(On Relationships of Husband n Wife)
जी हाँ, आप एकदम ठीक पढ़ रहे हैं| मैं आज एक पति और एक पत्नी के
आपसी सम्बन्धों की समस्यायों एवं उनके समाधान पर लिख रहा हूँ| इसलिए आप दोनों ही इसे एकसाथ पढें। पर ये पति और ये पत्नी किसी दुसरे के नहीं हो, बल्कि एक दूजे के ही विधिवत हो| भारत में इस जोडे में पति और उनके ‘धर्म – पत्नी’ के सम्बन्ध के रूप में जाना
जाता है| पता नहीं, ‘धर्म – पति’ शब्द का प्रयोग भारत में
क्यों नहीं किया जाता है? आप इस पर भी विचार कर सकते हैं| और इसीलिए ऐसी ही तथाकथित धार्मिक यानि वैधानिक जोड़ियों पर लिख
रहा हूँ, क्योंकि ऐसे ही जोड़ियों की
संख्या विश्व में बहुत हैं| अपने पति और अपनी पत्नी के बीच ही समस्याएँ इतनी संवेदनशील और महत्वपूर्ण है, कि ‘दुसरे के पति’ और ‘दुसरे की पत्नी’ के बीच के सम्बन्धों पर
लिखना तो चुटकुला हो जाता है|
चलिए, अब इन दोनों के संबध को समझते हैं| एक पति एवं एक पत्नी का 'सम्बन्ध' इन दोनों को ही 'अमरत्व' (Immortality) प्रदान करता है| आप स्त्री और पुरुष के बीच
के सम्बन्ध के महत्व को इसी रूप में महसूस
करें और अनन्त प्रज्ञा (Infinite Intelligence) की चाहत (Intention) को उचित संदर्भ में समझें| यह 'अमरत्व' आपको आपके द्वारा उत्पन्न बच्चे
की परम्परा ही देते है। यह बच्चे और यह अमरत्व आप दोनों के सकारात्मक सृजन
का परिणाम होता है| अनुवांशिकी विज्ञान के शब्दों में, दोनों के समान गुणसूत्रों (Chromosome) का एक नए ढंग से संयोजन, यानि
नए ढंग से पुनर्विन्यास, यानि नए ढंग से
पुनर्गठन ही नव सृजन है| यही प्राकृतिक प्रक्रिया ही उद्विकास (Evolution) का आधार है| इसी कारण हम लोग अपनी
बुद्धिमत्ता के इस स्तर पर है| प्रकृति के द्वारा इस अमरत्व को पाने के लिए प्रकृति ने अनेक उपाय
किये हैं, जिनमे हार्मोनल परिवर्तन, शारीरिक आकर्षण, दैहिक सुख आदि कई कई शब्दों
में रचित अवस्थाएं एवं प्रक्रियाएं शामिल करा दी गयी हैं| यह सब कुछ प्रकृति की
व्यवस्था का हिस्सा है, ताकि सभी अपने जीवन सामान्य अवस्था में भी अपना 'अमरत्व' पा सके और आगे भी उद्विकास
कर सके| एक पति एवं एक पत्नी के
सम्बन्ध की अन्य व्याख्याएं, तो ऐसे ही वर्णन का भाग मात्र है| सम्बन्धों के बाकी के आधार सतही (Superficial) ही है, जिसे समझने में अपना समय, उर्जा, ध्यान, और संसाधन लगाना कतई
समझदारी नहीं है|
अब आप समझ गए होंगे कि यह सम्बन्ध प्रकृति की
नजरों में कितना अनिवार्य और महत्वपूर्ण है? तो हमें प्रकृति की शाश्वत
नियमों का पालन पुरे मनोयोग से करना ही पड़ेगा| आप तो जानते ही है कि प्रकृति की नाराजगी को कोई
भी इंसान ज्यादा समय तक झेल नहीं सकता है| सवाल यह है कि कोई क्या जानबूझ कर अपने परिवार में
अड़चन लाता है?
