कहा जाता है कि आर्यों ने 1500 वर्ष ईसा पूर्व भारत में आक्रमण किया और भारत में रच बस गए। इस तथाकथित
सत्य का कोई पुरातात्विक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है अर्थात कोई भी पुरातात्विक
साक्ष्य उपलब्ध नहीं करा सका। फिर सवाल उठता है कि आर्यों को क्यों आक्रमणकारी
होना पड़ा?
भारत के इतिहास की कुछ अलग विशिष्टताएं
है। सौ साल पहले भारत का इतिहास पाषाण काल से सीधे वैदिक काल पर आ जाता था, परन्तु
सिन्धु सभ्यता ने इस क्रमबद्धता को बिगाड़ दिया यानि वैदिक काल के आदि काल होने को
झुठला दिया।
इसी तरह चालीस साल पहले तक भारत के इतिहास
में महाकाव्य काल हुआ करता था अर्थात महाकाव्य काल को ऐतिहासिक होने का मान्यता थी, परन्तु
अब इसे इतिहास के पन्नों से हटा दिया गया है। अर्थात यह काल आस्था का विषय मानते
हुए गैर ऐतिहासिक स्थापित हो गया। ऐसा इतिहास के वैश्विक स्तर पर हुआ। अब बारी
आर्यों के तथाकथित आक्रमणकारी होने के तथाकथित इतिहास की है।
भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद् के
संस्थापक अध्यक्ष एवं प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो रामशरण शर्मा जी ने भी अपने बाद के
दिनों में लिखा है कि ॠगवेद काल में जो भौतिक साक्ष्य (मृदभांड इत्यादि) धरती पर
मिली है,
वह दूसरी कहानी कहती है। ॠगवेद का भौगोलिक क्षेत्र पंजाब तक सीमित
बताया गया जबकि समकालीन भौतिक साक्ष्य पूरे गंगा- यमुना नदी घाटी सभ्यता क्षेत्र
में विस्तारित था। ॠगवैदिक काल में चलन्त अर्थव्यवस्था वर्णित है जबकि भौतिक
साक्ष्य स्थिर ग्रामीण अर्थव्यवस्था के स्थापित साक्ष्य उपलब्ध कराता है। प्रो
शर्मा यहां कहते हैं कि या तो ॠगवैदिक सभ्यता जमीन पर नहीं था; या जो जमीन पर था, वह ॠगवैदिक सभ्यता नहीं था। इसी
तरह उत्तर वैदिक काल के बारे में भी प्रो शर्मा लिखते हैं कि उत्तर वैदिक सभ्यता
पूरे उत्तर भारत में विस्तृत बताया गया है जबकि उस काल में उपलब्ध भौतिक साक्ष्य
(मृदभांड इत्यादि) नर्मदा नदी के दक्षिण तक विस्तारित था। उत्तर वैदिक काल की दो
प्रमुख गतिविधियां - हवन (कुंड) एवं पशु बलि प्रचलित बताया गया जबकि इसके कोई भी
भौतिक साक्ष्य जमीन में या सतह पर उपलब्ध नहीं मिले हैं। फिर प्रो शर्मा लिखते हैं
कि उस काल में जमीन पर उपलब्ध सभ्यता या तो उत्तर वैदिक सभ्यता नहीं था या उत्तर
वैदिक सभ्यता जमीन पर नहीं था।
अभी तक कोई भी ठोस साक्ष्य वैदिक सभ्यता
के पक्ष में नहीं आया है। तो आर्यों को आक्रमणकारी क्यों होना पड़ा?
इतिहास का मध्य काल सामंतवाद के उदय के
साथ शुरू होता है। इतिहास का सम्यक व्याख्या उत्पादन की शक्तियों और उनके
अन्तर्सम्बन्धों के आधार पर किया जाना वैज्ञानिक दृष्टिकोण है और यह सब कुछ काफी
संतोषजनक व्याख्या करता है। भारत का सामंतवाद पश्चिमी यूरोप या पूर्वी यूरोप के
सामंतवाद से सर्वथा भिन्न था, फिर भी "समानता का अन्त होना" सभी
सामंतवाद का मूलाधार है।
भारत में सामंतवाद के शुरुआती शताब्दियों
में ही अन्य अरब एवं मुगल आक्रान्ताओ का आगमन हो गया। ये शासक वर्ग हुए। सामंतवाद
की आवश्यकताओं ने "समानता के अन्त" के आधार पर ब्राह्मण और क्षत्रिय
वर्ग को पैदा किया। इनको प्राचीन, पुरातन, सनातन और सांस्कृतिक
बताने की आवश्यकता हुई। इन गुणों के कारण यह गौरवशाली भी हुआ, परम्परा भी हुआ और हमारी संस्कृति भी हुई। हमें शासक वर्ग की तरह विदेशी
घोषित करने की भी आवश्यकता हुई ताकि सामान्य जन, जो
सामान्यत: शुद्र और अछूत थे, से अलग एक विशिष्ट, सर्वश्रेष्ठ, सर्वोच्च गुणों से युक्त सामान्य जन से
भिन्न साबित हो सकें। इनके सहयोग से भारत में शासन भी
आसान हुआ। इसके लिए इनकी प्रकृति एवं उत्पत्ति की अलग अवधारणा की आवश्यकता हुई जो
प्राकृतिक, तार्किक एवं स्वाभाविक लगें।
ऐसी स्थिति में एक कहानी बनाया गया कि
भारत में सभ्यता की शुरुआत एक घुमन्तू आक्रमणकारियों द्वारा हुईं और उसने ही भारत
में सभ्यता की शुरुआत किया। सभी आक्रमणकारियों की तरह इसे भी पश्चिमी दिशा से आया
बताया गया। यह अलग बात है कि सिन्धु सभ्यता ने अपने अंदाज में इस अवधारणा पर पहली
चोट किया। आर्य आक्रमणकारी एवं उनकी तथाकथित सभ्यता का पुरातात्विक साक्ष्य नहीं
है, अतः कथा बनाया गया कि उन लोगों को लिखना नहीं आता था, सिर्फ पढ़ना और रचना करना आता था। उनके समकालीन (पूर्व के सिन्धु सभ्यता
और बाद के बौद्धिक सभ्यता) को लिखना आता था परन्तु इस तथाकथित सभ्यता और संस्कृति
वाले को बारहवीं शताब्दी में लिखना आया, जब कागज़ का प्रचलन
हो गया। बहुत कुछ साक्ष्य उपलब्ध है कि आर्यों की कहानी एक कथा है जिसकी कोई
ऐतिहासिकता नहीं है। इसे जब विश्व की छियासी प्रतिशत जनता मान लेगा तो सत्रह
प्रतिशत भारतीय भी मान लेगा ही होगा।
मैंने एक भिन्न अवधारणा प्रस्तुत कर दिया
है, परन्तु यही सही है और उपरोक्त कारण ही वह कारण है जिसके कारण आर्यों को
आक्रमणकारी बनना पड़ा। आप भी मनन मंथन करें। कम से कम इस नजरिए से इसे देखना शुरू
कर दिया जाए, भारत के सभी समस्याओं का समाधान खुल जाएगा।
निरंजन सिन्हा
स्वैच्छिक सेवानिवृत्त राज्य कर संयुक्त आयुक्त,
बिहार, पटना।
व्यवस्था विश्लेषक एवं चिन्तक।
VERY GOOD OBSERVATION ON HISTORY , EVEN NEHRU'S DISCOVERY OF INDIA MENTIONED THAT ARYAN WERE INVADERS ON BHARTYA MULNIWASI .
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