शनिवार, 15 मई 2021

आज बुद्ध महत्वपूर्ण क्यों?

 

आज बुद्ध महत्वपूर्ण क्यों?


वस्तुत: यह विषय उन लोगों के लिए है जिनको

बुद्ध में विज्ञान, वैज्ञानिकता एवं सफल जीवन की समझ

खोजना है|

 

आज विज्ञान का युग है| विज्ञान का युग का एकमात्र अर्थ होता है कि हर बात तथ्य, तर्क, साक्ष्य एवं विश्लेषण पर आधारित हो; अन्यथा इसके किसी भी एक तत्व के अभाव में हर बात बकवास मानी जाती है| आज हर कोई हर बात में, हर विषय में, हर सन्दर्भ में, और हर प्रसंग में विज्ञान एवं वैज्ञानिकता खोजता है, तलाशता है, देखता है| दरअसल यह विषय (यह पुस्तक) उन्हीं लोगो के लिए है जिनको अपने जीवन में, समाज में, हर क्षेत्र में विज्ञान एवं वैज्ञानिकता की जरुरत है| यह पुस्तक बुद्ध की शिक्षाओं एवं दर्शन में विज्ञान एवं वैज्ञानिकता का अवलोकन कराता है, गंभीर वैज्ञानिक सिद्धांत को रेखांकित करता है| यह सब बुद्ध की शिक्षाओं में है|

 

आज हमें जीवन के हर क्षेत्र में वृद्धि (Grwoth) तो दिखती है परन्तु क्या हम उसे विकास (Development) या प्रगति (Progress) कह सकते हैं? जीवन में वृद्धि तो है परन्तु उतना ही अशांति, असंतोष, तनाव, परेशानी एवं अवसाद भी है| इन सबों के साथ कलह (आन्तरिक एवं बाह्य संघर्ष) व्यक्तिगत जीवन में, पारिवारिक जीवन में, सामूहिक जीवन में, सामाजिक जीवन में एवं वैश्विक जीवन में व्याप्त एवं गंभीर है| लोगो को जीवन की सार्थकता एवं मकसद की तलाश है| पर यह समझ भी सभी लोगों में अवचेतन (Sub Conscious) एवं अचेतन (Un Conscious) स्तर पर ही है, चेतन (Conscious) अवस्था में इसे समझने वाले तो नगण्य ही हैं| लोग अपने जीवन मूल्यों को समझना चाह रहे है और उसे स्थापित भी करना चाह रहे हैं, पर उन्हें यह समझ में नहीं आता है कि उन्हें क्या और कैसे करना चाहिए? ऐसे ही तलाश कर रहे भोले भाले लोगों को पाखंडी तथाकथित धर्म गुरुओं के झांसे में आना एवं बरबाद होना पड़ता है| ऐसी कहानियां विश्व में भरी पड़ी है और आप अपने आस पास भी आसानी से देख सकते हैं| ऐसी स्थिति में समाज के प्रबुद्ध जनों को बुद्ध से ही एकमात्र आशा है जो पाखंड, अंधविश्वास एवं ढोंग से मुक्त हो, और विज्ञान पर आधारित हो|

 

समाज में, और राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवीय मूल्यों का पतन, मानवीय गरिमा का खुलेआम खण्डन, सामाजिक असामनता आदि को देख कर कोई भी संवेदनशील व्यक्ति व्यथित हो जाता है| जीवन में दुःख, अवसाद, अशांति, तनाव और कष्ट का समाधान नहीं दीखता है| लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि इन सबो का क्या निदान है? कैसे इन सबों पर आसानी से विजय यानि फतह पाया जा सकता है? बुद्ध ने उपाय तो बताया था, परन्तु वह भी आज एक परंपरागत धर्म के रूप में प्रस्तुत है| आज के लोग विज्ञान में समाधान चाहते हैं, तथाकथित पाखंडियों के द्वारा दिए गए समाधान से बचना चाहते है| कोई भी समाधान समझने में सरल हो, करने में सहज हो, जीवन में व्यावहारिक हो, और निश्चितया तर्क, साक्ष्य, विश्लेषण एवं विज्ञान से समर्थित हो| सामन्तवादियों ने जाने में या अनजाने में इनकी शिक्षाओं एवं दर्शन को ऐसे विरूपित कर दिया है कि आज यह भी अन्धविश्वास एवं पाखण्ड से अछूता नहीं रह गया है| इनकी शिक्षाओं को आज भी ऐसे प्रस्तुत किया जाता है, मानो यह बुद्ध की वैज्ञानिक एवं सामाजिक शिक्षा नहीं होकर बुद्ध द्वारा स्थापित कोई धार्मिक शिक्षा हो| इनकी शिक्षाओं को धर्म एवं बुद्ध को ईश्वर बना कर इसे अन्य धर्मों की श्रेणी में ला दिया है| समाज के प्रबुद्ध जानना चाहते हैं कि बुद्ध क्यों एक वैश्विक व्यक्ति बन सके? समाज के प्रत्येक समझदार व्यक्ति बुद्ध की वैज्ञानिक एवं सामाजिक शिक्षाओं को जानना चाहता है| मैनें इसी सम्बन्ध एक प्रयास किया है|