स्पष्ट है कि नहीं| फिर ऐसा व्यवधान क्यों होता
है? ऐसा इसलिए होता है कि एक
अच्छा इन्सान भी एक दुसरे का शारीरिक एवं मानसिक बनावट (संरचना), पृष्ठभूमि एवं संदर्भ, शारीरिकी प्रक्रिया (Physiological
Functions) एवं सजावट (Arrangement) को नहीं समझ पाता हैं| इनकी प्राकृतिक बनावट की
भिन्नता इनके मनोविज्ञान में भी भिन्नता निर्धारित करती है| इस मानवीय मनोविज्ञान को समझना बहुत
ही महत्वपूर्ण है| इसके अलावा हमें ब्रह्माण्ड की शक्तियों, प्राकृतिक गुणों एवं क्रिया
विधियों को जानना समझना होगा| प्रकृति हमसे क्या जानना चाहती है और क्या उम्मीद करती है?
कुछ मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि एक पति को या एक पत्नी को
समय समय पर
एक दुसरे के “कार्यों में सहयोग” करना चाहिए,
या एक दुसरे को कभी कभी “समय देना” चाहिए,
या एक दुसरे को अक्सर कोई भी “उपहार देना” चाहिए,
या साथ साथ घुमना या खाना पीना चाहिए,
या एक दुसरे की बातों को मानना चाहिए,
या शारीरिक (दैहिक) सम्पर्क में रहना चाहिए|
शारीरिक संपर्क में हाथ मिलाने, गला मिलने, भर अकबारी (आलिंगन) लेने
(Hug) से चरम अवस्था तक कुछ भी
हो सकता है। शारीरिक सम्पर्क से उर्जा के आध्यात्मिक स्वरुप का एक दुसरे में अंतरण
(Transfer) होता है| हमें भौतकीय सम्बन्ध तो दिखते हैं और इसलिए ये समझ में आते हैं, लेकिन ये आध्यात्मिक ऊर्जा
का अन्तरण नहीं दिखता है और इसलिए समझ में भी नहीं आता है। यह अत्यधिक महत्वपूर्ण
होता है। यह आत्म (Self) सफर एक से दूसरे में होता है।
इस आध्यात्मिक उर्जा के अंतरण का प्रभाव आपने गोद में लिए बच्चों
में, या बच्चों के चुम्बन में, या माता के स्तनपान में, या माता या पिता के साथ
सोने में, अनुभव किया होगा| इस अवस्था में आपने बच्चे
में स्थिरता एवं शांति का अनुभव किया होगा| ऐसा लगता है कि उस बच्चे या व्यक्ति ने अपनी सारी
अतिरिक्त ऊर्जा को एक स्वाभाविक एवं प्राकृतिक सिंक (सोखता /Sink) में निष्पादन (Dispose off) कर दिया है और वह उसके
प्राकृतिक संतुलन को प्राप्त कर लिया है। ऐसे ही एक पति - पत्नी या अन्य पारिवारिक
सदस्यों की आवश्यकताएं होती है, जिन्हें हम तथाकथित सामाजिक मूल्यों (Values) एवं प्रतिमानों (Norms)
के नाम पर अटका देते है, यानि लम्बित रख देते हैं| इस आध्यात्मिक उर्जा का सतत प्रवाह होने दीजिए| किसी के आत्म का यानि चेतना
का 'अनन्त प्रज्ञा से जुड़ना ही
तो अध्यात्म है। इससे मानवों में अचेतन स्तर पर मनोवैज्ञानिक बेचैनी कम हो जाती है
या समाप्त हो जाती है, यानि मनोवैज्ञानिक संतुलन प्राप्त कर लेता है, जिसे कोई भी संवेदनशील मानव
थोड़ी स्थिरता से महसूस कर सकता है| ये सब तथाकथित उपाय भी पति पत्नी के बीच होने
चाहिए, परन्तु इन सबों को कोई भी
अंतिम समाधान नहीं मान लेना चाहिए |
तब हमें क्या करना चाहिए? तब हमें इनकी या इनके मनोविज्ञान को समझना चाहिए| इसके साथ हमें प्रकृति यानि
