शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

इतिहास का गुरुत्वीय ताल (Gravitational Lensing of History)

इतिइ  इतिहास का "गुरुत्वीय लेंसिंग (ताल) (Gravitational Lensing of History)" मेरे (निरंजन सिन्हा) द्वारा दिया गया इतिहास का एक अवधारणा (Concept) हैजो किसी भी इतिहास को सही अर्थ एवं सन्दर्भ में समझने में सहायता करता है| इसके बिना अच्छे अच्छे लोग इतिहास के कई क्षेत्र में कई तरह के भ्रम को बनाए रखते हैंया बना देते हैं और परिणाम भ्रमात्मक आ जाता हैयानि कई ऐतिहासिक निर्णयों में सही निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाते हैं|

ताल (Lens) एक प्रकाशकीय उपकरण (Optical Tool) हैजो इस पर आपतित किरणों (Incident Rays) को अपवर्तित (Refraction) करता है| इस अपवर्तन प्रभाव से प्रकाश किरणें या तो संकेन्द्रित (Concentrate) हो सकता है या अपकेंद्रित (Diversant), यह ताल के बनावट पर निर्भर करता हैयह उपकरण यानि युक्ति शीशा यानि कांच का (Glass) पारदर्शी माध्यम है और इसका स्वाभाव उसकी प्रकृति पर निर्भर करता हैइसमें गुरुत्वाकर्षण के कारण लेंस जैसा प्रभाव आ जाता है। यह गुरुत्वीय ताल - "Gravitational Lensing" (लेंसिंग) भौतिकी की एक अवधारणा (Concept of Physics) हैइसमें बड़े आकाशीय पिंडों के समीप उनके विशाल गुरुत्वीय प्रभाव के कारण ब्रह्मांडीय किरणें (प्रकाश सहित) गुरुत्व बल के प्रभाव में मुड जाती हैइसका प्रभाव यह होता है कि उस प्रकाश स्रोत का वह भाग भी पृथ्वी से दिखने लगता हैजो सामान्य नियमों के आधार पर पृथ्वी पर नहीं दिखना चाहिएक्योंकि वह प्रकाश स्रोत बड़े आकाशीय पिंडों के आड़ में यानि उसके पीछे रहते हैं|

इस अवधारणा के प्रयोग से इतिहास को उस कालस्थितिएवं स्थान को देखा और समझा जा सकता हैजिसे वर्त्तमान में देखना एवं समझना कठिनतर लगता है| इतिहास के लम्बे काल के प्रभाव में  बहुत सी अस्पष्टता आ जाती हैजिसे काल के गुरुत्व का प्रभाव मानना चाहिए। ऐसी स्थिति में सजगता और सतर्कता के अभाव में त्रुटि को उसी श्रेणी में रखा जा सकता हैजैसे भौतिकी में ग्रेविटेशनल लेंसिंग का प्रभाव। इसमें हमें उस समय एवं स्थान की पारिस्थितिकी (Ecosystem) एवं अन्य परिस्थितियों को कल्पना में लाना होता हैक्योंकि अक्सर असावधान इतिहासकार उस कालस्थिति एवं स्थान को वर्तमान के ही परिप्रेक्ष्य में देखते एवं समझते हैजैसे किसी ऐतिहासिक कालस्थिति एवं स्थान के वर्णन में एक इतिहासकार इस पर ध्यान नहीं देता है कि उस कालस्थिति एवं स्थान में क्या आबादी रही होगीक्या व्यवस्था रही होगीवह अपने अचेतन में वर्तमान आबादी एवं व्यवस्था के सन्दर्भ में उसे देख पाता हैयह इतिहास के जड़त्वीय सान्दर्भिक ढांचा” (Inertial Reference Frame  of History) के अवधारणा के अतिरिक्त अवधारणा हैइस इतिहास के गुरुत्वीय लेंसिंग के पृष्टभूमि में इतिहास के पूर्व काल में लोगों के प्रवासन (Migration) एवं आबादी की गहनता (Density) और लोगों की संस्कारों एवं भाषाओ में समानता एवं असमानता आदि को उसी समयस्थिति एवं स्थान के सन्दर्भ में समझने में मदद मिलती हैइसके आधार पर कई भिन्न सभ्यताओं एवं संस्कृतियों में भिन्न भिन्न कालों में उपलब्ध कई समानताओं एवं कई असमानताओं को समझने में मदद मिलती हैजैसे भाषाईसांस्कृतिकवैचारिकपहनावाकलात्मकएवं बोध (Perception) सम्बन्धी समानताएं और असमानताएं|