 

आज तथाकथित बुद्ध के अनुयायी इस प्रचार से बहुत खुश हो जाते हैं कि बौद्ध धर्म को विश्व का सर्वश्रेष्ठ धर्म मान लिया गया है; मैं नहीं जानता कि इस दावे में कितनी सच्चाई है? यदि यह दावा सही है अर्थात इसे विश्व का सर्वश्रेष्ठ धर्म मान ही लिया गया है तो यह बौद्ध दर्शन एवं शिक्षा के विरुद्ध एक गहरा एवं गंभीर षड़यंत्र है| बुद्ध की शिक्षाएँ एवं दर्शन तो शुद्ध विज्ञान है, सफल सामाजिक जीवन का प्रबंधन तकनीक है, यह तो धम्म है, धर्म नहीं| किसी के द्वारा धम्म को धर्म के भावार्थ में अनुवाद कर और दोनों को एक दुसरे का पर्यायवाची बनाकर एक गहरा एवं खतरनाक बौद्धिक षड़यंत्र किया गया| बुद्ध की शिक्षाओं एवं दर्शन को सर्वश्रेष्ठ धर्म बता कर इसे पहले तथाकथित धर्म के श्रेणी में लाया गया है यानि इसे विज्ञान के सर्वोच्च स्तर से उतार कर धर्म के निम्न एवं काल्पनिक स्तर पर लाया गया| वही धर्म जिसे महान दार्शनिक एवं सामाजिक वैज्ञानिक कार्ल मार्क्स ने अफीम से तुलना कर समाज के लिए घातक बताया था| एक बार जब इसे सर्वश्रेष्ठ धर्म बना दिया गया, मतलब यह भी विज्ञान के स्तर यानि श्रेणी में नहीं रहा और यह धर्म के श्रेणी में आ गया| अब यह वैसा ही धर्म हो गया जैसा अन्य अंधविश्वास, पाखण्ड एवं कर्मकांड से भरा दूसरा धर्म है| अब इसमें भी पुरोहितवाद अपने विशिष्ट तरीकों से प्रभाव फैलाने के लिए पाखंड स्थापित कर सकता है| ऐसे लोग को तो इस पर धर्म का ठप्पा लगने से खुश होना स्वाभाविक ही है|

 

कोई अपना धर्म नहीं बदलना चाहता, और बदलना भी नहीं चाहिए क्योंकि धर्म किसी की आस्था का विषय होता है| और इसीलिए किसी के आस्था एवं धार्मिक विश्वास में किसी भी प्रकार का कोई भी अतिक्रमण यानि हस्तक्षेप होना भी नहीं चाहिए| इसी कारण किसी दुसरे धर्मावलम्बी के धर्म को बदलने की कोशिश एक घृणात्मक कार्य या नीच कार्य कार्य की श्रेणी में माना जाता है| इसे धर्म की श्रेणी में लाने का एक दूसरा अर्थ यह भी निकलता है कि चूँकि यह भी एक धर्म ही है और इसीलिए इसे भी एक धर्म की ही तरह अपने व्यवहार एवं कर्तव्य नियंत्रित करने चाहिए एवं इस मर्यादा का उल्लंघन भी नहीं होना चाहिए| सभी धर्म वाले अपने – अपने धर्म को देखें और किसी भी दुसरे के धर्म में हस्तक्षेप नहीं करें अर्थात सभी मठाधीशों का धार्मिक साम्राज्य अखंड बना रहे| मैं फिर स्पष्ट करूँ कि यह धर्म है ही नहीं, और इसीलिए यह किसी धर्म में कोई हस्तक्षेप करता ही नहीं है| इसे अज्ञानी एवं नादान लोग ही धर्म का स्वरुप देते हैं और मानते हैं| हाँ, कुछ लोगों की सामाजिक एवं सांस्कृतिक अवस्था इतनी दयनीय हों और वे धर्म के बिना जीवित नहीं रह सकते यानि कोई समाज कतिपय छोटे अवधि में बदल नहीं सकते और उनका बदलना बहुत से कारणों से जरुरी हो तो इसे धर्म के रूप में उपयोग कर समाज के कल्याण किए जाने के ऐतिहासिक उदाहरण भी प्रेरणादायक है| बुद्ध की शिक्षाओं को किसी भी अन्य धर्म से कोई आपत्ति भी नहीं है| वास्तव में जब बुद्ध का आगमन हुआ, उस समय ऐसा कोई तथाकथित दूसरा धर्म (वर्तमान स्वरुप में) अस्तित्व में था ही नहीं कि जिस पर यह किसी भी प्रकार कोई प्रतिक्रिया दे सकता|