ब्रह्माण्ड की कुछ मौलिक विशेषताओं पर ठहर कर विचार करना चाहिए| पहले इनके मनोविज्ञान पर
आते हैं| हम सब जानते हैं कि इनके कुछ शारीरिक अंग और
इनके गुणसूत्र (Chromosome) अलग अलग (X एवं Y) हैं, जो कुछ अलग अलग हारमोंस
निकालते हैं और अलग अलग शारीरिक प्रतिक्रिया करते हैं| इन सबों का परिणाम यह होता
है,
कि इनकी भावनाओं एवं आवश्यकताओं की अभिव्यक्ति भी भिन्न भिन्न स्वरुप
में होती है| इसका प्रभाव यह होता है कि हम एक ही भावना एवं एक ही
आवश्यकता को अभिव्यक्ति के भिन्न भिन्न स्वरुप हो जाने से एक दुसरे की भावना एवं
आवश्यकता को सही ढंग से, सही मात्रा में, सही समय पर और सही संदर्भ
में समझ नहीं पाते हैं|
एक पति अपने दुःख में "एकान्त" पाकर
अपनी भावनाओं को क्षान्त (शान्त) कर पाता है, तो एक पत्नी अपने दुःख
में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति के रूप में "औरों से साझा" कर अपनी
भावनाओं को क्षान्त (शान्त) कर पाती है| दुर्भाग्य से हम अपनी समझ की कमी से या अपनी आदत
के अनुरूप भी अपनी मनोवैज्ञानिक स्थिति की अभिव्यक्ति के अनुरूप दुसरे के दुःख को
क्षान्त (Tranquilize) करने के लिए उपाय करने लगते है| इसका परिणाम यह होता है
कि हम इनके या इनकी मूल भावनाओं को समझे बिना ही उल्टा अर्थ निकल लेते हैं| अर्थात उनसे समानुभूति (Empathy) तो छोड़िए, सही ढंग से सहानुभूति (Sympathy) भी नहीं जता पाते हैं। तब
विवाद और बढ़ जाता है| इससे दूसरा पक्ष यानि पति अपने को इस अवस्था में पत्नी के व्यवहार
से परेशानी (एकान्तपन में बाधा) महसूस करता है, जबकि पत्नी उनकी दुःख की
भावनाओं को अपनी मनोविज्ञान के अनुसार "साझा कर" उसे कम या समाप्त करना
चाहती है| इसी तरह एक पत्नी अपने दुःख या परेशानी में अपने
मनोविज्ञान के अनुसार अपनी भावनाओं को क्षान्त करने में 'एकान्त' नहीं खोजती, अपितु इसे शब्दों के
असीमित प्रवाह में बहा देना चाहती है। पुरुष मित्र यानि इनके पति इन शब्दों के
प्रति कोई सहानुभूति भी नहीं जता पाता है और इसे उनका "बक बक" करना मान
कर अपने को 'बुद्धिमान' जान उनके शब्दों के गहन विश्लेषण में उतर जाता
है और उसके समुचित उत्तर खोजने और देने लगता है। इनके शब्दों को सिर्फ सुना जाना
और भावनात्मक समर्थन देना ही काफी है, इनका कोई गंभीर अर्थ नही
होता है। इस तरह हम पाते हैं कि एक ही दुःख के समाधान के उपाय
भिन्न भिन्न लिंग के मनोविज्ञान के कारण विपरीत एवं भिन्न भिन्न हो जाता है| यह एक उदहारण मात्र है| क्या दोनों एक दुसरे के
दुश्मन तो नहीं है? इसी भावना से यानि यहीं से इनकी ग़लतफ़हमियां शुरू हो जाती है| हमें इन विपरीत अभिव्यक्ति
की अवस्थाओं यानि इनके मनोविज्ञान पर मनन मंथन करना होगा|