यह ध्यान रहे कि वर्तमान मानव यानि आधुनिक मानव यानि वैज्ञानिक भाषा में होमो सेपिएन्स की उत्पत्ति अफ्रीका के बोत्स्वाना के मैदान में हुईइसकी उत्पत्ति कोई एक लाख पचास हजार वर्ष पूर्व हुई| यह विषय मानवविज्ञानियों (Anthropologist) का हैऔर इसलिए इस पर कोई बहस मानवविज्ञानियों से ही करना चाहिएइतिहासकारों से नहींअत: एक लाख पचास हजार वर्ष पूर्व के पहले का कोई इतिहास बताता हैतो वह वर्तमान समय के मानवो का इतिहास या कहानी हो ही नहीं सकताकिसी कपि तुल्य (Ape like) मानवों का हो सकता हैअत: उत्पत्ति के आधार पर विश्व के किसी अन्य भाग में मानव की उत्पत्ति या किसी के मूल निवासी होने की कोई कहानी का दावा या तो मुर्खतापूर्ण है या दुष्टतापूर्ण हैजनसंख्याविदों (Demographers) एवं मानवविज्ञानियों (Anthropologists) का अनुमान है कि कोई पचास हजार वर्ष पूर्व मानवों की एक धारा अफ्रीका महाद्वीप से स्थल मार्ग से बाहर निकल कर एशिया और यूरोप पहुंचाउस समय विश्व की अनुमानित आबादी कोई दस हजार थी| इसमे बहुसंख्यक अफ्रीका में ही रहे एवं मरेकुछ हजार ही मध्य एशिया आएवह भी कई भागों (Regions) में और कई समय कालो (Time Periods) में|  

जनसंख्याविदों के अनुमान के अनुसार कृषि के आगमन (8000 B C) के समय विश्व की आबादी लगभग कोई दस लाख के आसपास रहीउसके अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप की आबादी का एक आकलन किया जा सकता हैसिन्धु घाटी सभ्यता के समय भारतीय उपमहाद्वीप की आबादी कोई दस लाख अनुमानित हैईस्वी सन के शुरुआत के समय विश्व की आबादी पचीस करोड़ मानी गईप्राचीन काल के समाप्ति के समय विश्व की अनुमानित आबादी कोई तीस करोड़ रही और भारतीय उपमहाद्वीप की आबादी कोई पांच करोड़ के पास होगीमध्य काल की समाप्ति के समय विश्व की आबादी कोई सत्तर करोड़ अनुमानित है और भारतीय उपमहाद्वीप की आबादी कोई पन्द्रह करोड़ की होगीयह सभी अनुमानित है और इसलिए आकलन के आधारों के अनुसार भिन्न भिन्न हैवर्तमान में विश्व की आबादी 750 करोड़ के लगभग और भारत की आबादी कोई 140 करोड़ के आसपास हैविश्व एवं भारत का यह अनुपात लगभग सदैव स्थिर रहा हैफिर भी ये आकलन उस समय में और उन स्थानों की इतिहास की स्थिति का एक सम्यक चित्रण करने में सहायक होगाकहने का तात्पर्य यह है कि हम अपने वर्तमान के चेतन एवं अचेतन के सन्दर्भ में इतिहास के किसी काल एवं स्थान को समझने की कोशिश करते हैऔर उस कालस्थान एवं स्थिति को देखने समझने का प्रयास नहीं करते हैं| परिणाम दोषपूर्ण रहता हैइतिहास के गुरुत्वीय लेंसिंग का प्रभाव का संदर्भ यह है कि हमें किसी कालस्थान एवं स्थिति को अच्छी तरह समझने के लिए हमें अपने को उसी कालस्थानएवं स्थिति में ले जा कर पूरी स्थिति को सम्यक ढंग से समझने का प्रयास करें|

