इनका एकमात्र रणनीति होता है|
चूँकि कोई सृजनात्मक एवं सकारात्मक सोच नही होता है, इसीलिए कोई सृजनात्मक एवं
सकारात्मक रणनीति भी नहीं होता है| वैसे भी विरोध
और संघर्ष करना, एक भावनात्मक अपील देता है, जो भावनात्मक लोगों को आसानी से बहा
ले जाता है| विद्वान् लोग बताते हैं कि वैसे भी मध्यम एवं निम्न वर्ग के लोग भावनाओं से
संचालित होते हैं, तर्क का प्रभाव कम ही होता है| इसे साधारण भाषा में कहा जाता है
कि ये लोग ‘दिल’ से सोचते हैं, दिमाग से नहीं|
हालाँकि मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए, परन्तु यही सत्य भी है| सत्य थोडा कडवा होता है, परन्तु दवा
की तरह लाभदायक भी होता है, यदि आप विचार करेंगे| डाक्टर भीम राव आम्बेडकर ने नारा दिया –
Educate, Agitate, Organise का|
लेकिन इन शूरवीरों ने इसमें अपने सुविधा से संशोधन कर दिया और क्रम बदलने के
साथ ही शब्द भी बदल कर Struggle ले आए, मानों आम्बेडकर को Agitate एवं Struggle शब्द
में अंतर नहीं पता था| यदि दोनों शब्द पूर्णतया समानार्थक हैं, तो ये शूरवीर ही
बाबा साहेब से ज्यादा ज्ञानी बन गए| ध्यान रहे कि यह बात विचारों में समय के साथ संशोधन का नहीं है, अपितु उनके व्यक्त नारा को बिगाड़ना है| यह भी इन “तथाकथित क्रान्तिकारी
शूरवीरों” की आसान पहचान है| चूँकि इन भावनात्मक लहर में भोले भाले लोगों को बहा
ले जाना आसान हो जाता है, इसीलिए इस तकनीक का उपयोग एवं प्रयोग भी बहुत होता है|
मैंने पहले ही यह रेखांकित कर दिया है कि ये तथाकथित क्रन्तिकारी
लोग अध्येता नहीं होते है, इसीलिए इनका कोई वैज्ञानिक दर्शन नहीं होता है| विरोध
और संघर्ष के अलावे इनका कोई सकारात्मक एवं रचनात्मक कार्य योजना नहीं होता है|
ऐसे तथाकथित क्रन्तिकारी शूरवीर को कुछ लोग “दलाल” किस्म के मानते हैं|
इनके
कार्य योजना में सभी वर्गों के सिर्फ युवाओं पर ही ध्यान होता है| क्योंकि ये युवा उत्साही
होते है, आक्रामक होते हैं, तंत्र बदलने को आतुर होते हैं, नवाचारी होते हैं,
प्रयोगात्मक होते हैं, और कुछ कर गुजरने की तमन्ना होती है, इसलिए यह वर्ग इनके
साफ्ट टारगेट में होता है| इन ‘तथाकथित क्रन्तिकारी शूरवीरों’ की कार्य योजना में
प्रमुख होता है कि इन जरुरतमंद समाज में जो लोग बदलाव चाहते हैं, उनसे भावनात्मक
अपील कर “धन” निकाल लिया जाय, और चंदे के रूप में ये आर्थिक संसाधन निकालने में
सफल हो जाते हैं| ऐसे क्षमतावान एवं उर्जावान लोगों की क्षमता एवं ऊर्जा को उलझाए
रखा जाय, ताकि इनके आकाओं का हित लाभ हो सके और उनको कड़ा विरोध से बचाया जा सके|
ऐसे अन्य संसाधन जो उन आकाओं के विरोध में जा सकते हैं, उनको भी भटकाने में सफल
रहते हैं|
ये