 

यह स्वयं  (Self) का अवलोकन, स्वयं का नियंत्रण, स्वयं पर केन्द्रण

की निष्पक्ष, सरल, सहज, व्यक्तिगत, एवं वैज्ञानिक विधि बताते हैं

जिसे सभी को जानना चाहिए|

जब आपको स्वयं का अवलोकन करना आ गया तो आपकी लगभग सारी समस्याएं समाप्त हो गयी| तब आप स्वयं का प्रबंधन भी करते हैं|

सामाजिक एवं भावनात्मक बुद्धिमता (Social and Emotional Intelligence) के बिना

साधारण यानि संज्ञानात्मक बुद्धिमता (General or Cognitive Intelligence)

भी प्रभावोत्पादक नहीं माना जाता है|

आज सामाजिक बुद्धिमता को ही सफलता का सही विज्ञान बताया जा रहा है| बुद्ध का आष्टांगिक मार्ग यही है|

आप अपने कोई भी वैचारिक उत्पाद,

चाहे उसका स्वरुप वस्तु हों, सेवा हो, संपत्ति हो, व्यक्ति हो,

स्थान हो, नीति हो, कार्यक्रम हो, विचार हो या आदर्श हो,

बिना मार्केटिंग समझ के आप इस संसार में स्थापित नहीं हो सकते|

बुद्ध का मार्केटिंग सिद्धांत विश्व का पहला विपणन सिद्धांत था और आज भी पूरा प्रासंगिक है, जिसे सभी सफल व्यक्ति या समाज जानना चाहेगा|

आप विज्ञान एवं वैज्ञानिकता समझे बिना इस विज्ञान के युग में ढंग से एक कदम भी नहीं चल सकते| बुद्ध विज्ञान एवं वैज्ञानिकता के मूल (Fundamental), मौलिक (Original), आधारभूत (Basic) एवं तर्कसंगत (Logical) अवधारणा समझाते हैं जिससे सभी की वैज्ञानिक समझ बढ़ जाती है|

 ये हर बात तर्क, विश्लेषण एवं शंका पर आधारित करते रहे ताकि विज्ञान का विकास एवं मानवता का कल्याण होता रहे|

बुद्ध अपने अध्यात्म में

आत्म (स्वयं) को अनन्त प्रज्ञा (Infinite Intelligence) से जोड़ने एवं

उसकी शक्तियों को प्राप्त करने की समझ पैदा करते है|

यह बहुत ही विशिष्ट विषय है कि कैसे कोई व्यक्ति इन शक्तियों का प्रयोग कर महान एवं असंभव कार्य कर पाता है|

बुद्ध प्रकृति की क्रिया विधि (Mechanics of Nature) समझाते हैं|

इनकी इस सम्बन्ध में शिक्षाएँ आज क्वांटम क्षेत्र सिद्धांत (आधुनिक भौतिकी) के अनुरूप है और सटीक भी है| इसीलिए इसे जादू, धर्म और विज्ञान से भी ऊपर का चौथा अवस्था बताया जाता है|

बुद्ध यह भी समझाते हैं कि समुचित न्याय (Proper Justice)

