सोमवार, 25 अक्तूबर 2021

समाज और राष्ट्र का तीव्र विकास कैसे हो?

कोई भी समाज या राष्ट्र अपनी विकास की पूरी संभावनाओं को जब पूरी तरह व्यक्त कर पाता है, तभी वह समाज और राष्ट्र अपना सम्यक और महत्तम विकास कर पाता है। ऐसे द्रुतगामी विकास के लिए कुछ विशेष पहचान, प्रक्रिया और मनोविज्ञान को समझना होता है।

 *कोई समाज और राष्ट्र इसलिए पिछड़ा हुआ होता है,* क्योंकि बहुसंख्यक समाज या समुदाय अपनी सोच में पिछडा हुआ होता है। *"*पिछडा*" हुआ का यह अर्थ हुआ कि उनकी सोच वैज्ञानिक नहीं है।* ऐसे लोग सामाजिक और सांस्कृतिक आधार पर पिछड़े हुए होते हैं और इसीलिए आर्थिक और राजनीतिक रूप में भी पिछड़े हुए होते हैं। इन पिछड़े समुदाय के अलावा अन्य लोग " *यथास्थितिवादी*" होते हैं। ये अक्सर यथास्थितिवादी इसलिए होते हैं, क्योंकि इनको कर्म के आधार पर नहीं, अपितु जन्म के आधार पर बहुत से विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं। ये समुदाय यदि स्वार्थी होता है, तो *इन्हें व्यापक समाज यानि राष्ट्र नहीं दिखता है।* 

इन *पिछड़े हुए लोगों* की *विशेषताएं* होती है कि *इन्हें चीजों को सतही तौर पर ही समझना आता है और निहितार्थ समझना दूर की बातें होती है।* *इन्हें सांसारिक आवश्यकताओं के बजाय "पारलौकिक" ख्वाबों से नियंत्रित और संचालित किया जाना आसान होता है।  ये जन्म आधारित विशेषताओं में विश्वास करते हैं। अपने कर्म तथा योग्यताओं की महत्ता की समझ इन्हें नहीं है।   ये लोग व्यक्तियों और घटनाओं पर जल्दी और आक्रामक ढंग से प्रतिक्रिया देते हैं।   ध्यान रहे कि इन्हें "प्रतिक्रियाओं" के माध्यम से बहुत आसानी से नियंत्रित और संचालित किया जाता है।* _*_समाज के अधिकतर लोग उम्र के कारण भी सठिया गए होते हैं।*_ *अतः ऐसे लोगों से बदलाव की तनिक भी उम्मीद करना समय, संसाधन, ऊर्जा और धन की पूरी बरबादी है* । ऐसे लोगों को अपने विचारों की रणनीति से बाहर रखिए, ऐसे लोगों पर कोई टिप्पणी और कोई प्रतिक्रिया भी देना नासमझी है।

यह काफी *खुशखबरी* की बात है कि गंगा नदी के विशाल मैदान में *युवाओं* की संख्या आधी से अधिक है। इनको साधने के लिए हमें इनकी मनोवैज्ञानिक स्थिति और इनकी आवश्यकताओं को समझना होगा। _ध्यान रहे कि हम मानवता और राष्ट्र के पक्ष में, इसलिए सत्य भी हमारे साथ है।_ *मानवता और राष्ट्र के दुश्मनों का सहारा झूठ, पाखंड, ढोंग, अत्याचार और शोषण है।* हमें सिर्फ इनका खुलासा करना है जो तथ्य, तर्क, विज्ञान और विवेकशीलता पर आधारित हो।

हम विश्व आबादी का सोलह प्रतिशत ही है। विश्व एक छोटा और संकुचित गांव है। आज हम विश्व समाज से अलग नहीं रह सकते। विश्व समाज सदैव मानवता और विशाल समुदाय के पक्ष में होगा। हमें उन्हें अपनी बात वैज्ञानिक आधार पर समझाना होगा। फिर भारत भी हमारे साथ होगा।

हमें *युवाओं को आकर्षित* करने और अपने पक्ष में करने के लिए *एक सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम* चलाना चाहिए। यह आन्दोलन *गैर राजनीतिक* होना चाहिए। यह सिर्फ युवाओं, मानवता और राष्ट्र के पक्ष में होना चाहिए।

