अशोक यानि असोक मगध
देश का सबसे महत्वपूर्ण शासक था। इनके साम्राज्य का भौगोलिक विस्तार प्रत्यक्षतः
पूरब में आसाम और पश्चिम में अफगानिस्तान तक फैला हुआ था। इसी असोक के
कारण भारत को विश्व अध्ययन का विषय बनाया गया। इस असोक के
सांस्कृतिक साम्राज्य के विस्तार में उस समय के ज्ञात विश्व को अपने में समाहित
किए हुए था। इस तरह आधुनिक भारतीय राष्ट्र की परिकल्पना का भौगोलिक और सांस्कृतिक
आधार इनके द्वारा ही दिया गया। इसी विशेषता ने सम्राट अशोक को महान बनाया।
मगध को उस समय मग्ग देस भी कहा जाता था। पालि में 'र'
अक्षर का संयुक्ताक्षर नहीं होता है और इसलिए "मग्ग" शब्द 'मार्ग' शब्द
के लिए प्रयुक्त होता है। इस तरह 'मगध' को "मार्गदर्शक" कहा जाता रहा। इस
अशोककालीन मगध ही विश्व को प्रकाशित किया था। अशोक की राजधानी और मगध (उस समय का
भारत) देस (देश) इस भावार्थ को चरितार्थ करता रहा। पूरे भारत में विद्या विहारों
की स्थापना और व्यवस्था की श्रृंखला ही भारत को विश्व गुरु बना सका। उन्होंने
उज्जैन, सांची, तक्षशिला, गंधार, नालन्दा, उदंतपुरी,
वल्लभी, सारनाथ, मथुरा,
नागरा, पवनी, एरागुंडा,
गिरनार, जगदलपुर, गुंटूर,
कोसांबी, विक्रमशिला आदि में विद्या पीठ यानि
विश्वविद्यालय स्थापित कर शिक्षा की ऊंचाईयों को स्थापित किया। वे जानते थे कि अज्ञानता ही
सब दुखों का कारण है और ज्ञान ही समाज एवं जीवन में सुख, शांति, संतुष्टि और समृद्धि स्थापित कर सकता है।
असोक बुद्ध के अनुयाई हुए। बुद्ध ने एक व्यक्ति के रूप में जन्म लिया
और संस्था के रूप में विकसित हो गए। इनके दर्शन और शिक्षाओं को असोक ने पहली बार
व्यापक शासकीय समर्थन दिया। बुद्ध का ज्ञान शुद्ध विज्ञान और सामाजिक विज्ञान है, जो
जीवन में सफलता का आधार देता है और इसकी क्रियाविधि समझाता है। इसका
इन्होंने तत्कालीन विश्व में व्यापक प्रसार किया। इसके लिए प्रतीक चिन्ह की
स्थापना, शिला लेख की लिखाई, कल्याणकारी
योजनाओं का कार्यान्वयन और प्रशासकीय व्यवस्था कर अभूतपूर्व योगदान दिया। इनका
शासन न्याय, समानता, स्वतंत्रता और
बंधुत्व पर स्थापित था, जो प्रत्येक प्रगतिशील समाज और
राष्ट्र का आदर्श है। विदेशों में पारिवारिक सदस्यों को दूत बनाकर भेजना ही भारत
का सांस्कृतिक विस्तार कर सका। असोक ने मानवतावादी विचारों, मूल्यों,
आदर्शों का पहली बार विश्व व्यापी सफल मार्केटिंग किया।
इन्होंने संसारिक व्यवस्था की व्यवहारिक आधारभूत व्यवस्था किया, जिसे
धम्म पालन कहा जाता है। धम्म आधुनिक धर्म नहीं था, वरन
संसार को सम्यक व्यवस्था देने का दर्शन एवं विज्ञान है। यह अलग बात है कि जो लोग धर्म के बिना जीवन में असहजता पाते हैं, वैसे लोगों ने इस विज्ञान को धर्म बना दिया
है। असोक ने अपने शासन व्यवस्था में इस धम्म का
व्यापक व्यवहारिक अनुपालन का सफल प्रयोग किया, जिसके अध्ययन
के लिए ही विश्व से विद्वानों का भारत आना रहा। इसी नीति पर व्यवस्था कर प्राचीन
भारत समृद्ध, शक्तिशाली, प्रभावशाली
और गौरवशाली देस बना रहा। जब सामंतवाद का उदय हुआ और तत्कालीन विश्व को अपने
प्रभाव में ले लिया, तो समतावादी समाज का रुपांतरण
असमानतावादी समाज में हो गया। समानता के अंत के वाद को सामंत (समानता+अन्त) का वाद
यानि सामंतवाद कहते हैं।
इसी सामंतवादी रुपांतरण से ब्राह्मणवादी व्यवस्था का उदय एवं विकास
हुआ। असोक का कल्याणकारी व्यवस्था का प्रभाव काफी लम्बे समय तक चला। बदलती
ऐतिहासिक शक्तियों के कारण वैश्विक सामंतवाद का उदय हुआ। हां, सामंतवाद
ने भारत में अपने स्वरुप को एक नए धार्मिक आवरण में रख लिया। इसी धार्मिक
आवरण के कारण यथास्थितिवादी इतिहासकारों ने भारत में सामंतवाद के प्रभाव को नकार
दिया है। इस सामंतवादी प्रभाव को हटाते ही भारत फिर से समृद्ध, शक्तिशाली,
प्रभावशाली और गौरवशाली देस (देश) बन जाएगा।
किसी भी काल में सामाजिक रुपांतरण की यानि इतिहास की वैज्ञानिक
व्याख्या सिर्फ और सिर्फ उत्पादन , वितरण, विनिमय एवं उपभोग की
शक्तियों एवं साधनों और उनके अन्तर्सम्बन्धों के आधार पर किया जा सकता है। इसे
समझिए।
विद्वजन विचार करें।
धम्म चक्र वर्ती शासक अशोक (असोक) को शत् शत् नमन।
आचार्य निरंजन सिन्हा।
पटना।
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