बुधवार, 2 फ़रवरी 2022

इतिहास का ‘जडत्विक सान्दर्भिक ढांचा (Inertial Reference Frame of History)

वैसे जडत्व का सान्दर्भिक ढांचा’ महान वैज्ञानिक गैलीलियो का दिया हुआ एक अनूठा अवधारणा है, जो इतिहास को भी सही सन्दर्भ में समझने में सहायता देता है| इतिहास को समझने में मैंने (निरंजन सिन्हा) इसका प्रयोग किया है| यह इतिहास पर इतिहासकार के सापेक्षिता (Relativity) के सिद्धांत के प्रभाव को व्याख्यापित करता हैजडत्व (Inertia) किसी भी वस्तु का वह गुण या स्वभाव है, जो उस वस्तु के गति या स्थायित्व के स्थिति के स्वभाव को उसी यथास्थिति में बनाये रखती है, जब तक कि उसकी गति या स्थायित्व की अवस्था को बदलने के लिए कोई बाहरी अतिरिक्त बल नहीं लगाया जायसान्दर्भिक ढांचा’ (Reference Frame or Structure) किसी भी विचार या दृष्टिकोण का एक पूर्व निश्चित बनावट, संगठन एवं विन्यास का खाका या ढांचा होता है, जो सामान्यत: निश्चित एवं स्थिर होता है, और जो दुसरे विषयों को नियंत्रित एवं प्रभावित करता है| तब किसी भी स्थिति को उसी ढांचे के सन्दर्भ में समझने और उसका विश्लेषण करने का समझ देता है

एक इतिहासकार का वैचारिक जडत्व उसके पृष्ठभूमि के ढांचे में ढला (Mould) हुआ होता है, और वह इतिहासकार अपने विचारों एवं मंतव्यों को उसी ढांचे यानि उसी पृष्ठभूमि में किसी विषय को इतिहास के रूप में उतारता है| किसी इतिहासकार के सान्दर्भिक ढांचे के जडत्व को बदलने या हटाने के लिए काफी बौद्धिक बल की आवश्यकता होती है, क्योंकि जडत्व के नियमानुसार कोई भी अपने जडत्व में आदतन किसी भी तरह का परिवर्तन नहीं चाहता है| इस अपेक्षित बल की मात्रा उस वैचारिक जडत्व की मात्रा के अनुसार होता है| इस अपेक्षित अतिरिक्त बल को बौद्धिक बलकह सकते हैं| यह जडत्व के सम्बन्ध में एक वैश्विक एवं स्थायी नियम है|

इस अवधारणा को गैलीलियो का सापेक्षता” (Galileon Relativity) या गैलीलियो स्थिरता” (Galileon Invariance) भी कहते हैं| इसे एक उदहारण से समझाया गया था| एक समुद्री जहाज पर कोई एक आदमी उसके डेक पर एक गेंद को हवा में उझालता है, तो वह गेंद उसी आदमी के हाथ में गिरता है| इस गेंद का गिरना उस आदमी को एक सीधी रेखा (Straight Line) (सिर्फ गुरुत्व बल के कारण) में दिखेगी, परन्तु यही गिरता गेंद समुद्री किनारे खड़े आदमी को परावलीय रेखा (Parabolic Line) (जहाज की गति एवं गुरुत्व बल के संयुक्त प्रभाव के कारण) में दिखेगी| इस एक ही घटना या प्रक्रिया के सन्दर्भ बिंदु के बदलने मात्र से एक ही घटना या प्रक्रिया अलग अलग दिखती है| लेकिन जहाज के स्थिर रहने पर यह दोनों स्थिति एक समान ही दिखेगी| जहाज पर के आदमी को इन दोनों स्थिति से कोई अंतर नहीं पड़ता है, पर समुद्री किनारे पर खड़े आदमी को जहाज के गति के कारण इन स्थितियों में अंतर स्पष्ट दीखता है| जहाज के गति एवं गुरुत्व बल के कारण उस गेंद पर गति का संयुक्त प्रभाव पड़ता है, और इसकी दिशा परावलीय हो जाती हैऐसा जडत्व के कारण यानि जडत्व के सान्दर्भिक ढांचे के कारण होता है| जहाज पर उपस्थित आदमी इस स्थिति को चाहकर भी समझ नहीं सकता यानि इस प्रभाव से मुक्त नहीं हो सकता| इस के लिए उसे अतिरिक्त समझ के जरुरत होती है| यही अतिरिक्त समझ अतिरिक्त बौद्धिक बल है|

यही स्थिति एक इतिहासकार की होती है| कोई इतिहासकार अपने संस्कारों, सामाजिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमियों, अपने सरोकारों (Intrests) एवं ज्ञान की लम्बी समायोजन अवधि के ढांचें में ढल जाता है और उसी के अनुरूप अपने चेतन (Conscoiusness), अचेतन (Un Conscoiusness) एवं अधिचेतन (Super Conscoiusness) से संचालित, नियंत्रित एवं प्रभावित होता रहता है, जिसका उसे कोई आभास (Perception of Impression) भी नहीं होता, यदि वह अतिरिक्त उर्जा एवं सचेतनता से तैयार नहीं है| चलते जहाज एवं समुद्री किनारे पर खड़े  आदमी की तरह ही दोनों इतिहासकार एक ही घटना को दो भिन्न भिन्न तरीके से देखेंगे और समझेंगे एवं तदनुरूप व्याख्या भी करेंगे|    

