तीसरा विश्व युद्ध कब होगा? क्या तीसरा विश्वयुद्ध सन 2040
के दशक में होगा? क्या यह प्रश्न सान्दर्भिक एवं वास्तविक हैं? यह क्यों होगा? इस
युद्ध का तकनीक क्या होगा? यह युद्ध किनके किनके बीच होगा? यह वैश्विक युद्ध कितने
दिनों में समाप्त होगा? इसके बाद का वैश्विक स्वरुप कैसा होगा? इस युद्ध को क्यों
नहीं टाला जा सकता है? मेरा यह आलेख किसी को डराने धमकाने के लिए नहीं है| मेरे इस
आलेख का उद्देश्य निकट भविष्य में होने वाले घटनाओं को देखना, समझना,और आवश्यक
तैयारी रखना है| यह समझदारों को मानसिक दृष्टि देगा और आवश्यक समझ भी देगा| इसके
अलावे मैं बाकि ज्यादा चर्चा नहीं करना चाहूँगा| जिनको वैश्विक दृष्टि नहीं है,
उनकी नासमझी के लिए मैं माफ़ी भी चाहूँगा|
मुझे स्पष्ट लगता है कि तीसरा विश्व युद्ध इस शताब्दी के
पांचवें दशक में ही होगा| यानि सन 2040 के दशक में ही होगा| यह प्रश्न वास्तविक है
और पूर्णतया सान्दर्भिक भी है| यह वैश्विक युद्ध एक सप्ताह भी नहीं चलेगा और
समाप्त हो जायेगा| यह युद्ध कुछ देशों या कुछ देशों के समूह में नहीं होगा| यह
वैश्विक युद्ध बुद्धिमानों के समुदाय एवं मूर्खों के समुदाय के मध्य होगा| चूँकि
बुद्धिमानों का समुदाय एवं मूर्खों का समुदाय किसी एक परम्परागत भौगोलिक क्षेत्र
में नहीं रहते हैं, इसलिए यह युद्ध ऐसे क्षेत्रों के बीच नहीं होगा| किसी एक “परम्परागत
भौगोलिक सीमाओं से परिबद्ध क्षेत्र” से मेरा तात्पर्य आधुनिक राज्य यानि देशों से
हैं| अर्थात यह युद्ध समुदायों के मध्य होगा|
यह युद्ध धूर्तों और मूर्खों के बीच नहीं होने जा रहा है|
मुर्ख तो मुर्ख होते ही है, धूर्त भी मुर्ख ही होते हैं| मुर्ख अज्ञानी होते हैं,
लेकिन उनकी नीयत में दुष्टता नहीं होती है| धूर्त ज्ञानी होते हैं, लेकिन उनकी
नीयत में दुष्टता होता है| धूर्तों का व्यक्तिगत या एक छोटे समूह तक ही सोच एवं
हित होता है| इन धूर्तों की सोच एवं हित में व्यापक समाज एवं मानवता नहीं होता है|
इनकी सोच में एक राष्ट्र भी समा नहीं पाता है| आप कह सकते हैं कि उनकी सोच में वे
धूर्त एवं उनके तथाकथित वंश के लोग तक ही सीमित होते हैं| उनके दायरे में जीव की
प्रजाति “होमो सेपियन्स” नहीं समा पाता है| भारत में इन तथाकथित वंश को “जाति एवं
वर्ण” कहा जाता है|
बुद्धिमानों के पास बुद्धिमता होता है, जिसमे तर्क क्षमता
एवं विश्लेषण क्षमता होता है, और विवेकपूर्ण निर्णय लेने की समझ भी होता है| इनका
सोच एवं व्यवहार कल्याणकारी होता है| इनके सोच एवं व्यवहार में सम्पूर्ण मानव जाति
समाहित होता है| ध्यान दें, मैंने ‘बुद्धिमता’ शब्द का प्रयोग किया है| बुद्धिमता
का गुण पशुओं में नहीं पाया जाता है| बुद्धिमता किसी भी जीव में अपनी “सोच विचार”
पर सोच विचार करने की क्षमता एवं योग्यता है| अत: बुद्धिमता अपने सोच विचार पर
विचार करने से ही विकसित होता है| यह विशिष्ट योग्यता किसी ज्ञात जीवित जीव में
