इस शीर्षक को पढ़ कर आप चौकिए नहीं| चूँकि
इसे मैं लिख रहा हूँ, इसलिए आपको भी इसे पढना चाहिए| कुत्ता मेरे लिए एक आदर्श है, जो मैं बनना
चाहता हूँ या बनना चाहता था| कुत्ता, और वह भी किसी आदमी का आदर्श, एक बड़ी विचित्र
बात है| इस धरती पर कितने ही जीव-जन्तु हैं, किसी एक को आदर्श बनाने के लिए| उसमे भी आदमी के ही कई विविध स्वरुप एवं कोटि उपलब्ध है, क्योंकि आदमी की ही बुद्धिमता, कर्मठता, सफलता की अनगिनत कहानियाँ या सच्चाइयाँ फैली हुई है यानि सर्व उपलब्ध हैं| जब आप भी इस पर ध्यान देंगे, तो आपको भी इसकी
गहराई और गंभीरता समझ में आ जाएगी|
सीधी सी बात है| मेरे समझ से, इस
धरती पर कुत्ता ही एक ऐसा जीव है, जो अपनी कोई भी
उपयोगिता किसी भी सभ्यता और संस्कृति को नहीं देता, फिर
भी यह एक सामान्य आदमी के लिए एक इर्ष्या पैदा कर देना वाला आराम एवं मौज मस्ती से
अपना जीवन काटता है| एक कुत्ता कोई शारीरिक श्रम भी नहीं
करता, सिवाय अपने शारीरिक फिटनेस की आवश्यकता के लिए| यानि इसका उछाल-कूद एवं भाग- दौड़ किसी योग्यता एवं उपयोगिता के अंतर्गत
नहीं है| ऐसी प्रकृति यानि स्वभाव के लोग सभी
संस्कृतियों में मिल जाएंगे, जो सिर्फ मीठी मीठी बातें
ही करेंगे, और इनकी कोई उत्पादकता नहीं होती है, फिर भी ठाठ की ज़िंदगी जीते हैं| ठेठ भाषा में
ये सामान्य लोगों को मुर्ख बनाते हैं, जैसे एक कुत्ता
सिर्फ भौंक कर अपनी सर्वश्रेष्ठता स्थापित कर लेता है| आप
इसके योग्यता और उपयोगिता के पक्ष में भले ही कोई कहानी स्वीकार कर लें| इसके किसी भी कार्य में किसी भी सभ्यता एवं संस्कृति में कोई उपयोगिता
देने की प्राथमिकता समझ में आ जाए, तो आप हमें भी बताइएगा| यह कुत्ता पागल होने पर
आदमी प्रजाति को "रैबीज" रोग देकर उसे भी पागल बना देता है, यह इसका एक ख़तरनाक पक्ष है।
सामान्यत: आदमी इसका मांस भी नहीं खाता है, इसका
दूध भी नहीं पीता, और इसके बाल (Hair), चमड़ा, हड्डी आदि की कोई उपयोगिता नही जानता, फिर भी एक कुत्ता आदमी का सबसे दुलरुआ बना रहता है| मैं भुखमरी से आदमी और उसके नन्हें बच्चों को मरते सुना है| पर अब तक भूख से कोई कुत्ता मर गया हो, मैंने
नहीं सुना| एक कुता अपने कौशल पर आदमी का किस हद तक
दुलारा बना हुआ है, मुझे यह बताने या रेखांकित करने की
जरुरत नही है, आप सब जानते ही हैं| ऐसे जीव को कितने लोगों ने अपना आदर्श मान कर अपने जीवन को सुखमय बना लिया
है, और आपको इसका पता भी नहीं चला है, बड़ी विचित्र बात हैं| जब मुझे यह पता चला और
समझ में आ गया, तो सोचा कि मैं अपनी इस खोज से आपको भी
परिचित करवा दूँ|
वैसे तो विभिन्न वैज्ञानिक बताते हैं कि
वर्तमान आदमी, जिसे होमो सेपिएन्स कहते है, कोई डेढ़ लाख साल
पहले ही अस्तित्व में आया| इस मानव ने कोई दस हजार साल
पहले ही कृषि की शुरुआत किया और घुमंतू जीवन से स्थिर आवासीय जीवन की शुरुआत की| मतलब कि इस कृषि और स्थिर जीवन की शुरुआत के बाद ही किसी राजा यानि शासक