तो क्या यह समझना किसी को भी स्थायी समाधान देगा? नहीं, यह समस्याओं की मात्रा को मात्र कम करेगा और आपसी समझ बढ़ाएगा| इसके साथ ही हमें प्रकृति (Nature) और मानव स्वभाव यानि ब्रह्माण्ड की प्रकृति को भी समझना होगा| तब ही स्थायी समाधान मिलेगा| वैसे यह समझ अधिकतर लोगों को प्रौढ़ावस्था में स्वत: आने लगती है, वशर्ते उस अवस्था का इन्तजार कर लिया जाए| ऊष्मा गतिकी (Thermo Dynamics) का सिद्धांत कहता है कि विश्व की या ब्रह्माण्ड की हर वस्तु उर्जा की न्यूनतम अवस्था को पाना चाहती है| उर्जा संरक्षण का एक सिद्धांत यह भी है कि कोई भी आवेशित (Charged) वस्तु दुसरे विपरीत आवेशित वस्तु के साथ मिल कर शून्य की अवस्था को पाकर स्थिर रह सकता है। इसलिए ब्रह्माण्ड की हर वस्तु या कणिका (Particle) का स्वरुप गोलाकार (Spherical) होता है या गोलाकार अवस्था को पाना चाहता है| यह गोलाकार अवस्था भी तो उर्जा का न्यूनीकरण ही तो है| एक गोलाकार अवस्था ही तो “शून्य” अवस्था है| यहां ध्यान देने की जरूरत है कि एक “शून्य” (Zero) “कुछ नहीं” (Nothing) की अवस्था से सर्वथा भिन्न होता है| शून्य की अवस्था एक घनात्मक स्थिति और ऋणात्मक स्थिति का संयोग या संयोजन यानि योग (Addition) की अवस्था है|
एक पति और एक पत्नी की
संयुक्त अवस्था भी तो “एक शून्य” की अवस्था ही तो है| दोनों ही दो विपरीत ध्रुवी आवेश हैं, अन्यथा इनके मिलने की
प्राकृतिक अवस्था आ ही नहीं सकती थी| प्रकृति ने इन दोनों को विपरीत आवेश से आवेशित
किया है,
जो उर्जा के न्यूनीकरण के लिए सदैव मिलने के लिए उद्यत रहते हैं| प्रकृति ने इसी में
"अमरत्व" एवं "उद्विकास" को भी स्थापित कर दिया है| यही प्राकृतिक अवस्था है, या यों कहें कि यही प्राकृतिक
व्यवस्था या प्राकृतिक आदेश है| इसे समझना है, इसे स्वीकारना है, और यही संयुक्त समझ इसका स्थायी समाधान है| इसलिए अंग्रेजी में दोनों
को Man ही कहा जाता है, एक साधारण (normal) Man, और दूसरा, Womb (गर्भाशय) वाला Man (Womb + Man = Woman) होता है|
अब आप हम यह समझें कि हम अपने आवेशों को, अपनी भावनाओं को, अपनी अभिव्यक्तियों को कहाँ क्षान्त (Tranquilize/ Neutralize) करेंगे? प्रकृति ने जो 'बडे शून्य' की व्यवस्था किया है, वही तो इन उर्जाओं का हौज/ सोखता (Sink) है, जहाँ समय समय पर अत्यधिक उर्जा का निपटान (Disposal) किया जा सकता है, या किया जाता है| जब यही प्राकृतिक व्यवस्था है, तो इसे प्राकृतिक रूप से सहजता से होने दें| इन दोनों के आवेशित शक्ति यानि उर्जा को क्षान्त (Tranquilize) होने दें| किसी भी स्थिति को सीमाओं के अतिक्रमण के पहले ही यानि सीमाओं के भीतर ही अत्यधिक जमा हो गए उर्जा का समुचित निपटान करते रहिए और सदैव आनन्दित रहिए।
हम आप जानते हैं कि समय के साथ स्थितिज उर्जा, गति के कारण गतिज उर्जा एवं
उर्जा के अन्य स्वरुप तथा आध्यात्मिक ऊर्जा (मानव में विशिष्ट) हर जीव में एकत्रित
होते रहते है,
जिससे वह जीवित भी रहता है
और संचालित भी होता रहता है| इसके अत्यधिक उर्जा के एकत्रीकरण का निपटान शांतिपूर्वक एवं स्थितरता
से होना ही प्राकृतिक मांग है| तब समझदारी इसमें हैं कि इस अत्यधिक उर्जा के निपटन में अक्सर जो