तथाकथित क्रन्तिकारी शूरवीर युवा शक्ति यानी इनकी जवानियों को भी बर्बाद करते है|
इन "दलाल तथाकथित क्रन्तिकारी शूरवीरों" की साधारण पहचान है कि आज के लोकतंत्रात्मक
पद्धति के दौर में भी खुला संघर्ष का आमंत्रण करते दीखते है| ये विरोधियों को ऐसे
गालियाँ देते होते हैं, कि यदि आप भी ऐसे अलोक्तान्त्रत्मक शब्दों का प्रयोग करे, तो आप पर तुरंत शारीरिक
दंडात्मक प्रक्रिया के साथ साथ वैधानिक प्रक्रिया भी शुरू कर दी जाएगी, परन्तु उन
दलाल तथाकथित क्रन्तिकारी शूरवीरों को कुछ नहीं होता है| ऐसा क्यों? क्योंकि
दलालों के विरुद्ध उनके मालिक प्रतिक्रिया नहीं देते| एक स्पष्ट दूसरी पहचान यह है
कि इनके पास ‘गलियों’ के सिवा अन्य कोई वैचारिक सृजनात्मक पहल नही होता|
इन
तथाकथित क्रन्तिकारी शूरवीर का ज्ञान सिर्फ सुनी सुनाई होता है, क्योंकि इन्हें
अधिकारिक प्रतिवेदन पढने नहीं आता है, या पढना ही नहीं चाहते|
इनके पास कोई विश्लेष्णात्मक क्षमता भी नहीं होती, इसलिए तर्कसंगत भी नहीं होते|
इन बुद्धिहीन तथाकथित क्रन्तिकारी शूरवीरों को अपनी तथाकथित विद्वता दिखाने के लिए
चतुर यथास्थितिवादी कुछ कुछ चटपटे महत्वहीन मुद्दे देते रहते हैं| इससे इन तथाकथित
क्रन्तिकारी शूरवीरों को जन मानस में अपनी धाक जमाने के लिए यह सब फ़ालतू विषय काफी
महत्वपूर्ण लगता है| इस तरह इन तथाकथित क्रन्तिकारी शूरवीरों को सत्ता का अप्रत्यक्ष लाभ मिल जाता है|
इन तथाकथित क्रन्तिकारी शूरवीरों को न तो समस्यायों की मौलिक पहचान
होती है, न ही इन समस्यायों के जड़ों की समझ होती है| ये ज्ञान के उस पोखर (Pond) में
तैरते रहते हैं, जिनको इन यथास्थितिवादियों ने बड़ी समझदारी से तैयार किये होते
हैं| इसी के आधार पर ये तथाकथित विद्वत्ता दिखाते रहते हैं| इनका तथाकथित मौलिक एवं नवाचारी
ज्ञान का प्राथमिक स्रोत का आधार भी इन यथास्थितिवादियों का ज्ञान तंत्र ही होता
है| इसी के आधार पर इनका तथाकथित नवाचारी विचार एवं शोध होता है| इसी कारण ये तथाकथित
क्रन्तिकारी शूरवीर समाज के मूल मुद्दे से बहुत दूर दूर होते हैं और उसी में उलझे रहते हैं एवं अन्य लोगों को भी उलझाएं रखते हैं|
इनको इन मूल मुद्दों से भटकाने के लिए कई कई “भटकाव वाले मुद्दे” उभारते रहते है|
क्या आपने आज तक कोई क्रान्ति सफल होते देखा या सुना है, जिसके नेता
सिर्फ चिल्लाते ही हो? ये चिल्लाने वाले
बिके हुए होते हैं, जो लोगों का समय, धन, उर्जा, संसाधन और जवानी को मात्र बरबाद करते
हुए होते हैं| इनका उद्देश्य लोगो को ‘यथास्थितिवादियों’ के हित में उन्ही के समय,
धन एवं संसाधन से उलझाए रखना होता है| इनकी चुनावी रणनीति भी चुनाव जीतने की नहीं
होती है, किसी और को जिताने में मदद की होती है, और उसमे वे सफल भी होते हैं| इसीलिए वे चुनाव में जीतते नहीं है, किसी और को जीतने में सहायक बनते हैं। इससे