की, किसी राज्य एवं किसी व्यवस्था की, किसी सभ्यता एवं संस्कृति की शुरुआत हुई
होगी, इसके पहले तो कदापि नहीं| लेकिन कोई और कहानी कहता है तो वह सरासर कल्पना है, इतिहास नहीं।यदि मेरी बात गलत लगता है और उनकी बात सही लगता है, तो उन सही बातों को वे क्यों नहीं इतिहास के पन्नों में दर्ज कर देते या
करा देते? सही ऐतिहासिक बातों को तो इतिहास के किताबो
में तो दर्ज होना ही चाहिए, अन्यथा उसे इसीलिए मिथक
यानि कपोल कल्पित कहानी मान लिया जाता है| अर्थात किसी
के सभ्यता एवं संस्कृति में किसी भी आदमी या राजा की हजारों एवं लाखों वर्ष पुराने
तथाकथित इतिहास सुनने को मिल जायगा, जो इतिहास है नहीं| इतिहास
वह है, जो इतिहास की किताबों में दर्ज होता, अर्थात
तथ्य, तर्क, साक्ष्य एवं
विज्ञान पर आधारित होता है| इतिहास की किताबों से बाहर
तो महज कहानियाँ होती है, जिसे कोई भी मुर्ख गढ़ लेता है
या गढ़ सकता है|
पर मैं तो कुत्ता की बात कर रहा था| हाँ, मैं साक्ष्य और प्रमाण के साथ बात रखने एवं समझाने के लिए उपरोक्त उतनी भूमिका बनाई| कुता का पहला
पुरातात्विक प्रमाण, जिसमें एक कुता को किसी मानव से
संग सहयोगी एवं आदर के साथ मिला, वह कार्बन डेटिंग में कोई 14300 साल पहले का पाया गया| मतलब यह कि कृषि एवं राज्यों के उदय
से बहुत पहले खाद्य संग्राहक एवं शिकारी व्यवस्था की ही बात होगी| इस पुरातात्विक प्रमाण में एक पुरुष एवं एक महिला के साथ बॉन – ओबरकासेल कुत्ता (Bonn-Oberakassel
Dog) मिला| जैसे उद्विकास में
एक आदमी का नजदीकी रिश्तेदार एक कपि (Ape) है, बन्दर (Monkey) नहीं, उसी तरह एक कुता का नजदीकी रिश्तेदार एक भूरा भेड़िया (Wolf) है, बिल्ली नहीं| पुरातात्विक
साक्ष्य बताते हैं कि कुत्ते को कोई 30
000 साल पहले पालतू बनाया गया| वैसे
चेक गणराज्य (Czech Republic) के प्रेडमोस्ती (Predmosti) नामक स्थान में कोई 36000 साल पहले के
कुत्ते का पुरातात्विक अवशेष मिले है|
आपने भी देखा कि मैंने कहीं नहीं लिखा कि आदमी
ने कुत्ते को सबसे पहले पालतू बनाया| अब आप ही बताइए कि आदमी
ने धान एवं गेहूँ जैसे अनाज का उत्पादन कर कृषि
प्रारंभ किया या इन अनाजों ने ही आदमी को एक स्थान पर स्थिर कर दिया, जिसका परिणाम कृषि का प्रारंभ हुआ? इन दोनों
में महत्वपूर्ण कौन है? आप कह सकते हैं कि दोनों ही बात
एक है, पर ठहरने पर अंतर दिख जाता है| आदमी ने कुत्ते को सबसे पहले पालतू बनाया, यह
आदमियों के इतिहास में वर्णित है, कुत्ते के इतिहास में
नहीं| कहते हैं कि आदमी ने जानवरों में सबसे पहले कुता
को पालतू बनाया, फिर उसके कोई दस हजार साल बाद घोड़ा को
पालतू बनाया| क्या मेरा यह मानना गलत होगा कि सबसे पहले
आदमी की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाने वाला कुत्ता था, आदमी
नहीं? एक कुत्ता ने सबसे पहले समझा कि इस धरती पर आदमी
ही एक ऐसा जीव है, जिसके साथ उसकी दोस्ती उसके जीवन को
आरामदायक बना सकता है|
