उमेश जी आज उखड़े हुए थे। वे “टुच्चा” और “टुच्चे” शब्द का प्रयोग कर रहे थे। इस शब्द प्रयोग वे 'लोग', 'देश', 'सोच' (Thought), 'नीयत' (Intention), 'व्यवहार' और 'काम (Work)' के विशेषण के तौर पर अर्थात विशेषता बताने के लिए कर रहे थे| मैं तो पहली बार ही ‘टुच्चा’ और ‘टुच्चे’ शब्द का प्रयोग सुन रहा था। मुझे काफी उत्सुकता हो गई इन शब्दों का शाब्दिक अर्थ (Superficial Meaning), निहित भावार्थ (Implied Meaning), और प्रयोग- उपयोग जानने की। वैसे उमेश जी एक आफिसर ही नहीं, बल्कि एक सामाजिक सेवक और अच्छा जानकार भी हैं। सो इस बारे में उनके गहरे चिंतन (Deep Reflection) में मैं भी उतरना चाहा।
सबसे पहले तो इन शब्दों के वर्तमान संदर्भ को जानना चाहा। मेरे आने से पहले ज्ञानेश्वर जी और कमलापति जी यहीं से जा रहे थे। पता चला कि वे लोग भारत के कुछ पड़ोसी देशों के बेवकूफी भरे (सांप्रदायिक) सोच और निर्णय को भारत जैसे समृद्ध संस्कृति वाले देश के लिए आदर्श बता रहे थे, और उसके लिए अनुकरणीय मान रहे थे। सबको पता है कि ये पड़ोसी देश संकीर्ण सोच में उलझे हुए हैं, और भयंकर आर्थिक संकट से भी जूझ रहे हैं। ऐसे ही देशों को भारत का आदर्श और भारत के लिए अनुकरणीय बताने पर ही इन पड़ोसी देशों को उमेश जी ‘टुच्चे देश’ बता रहे थे।
मैंने उमेश जी से पूछा कि ‘टुच्चा’ शब्द है क्या?
उमेश जी ने बताया कि "टुच्चा" शब्द एक विशेषण है जो देश, लोग, सोच, नीयत, काम और व्यवहार आदि की विशेषता बताने के लिए प्रयुक्त होता है। इसे आप संस्कृत का शब्द मान सकते हैं।
मैंने फिर पूछा कि 'टुच्चा' का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उमेश जी के अनुसार *‘जो कथन अनुचित, ओछा या हेय हो, या जो कोई व्यक्ति नीच या हीन विचारों का या क्षुद्र प्रकृति वाला हो 'टुच्चा' कहलाता है|’* इस तरह घटिया व्यक्ति को टुच्चा या छिछोरा कह सकते हैं| अर्थात जो अनुचित या घटिया या दुष्ट प्रवृति का है, चाहे वह देश हो, लोग हों, सोच हो, नीयत हो, कर्म हो या व्यवहार हो आदि को टुच्चा कह सकते हैं| *इस अर्थ में टुच्चा का अर्थ नीच या क्षुद्र या घटिया हुआ|*
फिर भी मैं और स्पष्ट करने के ख्याल से उनसे पूछ ही बैठा – 'टुच्चा' विशेषण का भावार्थ क्या क्या है?
उमेश जी के अनुसार टुच्चापन के कई पक्ष व विभिन्न भाव हो सकते हैं| जैसे बिना किसी योग्यता के अपने को ऊँच और किसी और को नीच समझना| लोगो को जानबूझ कर अवैज्ञानिक बातें बताना या समझाना| अपने फायदे के लिए समाज में ढोंग, पाखंड करवाना और फैलाना| समाज में अन्धविश्वास स्थापित करना और इसे मजबूत करना| या अपने व्यक्तिगत अथवा अपने तथाकथित सामाजिक लाभ के लिए समाज और देश को कर्मकांड के दल-दल में फंसाना| यह सब भी आपराधिक कृत्य है,और ऐसी अपराधी सोच रखना भी अपराध है| सामाजिक या वैश्विक व्यवस्था को भंग करना या भंग करने की मंशा रखना भी टुच्चापन है| पारिस्थितिकी न्याय (Ecological Justice) की अवहेलना करना आदि इसका व्यापक दायरा होगा।
उमेश जी ने तो टुच्चापन का एक विस्तृत दायरा खीच दिया| उन्होंने इतना ही नहीं किया, बल्कि टुच्चेपन को अपराराधिक परिधि में लाकर कई गंभीर आरोप भी लगा दिए| उन्होंने कहा कि ऐसे अपराधी पर तो क्रिमिनल मुकदमा दायर होना चाहिए, और उसे जेलों में बद होना चाहिए|
मैंने कहा – कुछ खोल कर बताइए, ताकि कुछ साफ-साफ समझ में आए|