मिले पारतोषिक कोई समझ नहीं सकता है, क्योंकि यह अदृश्य होता है| ऐसी ही
गतिविधियों को कुछ लोग दलाल भी कहते हैं, जो शायद उपयुक्त शब्द नहीं है|
इन
तथाकथित क्रन्तिकारी शूरवीरों की जय हो| यह सब सभी समझना भी नहीं चाहेंगे, और इन तथाकथित
क्रन्तिकारी शूरवीरों का दौर भी चलता रहेगा| आजकल विद्वता का आधार भी “जाति” और ”धर्म”
हो गया है| आज के तथाकथित क्रन्तिकारी शूरवीरों
की एक ख़ास पहचान यह भी है कि ये तंत्र की खूब आलोचना करेंगे, परन्तु मतदान के समय
अपनी “जाति” एवं “धर्म” के नाम पर ही यानि इन्ही हितों को ध्यान में रख कर निर्णय
लेंगे| इन तथाकथित क्रन्तिकारी शूरवीरों की जब आप टिपण्णी देखेंगे, तो इन तथाकथित
क्रन्तिकारी शूरवीरों की विद्वता और क्रान्तिकारी विचारों से आप भी दंग रह जाएंगे|
ये आपको अपने जाति के और कभी कभी अपने तथाकथित धर्म के नेताओं में विद्वता और
समर्पण दिखाएँगे, जबकि इनके विद्वता का एकमात्र आधार जाति एवं धर्म ही होता है|
सभी समस्यायों का एकमात्र समाधान समुचित ज्ञान है|
समुचित का अर्थ - तार्किक, तथ्यपरक, विवेकपूर्ण, एवं वैज्ञानिक यानि
विज्ञान आधारित हुआ|
समुचित ज्ञान के प्रसार से ही विश्व की सभी समस्यायों का समाधान है|
परन्तु ज्ञान यानि समुचित ज्ञान को छोड़कर सब कुछ किया जाता है,
क्योंकि समस्यायों का समाधान भी एक बहुत ही लाभदायक व्यवसाय बना हुआ है| इसमें वाह
वाही भी खूब मिलती है, यानी तालियाँ भी खूब बजती है|
आइए,
हमलोग भी ताली बजाएं| इन तथाकथित क्रन्तिकारी शूरवीरों की जय|
(मेरे अन्य आलेख आप www.niranjansinha.com पर देख सकते हैं।)
निरंजन सिन्हा
आलेख तार्किक एवं तथ्यात्मक है।
जवाब देंहटाएंसटीक एवं कटु विश्लेषण।
जवाब देंहटाएंआजकल सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक संगठनों की खाल ओढ़कर स्लीपर सेल के रूप में या अन्य अनेक रूपों में छिपे तौर पर सक्रिय ऐसे शूरवीर दलालों की हमारे देश में भरमार है।
जवाब देंहटाएंयदि आप एक एक सम्यक तर्कपूर्ण आलोचनात्मक नजर अपने चारो तरफ डालें, तो आप को मानव जीवन के हर आयाम में यह शूरवीर बड़े ही "फिदायीन मोड" में सक्रिय नजर आ जायेंगे।
लेकिन जैसी आप इनकी कुंडली को परत दर परत अनावृत करना शुरू करेंगे, आप इनके वास्तविक रूप और इरादों को देखकर हतप्रद रह जायेंगे।
सिन्हा जी का उपरोक्त आलेख ऐसे देशद्रोही तत्वों के प्रति भारत देश के सच्चे शुभचिंतकों के लिए एक महत्वपूर्ण सचेतक है।
क्षमा कीजिये मुझे इस लेख का उद्देश्य ही नहीं समझ आया निरंजन जी. क्या संदेश देने का प्रयास किया है आपने? कौन है आपके निशाने पर?
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