अब आप भी समझें कि जब विश्व की आबादी ही पचास लाख (आधा करोड़) के आसपास होगी और उनमे आपसी सम्बन्ध रहें होऔर आज आठ सौ करोड़ की आबादी में भाषा समानता के आधार परसांस्कृतिक समानता के आधारअन्य पोशाकव्यवहार आदि के समानता के आधार पर समानता खोज  लेना कौन सा आश्चर्य की बात है| लेकिन इस आधार पर वर्तमान में अपने सुविधा के लिए कुछ समूहों से समानताओं  की सूची घोषित करना और दूसरे से विद्वेषपूर्ण असमानताओं को बतानादुर्भाग्यपूर्ण है। जब ये सभी लोग एक ही जगह से फैले और इनमे आपसी सम्बन्ध भी रहेतो निश्चितया इनमे भाषाओँव्यवहारोंपोशाकोंसंस्कृतियों आदि की समानता रहेगी हीऐसी ही समानता फिर आधुनिक युग में उभरने लगीऐसी समानता मध्य युग की गतिहीनता के कारण धीमी हो गयी थी और असमानता बढ़ने लगीये समानता खोजने वाले विद्वान अपने शोध को ऐसे प्रस्तुत करते हैंमानो उस समय भी विश्व में कोई चार - पांच सौ करोड़ की आबादी आज की ही तरह भारत एवं विश्व में फैली हुई रहीलोगो का प्रवासन ज्यादा उपयुक्त स्थानों के लिए होता रहा और सामान्यत: संकरण (Hybridisation) भी होता रहासमानता और असमानता खोजने वालों को ऐसी परिस्थितियों में बड़ी संख्या में मनोनुकूल उदहारण उपलब्ध रहते है|

मैं यह सब आर्योंअनार्यों आदि के संदर्भ में भी  कहना चाहूँगाये इतिहासकार अपने उदाहरणों में प्राकृतिक अनुकूलन (Natural Adaptation)उत्परिवर्तन (Mutation)जीनीय प्रवाह (Genetic Flow)जीनीय बहाव (Genetic Drift)प्राकृतिक चयन (Natural Selection)संकरण (Hybridization) आदि को कोई उपयुक्त स्थान नहीं देते दिखते हैं| ये सभी उपरोक्त कारक लोगों में जीनीय भिन्नता पैदा करने में महत्वपूर्ण होता हैऔर ये तथाकथित वैज्ञानिक एवं इतिहासकार इन्हें अपने अध्ययन में शामिल नहीं करतें हैं| इतिहास के लेखक को इन स्थितियों को ध्यान में रखकर बढ़ना चाहिए। यही इतिहास का गुरुत्वीय लेंसिंग का प्रभाव है। इसकी उपेक्षा से परिणाम यह होता है कि लोगों में गलतफहमियाँ पैदा हो जाता है और फांसीवादी ताकतें इसे खूब हवा देती हैआप यह भी कह सकते हैं कि ये तथाकथित वैज्ञानिक अपने किसी खास एजेंडा के अंतर्गत ऐसी गलतफहमियाँ जानबूझ कर पैदा करते हैं या पैदा होने देते हैंइस तरह ये विज्ञान की बातें कम और भ्रम एवं पक्षपात पर ज्यादा ध्यान देते हैं|

(आप मेरे अन्य आलेख niranjan2020.blogspot.com पर देख सकते हैं।)

निरंजन सिन्हा

 

 

 

4 टिप्‍पणियां:

  1. Bahuth acha..apka sabi lekh humlogo Ka gyan or samajh ko vikshit krta h

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  2. आप समाज का आईना हैं, इस लेख से बहुत वर्तमान और भविष्य की सही तस्वीर देखा जा सकता है।
    आपको बहुत बहुत साधुबाद

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