देखिये सर – उमेश जी ने कहा – किसी गलत बात को या काम को अपने व्यक्तिगत या अपने छोटे समाज के फायदे के लिए अर्थात गलत नीयत से ऐसा काम करना, जिससे व्यक्ति, समाज या देश का नुकसान हो,बस यही टुच्चापन है| जैसे लोगों की भावनाएं उभार कर समाज और देश की समरसता, शांति और विकास से खेलना टुच्चापन है| जो बातें समाज में कहीं घटित नहीं हों, उसे फैब्रिकेट कर प्रसारित करना टुच्चापन है| जैसे कोई बात इस तरह फैलाना, मानों बाकी समाज और देश के लोग राष्ट्र विरोधी हैं, और वही टुच्चे लोग ही सच्चे राष्ट्रभक्त हैं| कोई बात इस तरह फैलाना मानों सारा समाज और देश के शेष लोग व्यापक धर्म के विरोधी हैं और वे टुच्चे लोग ही व्यापक धर्म के शुभचिंतक हैं, जबकि ऐसी कोई बात भी किसी के ख्याल में नहीं आया होता है| किसी चीज का कहीं कोई विरोध भी नहीं होता, तो ये टुच्चे लोग यह प्रसारित करते हैं, कि शेष देश या फलां समाज इसका विरोधी है| ये टुच्चे लोग व्यापक धर्म, राष्ट्र भक्ति और समाज के शुभ चिन्तक बने फिरेंगे| यह सब नाटक सिर्फ भोले-भाले लोगों की भावनाओं को उभार कर सामान्य लोगों को भ्रमित करने के लिए करते हैं| यह लोग इसी के आड़ में समाज और देश की आर्थिक और सांस्कृतिक क्षति करा रहे हैं|
मैंने उन्हें रोकने के ख्याल से टोका – यह सब आप कहाँ से सोच लेते हैं?
उन्होंने बताया कि – अमेरिका (USA) ने 1937 से 1942 के बीच एक संस्था “Institute for Propaganda Analysis (IPA)” स्थापित किया था| इसका नाम बताता है कि इसका काम था, कि 'प्रोपगैंडा' अर्थात झूठे प्रचार का विश्लेषण करना, परन्तु इसका वास्तविक काम था, प्रभावी प्रोपगैंडा बनाना और उसे फैलाना| जब आप इस संस्था का अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि ये टुच्चे प्रकृति के लोग आज इसकी ही भाषा, शब्द और तकनीक का उपयोग करते हैं|
मैं भी इनसे सहमत हूं, कि भारत एक विशाल और ऐतिहासिक गरिमा वाली संस्कृति का देश है। और इसकी तुलना चीन, जापान, जर्मनी तथा अमेरिका जैसे विकसित, समृद्ध तथा शक्तिशाली देशों से ही होनी चाहिए, इन टुच्चे देशों से नहीं| इन टुच्चे देशों से भारत की तुलना करना और इसे अनुकरणीय बताना तो किसी भी राष्ट्रभक्त को अच्छा नहीं लगेगा। मुझे भी इन टुच्चे देशों को भारत के लिए आदर्श और अनुकरणीय बताना और इन देशों की तुलना भारत से करना बुरा लगता है। इन टुच्चे लोगों को भारत की गौरवशाली और विशाल ऐतिहासिक परम्परा का ध्यान ही नहीं रहता। मुझे तो ऐसे सोच वाले लोग ही टुच्चे लगे| ये लोग बिना सोचे समझे भारत जैसे गरिमामई देश की तुलना टुच्चे देशों से करने लगते हैं। ये टुच्चे लोग सिर्फ अपने पद, धन और सामाजिक पहचान को ही विद्वता का पैमाना मान लेते हैं। ये टुच्चे लोग देश की गौरवशाली परंपरा, साझी संस्कृति, ऐतिहासिक समरसता और विकास को ही नष्ट कर रहे हैं|
वे कहने लगे, अब, आपको सोचना, समझना और पहचाना है, कि समाज और देश के संदर्भ में कौन-कौन टुच्चा है, यानि कौन कौन टुच्चे लोग हैं? यह आपको तय करना है। मेरा उद्देश्य इसके प्रति लोगों को जागरूक करना है, ताकि युवा पीढ़ी तेजी से विकसित हो। टुच्चेपन से समाज और देश को बचाना भी है| इसके बाद ही समाज में सुख, शांति, समृद्धि और विकास स्थापित हो सकेगा। ऐसे लोगों के “टुच्चापन” के कारण ही विश्व समाज में हमारे समाज और देश का सम्मान चोटिल होता है| यह हमारे आगे बढ़ते युवाओं की पहचान पर खतरा है|
मैं भी चिंतन में डूब गया| आप भी सोचिए|
(आप मेरे अन्य आलेख www.niranjansinha.com या niranjan2020.blogspot.com पर देख सकते हैं।)
निरंजन सिन्हा
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