सभी दुखों या समस्याओं का मूल एवं एकमात्र कारण
अविद्या (Ignorance) है, यानि
ज्ञान (Knowledge/ Wisdom) का अभाव है| इसीलिए सभी समस्याओं का
निदान भी यानि समाधान भी ज्ञान की प्राप्ति है| यह
इतना महत्वपूर्ण है कि इस विषय का समुचित अध्ययन किया ही जाना चाहिए| यह क्या है? इसे कैसे प्राप्त किया जाता है? इसकी क्रियाविधि को समझना जरूरी है|
ज्ञान (Knowledge) कई नामों से जाना
जाता है- विद्या, जानकारी, बोध, सूचना, समझदारी, जागरूकता, तथ्य, बुद्धिमता आदि आदि| हालाँकि सुचना को ज्ञान नहीं मानना चाहिए| वस्तुत:
ज्ञान सूचनाओं का समझदारी के साथ उपयोग करना ही है| किसी विषय या वस्तु की
प्रकृति, स्वरूप, संरचना
या क्रियाविधि को वैसा ही अनुभव करना यानि समझना या जानना जैसा कि वह वास्तव में
है, ही ज्ञान है, विद्या
है| .....इसे थोड़ा सरल भाषा में यों समझें कि ज्ञान
सदैव विषय सापेक्ष (Relative) होता है, और विषय का भी अपना एक सुनिश्चित संदर्भ या आधार होता है।.. तो जब आप किसी
विषय को उसके सम्यक सन्दर्भ में 'कारण-कार्य' के नियमों के आधार पर संपूर्ण परिपूर्णता के साथ समझ लेते हैं, तो उसे ही ज्ञान या सम्यक बोध कहा जाता है।
ज्ञान को मुख्यतया ज्ञानेन्द्रियों (Sensors) से यथा आँख, नाक, कान, जीभ एवं त्वचा से हासिल किया जाता है| तथागत बुद्ध ने इन
ज्ञानेन्द्रियों में छठवां ज्ञानेन्द्रिय में “मन
की शक्ति” (Mental Power) को भी जोड़ा, जो पांचों
ज्ञानेन्द्रियों से प्राप्त ज्ञान या संवेदनाओं का विश्लेषण एवं संश्लेषण कर अनेक
नये एवं अद्भुत ज्ञानों को उत्पन्न करने में सक्षम है| इसके
विश्लेषण (Analysis), संश्लेषण (Synthesis) तथा फिल्टर करने की प्रक्रिया को ही चिंतन-मनन या मंथन (Agitation) की संज्ञा दी जाती है। छठी इंद्रिय की यह मंथन की प्रक्रिया ही मानव
सभ्यता के अनेक उच्च स्तरीय ज्ञानों की उत्पत्ति का मूल कारण है। प्रथम पांचों
इन्द्रियों को ज्ञान प्राप्ति का प्रारंभिक स्रोत माना जाता है| इनके माध्यम से हमलोग उस वस्तु की संवेदना यानि सूचना प्राप्त करते हैं| जबकि तथागत बुद्ध द्वारा निर्दिष्ट छठी इंद्रिय अति विशिष्ट है।
मन की शक्ति को मानसिक
दृष्टि (Vision) कहते हैं, जो मस्तिष्क के सहयोग से
कार्य करता है| यह एक कौशल है, जिसे विकसित किया जाता है| अर्थात इसे कोई भी पा सकता है, सीख सकता है| यह कोई जन्मजात योग्यता नहीं है| इसी कारण इसकी पूर्णता किसी को प्राप्त नहीं होती| इसके कई स्तर (Level) होते हैं, जो सीखने वाले की शिक्षा (Education) तथा उसके मनन-मंथन (Agitation) के
साथ-साथ उसके इन शिक्षा एवं मनन मंथन से प्राप्त सामग्री के 'सुनिश्चित लक्ष्यगत संगठन' (Well- determined
target oriented Organisation) यानि विन्यास (Orientation,
Arrangement) के स्तर पर निर्भर करता है| डॉ आम्बेडकर का नारा “Educate,
Agitate, Organise” भी यही है|
प्रज्ञा (Intution) अंत;करण की आवाज है, यानि हमारे अस्तित्व की अतल
गहराइयों से निकली आवाज है| इसे आभास या अंतर्बोध भी
कहते हैं| इसे सामान्य भाषा में “आभास”
(Intuition – प्रज्ञा ज्ञान) भी कहते हैं|
सामान्यत: यह ज्ञान व्यक्ति के चेतनता (Consciousness) के सर्वोच्च स्तर – अधिचेतन (Super
Consciousness) के स्तर पर “अनन्त
प्रज्ञा” (Infinite Intelligence) से संपर्क करने पर आता है| तथागत बुद्ध या अल्बर्ट
आइंस्टीन या स्टीफन हाकिन्स का ज्ञान इसी श्रेणी से प्राप्त एवं स्तर का