ज्यादा समझदार है, वे शांतिपूर्वक एवं धैर्यपूर्वक इसके निपटान में सहयोग करे| इस अत्यधिक उर्जा के निपटान
होते ही फिर से समान्य अवस्था आ ही जाती है| कभी कभी पुरुषों का "एकान्त" रहना और महिलाओं का
"बक बक करना" भी ऊर्जा के प्राकृतिक एवं स्वाभाविक निपटान की प्रक्रिया
है, इसमें सहयोग कीजिए। यह सब
प्रकृति की सामान्य प्रक्रिया है, और यही हमें उचित संदर्भ में समझना है| इसके लिए तनाव में नहीं आइए, आप समझ जाइए कि अत्यधिक
उर्जा के निपटान का समय आ गया है और आपको निपटान में अपनी समझदारी का परिचय देना
है|
यदि आप इस निपटान के लिए उपयुक्त अवसर नहीं देंगे, तो यह इस “बड़े शून्य” के बाहर निपटान करेगा| “बड़ा शून्य” का अर्थ आप पति एवं पत्नी
का संयुक्त स्वरुप है| कभी इस बड़े शून्य को समझिए| यह असीम उर्जा का अनन्त भंडार है| "बिग बैंग" महाविस्फोट की शुरुआत भी
एक शून्य से ही हुई, और इसी से उर्जा, पदार्थ, दिक् (Space) और समय पैदा हुआ। कोई भी शून्य से अनन्त ऊर्जा निकाल सकता है, यह भारतीय संस्कृति (नागार्जुन
का शून्यवाद) में भी स्थापित है| यदि आप इस उर्जा के स्वाभाविक निपटान में सहयोग नहीं करेंगे, तब यह इस उर्जा का निकास
पड़ोसियों पर,
सडको पर, बाजारों में या कार्यालयों
में निकलेगा ही|
फिर भी यदि आप इसके निकासी को
बाधित करने में समर्थ हैं, तो यह कुंठित होकर बच्चो पर आक्रमकता या कुंठित होकर
अवसाद (Depression)
के रूप में दिखेगा ही| इसलिए इस उर्जा के निकास के प्राकृतिक तरीके को
अपनाइए, और अपने परिवार में शांति, सुख एवं समृद्धि पाइए| इस अत्यधिक उर्जा के
निकास को अवसर समझिए और मुस्कुराइए, आलिंगनबद्ध होइए और आगे
बढ़कर उनका सहयोग कीजिए| आप भाग्यशाली है कि आप अपने सहयोगी के साथ एक
संयुक्त
उर्जा का अनन्त भंडार है|
आप भी जानते हैं कि किसी भी सफलता की तीन ही अनिवार्य शर्तें हैं- नैतिक
ईमानदारी (Integrity), बुद्धिमता (Intelligence) एवं उर्जा का बाहुल्य| अब हम आप समझ गए कि एक शर्त
तो निश्चित है,
और वह है उर्जा का बाहुल्य| इसका जश्न मनाइए| बुद्धिमता तो शिक्षा और
ज्ञान से ही आएगी| शिक्षा तो सीखना हुआ, जो दूसरों से या अपने अनुभव से सीखा जाता है| ज्ञान तो अंत:करण से आता है
और दोनों एक दुसरे के सहयोगी हैं| इस मामले में भी ये दोनों एक दुसरे के पुरक हैं| अब हम मुख्य शर्त पर आते
हैं, जिसे नैतिक ईमानदारी कहा
जाता है| इस नैतिक ईमानदारी को नैतिक
सम्बन्ध (Morality) से भिन्न जानिए| नैतिक सम्बन्ध भिन्न भिन्न
संस्कृतियों में भिन्न भिन्न रूप में परिभाषित हो सकता है| परन्तु नैतिक ईमानदारी सभी
संस्कृतियों में एक ही होगा| नैतिक सम्बन्ध में "आपसी सम्बन्ध" का दोनों के नजरों में
नैतिक होना जरुरी है, जो उसकी संस्कृति परिभाषित करती है| जबकि नैतिक ईमानदारी में
सम्बन्धों में मात्र पारदर्शिता, खुलापन और स्पष्टवादिता होती है| एक दुसरे पर पूरा विश्वास, जिसमे पारदर्शिता, खुलापन और स्पष्टवादिता का
