व्यवस्था अर्थात शासन
हर प्रचलित संस्कृति को
पुरातन, सनातन, ऐतिहासिक, सर्वव्यापी
एवं गौरवशाली
साबित करना चाहती है|
क्यों?
यह
एक बहुत महत्वपूर्ण और विचारणीय विषय है| व्यवस्था को ही शासन कहना अनुचित नहीं होना चाहिए| व्यवस्था
में हम, आप और सब कोई शामिल होते हैं, लेकिन
शासन में विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका पर ही ध्यान
जाता है| सामान्यत: शासन प्रचलित संस्कृति का ही
उत्पाद होता है और इसीलिए दोनों का स्वार्थ एक ही होता है| दोनों ही एक दुसरे के अस्तित्व का संरक्षक होता है| एक
संस्कृति को पुरातन, सनातन, ऐतिहासिक
एवं गौरवशाली क्यों होना होता है?
डॉ
आम्बेडकर भी हर सकरात्मत्क एकं सृजनात्मक राजनितिक व्यवस्था के निर्माण की पूर्व
शर्त सांस्कृतिक व्यवस्था में परिवर्तन के होने को स्थापित करते रहे हैं| यह सांस्कृतिक
व्यवस्था के महत्त्व को रेखांकित करता है| मैं
संस्कृति पर इतना जोर क्यों देता हूँ? संस्कृति क्या है? संस्कृति किसी जनसमूह या समुदाय की किसी खास समय पर उनके जीवन जीने का तरीका है और इसमें उस जनसमूह की सामान्य परम्परा एवं विश्वास समाहित है। किसी देश की संस्कृति उसकी सम्पूर्ण मानसिक निधि को सूचित करती है। संस्कृति
किसी समाज के वे सूक्ष्म संस्कार हैं और किसी समाज में गहरार्इ तक व्याप्त गुणों
की समग्रता है जो उस समाज के सोचने, विचारने, एवं कार्य करने से बना है। संस्कृति जीवन जीने की विधि है। संस्कृति मानव द्वारा उत्त्पन्न एक मानसिक पर्यावरण है। यह संस्कृति सामाजिक
तंत्र चलाने वाला महत्वपूर्ण साफ्टवेयर है। इसका निर्माण उस समुदाय के इतिहास बोध (Perception of History) से
होता है| संस्कृति का निवास उसके मानस में होता है। इसलिए संस्कृति को बदलने के लिए इतिहास को बदलना होता है| हम कह सकते हैं कि संस्कृति मानवीय समाजों में पाए जाने वाले सामाजिक
व्यवहार और सामाजिक प्रतिमान है।
हम
लेखक जार्ज
ओरवेल को याद करते हैं| उनके
शब्दों में-
“जो इतिहास को नियंत्रण में रखता है,
वह भविष्य को भी नियंत्रण में रखता है|”
उन्होंने
यह भी बताया कि हर शासक वर्ग को शासितों के वर्ग पर शारीरिक एवं आर्थिक नियंत्रण
के अतिरिक्त मानसिक तौर पर भी नियंत्रण करना पड़ता है| शासित वर्ग पर
नियंत्रण करने के लिए उसके इतिहास बोध को बदलना होता है और इसे बदल कर ही संस्कृति
को बदला जाता है| बदले संस्कृति का प्रभाव सदियों
तक बना रहता है| संस्कृति को बदल देने से सब नियंत्रण
स्वचालित हो जाता है| शासित वर्गों को यह धर्म एवं धार्मिक
कर्तव्य लगता है| इसे बचाए रखना उनका धार्मिक उत्तरदायित्व
हो जाता है| उसे बदलने के लिए पुराने इतिहास को नष्ट करना
होता है| इसके लिए वह बुद्धिजीवियों का सहारा लेता है और
तकनीकी समर्थन के साथ मीडिया को नियंत्रित भी करना होता है| सामाजिक
वर्ग की व्याख्या देश एवं काल के अनुसार अलग अलग होता है, परंपरागत
भारत में वर्ग का आधार वर्ण एवं जाति ही रहा है|
प्राचीन काल और मध्य काल का विश्वव्यापी विभाजन सामंतवाद का
उदय होना माना जाता है|
इसने एक कल्पित वास्तविकता (Imaginary Realty) –
“मुद्रा” (Currency) को नष्ट कर दिया|
इसी
ने पुरानी सामाजिक, राजनितिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था को बदल
डाला| या यों कहे कि इससे पुरानी व्यवस्था का, पुरानी संस्कृति के नए स्वरुप में रूपांतरण (Transformation) या विरूपण (Distortion) हो गया| इसी काल में धर्म के तथाकथित वर्तमान स्वरुप (वर्तमान भावार्थ) की
उत्पत्ति हुई| इसी समय यूरोप के रीजन में यूरोप में पहले से