कैसे विकास एवं समृद्धि को सहारा एवं समर्थन देता है|

स्पष्ट है कि यह विज्ञान के कई प्रत्यक्ष जीवन उपयोगी लाभप्रद सिद्धांत एवं अवधारणा समझाता है जो हर सफल व्यक्ति या संस्थान का मूल आधार है, चाहे वह इसे किसी भी नाम से जाने या नहीं जाने| अब आप ही बताए कि यह सब जानना कैसे किसी धर्म में हस्तक्षेप है या किसी धर्म का हिस्सा है? क्या हम बीमार (चाहे वह मानसिक ही हो) होने पर उचित दवा नहीं लेते या समुचित व्यायाम नहीं करते? यह सत्य है कि इसे धर्म या आस्था या विश्वास से कोई लेना देना नहीं है, यह तो शुद्ध विज्ञान है| बुद्ध के शिक्षाएँ भी तो शुद्ध विज्ञान है|

 

सभी वर्तमान धर्मों (जिसमे तथाकथित बौद्ध धर्म भी शामिल है, यदि यह धर्म है तो) का तथाकथित स्वरुप मध्य काल में आया| मध्य काल, जो सामंतवाद के उदय के साथ अस्तित्व में आया, एक बड़े आर्थिक उथल- पुथल यानि बड़े आर्थिक परिवर्तन के साथ आया| उत्पादन की शक्तियों और उनके अंतर संबंधों में परिवर्तन से सामाजिक विकास एवं उसके रूपांतरण की प्रक्रिया प्रभावित एवं निर्धारित होती है| यह आधार इतिहास के सभी समयों एवं क्षेत्रो की सटीक व्याख्या करती है| यह इसी आधार पर बुद्ध के उदय, विकास, रूपांतरण  एवं तथाकथित अंत की व्याख्या कर देती है|

 

आइए, ऐसे महान बुद्ध की शिक्षाओं को जाने ताकि आधुनिक सन्दर्भ में इसका लाभ लिया जा सके|

निरंजन सिन्हा

व्यवस्था विश्लेषक एवं चिन्तक

(प्रकाश्य पुस्तक – “बुद्ध महान क्यों?” से)

 

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपके इस बौद्धिक प्रयास की मैं सराहना करता हूँ. बुद्ध की शिक्षा को आज केलिए उपयोगी बनाने हेतु उसका विश्लेषण और परिमार्जन आवश्यक है. इसके अभाव में पाखण्ड विकसित होने की सम्भावना होगी.

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  2. आपके इस बौद्धिक प्रयास की मैं सराहना करता हूँ. बुद्ध की शिक्षा को आज केलिए उपयोगी बनाने हेतु उसका विश्लेषण और परिमार्जन आवश्यक है. इसके अभाव में पाखण्ड विकसित होने की सम्भावना होगी.

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  3. सही कहा आपने।
    धर्म में जहाँ मंत्र, कर्मकांड, यज्ञ, बलि आदि का महत्वपूर्ण स्थान है वहीं धम्म का सम्बंध मानव-मानव के बीच परस्पर योग्य और कुशल आचार-व्यवहार और मानवोचित गुणों के विकास से है। धम्म को धर्म बताने का कार्य वही लोग कर रहे है जो बुद्ध, रैदास, कबीर कि शिक्षाओं, उनके विचार स्थापनाओं को विकृत कर ब्राह्मणीकरण करने का कार्य निरन्तर कर रहे है।

    भटके हुए बहुजनों को सत्य से परिचित कराने एवं मानव कल्याण के निमित किया जाने वाला आपका यह बौद्धिक प्रयास सराहनीय है।

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  4. बुद्ध की शिक्षाओं को धर्म का रूप देने से उनका हरण क्षरण और वैज्ञानिकता का लोप हो जाता,जिसको बुद्ध अपने शिक्षाओं में स्पष्ट रूप से प्रतिपादित और प्रतिष्ठापित करते हैं; आपके गहन लेख से यह स्थापित है
    सादर 🙏🙏🙏🙏🙏

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  5. बहुत रिसर्च के बाद का परिणाम , बहुत बढ़िया 😆🙏

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  6. So well researched and so well explained. After reading this post one can easily see the aberration, what the actually Buddha preached & practiced and how it has been presented and promoted in the name of Buddhusm as a religion. The concept of Today's buddhism is a sharp contrast of the actual Buddha Philosophy

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