इसके लिए  हमें निम्न विषयों पर जमीनी स्तर पर कार्यक्रम चलाना चाहिए ----

 *1 . उद्यमिता* *(Entrepreneurship),* 

वैसे भी सरकारी नौकरी का विकल्प सब को नहीं मिल सकता। उद्यमिता व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के लिए आवश्यक है। इसकी क्रिया विधि, व्यवस्था और संबंधित जानकारी को जानना सबके लिए जरूरी है।

 *2. वित्तीय साक्षरता (Financial Literacy),* 

धन को बनाना, धन को सम्हालना और धन से धन का विकास करना; इसका सही एवं व्यवहारिक ज्ञान जरूरी है। इसे सरल और सहज तरीके से बताया जाना चाहिए।

 *3. सामाजिक अंकेक्षण (Social Audit),* 

इससे युवाओं को सामाजिक और आर्थिक सम्मान मिलता है। इसमें " *सूचना का अधिकार अधिनियम* " की समुचित जानकारी और उपयोगिता बताई जाती है। इसी के आधार पर सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों का जमीनी हकीकत जानकर रिपोर्ट बनाना ही "सामाजिक अंकेक्षण" है। इससे युवाओं को राष्ट्र निर्माण' में आत्म संतुष्टि भी मिलता है।

 *4. बौद्धिक बुद्धिमत्ता (Wisdom Intelligence),* 

किसी भी व्यक्ति के समुचित सफलता में सिर्फ "सामान्य बुद्धिमत्ता", "भावनात्मक बुद्धिमत्ता" और "सामाजिक बुद्धिमत्ता" पर्याप्त नहीं होता। उसके लिए भविष्य को ध्यान में रखकर विवेकपूर्ण बुद्धिमत्ता की आवश्यकता होती है, जिसे बौद्धिक बुद्धिमत्ता कहते हैं। इसे जानना सबके लिए जरूरी है।

 *5. सामाजिक रुपांतरण का विज्ञान (Science of Social Transformation),* 

किसी भी समाज में जो रुपांतरण होता है, वही उसका इतिहास है। *इतिहास वर्तमान की गहराई में समाया हुआ नींव (Foundation) है।* किसी भी समाज का सही यानि सच्चा इतिहास जानने के लिए *सामाजिक रुपांतरण की वैज्ञानिक व्याख्या* होना चाहिए। *यह व्याख्या उत्पादन (Production), वितरण (Distribution), विनिमय (Exchange), और उपभोग (Consumption) की शक्तियों और उनके अन्तर्सम्बन्धों के आधार पर ही किया जाना चाहिए।* इसे सबको समझना चाहिए।

 *6. अन्त: प्रेरणा का क्रियाविधि (Mechanics of Inspiration)* 

कोई भी आदमी किसी बाह्य कारणों की प्रेरणा ( *Motivation* ) से प्रेरित हो जाता है, परन्तु वह अस्थाई होता है। अन्त: प्रेरणा ( *Inspiration* ) ही स्थाई और उत्कृष्ट प्रदर्शन देता है। इसे बनाए रखने और प्रभावशाली बनाने के लिए इसे समझना जरूरी है।

इससे हम युवाओं को आकर्षित कर पाएंगे और हम उन्हें सामाजिक सांस्कृतिक पहलुओं को वैज्ञानिक व्याख्या कर समझा पाएंगे। इस तरह युवाओं का आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक उत्थान संभव है। इससे हम भारत का सम्यक और महत्तम विकास कर पाएंगे। तब भारत फिर से अग्रणी राष्ट्र बन पाएगा।

 *स्वर्णिम भारत आने वाला है।* 

 *_बस, कुछ समय का इंतजार है।_* 

_निरंजन सिन्हा_

स्वैच्छिक सेवानिवृत्त राज्य कर संयुक्त आयुक्त,

 बिहार, पटना, की क़लम से ........

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4 टिप्‍पणियां:

  1. Definitely sir, We have to work in the fields of education and setting a institution structure in village where our people live. We can take youth directly and give our movement ideology to them.

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  2. लेख प्रभावी,भविष्योन्मुखी एवं विचारोत्तेजक शब्दावली से परिपूर्ण है, परन्तु, शब्दावली की और समीचीन व्याख्यान अपेक्षित है.

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  3. शानदार सर। आपके लेखन का जवाब नहीं

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