स्थापित समाज सुधारक के वचनों, व्यवहारों, रीति- रिवाजों की पुनर्व्याख्या कर सामंतवाद के अनुरूप नया धर्म का स्वरुप
दिया गया जो रिलिजन (ईसाई)
के नाम से स्थापित हो गया| इसी तरह अरब के मजलिश में स्थापित समाज सुधारक के
वचनों, व्यवहारों, रीति- रिवाजों की
पुनर्व्याख्या कर सामंतवाद के अनुरूप नया धर्म का स्वरुप दिया गे जो मजहब (इस्लाम) के नाम से स्थापित हो गया|
इन सम्प्रदायों के प्रणेता एक सामाजिक एवं सांस्कृतिक सुधारक के रूप
में स्थापित हुए और सामंत काल में इसे एक अलग सम्प्रदाय का रूप दिया गया| उसी समय भारत में सामंतवाद के अनुरूप एक नया सम्प्रदाय चाहिए था जो
सामंतवाद का समर्थन करता हो| इसके लिए पालि के धम्म का
संस्कृत एवं हिन्दी में अनुवाद “धर्म” के
रूप में किया गया| इसे हिंदुस्तान का धर्म बताया गया|
भारत में इसके पहले समृद्ध एवं विकसित बौद्धिक संस्कृति थी जो
बुद्धि की संस्कृति थी|
ऐसे
सामंतवाद समर्थित नव संस्कृति को पुरातन, सनातन, ऐतिहासिक एवं
गौरवशाली साबित करने की बाध्यता होती है| कोई संस्कृति पुरातन है का
अर्थ है जो सबसे पुराना है यानि आदि काल में स्थापित इतिहास या संस्कृति है |
कोई संस्कृति सनातन है का अर्थ है जो प्राचीन काल में स्थापित हुआ
एवं आज तक अपनी निरंतरता बनाए हुए है, अर्थात आज तक निरंतरता
बाधित नहीं हुई है| कोई संस्कृति ऐतिहासिक है का अर्थ है जो
इतिहास के पन्नों में दर्ज है| अर्थात जो ठोस तथ्य, साक्ष्य, तर्क एवं विज्ञान पर आधारित है| कोई संस्कृति जब पुरातन हो, सनातन हो, सर्व व्यापी हो और ऐतिहासिक हो तो वह सबके लिए निश्चितया गौरवशाली होगा ही| गौरवशाली होना इतने सन्दर्भ में निहित है| जब आप
किसी को गौरवशाली स्थापित कर देते हैं तो इसके कई निहितार्थ स्वत: कार्यरत हो जाते
है, आपको बहुत नहीं सोचना है, आपको
बहुत प्रयास नहीं करना है| यह स्वतस्फूर्त होता रहेगा|
इसी कारण इसे गौरवशाली स्थापित करना जरुरी हो जाता है| अब आप समझ गए होंगे कि किसी संस्कृति को क्यों पुरातन, सनातन, ऐतिहासिक एवं गौरवशाली होना होता है?
इसके
लिए पहले से स्थापित पुरातन संस्कृति को नष्ट होना पड़ता है या करना पड़ता है| इसके लिए कई शिक्षण संस्थानों, शोध शालाओं एवं पुस्तकालयों को
नष्ट होना पड़ा| पुरे भारत में शिक्षण संस्थान एवं पुस्तकालय
नष्ट हुए| बिहार में पालि (एक रेलवे स्टेशन जो पटना और आरा
के बीच है) एवं पालीगंज (पटना जिला का एक अनुमंडल मुख्यालय) इन्ही के अवशेष को याद
दिलाते हैं| संस्कृति को सनातन बनाने के लिए इतिहास को
सभ्यता के शुरुआत तक ले जाना सबसे उत्तम विचार एवं उपाय है| भारत
में इसके इतिहास को पशुचारी अवस्था (पूर्व वैदिक काल) तक खिंचा गया और सबसे पुरातन
भी बताया गया| सन 1921 में यदि सिन्धु घाटी सभ्यता का उदघाटन
नहीं होता तो यह पशुचारी अवस्था की कहानी की सटीकता पर कोई प्रश्न नहीं उठता|
इस नव स्थापित संस्कृति की ऐतिहासिकता को स्थापित करने के लिए कई
साहित्य रचे गए| तथाकथित सबसे पुरातन साहित्य के बारे में
बताया गया कि उनलोगों को पढ़ना एवं समझना तो आता था लेकिन उन्हें लिखना नहीं आता था|
ऐसे कोई ग्रन्थ ग्यारहवीं शताब्दी से पहले के नहीं हैं| मुझे अपने बचपन का याद है, जब इतिहास में महाकाव्य
युग का वर्णन होता था परन्तु इसे अब इतिहास के पन्नों से हटा दिया गया| विश्व जनमत को ऐतिहासिक साक्ष्य चाहिए था जो नहीं था; और इसीलिए उसे इतिहास के पन्नो से हटाना पड़ा| अब
महाकाव्य काल का वर्णन इतिहास के रूप में नहीं, अब सिर्फ
आस्था के विषय के रूप में रह गया है| भारतीय इतिहास
अनुसन्धान परिषद् के संस्थापक अध्यक्ष प्रो राम शरण शर्मा ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी
प्रेस द्वारा प्रकाशित पुस्तक – “भारत का प्राचीन
इतिहास” में स्पष्टतया यह रेखांकित करते है कि वैदिक काल एवं साहित्य का कोई पुरातात्विक साक्ष्य नहीं है| इसलिए यह स्पष्ट है कि जिस संस्कृति को भारत में पुरातन, सनातन एवं ऐतिहासिक बताया जा रहा है, उसके सभी
साक्ष्य सिर्फ साहित्यिक है औए इनका कोई पुरातात्विक साक्ष्य ग्यारहवी शताब्दी के
पहले का नहीं है| यह सुस्थापित है|
इस
वर्तमान संस्कृति के पहले भारत में बौद्धिक संस्कृति थी जिसका उदय, विकास एवं समृद्धि भारत में ही
हुआ| इसके समर्थन में पाषाण काल, मेहरगढ़ एवं सिन्धु
सभ्यता और उसकी निरंतरता का पुरातात्विक साक्ष्य पुरे भारत में विखरे पड़े हैं|
सामन्त काल में इसी बौद्धिक संस्कृति का विरूपण हुआ और वर्तमान
स्वरुप में आया| यह आज भी भारत में अपनी पुरातनता, सनातनता एवं ऐतिहासिकता का खोखला दावा कर रहा है| यही
संस्कृति आज भारत को विश्व के सबसे बड़े मानव संसाधन के देश होने के बावजूद विकास
के पथ पर आगे बढ़ने नहीं दे रहा| इसका विशेष एवं सबसे
प्रमुख तत्व – जाति व्यवस्था है जो प्रतिभा को
वंशानुगत मानता है| यह व्यक्तित्व विकास और कौशल विकास को
हतोत्साहित करता है| इसे किसी अर्जित योग्यता से बदला नहीं
जा सकता|
वर्त्तमान
संस्कृति को ही गौरवशाली बताने का पुन: प्रयास किया जा रहा है जो मध्यकाल में
उत्पन्न हुआ और बाद के काल में विकसित हुआ| आप इसके पुरातनता, सनातनता और ऐतिहासिकता के
पुरातात्विक साक्ष्य खोजेंगे तो सामन्तवाद के काल के पहले का कोई भी पुरातात्विक
साक्ष्य या तार्किक कुछ भी नहीं मिलेगा| जब आप
सामाजिक विकास एवं रूपांतरण (इतिहास) की व्याख्या उत्पादन की शक्तियों एवं उनके
आपसी अंतरसंबंधों के आधार पर करेंगे तो परत डर परत सभी खुलते एवं स्पष्ट होते
जायेंगे| गौरवशाली भारत के पुनरोद्धार इसी अवधारणा
में है, इसी तथ्य में है, इसी इतिहास
में है| यही सत्य है, यही
साक्ष्य समर्थित है, यही तर्कसंगत है, यही
विश्लेषण पर आधारित है, और विज्ञान समर्थित है|
आपको और हमको सिर्फ इतिहास एवं संस्कृति को देखने के लिए
सन्दर्भ बदलना होगा, दृष्टिकोण बदलना होगा, नजरिया बदलना होगा,
अभिवृति बदलना होगा एवं पैरेडाईम शिफ्ट (Paradigm Shift) करना होगा|
सब
कुछ स्वत: स्पष्ट हो जायेगा| एक बार प्रयास तो कीजिये| भारत बदल जायेगा|
भारत एक बार फिर से नम्बर एक हो जायेगा|
मैं तो आशान्वित हूँ|
और आप?
निरंजन सिन्हा|
व्यवस्था विश्लेषक एवं चिन्तक|
आज की सामाजिक सांस्कृतिक परिस्थितियों को समझने के लिए विचारोत्तेजक लेख
जवाब देंहटाएं👍👍👍👍👍
आज की सामाजिक सांस्कृतिक परिस्थितियों को समझने के लिए विचारोत्तेजक लेख ����������
जवाब देंहटाएंअति सराहनीय लेखन के लिए निरंजन सर को साधुवाद।
जवाब देंहटाएंलेख सारगर्भित, सामयिक और विचारोत्तेजक है. संस्कृति को अच्छे ढंग से समझाया गया है. जब जब सत्ता समीकरण बदलते हैं या भिन्न विचारों वाली पार्टी या गुट सत्ता पर काबिज होता है, तब उस विचार के अनुरूप इतिहास के पुनर्निर्माण को सत्ताधारी अपनी सत्ता की वैधता हेतु आवश्यक समझते हैं. इस हेतु पूर्व नायकों का मानमरदन आवश्यक हो जाताहै।नये नायक गढे जाते है तथा उनको ऐतिहासिक बनाया जाता है। हर अच्छा वाद बाद में कट्टरवाद का शिकार हो जाता है।उस कट्टरवाद को वैध बनाने हेतु उसकी जरें इतिहास व संस्कृति में खोजी जाती है।
जवाब देंहटाएंविनय कुमार ठाकुर ACST IB BHAGALPUR
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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