शायद सिर्फ मानव में ही है| यह विशिष्ट योग्यता पशुओं में नहीं होता है| पशु
शारीरिक आवश्यकताओं (Physiological Needs) एवं सहज तथा स्वाभाविक क्रियाओं (Reflex
Action) का अनुपालन करता है| स्पष्ट हो कि बुद्धिमता के अभाव में कोई जीव पशुवत ही
है, चाहे वह होमो सेपियन्स ही है| इसी आधार पर आप पशुवत जीवों की श्रेणी में मानव
जाति के कुछ समूह को शामिल कर सकते हैं, या उससे बाहर रख सकते है; यह आपके
विवेकशीलता पर निर्भर करता है| बुद्धिमता में कल्याण एवं विवेक दोनों तत्व शामिल
हैं|
अब आज के वैश्विक परिदृश्य का अवलोकन किया जाय| किसी समुदाय
ने सोच एवं विचार के हर आयाम (Dimension) में पैरेडाइम शिफ्ट कर लिया है और अकल्पनीय
अवधारणाओं एवं तकनीक का विकास कर लिया है| वही दूसरी ओर, दूसरा समुदाय अपने सदियों
एवं सहस्त्राब्दियों पुरातन व्यवस्था को दुरुस्त करने में लगा है| ऐसा समुदाय कुछ
वंशगत समूहों के निजी लाभ के लिए व्यापक समाज को चिन्तनशील बनाना नहीं चाहते हैं| ऐसा
समाज अपने ही परम्परागत सहयोगियों के पछाड़ने में अपना समय, संसाधन एवं उर्जा खर्च
करता रहता है| ऐसा समुदाय मुख्यत: मुर्ख एवं धूर्त है, बुद्धिमान कदापि नहीं है|
यह समाज ज्ञान के क्षेत्र में उतना ही जानता है, जितना बहुत पहले जाना जा चूका है|
ऐसे समाज से कोई नया आविष्कार या नया अवधारणा के उपज की कोई संभावना नहीं रहती है|
इसीलिए इन समुदायों में किसी को भी विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में नोबल
पुरस्कार या प्रतिष्ठित सम्मान नहीं मिलता है|
जो बुद्धिमान हैं, वे साधन संपन्न भी है| यदि वे बुद्धिमान
हैं, तो वे अमीरों की सूचि में भी शामिल हैं| इसका यह अर्थ कदापि नहीं निकाला जाना
चाहिए, कि सभी अमीर बुद्धिमान ही हैं| इसके साथ ही इन्हें मानवता के कल्याण की
चिंता भी है| वे इस मानवता को दुसरे ग्रह (Planet) एवं आकाश गंगा (Milki Way) तक
ले जाना चाहते हैं| ये मानव को तार्किक, विश्लेषक, एवं विवेकशील समझते हैं| जो इस
श्रेणी में नहीं है, उनको ये लोग शायद मानव भी नहीं मानते हैं| इन बुद्धिमान लोगों
ने अर्थव्यवस्था के कृषि प्रक्षेत्र, ओद्योगिक प्रक्षेत्र एवं सेवा प्रक्षेत्र में
मानव संसाधन की ज्यादा संख्या की आवश्यकता का विकल्प खोज लिया है| अब इन तीनों
प्रक्षेत्रों में बहुत कम मानवों की जरुरत है, वह भी समझदार एवं कुशल मानव की| अब
अर्थव्यवस्था के चौथे एवं पांचवें प्रक्षेत्र में ही लोगों की आवश्यकता रह जाएगी|
आप भी जानते होंगे कि ज्ञान (Knowledge) क्षेत्र को चौथा प्रक्षेत्र कहते हैं| नीति
निर्धारण (Policy Decision) एवं नवाचार (Innovation) पांचवें प्रक्षेत्र में आता
है| अनावश्यक जीवों एवं पदार्थों को ही प्रदुषक (Pollutant) माना जाता है| हर बुद्धिमान
व्यक्ति प्रदुषक को नष्ट कर प्रदुषण (Pollution) को समाप्त करना चाहता है| बाकि तो
आप भी समझते हैं कि नष्ट किसे होना है?
