(Gra ( Gravitational Lensing of History)
इतिहास का "गुरुत्वीय
लेंसिंग (ताल) (Gravitational
Lensing of History)" मेरे (निरंजन सिन्हा) द्वारा दिया गया इतिहास का एक अवधारणा (Concept) है, जो किसी भी इतिहास को
सही अर्थ और उसके वास्तविक सन्दर्भ में समझने में सहायता करता है| अर्थात यह इतिहास को उसी काल के, उसकी परितंत्र में, उसी सन्दर्भ में और उसी स्थिति में समझने देखने का एक उपकरण है| इस उपकरण के बिना अच्छे अच्छे लोग इतिहास के कई
क्षेत्र में कई तरह के भ्रम को बनाए रखते हैं, या बना देते हैं और परिणाम भ्रमात्मक
आ जाता है| यानि कई ऐतिहासिक निर्णयों में सही एवं
वस्तुगत निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाते हैं|
मैं यहाँ आपके समक्ष दो प्रश्न रखना चाहता हूँ| पहला कि भारत में ‘हिन्दू
विश्विद्यालय’, ‘हिन्दू कलेज’, ‘मुस्लिम विश्विद्यालय’, अखबार ‘द हिन्दू’ आदि क्या
धर्मांध एवं सांप्रदायिक स्थापना थी? दूसरा, कि क्या सम्राट अकबर के अपने हरम में
हिन्दू रानियों के रहने के कारण सांप्रदायिक था? जब आप “इतिहास के गुरुत्वीय ताल” का प्रभाव समझते हैं, तब
आप उस काल में जा कर वह सब कुछ समझने देखने लगते हैं| प्रथम
प्रश्न आधुनिक काल का वह समय था, जब स्वतन्त्रता आन्दोलन तेज था, और ब्रिटिश
साम्राज्यवादी अपने सांस्कृतिक वर्चस्व को सर्वश्रेष्ट एवं सर्वोच्च बता रहे थे|
उस समय भारत का ऐतिहासिक काल इतिहासकारों के अनुसार तीन खंडों में यथा हिन्दू काल,
मुस्लिम काल और अंग्रेज काल में विभाजित किया गया था| अत: अपने भारतीय ऐतिहासिक
गौरवपूर्ण सांस्कृतिक विरासत को भारतीय राष्ट्रवादियों के द्वारा इसी के अनुरूप
गौरान्वित किया जाने लगा| अब दुसरे प्रश्न का इस नजरिए से उत्तर देखें| अकबर जिस काल में अपने क्षेत्र का सर्वोच्च शासक था, वह काल
वैश्विक सामन्तवाद का था| हर छोटा सामन्त अपने से बड़े सामन्त में अपनी निष्ठा
दिखाने के क्रम में अपनी बहन बेटियों का वैवाहिक सम्बन्ध अपने बड़े या सर्वोच्च सामन्त
के साथ करते थे| भारत में स्थानीय सामंतों में सभी भारतीय हिन्दू ही थे और इसी
क्रम में हिन्दू बहन बेटियां बड़े सामंतों की रानियाँ बनी| विवाह या यौन संतुष्टि
के लिए कोई सामान्य आक्रमण या अतिक्रमण के उदाहरण प्रचलित नहीं रहे| सामंतों के प्रति इस निष्ठा का सांस्कृतिक स्वरुप दक्षिण
में “देवदासी प्रथा” को भी देखा समझा जा सकता है| यह सब ऐतिहासिक शक्तियों के कारण
रहे, किसी व्यक्ति विशेष के नहीं| अब इसे विस्तार से समझते हैं|
ताल (Lens) एक प्रकाशकीय उपकरण (Optical
Tool) है, जो इस पर आपतित किरणों (Incident
Rays) को अपवर्तित (Refraction) कर
देता है| इस अपवर्तन प्रभाव से प्रकाश किरणें या तो
संकेन्द्रित (Concentrate) हो सकता है या अपकेंद्रित (Diversant)
हो सकता है, यह ताल के बनावट पर निर्भर