ज्ञान है|
ज्ञान के चार स्तर (Level) होते हैं –
1.“सामान्य ज्ञान” (General
Knowledge) : सूचनाओं को जानना एवं समझना “सामान्य ज्ञान” है| इसे सामान्यत: रट कर (Rote
Learning) एवं समझ कर प्राप्त किया जाता है| भाषाओं (Languages) का अनुवाद (Translation) करना और समझना इसी श्रेणी में आता है|
2.“भावनात्मक ज्ञान” (Emotional
Knowledge) : अपना एवं सामने वाले की संवेदनाओं एवं भावनाओं को जानना एवं समझना और सामने
वाले के अनुरूप अपनी भावनाओं को ढाल कर अपना व्यवहार संयोजित करना ही “भावनात्मक ज्ञान” कहलाता है| इसमें प्रथम स्तर यानि सामान्य ज्ञान भी समाहित होता है|
3.“सामाजिक ज्ञान” (Social
Knowledge) : अपने समाज की अपेक्षाओं (Expectations) को समझ
कर अपने को ढालना (mould yourself) “सामाजिक ज्ञान” है| इसे सफलता का विज्ञान भी कहा गया है| इसमें पहला दोनों स्तर भी शामिल होता है|
4.“विवेकी यानि बौद्धिक ज्ञान”
(Wisdom Knowledge) : जब कोई व्यक्ति मानवता को, यानि भविष्य
को ध्यान में रखकर ज्ञान प्राप्त करता है, और उसका
उपयोग करता है, तब वह विवेकी ज्ञान (Wisdom
Knowledge) माना जाता है| इसे
"बुद्धिमात्तापूर्ण ज्ञान" भी कहते हैं| इसमें उपरोक्त तीनों ज्ञान के स्तर शामिल होते हैं| तथागत बुद्ध इसी “ज्ञान” की बात करते रहे|
ज्ञान के विषय की प्रामाणिकता या वास्तविकता के ‘आधार' (Base) पर इसे दो वर्गों में बांटा गया
है –
1.मिथक (Myth) ज्ञान :
जो ज्ञान मात्र कल्पित कहानियाँ हो, उसे
मिथक कहते हैं| ऐसे ज्ञान के विषयों का कोई पुरातात्विक
आधार या कोई प्रमाणिक साक्ष्य नहीं होता है| इसका
साक्ष्य कोई मिलता-जुलता प्राकृतिक बनावट या कोई पुरातात्विक साक्ष्य होता है, जिसे तथाकथित स्वार्थी ज्ञानी लोग, दूसरों पर
जबरदस्ती थोपते (Impose) हैं या थोपने का प्रयास करते
हैं| ऐसा अक्सर यथास्थितिवादी (Status Quoist) ही करते हैं| इसकी सत्यता जांचने का एक ही
तरीका है कि – इसके लिए प्रमाणिक साक्ष्य मांगे
तथा तर्कसंगत व्याख्या करें| यदि यह साक्ष्य, तर्क एवं विवेक से संपुष्ट नहीं होता है, तो यह
स्पष्टतया मिथक है, कल्पित कहानी है| भारत के कई ज्ञान मिथक की श्रेणी में आते हैं| इनका
कोई प्रमाणिक साक्ष्य नहीं है| इनका साक्ष्य कोई दूसरा
मिथक ही होता है, जिसका अपना ही कोई प्रमाणिक साक्ष्य
नहीं होता| यह “आस्था”
(Devotion) पर आधारित होता है| ऐसे
समाज सारे प्राकृतिक संसाधनों के होने के बावजूद भी पिछड़े हुए होते हैं, जैसे भारत।
2.वैज्ञानिक (Scientific) ज्ञान :
जो ज्ञान विज्ञान अर्थात “कारण – कार्य” (Cause – Effect) पर आधारित है, विज्ञान से सम्पुष्ट (वैज्ञानिक) ज्ञान है| यह
तथ्य (Fact), साक्ष्य (Evidence), तर्क (Logic), विज्ञान (Science) एवं विवेक (Rationality) पर आधारित होता है, यानि उनसे प्रमाणित होता है| इन्ही आधारों पर
भारतीय इतिहास अनुसन्धान परिषद् के संस्थापक अध्यक्ष प्रोफसर रामशरण शर्मा ने अपनी
हाल में प्रकाशित (ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस) पुस्तक “भारत का प्राचीन इतिहास” में भारत के 'वैदिक सभ्यता' के अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा कर
दिया है| ऐसे ज्ञान पर आधारित समाज ही आज विकसित देशों
की श्रेणी में हैं।