आज विश्व में बढती
आबादी की आवश्यकताओं ने वैश्विक पर्यावरण (Environment) एवं पारिस्थिकी तंत्र (Ecocosystem)
को बिगड़ता जा रहा है| इस स्थिति को परंपरागत सोच ने और नियंत्रणविहीन कर दिया है|
वैश्विक मौसम परिवर्तन ने बुद्धिमानों को चिंता में डाल दिया है| अगले दो दशक में
स्थिति और बदतर होने जा रही है| वैश्विक आबादी विस्फोटक हो गयी है और आप अगले दो
दशक के बाद हालत का अनुमान कर सकते हैं| एक संतुलित पारिस्थिकी तंत्र के लिए आदर्श
आबादी को एक अरब यानि एक सौ करोड़ से कम मानी जा रही है| तो क्या बाकि आबादी प्रदूषक
है? तो इस आबादी के प्रदूषक एवं उपयोगी में विभाजन का आधार क्या हो सकता है? मेरे
हिसाब से, “बुद्धिमता” ही प्रदूषक एवं उपयोगी का एकमात्र आधार हो सकता है| अवांछित
पदार्थ (Undesired Material) ही प्रदूषक कहलाता है| प्रदूषक को नष्ट होना है, यानि
उनका वंश आगे नहीं जाएगा| इसलिए वंश को आगे ले जाने के लिए बुद्धिमता (भविष्य का
उपयोगी होना) ही एकमात्र शर्त है| यह बुद्धिमता वैज्ञानिक मानसिकता से ही आती है|
अत: आस्था को छोड़ कर प्रश्न पूछिए और बुद्धिमान बनिए| प्रकृति में विश्वास और
प्राकृतिक शक्तियों में विश्वास एक ही चीज है| परन्तु प्रकृति एवं ईश्वर में
विश्वास एक नहीं है, इसे आप अच्छी तरह स्पष्ट कर लें|
अब विश्व की विज्ञान एवं तकनीक की स्थिति का आकलन कर लें|
इससे हमें और आपको भी अपनी अपनी स्थिति इनके सन्दर्भ में समझने में सहायता मिलेगी|
आज का क्वांटम अवधारणा (Quantum Concept), ब्लाकचेन तकनीक (Block Chain Technology),
समय एवं आकाश (Space) की आइंस्टीन की अवधारणा (Special n General Theory of
Relativity), डेटावाद (Big Data), नैनो तकनीक (Nano Technology), रोबोटिक्स (Robotics),
कृत्रिम बुद्धिमता (Artificial Intelligence), इन्टरनेट ऑफ़ थिंग्स (Internet of Things),
इन्टरनेट ऑफ़ मशीन, स्मार्ट उर्जा (Smart Energy), क्लाउड कम्प्यूटिंग (Cloud
Computing), सिमुलेसन (Simulation) (किसी वास्तविक चीज, प्रक्रम, या गतिविधि का
नक़ल करना), संवर्धित वास्तविकता (Augmented Reality) आदि दो दशक के बाद अपनी
संवर्धित (Amplified/ Improved) अवस्था में होगा| वह समय साइबर शारीरिक तंत्र (Cyber
Physical System) का होगा जिसमे न्यूनतम मानव की जरुरत ही होगी| ऐसी स्थिति में आप
भी मानव के व्यावहारिक उपयोग के सन्दर्भ में सोच सकते हैं|
जब मुर्ख एवं धूर्त समुदाय आपस में अवैज्ञानिक आधार पर जाति,
लिंग, धर्म, सांस्कृतिक विभेद में उलझे एवं भटके रहेंगे, उस समय बुद्धिमान समुदाय
बहुत आगे जाता हुआ होगा| वृद्धि दर में वृद्धि यानि त्वरण (Acceleration) की गति
से बुद्धिमान समुदाय की बौद्धिक एवं तकनिकी स्थिति का दो दशक आगे का आकलन कर लें| तबतक
बिमारियों एवं महामारियों के (बहाने) नियंत्रण के लिए सभी के शरीर में माइक्रो चिप्स