करता है| यह उपकरण यानि युक्ति शीशा यानि कांच का (Glass) पारदर्शी माध्यम है और इसका स्वाभाव उसकी प्रकृति पर निर्भर करता है| गुरुत्वाकर्षण बल के कारण यानि इसके प्रभाव में इसी 'ताल' (Lense) जैसा ही प्रभाव आ जाता है। यह गुरुत्वीय ताल - "Gravitational Lensing" (लेंसिंग) भौतिकी की एक अवधारणा (Concept
of Physics) है| इसमें बड़े आकाशीय
पिंडों के समीप उनके विशाल गुरुत्वीय प्रभाव के कारण ब्रह्मांडीय किरणें (प्रकाश
सहित) गुरुत्व बल के प्रभाव में मुड जाती है| इसका
प्रभाव यह होता है कि उस प्रकाश स्रोत का वह भाग भी पृथ्वी से दिखने लगता है, जो सामान्य नियमों के आधार पर पृथ्वी पर नहीं दिखना चाहिए, क्योंकि वह प्रकाश स्रोत बड़े आकाशीय पिंडों के आड़ में यानि उसके पीछे रहते
हैं|
इस अवधारणा के प्रयोग से इतिहास को उस काल, स्थिति, एवं स्थान को देखा और समझा जा सकता है, जिसे
वर्त्तमान में देखना एवं समझना कठिनतर लगता है| इतिहास के लम्बे काल के
प्रभाव में बहुत सी अस्पष्टता आ जाती है, जिसे काल के गुरुत्व बल जैसा ही का प्रभाव मानना चाहिए। ऐसी स्थिति में
सजगता और सतर्कता के अभाव में त्रुटि को उसी श्रेणी में रखा जा सकता है, जैसे भौतिकी में ग्रेविटेशनल लेंसिंग का प्रभाव। इसमें हमें उस समय एवं
स्थान की पारिस्थितिकी (Ecosystem) एवं अन्य
परिस्थितियों को कल्पना में लाना होता है, क्योंकि
अक्सर असावधान इतिहासकार उस काल, स्थिति एवं स्थान को
वर्तमान के ही परिप्रेक्ष्य में देखते एवं समझते है| जैसे
किसी ऐतिहासिक काल, स्थिति एवं स्थान के वर्णन में एक
इतिहासकार इस पर ध्यान नहीं देता है कि उस काल, स्थिति
एवं स्थान में क्या आबादी रही होगी, क्या व्यवस्था रही
होगी? वह अपने अचेतन में वर्तमान आबादी एवं व्यवस्था के
सन्दर्भ में उसे देख पाता है| यह “इतिहास के जड़त्वीय सान्दर्भिक
ढांचा” (Inertial Reference Frame of History) के अवधारणा के अतिरिक्त
अवधारणा है| इस “इतिहास
के गुरुत्वीय लेंसिंग” के पृष्टभूमि में इतिहास
के पूर्व काल में लोगों के प्रवासन (Migration) एवं
आबादी की गहनता (Density) और लोगों की संस्कारों एवं
भाषाओ में समानता एवं असमानता आदि को उसी समय, स्थिति
एवं स्थान के सन्दर्भ में समझने में मदद मिलती है| इसके
आधार पर कई भिन्न सभ्यताओं एवं संस्कृतियों में भिन्न भिन्न कालों में उपलब्ध कई
समानताओं एवं कई असमानताओं को समझने में मदद मिलती है, जैसे
भाषाई, सांस्कृतिक, वैचारिक, पहनावा, कलात्मक, एवं
बोध (Perception) सम्बन्धी समानताएं और असमानताएं|
यह
ध्यान रहे कि वर्तमान मानव यानि आधुनिक मानव यानि
वैज्ञानिक भाषा में होमो सेपिएन्स की उत्पत्ति अफ्रीका के बोत्स्वाना के मैदान में
हुई| इसकी
उत्पत्ति कोई एक लाख पचास हजार वर्ष पूर्व हुई| यह विषय मानवविज्ञानियों (Anthropologist) का है, और इसलिए इस पर कोई बहस मानवविज्ञानियों
से ही करना चाहिए, इतिहासकारों से नहीं| अत: एक लाख पचास हजार वर्ष पूर्व के पहले का कोई इतिहास बताता है, तो वह वर्तमान समय के मानवो का इतिहास या कहानी हो ही नहीं सकता, किसी कपि तुल्य (Ape like) मानवों का हो सकता
