किसी भी भव्य इमारत की बुनियाद (foundation) भी सुदृढ़ और सुविचारित होती है। इसी तरह किसी भी सामाजिक संगठन की बुनियाद उनकी सांस्कृतिक और आर्थिक सोच और संरचना (structure) होती है।
सांस्कृतिक सोच और समझ मानसिक विचारण (thinking) की क्षमता और स्तर निर्धारित करता है। बहुसंख्यक समुदाय अर्थव्यवस्था के प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय सेक्टर के सोच तक ही सीमित है। बुद्ध चौथे (quaternary) और पांचवें (quinary) सेक्टर पर कार्यरत थे। बहुसंख्यक समुदाय अपनी सोच, समझ एवं संस्कार को अर्थव्यवस्था के प्रथम तीन सेक्टर के 'बाक्स' तक सीमित कर रखे हैं। "आउट आफ बाक्स" सोचना और समझना आवश्यक है और इसलिए इसकी शुरुआत की जानी चाहिए। इन्हें भी ज्ञान प्रक्षेत्र (चतुर्थ क्षेत्र) और नीति निर्धारण प्रक्षेत्र (पंचम क्षेत्र) में भी आधिपत्य स्थापित करने का प्रयास और शुरुआत करना चाहिए। इसके बिना यह समुदाय पिछलग्गू ही रहेगा। इसका कोई विकल्प भी नहीं हो सकता है।
सांस्कृतिक क्षेत्र में सांस्कृतिक बुनियाद भी बदलना होगा, यानि बुनियाद को अलग ढंग से अलग आधार पर पुनः परिभाषित (redefined) करना होगा। इन्हें सामंतवाद (Feudalism) के सांस्कृतिक एवं धार्मिक ढांचे का 'वर्ण व्यवस्था' से बाहर निकलना चाहिए। उनकी वर्ण व्यवस्था में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र हैं जो सामंतवाद की उत्पाद है। यानि बहुसंख्यक समुदाय को इन चारों सवर्ण से बाहर निकलना चाहिए। बहुसंख्यक समुदाय कभी शुद्र या क्षुद्र नहीं था, यह स्पष्ट हो लिया जाए। शुद्र सामंतों के व्यक्तिगत सेवक (personal servant) थे, जो सामंतवाद के राजनैतिक स्वरुप के समाप्त होते ही लुप्त (eliminated) हो गया।
दरअसल बहुसंख्यक समुदाय इनकी वर्ण व्यवस्था से सदैव बाहर थे, अब इसमें शामिल करने का पुरजोर प्रयास किया जा रहा है। यह बहुसंख्यक समुदाय का मनोबल (morale) तोड़ने का प्रयास है।
बहुसंख्यक समुदाय अवर्ण थे और है। ये बिना वर्ण के थे और वर्ण व्यवस्था से बाहर थे। उत्पादक (producer) समूह, विद्रोही (rebellion) समूह, अरण्य (forest) समूह और विदेशी संस्कृति (foreign culture) समूह अवर्ण थे और है। इससे इनमें सांस्कृतिक एकता को समान आधार मिलेगा। यह तथ्य और सत्य सामाजिक रुपांतरण की वैज्ञानिक व्याख्या पर आधारित है जो समाज के उत्पादन (production), वितरण (distribution) विनियम (exchange) और उपभोग (consumption) की शक्तियों और उनके अन्तर्सम्बन्धों (interrelationships) के आधार पर व्याख्यायित (explained) है।
आर्थिक विकास के लिए हमें युवाओं, महिलाओं और नेटिजनों (Netizens) पर आधारित होना होगा। इसके लिए हमें
1. उद्यमिता (Entrepreneurship),
2. वित्तीय साक्षरता या समझदारी (Financial Literacy),
3. सामाजिक अंकेक्षण (Social Audit),
4. बौद्धिक बुद्धिमत्ता (Wisdom Intelligence),
5. सामाजिक रुपांतरण का विज्ञान (Science of Social Transformation), और
6. अंत: उत्प्रेरण की क्रियाविधि (Mechanics of Inspiration)
को समझना और समझाना जरुरी होगा।
यही मूल और मौलिक आधार है। बाकी नेतागिरी चमकाने के लिए काफी है। नयी अवधारणाएं चिंतन खोजता है, सम्यक विमर्श और सहयोग चाहता है।
शुरुआत किया जाय।
निरंजन सिन्हा
मौलिक चिंतक, व्यवस्था विश्लेषक, बौद्धिक उत्प्रेरक।
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