लग चुके होंगे| ये चिप्स सिर्फ पल्स दर, तापमान, चीनी का स्तर, रक्त दाब ही नहीं
बताएँगे, बल्कि आप की सम्पूर्ण गतिविधियों की जानकारी देकर बुद्धिमानों की बिग
डाटा को समृद्ध करेंगे| अभी एलन मस्क (Elon Musk) की न्यूरालिंक (Neuralink) कंपनी
ने जो सूक्ष्म चिप्स बनायें हैं, वे 90 000 न्यूरोन (Nuron) को जोड़ता है| ये चिप्स
मानव के सोच को पढ़ सकेंगे, तो यह निश्चित भी है, कि ये मानव की सोच को नियंत्रित
भी कर सकेंगे| इन तंत्रों (चिप्स) के प्रत्यारोपण (Implantation) के बाद इन लोगों
को यह पता ही नहीं चल पायेगा, कि इन्हें
कब, कौन, क्यों, और कैसे नियंत्रित (Control) एवं नियमित (Regulate) कर रहा है? ये
लोग यही करेंगे जो इनके नियंत्रक चाहेंगे| इन मानवों का अपने स्वंय पर कोई
नियंत्रण नहीं होगा|
मुर्ख एवं धूर्त समुदाय जब अपने कुल, वंश, जाति, धर्म, संस्कृति,
लिंग के आधार पर एक दुसरे से तथाकथित सर्वोच्चता पाने में बर्बाद होते रहेंगे,
तबतक बुद्धिमान समुदाय अकल्पनीय गति से इन मूर्खों के सोच के दायरे से बहुत दूर जा
चुके होंगे| मुर्ख समुदायों के देशों में धूर्त अपनी बुद्धि, षडयंत्र, और कारनामे
का उपयोग इन मूर्खों को नियंत्रित एवं नियमित करने में लगाते रहते हैं| वे
बुद्धिमता के भ्रम में जीते रहेंगे| उन्हें वैश्विक बुद्धिमता के स्तर का आभास (Intution)
अभी नहीं है| उन्हें अपनी ईश्वरीय शक्ति पर भरोसा होता है| वे इस शक्ति पर अपने को
नियंत्रक समझते हैं| वे ईश्वरीय शक्ति और प्राकृतिक शक्ति में अंतर नहीं समझते
हैं| इन मुर्ख एवं धूर्त समुदाय के द्वारा, यदि किसी के द्वारा सर्वोच्चता जीत भी ली
गयी तो, प्राप्त सर्वोच्चता की कोई अर्थ नहीं रह जाएगा| अब विश्व समुदाय अलग थलग
नहीं है, बल्कि एक वैश्विक गाँव के निवासी हो गए हैं| एक समय के बाद (दो दशक के
अन्दर) ये जीते हुए एवं हारे हुए समुदाय विश्व जगत के प्रदूषक बन चुके होंगे| ऐसी
स्थिति में ये निपटान के योग्य (Disposable) घोषित किये जा चुके होंगे|
आज विश्व के कुछ बुद्धिमान व्यक्ति की व्यक्तिगत सम्पदा ही दो
ट्रिलियन डालर से भी अधिक की है| मैंने उनकी कम्पनी की बात नहीं की है, क्योंकि वह
राशि और ज्यादा हो जायेगी| ध्यान रहें कि भारत की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था ही तीन
ट्रिलियन डालर से भी कम ही है| ऐसे लोगों के क्लब यानि समूह की शक्ति का अंदाजा
लगाइए| इन वैश्विक राजाओं के सामने वर्तमान देशों के शासनाध्यक्ष की हैसियत मात्र
किसी कंपनी के क्षेत्रीय प्रबंधक की है और भविष्य में भी रहेगी| मानव एवं प्रकृति
के कल्याण के नाम पर बनायी गयी नीतियों एवं कार्यक्रमों के बारे में इन मूर्खो एवं
धूर्तों की अपनी कोई समझ ही नहीं है| वे (ये शक्ति समूह) जो दिशा निर्देश देते
हैं, उसके निरिक्षण एवं विश्लेषण की कोई सोच या क्षमता इन मुर्ख समुदायों की नहीं