है| अत: उत्पत्ति के आधार पर विश्व के किसी अन्य भाग
में मानव की उत्पत्ति या किसी के मूल निवासी होने की कोई कहानी का दावा या तो
मुर्खतापूर्ण है या दुष्टतापूर्ण है| जनसंख्याविदों (Demographers) एवं मानवविज्ञानियों (Anthropologists) का
अनुमान है कि कोई पचास हजार
वर्ष पूर्व मानवों की एक धारा अफ्रीका महाद्वीप से स्थल मार्ग से बाहर निकल कर
एशिया और यूरोप पहुंचा| उस समय विश्व की अनुमानित आबादी कोई दस हजार थी| इसमे बहुसंख्यक अफ्रीका में ही रहे एवं मरे| कुछ हजार ही मध्य एशिया आए, वह भी कई भागों (Regions) में और कई समय कालो (Time
Periods) में| यह प्रवासन मानव इतिहास
में सदैव होता रहा|
इसी तरह, यह स्पष्ट है और यह ऐतिहासिक तथ्य है कि
खेती के बाद ही सभ्यता और संस्कृति का उदय हुआ| खेती आज से
पहले कोई आठ हजार साल पहले शुरू हुई| ऐसी स्थिति में किसी भी
सभ्यता एवं संस्कृतियों की कोई कहानी मात्र एक काल्पनिक मिथक हो सकता है, कोई इतिहास हो ही नहीं सकता, जिसे आठ हजार साल से भी
पुरानी बतायी जाती है| जब आप ‘इतिहास के गुरुत्वीय ताल’ के उपकरण के प्रभाव को समझते हैं, तो उस काल
में जाकर वह सब कुछ समझ देख सकते हैं, जो अभी समझ में नहीं आ रहा है|
जनसंख्याविदों के अनुमान के अनुसार कृषि
के आगमन (8000 B
C, कुछ इसे 6000 BC मानते हैं) के समय
विश्व की आबादी लगभग कोई दस लाख के आसपास रही| उसके
अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप की आबादी का एक आकलन किया जा सकता है| सिन्धु घाटी सभ्यता के समय भारतीय उपमहाद्वीप की आबादी कोई दस लाख
अनुमानित है| ईस्वी सन के शुरुआत के समय विश्व की आबादी
पचीस करोड़ मानी गई| प्राचीन काल के समाप्ति के समय
विश्व की अनुमानित आबादी कोई तीस करोड़ रही और भारतीय उपमहाद्वीप की आबादी कोई पांच
करोड़ के पास होगी| मध्य काल की समाप्ति के समय विश्व की
आबादी कोई सत्तर करोड़ अनुमानित है और भारतीय उपमहाद्वीप की आबादी कोई पन्द्रह करोड़
की होगी| यह सभी अनुमानित है और इसलिए आकलन के आधारों
के अनुसार भिन्न भिन्न है| वर्तमान में विश्व की आबादी
750 करोड़ के लगभग और भारत की आबादी कोई 140 करोड़ के आसपास है| विश्व एवं भारत का यह अनुपात लगभग सदैव स्थिर रहा है| फिर भी ये आकलन उस समय में और उन स्थानों की इतिहास की स्थिति का एक सम्यक
चित्रण करने में सहायक होगा| कहने का तात्पर्य यह है
कि हम अपने वर्तमान के चेतन एवं अचेतन के सन्दर्भ में इतिहास के किसी काल एवं
स्थान को समझने की कोशिश करते है, और उस काल, स्थान एवं स्थिति को देखने समझने का प्रयास नहीं करते हैं| परिणाम दोषपूर्ण रहता है| इतिहास के गुरुत्वीय
लेंसिंग का प्रभाव का संदर्भ यह है कि हमें किसी काल, स्थान
एवं स्थिति को अच्छी तरह समझने के लिए हमें अपने को उसी काल, स्थान, एवं स्थिति में ले जा कर पूरी स्थिति को