विश्वास शामिल रहता है, सबसे महत्वपूर्ण हो जाता है| इसमें नैतिक सम्बन्धो के बारे में द्विपक्षीय सहमति रहती है, तीसरे पक्ष की आवश्यकता ही
नहीं होती है|
"प्राकृतिक
व्यवस्थाओं" को समझने की जरूरत है| प्राकृतिक व्यवस्था समझने
वाले स्वार्थी नहीं होते हैं, अर्थात व्यक्तिवादी नहीं होते हैं, बल्कि मानवतावादी
होते हैं| इस पर ध्यान दिया जाय और इसे बड़ी स्थिरता से पढा जाय| एक
मानवतावादी किसी भी मानव के प्रति उदार होगा| कोई भी व्यक्ति (पति या पत्नी) किसी दुसरे को अपना या अपनी व्यक्तिगत सम्पत्ति भी नहीं समझेगा, इसका भी ध्यान रखना है, और इसे तूल देने की जरुरत भी नहीं है| प्राकृतिक व्यवस्था यानि
प्राकृतिक स्वभाव का यानि मानवीय मनोविज्ञान का भी सम्मान कीजिए और आनन्दित
रहिए,
अन्यथा आप आपसी लड़ाई कर अपने प्यारे बच्चों के साथ अमानवीय और क्रूर हरकत कर रहे हैं। इतनी समझदारी की तो उम्मीद
आपके बुद्धिमत्ता से की ही जा सकती है।
फिर भी यदि कभी कोई संकट आता समझ में आए, या कभी कोई समाधान नहीं
सूझें;
तो एक मन्त्र का सहारा लीजिए| अपने प्यारे बच्चों को
याद कीजिए, उनके भविष्य को देखिए, आपको समाधान मिल जाएगा| बस, अत्यधिक उर्जा के निपटान
में सक्रिय या निष्क्रिय ही सही, सहयोग कीजिए| सुखद परिणाम आना ही है| शांतिपूर्वक ही तो बात को सुनना है, आज उनका दिन है, इसे स्वीकार कर लीजिए| आप अपनी भावनाओं को कहीं भी
बाहर निकाल देते हैं, पर दूसरा क्या करें, जो घर की चाहरदीवारी में सीमित रहता है| उसे भी अपनी भावनाओं को, अपनी उर्जाओं का निपटारा
करने में सहायता कर दीजिए| मन ही मन मुस्कुराते हुए उन बातों को सुन लीजिए, मामला शान्त| वे इस निपटान के लिए कहाँ
जाएं? आप ही तो उस निपटान के लिए पूर्ण सक्षम एवं समर्थ हैं, दुसरे में समर्थता कहाँ है? लेकिन क्षान्त होइए, शान्त होइए और इस अवस्था
में अपने स्वयं (Self) का अवलोकन (Observe) कीजिए| अवलोकन कीजिए कि आप इस
अवस्था में कैसा अनुभव कर रहे है| बस, अपने को स्वयं (Self) से अलग कर अपना अवलोकन
मात्र कीजिए| इसे आत्म-अवलोकन कहते हैं| फिर तो आप हमें भी याद
करते रहेंगे|
फिर भी, यदि आप नहीं मानिएगा, तो एक छोटा सा प्रसंग सुन ही
लीजिए| एक कस्बे में एक पति एवं
उसकी धर्म पत्नी रहती थी| उनमे भी हम और आप ही की तरह अक्सर कुछ कहा सुनी हो ही जाती थी| इन्हें लगता था कि दुनिया
के और जोड़ों में सदा सौहार्द बना रहता है, और इन्हीं दोनों में ही कुछ कमी है| एक बार एक 'पहुंचा हुआ' साधु उनके इलाके में आया| इन दोनों ने बड़ी उम्मीद से अपनी समस्या के निश्चित और स्थायी समाधान की आशा में उनके शरण में जा पहुंचे| समस्या को पूरे विस्तार से
बताई गई| और उन दोनों को बड़े ध्यान
एवं गंभीरता से सुनी भी गई| तब साधु ने उन दोनों को बताया कि पति -पत्नी के कलह के कारण ही वह साधू बना। लेकिन आप समझिए| यह सब के साथ होता है और