ज्ञान की प्रक्रिया (Mechanics) से उत्पन्न होने वाले लाभ चार तरह के होते हैं, जिनकी वजह से ज्ञान को शक्ति की संज्ञा प्रदान की जाती है| अर्थात जिसके पास बुद्धि या ज्ञान है, वही वास्तविक
शक्तिमान है| इसकी चार अवस्थाएं हैं –
1. मुक्ति (Liberation) :
जब कोई व्यक्ति किसी विषय या वस्तु के बारे में
संपूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लेता है, तो वह उस विषय या वस्तु से
निरपेक्ष (Absolute, Neutral) भाव रखने में समर्थ हो
जाता है, यानि वह उससे कोई आग्रह (Attachment) नहीं रखता | उसे उस विषय या वस्तु से कोई
आकर्षण, घृणा, लगाव, या विरोध नहीं होता है| वह उसे यथास्थिति में
जानता एवं समझता होता है| इस तरह ज्ञाता उस विषय या
वस्तु के समबन्ध में इन संवेदनात्मक (Emotional) आग्रहों
से मुक्त रहता है| वह किसी पूर्वाग्रह के प्रभाव में
नहीं होता है| इससे सही सूचनाओं का संग्रहण हो पाता है|
2. पूर्वानुमान (Prediction) :
जब कोई व्यक्ति उपरोक्त प्रकार से मुक्त होकर
ज्ञान प्राप्त करता है, तो वह उन प्राप्त सूचनाओं एवं ज्ञानों के आधार
पर सिद्धांत (Theory) बनाता है| वह इसके आधार पर वर्तमान (Present) को समझता है| इसी सिद्धांत के आधार पर वह भविष्य (Future ) एवं
भूतकाल (Past) की अवस्थाओं का पूर्वानुमान करता है और
समझता है| इसे पूर्वानुमान या त्रिकालदर्शन की क्षमता
कहते हैं|
3. कार्य साधन (Manipulation) :
जब कोई व्यक्ति अपने ज्ञान के आधार पर वर्तमान, भविष्य
एवं भूत को समझ जाता है, तो वह अपने इस अर्जित ज्ञान का
उपयोग अपने इच्छित कार्य साधन में करता है| इसे सामान्य
लोग ज्ञान का हेरा फेरी भी कहते हैं| इसे बौद्धिक लोग
ज्ञान का उपयोग या सदुपयोग कहते हैं| जब विज्ञान के
ज्ञान को उपयोगी बनाया जाता है तो उसे इन्जिनीयरिंग या अभियंत्रण (Engineering) कहते हैं| और जब इस ज्ञान पर आधारित उपकरण, मशीन, उपस्कर इत्यादि बनाए जाते हैं तो उसे
तकनीक (Technology) कहते हैं|
4. नियंत्रण (Control) :
कोई भी व्यक्ति किसी विषय के संबंध में ज्ञान की
उपरोक्त तीनों अवस्थाओं को प्राप्त कर लेने के बाद उस विषय या वस्तु पर संपूर्ण
रूप से नियंत्रण कर पाता है यानि कि 'मास्टरी' हासिल कर पाता है।|
अब आप आकलन करें कि हम- आप ज्ञान की किस अवस्था
में हैं?
इसके साथ ही आप यह भी देखें कि हमारे- आपके
ज्ञान का आधार (मिथक या विज्ञान) क्या है?
और हमारे- आपके ज्ञान का स्तर क्या है?
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निरंजन सिन्हा
स्वैच्छिक सेवानिवृत राज्य कर संयुक्त आयुक्त, बिहार, पटना|
मौलिक चिन्तक, व्यवस्था
विश्लेषक एवं बौद्धिक उत्प्रेरक|
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जवाब देंहटाएंI request you sir, make small video on this blog topic..
ज्ञान की कसौटी में यदि प्रेम का समावेश नहीं है, तो वह अपूर्ण ज्ञान ही कहलाता है। इसका संदरवन् श्रीकृष्ण उद्धव के संवाद से जाना जा सकता है।
जवाब देंहटाएंजय श्री कृष्णा।
ज्ञान की परिभाषा, स्तर, आधार एवं प्रक्रिया पर संक्षिप्त और प्रभावी प्रकाश डाला गया है. इसमें कपिल (सांख्य),गौतम (न्याय),शंकराचार्य (अद्वैत),देकारत,लाक आदि के विचार गुंथे हुये हैं. ज्ञान में प्रेम पक्ष पर भारी विवाद है और यह प्रामाणिक भी नहीं है. लेखक बधाई के पात्र हैं.
जवाब देंहटाएंनमस्कार सर जी
जवाब देंहटाएंसराहनीय आलेख इसमें स्नेह,प्रेम ,राग,द्वेष के साथ पारिवारिक परिस्थितियों को भी संयोजित कीजिएगा।आभार