उसका ऐसा सोचना आज एकदम सही साबित हुआ है| एक
कुत्ते ने आदमी के महत्व को समझा और दोस्ती करने के बहाने आदमी को अपना सेवक बना
लिया| एक कुत्ते को दो स्वतंत्र हाथ (अंग) नहीं है और
उसके इन अंगों में अंगुलियाँ नहीं है, खुर (Hoof) है| इसकी इस शारीरिक दोष के अतिरिक्त इसके
बुद्धिमता पर ध्यान दिया जाय, तो आप भी दंग रह जाएंगे|शायद इन्हीं बुद्धिमत्ता और समझदारी के कारण पृथ्वी के कई चक्कर लगाने
वाले जीवों में पहला नाम एक कुतिया (नाम - Laika) का
है, जिसे तत्कालीन सोवियत संघ (वर्तमान रुस) ने 3 नवम्बर 1957 को अंतरिक्ष यान
"स्पूतनिक -2" से भेजा। फिर अंतरिक्ष में
सबसे पहले जाने वाले और जीवित वापस लौटने वाले जीवों में एक कुत्ता (नाम - Belka) और एक कुतिया (नाम - Strelka) ही थी, जिसे तत्कालीन सोवियत संघ ने 19 अगस्त 1960 में भेजा था। शायद इसी कारण बहुत बुद्धिमान एवं
शातिरों को पहचानने एवं पकड़ने के लिए पुलिस भी कुत्ते का ही उपयोग लेते हैं, अन्य पशुओं का नहीं| एक अपराधी तो बुद्धिमान
एवं शातिर ही होता है, जो अपनी उर्जा, योग्यता एवं समझ अपने सामाजिक हितों के विरुद्ध लगता है|
इवान पावलोव (Ivan Petrovich Pavlov) एक रुसी
शारीरिक विज्ञानशास्त्री (Physiologist) थे, एक मनोवैज्ञानिक (Psychologist) नहीं थे| उन्होंने एक कुत्ते पर शारीरिक आवश्यकता को और उसके नियंत्रण प्रक्रिया को
समझना चाहा, और उसने उस शारीरिक आवश्यकता के कंडीशनिंग के मनोविज्ञान को समझ लिया| इस प्रयोग के
निष्कर्ष को आज शास्त्रीय कंडीशनिंग (Classical
Conditioning) कहा जाता है| इसमें एक बिना किसी
आवश्यक पूर्व शर्त के ही कंडीशनिंग का परिणाम मिला| पहले
तो भोजन के लिए कंडीशनिंग कराया गया, फिर एक झुनझुना
(वास्तव में वह घंटी था) से और वह कुत्ता तो एक झुनझुना से ही कंडीशनिंग में आ गया| भारत में बेमतलब के कोई चीज, जो सिर्फ बजता है
और कुछ देता नहीं है, मजाक (Taunt) में उसे झुनझुना ही कहते हैं| इस कंडीशनिंग
का प्रयोग सिर्फ नेतागिरी में ही नहीं होता है, अर्थात
सिर्फ नेता लोग ही नहीं करते हैं| इसका बहुविध उपयोग
जीवन के कई क्षेत्रों में भी होता है| कुछ धूर्त
नेतृत्व तो इसका कमाल का उपयोग करते है| उस कुत्ते को
हड्डी तो देता नहीं है, सिर्फ घंटी बजा कर यानि झुनझुना
बजा कर ही दौड़ाता रहता है| सिर्फ घंटी सुनकर ही कुत्ते
के “लार” (Saliva) टपकने
लगते हैं, और वह दौड़ लगाने को विवश हो जाता है| ऐसी ही स्थिति और जीवों की हो सकती है। लेकिन मैं तो पावलोव का कुत्ता
नहीं बनना चाहता| वैसे धोबी का कुत्ता न घर का होता है
और न ही घाट का, फिर भी अपनी चालाकी से दुलरुआ बना ही
रहता है। आप इस प्रयोग और उसके निष्कर्ष पर थोडा ठहर
जाईए| आपको सोचने पर बहुत कुछ मिलेगा|
एक कुत्ता के बारे में और भी बहुत कुछ है| कुछ
लोग एक कुत्ते को प्रकृति के निकट ले जाने वाले जन्तु मानते हैं| प्रकृति
में स्थान और उर्जा के अलावे जीवन को समन्वित करने वाला कई तंत्र होते हैं| स्थान