मेरे पास इसका यदि समुचित समाधान होता, तो मुझे साधु ही नहीं बनना पड़ता, यह कह कर साधु
ध्यानमग्न हो गया|
(मेरे अन्य आलेख niranjan2020.blogspot.com पर भी देख सकते है| सुझाव एवं टिप्पणी ब्लॉग पर
ही दे,
ताकि आगे उसका भी ध्यान रखूं|)
आचार्य निरंजन सिन्हा
भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक
अद्भुत, बेजोड़ एवं सबके लिए अनुकरणीय रचना है, सर। क्या खूब लिखते हैं सर!🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा और व्यवहारिक पक्ष को उद्धृत करता हुआ लेख।
जवाब देंहटाएंऐसे लेख पुस्तकों में नहीं मिलता है। इसके लिए गहन चिंतन, विश्लेषण और Gender Neutral सोच की जरूरत पड़ती है।
इस मुकाम को हासिल करना सचमुच में मुश्किल है, परन्तु कठिन नहीं है।
बहुत बहुत बधाई।
बहुत सुन्दर तार्किक और वैज्ञानिक चेतना से भर पूर लेख जो बहुत सारे लोगों के लिये उपयोगी है
हटाएंबहुत ही उत्कृष्ट आलेख।कुछ भाषा संबंधी मामूली-सी त्रुटियां हैं, जिन्हें दूर किये जाने की आवश्यकता है।
जवाब देंहटाएंपति-पत्नी या स्त्री-पुरुष संबंधों के संदर्भ में नैतिक ईमानदारी (Integrity) तथा नैतिक संबंध(Morality) के अर्थ को बहुत ही अच्छी तरह से समझा दिया गया है।
आपके आलेख के संदर्भ में यह भली-भांति समझा जा सकता है कि अभी हाल ही में 'विवाहेत्तर संबंधों '(Extramarital relationships) को कानूनी रूप से अपराध की श्रेणी से बाहर क्यों निकाल दिया गया है।
आपका आलेख पति-पत्नी ही नहीं बल्कि स्त्री-पुरुष के बीच के स्वाभाविक संबंध के आध्यात्मिक पक्ष (Spiritual Aspect) को भी बहुत ही सशक्त रूप में प्रस्तुत करता है।
आपका आलेख प्रत्येक सुसंस्कृत मनुष्य को स्त्री-पुरुष के बीच के स्वाभाविक संबंध का सम्मान करने की प्रेरणा देता है, जैसा कि विकसित देशों एवं विकसित मानव समूहों में आज स्वाभाविक रूप में पाया जाता है।
एक दूसरे को समझने में मदद करने वाला एवम समस्या का समाधान निकलने वाला लेख।
जवाब देंहटाएंमानवीय व्यावहारिक पक्षो को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझाने का बहुत ही सार्थक प्रयास। व्यक्तिपरक संबंधो और समस्याओ को समझना और इसके पीछे कार्य-कारण ढूढ़ना कठिन कार्य होता हैं।
जवाब देंहटाएंइस दिशा में आपका प्रयास सराहनीय और अनुकरणीय हैं।
Nice information. Thanks.
जवाब देंहटाएंGood attempt to understand the very simple but complicated relationship .
जवाब देंहटाएंपति-पत्नी का प्रेममयी और सौहार्द्र संबंध से परिवार मजबूत होते हैं, जिससे आगे हमारे समाज भी मजबूत होते रहेंगे।
जवाब देंहटाएंआप का लेख मजबूत समाज निर्माण में सहायक होगें।
अति महत्वपूर्ण लेख जो आपने लिखा सर
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर लेख
जवाब देंहटाएंआप का यह लेख जब जब पढ़ता हूँ तो लगता है कि नयी प्रज्ञा मिलती है।
जवाब देंहटाएंExample:-
Man
Womb+ man= woman.
Marvelous Sir.