सम्यक ढंग से समझने का प्रयास करें|
अब
आप भी समझें कि जब विश्व की आबादी ही पचास लाख (आधा करोड़) के आसपास होगी और उनमे
आपसी सम्बन्ध रहें हो, और आज आठ सौ करोड़ की आबादी में भाषा समानता के आधार पर, सांस्कृतिक समानता के आधार, अन्य पोशाक, व्यवहार आदि के समानता के आधार पर समानता खोज लेना कौन सा आश्चर्य
की बात है| लेकिन इस आधार पर वर्तमान में अपने सुविधा के लिए कुछ समूहों से समानताओं की सूची घोषित करना और दूसरे से विद्वेषपूर्ण असमानताओं को बताना, दुर्भाग्यपूर्ण है। जब ये सभी लोग एक ही जगह
से फैले और इनमे आपसी सम्बन्ध भी रहे, तो निश्चितया
इनमे भाषाओँ, व्यवहारों, पोशाकों, संस्कृतियों आदि की समानता रहेगी ही| ऐसी
ही समानता फिर आधुनिक युग में उभरने लगी| ऐसी समानता
मध्य युग की गतिहीनता के कारण धीमी हो गयी थी और असमानता बढ़ने लगी| ये समानता खोजने वाले विद्वान अपने शोध को ऐसे प्रस्तुत करते हैं, मानो उस समय भी विश्व में कोई चार - पांच सौ करोड़ की आबादी आज की ही तरह
भारत एवं विश्व में फैली हुई रही| लोगो का प्रवासन
ज्यादा उपयुक्त स्थानों के लिए सदैव होता रहा और सामान्यत: संकरण (Hybridisation) भी होता रहा| समानता और असमानता खोजने वालों को
ऐसी परिस्थितियों में बड़ी संख्या में मनोनुकूल उदहारण उपलब्ध रहते है|
मैं
यह सब आर्यों, अनार्यों आदि के संदर्भ में भी कहना
चाहूँगा| ये
इतिहासकार अपने उदाहरणों में प्राकृतिक अनुकूलन (Natural Adaptation), उत्परिवर्तन (Mutation), जीनीय
प्रवाह (Genetic Flow), जीनीय
बहाव (Genetic Drift), प्राकृतिक
चयन (Natural Selection), संकरण (Hybridization) आदि को कोई उपयुक्त स्थान नहीं देते दिखते हैं| ये सभी उपरोक्त कारक लोगों में जीनीय भिन्नता पैदा करने में
महत्वपूर्ण होता है| और ये तथाकथित वैज्ञानिक एवं इतिहासकार इन्हें अपने अध्ययन में शामिल नहीं
करतें हैं| इतिहास के लेखक को इन
स्थितियों को ध्यान में रखकर बढ़ना चाहिए। यही इतिहास का गुरुत्वीय लेंसिंग का
प्रभाव है। इसकी उपेक्षा से परिणाम यह होता है कि लोगों में गलतफहमियाँ पैदा हो
जाता है और फांसीवादी ताकतें इसे खूब हवा देती है| आप यह भी कह सकते हैं कि ये तथाकथित वैज्ञानिक अपने किसी खास एजेंडा के
अंतर्गत ऐसी गलतफहमियाँ जानबूझ कर पैदा करते हैं या पैदा होने देते हैं| इस तरह ये विज्ञान की बातें कम और भ्रम एवं पक्षपात पर ज्यादा ध्यान देते
हैं|
(आप मेरे अन्य आलेख niranjan2020.blogspot.com पर देख सकते हैं।)
आचार्य
प्रवर निरंजन
Bahuth acha..apka sabi lekh humlogo Ka gyan or samajh ko vikshit krta h
जवाब देंहटाएंआप समाज का आईना हैं, इस लेख से बहुत वर्तमान और भविष्य की सही तस्वीर देखा जा सकता है।
जवाब देंहटाएंआपको बहुत बहुत साधुबाद
Very good writing & Analysis Sir!
जवाब देंहटाएंGreat, true scientific approach for historical anylysis
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