एवं उर्जा तो सर्वत्र मिल जाते हैं, क्यूंकि इसके बिना
तो किसी का अस्तित्व ही नहीं हो सकता| हमारे जीवन में
अन्य जीव -जन्तु के बिना कृत्रिम वस्तुओं की बाहुल्यता में भी जीवन नीरस एवं उदास
लगता है| आदमी भी एक जीवन यानि जन्तु है, परन्तु यह अक्सर बुद्धिमान होने के कारण कुछ दुष्ट भी होता है, या दुष्ट भी प्रतीत होता है| एक कुत्ता में कई
विशेष बाते है, जो अन्य जीव में भी नहीं है, आदमी में भी नहीं है| कुता आज्ञाकारी भी होता
है, संवेदनशील भी होता है, चलंत
भी होता है, समझदार भी होता है और नुकसानदेह भी नहीं
होता है| अन्य प्राणियों की तुलना में कुत्ता ज्यादा ही
समझदार होता है| इसीलिए आदमी अपनी एकान्तता दूर करने के
लिए, अपनी नीरसता दूर करने एवं उदासी मिटाने के लिए कोई
सहारा खोजता है| प्राकृतिक रूप से मन बहलाने के लिए, कुछ बाते कहने एवं उसे छुपाने के लिए भी, और
अपनी संवेदनाओं को अभिव्यक्त करने के आजादी के लिए कोई विश्वनीय सहायक चाहता है, जो देखे सुने सब कुछ, पर कुछ भी किसी और आदमी
को नहीं बताए| ऐसे में एक कुत्ता अपनी सार्थकता पूरी
तरह सही साबित करता है|
बोरिस लेविंसन (Boris M. Levinson) “पालतू पशुओं से ईलाज” (Pet Therapy) के ज्ञाता
हैं| ये बताते हैं कि कुत्ता को पालने के अनेक फायदे हैं| दरअसल एक आदमी एवं एक कुत्ता के शारीरिक सम्पर्क से कई तरह के उर्जा का
संचरण होता है, जिनका पर्याप्त शोध होना अभी बाकी है| ये उर्जा अपने विभिन्न रूपों में शरीर के कई तंत्रों को सक्रिय करते हैं, कई हारमोंस के श्रावण को प्रेरित करते हैं, शारीरिक
गतिविधियों (दौड़ना, उछालना, कूदना
आदि) को करने को बाध्य भी करते हैं| एक कुत्ता अपने
विविध गतिविधियों से एक वातावरण में चंचलता भी बनाए रखता है| एक कुत्ते की भौकने और कुछ हंगामे की चर्चा के बाद कहीं भी उसकी बुद्धिमता
की चर्चा नहीं होती| वह सामान्य आदमी का परजीवी बन कर
समाज को खोखला बनाने के प्रयास पर तो कोई चर्चा ही नहीं| ऐसे में कोई क्यों नहीं कुत्ता बनाना चाहेगा यानि कुत्ता को क्यों नहीं अपना
आदर्श बनाएगा| वैसे भारत में मजबूर को मजदूर कहते हैं, क्योंकि शारीरिक आवश्यकताओं के लिए सबसे सस्ता एवं सबसे सरल तरीका मजदूरी
यानि शारीरिक श्रम करना ही है| यह मजबूरी में करना होता
है। शारीरिक श्रम से बचने का एक उपाय यह भी है|
जब कोई किसी भी बिंदु पर या किसी खास विषय पर
ठहर जाता है, तो वह बहुत दूर तक चला जाता है, बहुत गहराई तक
चला जाता है| एक बार किहीं भी ठहर कर तो देखिए| तथागत
बुद्ध भी शायद इसी ठहराव की बात करते थे| यदि आपको भी मेरी कोई बात
समझने में दिक्कत दे रहा है, आप भी थोडा ठहर जाईए, हमसे भी ज्यादा समझ जाइएगा|
इस आलेख के शीर्षक और विषय पर कोई आपत्ति हो तो
मुझे भी अवगत करवाया जाएगा।
(मेरे अन्य आलेख www.niranjan2020.blogspot.com पर भी
देख सकते है| सुझाव एवं टिप्पणी ब्लॉग पर ही दे, ताकि आगे उसका भी ध्यान रखूं|)
निरंजन सिन्हा