है| ये उतना ही जानते हैं, जितना दुनिया में अब तक जाना जा चूका है| यानि वे उतना
ही जानते हैं, जितना वे जानने की अनुमति देते हैं| क्योंकि इनमे अपनी सोच की
क्षमता नहीं होती है, कि वे कोई मौलिक सोच का विकास कर पायें| आस्थावान हरेक घटना
को ईश्वरीय कृपा ही मानते हैं| ऐसे समाज से कोई नवाचार की उम्मीद नहीं है, कुछ
आकस्मिक अपवाद को छोड़ कर|
दो दशक के बाद,
सॉफ्टवेयर के विकास के कारण विदेशों से खरीदें गए सभी सामानों या उनके सहयोग से
निर्मित सभी सामानों में ऐसे सॉफ्टवेयर लगे होंगे कि इन मुर्ख एवं धूर्त समुदाय को
कुछ पता ही नहीं चलेगा| इन समुदायों के हथियार, उपकरण एवं तंत्र प्रणाली कब उनके (बुद्धिमानों
के) नियंत्रण में कार्य करने लगेगे, किसी (मुर्ख
एवं धूर्त समुदाय) को पता ही नहीं चलेगा| इन समुदायों के हथियार, उपकरण, एवं तंत्र
प्रणाली को कभी भी इनके इच्छा के विरुद्ध ध्वस्त किया जा सकता है| आप दो दशक के बाद
की स्थिति की कल्पना कीजिए| ऐसा युद्ध एक सप्ताह से ज्यादा टिक नहीं सकता है| इस
तरह तीसरा विश्व युद्ध देशों के बीच नहीं होगा| यह युद्ध बुद्धिमानों एवं मूर्खों के
समर्थक देशों के मध्य होगा| इन मूर्खों एवं धूर्तों के मनोविज्ञान को समझकर इनको
साफ करना ऐसे भी आसान है|
मेरे इस आलेख
का सन्देश यह है, कि हमारा समाज बुद्धिमान बनें, हमारा समाज वैज्ञानिक मानसिकता विकसित
करे| हमारा समाज आस्थावान नहीं बने, हरेक घटनाओं पर प्रश्न पूछें| यदि जेम्स वाट
आस्थावान समाज में पैदा होते, तो पानी उबलने से ढक्कन के उछलने को ईश्वरीय कृपा
मान कर शांत हो गए होते| इसके लिए हरेक घटना का तार्किक आधार प्राकृतिक या मानवीय स्तरीय
पर खोजें, घटनाओं का विश्लेषण करना जाने और वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष
निकालें| यदि ऐसा नहीं करते हैं, तो यह समाज भी प्रदूषक मान लिया जायेगा| इससे
बचिए| अपने बच्चो को वैज्ञानिक मानसिकता का संस्कार दीजिए| अन्यथा मुर्ख या धूर्त
की श्रेणी में मान कर प्रभावित हो जायेंगे|
मेरे आलेख के
शब्दों, भावों और सन्दर्भों पर विचार कीजिए| शब्द लेखक के होते हैं, परन्तु इसके
अर्थ पाठकों के अपने होते हैं| शब्दों के अपने अर्थ निकालिए और समझिये| स्विस
विद्वान फर्डीनांड डी सौसुरे कहते हैं, कि
शब्दों का कोई एक विशिष्ट (Specific) अर्थ नहीं होता है| शब्दों का अर्थ समय के सन्दर्भ,
लेखक के मंशा, भावनाओं की पृष्ठभूमि, उसके निहित भाव और सम्पूर्ण आलेख से
निर्धारित किया जा सकता है| अर्थ एवं भाव, सब कुछ आप पर, आपके बुद्धिमता पर और
आपके संवेदनशीलता पर निर्भर करता है| मेरे इस आलेख पर मनन मंथन किया जा सकता है|
आप अपने सुझाव,
टिपण्णी एवं आलोचना से ब्लाग पर अवगत करा सकते हैं|
निरंजन सिन्हा
मौलिक चिन्तक, व्यवस्था विश्लेषक एवं बौद्धिक उत्प्रेरक|