गतिमान समुद्री जहाज के आदमी के हाथ में गेंद के आ जाने में एक अतिरिक्त बल (गतिमान जहाज के गति के कारण) लगा, यह वह सजग एवं सतर्क नहीं होगा, तब उसे इस अतिरिक्त बल का आभास भी नहीं होगाऐसी ही स्थिति सामन्ती पृष्ठभूमियों के इतिहासकारों की है, जिन्हें अपने सामन्ती सोच की गति के प्रभाव के कारण यह  महसूस नहीं करता हुआ होता है कि वह किसी अवांछित सोच यानि दृष्टिकोण के जडत्व के प्रभाव ने भी है, यदि वह सतर्क नहीं होता हैऐसी ही स्थिति कई पृष्ठभूमियों यथा धार्मिकता, सामाजिकता, सांस्कृतिकता के प्रभाव में भी एक इतिहासकार की होती है और उसे इस बात का आभास भी नहीं होता है कि वह अपने किसी पृष्ठभूमि के प्रभाव में भी हैइसे ही जडत्व का सान्दर्भिक ढांचाकहते हैं|

इतिहासकारों पर सामन्ती व्यवस्था एवं मानसिकता का प्रभाव इसी जडत्व के सान्दर्भिक ढांचाको व्याख्यापित करता हैसामन्ती व्यवस्था के आगमन से प्राचीन काल का समापन हुआ| सामन्ती व्यवस्था क्या हैयोग्यता पर आधारित (समानता का) व्यवस्था का अन्त कर कुल खानदानयानि जन्म के वंश के आधार पर योग्यता का निर्धारण ही सामन्ती व्यवस्था हैयह व्यवस्था मध्य काल के समापन पर पश्चिमी जगत से तो समाप्त हो गया, परन्तु यह सामन्ती व्यवस्था भारत एवं पश्चिमी एशिया (पुरानी दुनिया) में अपने धार्मिक एवं सांस्कृतिक आवरण में पुरे सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक जीवन में अभी तक व्याप्त है| भले ही पश्चिमी जगत आज आधुनिक युग में आ गया है, भारत एवं पश्चिमी एशिया के अधिकांशतया सामन्ती लोग ही आधुनिक युग में आ सके हैं, शेष आबादी अभी सांस्कृतिक एवं धार्मिक सामन्ती व्यवस्था के अनुयायी बने हुए हैंऐसे सामन्ती पृष्ठभूमि के इतिहासकार अपने जडत्व का सान्दर्भिक ढांचाके प्रभाव को महसूस ही नहीं करते और इसीलिए ऐसे किसी प्रभाव को भी नहीं मानते या मान सकते| इसी का प्रभाव ऐसे इतिहासकारों पर और परिणामस्वरूप उनके इतिहास लेखन यानि उनके द्वारा रचित इतिहास पर स्पष्ट है, आप माने या नहीं माने|

यह एक इतिहासकार के वैचारिक जडत्व की व्याख्या कर इसे स्पष्ट करता है, जिससे उसके द्वारा रचित इतिहास को सही सन्दर्भ में समझना आसान होता है| प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफसर एडवर्ड हैलेट कार भी इसी की ओर स्पष्ट रूप में समझाते हैं| यह एक इतिहासकार की मंशा से थोडा भिन्न है| मंशा किसी की नीयत है, जिसमे किसी ंकाम को जानबूझ करने की अपेक्षा होती है, जबकि यह जडत्व का सान्दर्भिक ढांचाकिसी के नीयत से पूर्णतया भिन्न यानि अलग हैइस जडत्व का सान्दर्भिक ढांचाका प्रभाव किसी इतिहासकार पर या उनकी किसी रचना पर भी हुआ है, इसका आभास भी उन्हें नहीं होता है, पर स्पष्ट छाप छोड़ जाता है| अत: हमें किसी भी इतिहास को पढने एवं समझने में इस अवधारणा को ध्यान में रखना होगा और उसी अनुरूप समझना होगा|

(आप मेरे अन्य niranjan2020.blogspot.com पर देख सकते हैं।)

 *निरंजन सिन्हा*

 

 

6 टिप्‍पणियां:

  1. आलेख ज्ञानवर्धक, विश्लेषण पूर्ण, सारगर्भित और प्रभावी है. आलेख पूर्वाग्रह की पर्यावरणीय मनोविश्लेषण का सटीक उदाहरण है।वातावरण, संस्कार, परिवेश, समय, काल,वर्ग, जाति आदि हमारे पूर्वाग्रह को गढ़ते व पल्लवित करते हैं। इससे मुक्त होना बेहद कठिन है।Vinay Kumar Thakur ACST IB BHAGALPUR

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  2. अच्छा लेख. वैज्ञानिक सिद्धांत के जरिये जड़त्व को बड़ी सरलता से समझाया गया है.

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  3. जैसा कि मैं आपसे उम्मीद रखता हूं, आपका यह पूर्णतः मौलिक चिंतन से उपजा विचार है। किसी वस्तु या घटना को देखना, देख कर समझना या महसूस करना और उसे व्यक्त करना-कुछ भी निरपेक्ष नहीं है। यह कई कारकों पर निर्भर करता है। आपने बहुत ही तार्किक ढंग से इसे विज्ञान से जोड़ा है। विश्वसनीय आलेख है।

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