सामाजिक बुद्धिमता के सिद्धांत (एवं बुद्ध )
(Theory of Social Intelligence n
Buddha)
बुद्ध ने अपने समय के नव उदित
समाजों के लिए बुद्धिमता को तो समझाया ही, भावनात्मक और समाजिक
बुद्धिमता (Social Intelligence) की अवधारणा, सिद्धांत एवं सूत्र भी दिया जो
व्यक्तिओ को समाज में अनुकुलन (Adapt) करने और महत्तम
सफलता प्राप्त के लिए अनिवार्य था| यह आज भी
उतना ही सान्दर्भिक है जितना उस समय था| उन्होंने सामान्य बुद्धिमता
(सामान्य शिक्षा – General Intelligence, Intelligent Quotient- IQ) के साथ साथ भावनात्मक
बुद्धिमता (Emotional Intelligence, Emotional Quotient- EQ) और सामाजिक बुद्धिमता (Social Intelligence, Social Quotient-
SQ) पर भी जोर दिया| सामान्य
बुद्धिमता सामान्य शिक्षा से आती है जिसे जानकारी भी कह सकते है| सामान्य शिक्षा से किताबों का ज्ञान मिलता है जिसे सूचना
एवं जानकारी कहा जाता है| सामान्य बुद्धिमता वह
बुद्धिमता है जिसके द्वारा ग्रहण की गयी बातों का आवश्यकतानुसार पुनरोत्पादन किया
जा सके| आज भी अधिकतर समाजो में इसे बहुत ज्यादा महत्त्व दिया जाता है|
बुद्ध ने अपने समय में ही सामान्य बुद्धिमता को महत्त्व देते हुए भी भावनात्मक एवं
सामाजिक बुद्धिमता को महत्त्व दिया|
हर व्यक्ति अपने आप को सुधारना चाहता है| अपने आप को सुधारने के लिए
बुद्धिमता की आवश्यकता होती है| पहले बुद्धिमता में सिर्फ ज्ञान को ही महत्त्व
दिया जाता रहा जो किताबों को पढ़ने और रटने से मिलती है और शिक्षण संस्थानों में पढाई जाती है|
इसे सामान्य बुद्धिमता कहा जाता है जिसे IQ से मापा जाता है| इस जांच में गणित,
तर्क, समस्या समाधान इत्यादि को स्थान दिया गया है और यह सर्वमान्य भी है| यह चीजो
को पढ़ने, समझने और इसकी प्रयोगशीलता से
संबधित होता है| संवेगात्मक यानि भावनात्मक बुद्धिमता में अपने और दुसरे के
भावनाओं को समझता है| हमलोग इस धरती पर सबसे ज्यादा संवेदनशील एवं भावनात्मक
प्राणी हैं| IQ
एक उम्र के साथ घटता है जबकि सामाजिक बुद्धिमता उम्र के साथ साथ बढ़ता जाता है|
ये दोनों एक दुसरे को आधार प्रदान करते हैं यानि एक दुसरे को समर्थन देते हैं| IQ एक बेहतर विचार
देता है तो EQ एक बेहतर प्रदर्शन या उपलब्धि देता है| इसलिए व्यवहारिक
जीवन में दोनों की आवश्यकता होती है| एक रोबोट में IQ भरा पड़ा होता है पर
संवेदना नहीं होता| इसलिए वह उपयुक्त निर्णय नहीं ले पाता| बुद्ध इन दोनों
बुद्धिमता को समझते थे और इसी कारण इन दोनों पर सामान रूप से ध्यान देने को कहते
थे| विद्या ही सभी दुखो का नाश करता है तथा आष्टांगिक मार्ग ही सामाजिक जीवन में सफलता दिलाता है|
डेनिअल गोलमैन ने एक किताब लिखी जिसका नाम “भावनात्मक
बुद्धिमता”(Emotional Intelligence) था| इसमे उन्होंने बताया कि किसी
भी आदमी के मस्तिष्क के दो भाग है - एक जो सोचता है एवं चिंतन- मनन करता है, और
दूसरा जो भावनाओं को संचालित एवं नियंत्रित करता है| सामान्य लोग इसे क्रमश: दिमाग और मन कहते है| किसी भी व्यक्ति के
व्यवहार एवं कार्य को संचालित एवं नियंत्रित करने में भावना यानि संवेग प्रमुख
रहता है| इसीलिए कहा जाता है कि भावनात्मक बुद्धिमता हमेशा तर्कशील बुद्धिमता पर
हावी यानि प्रभावी रहता है|
भावनात्मक बुद्धिमता
में अपनी भावनाओं के साथ साथ सामने वाले की भावनाओ को भी समझना और ध्यान रखना होता
है| इसमें दुसरे की भावनाओं को समझना और अपनी भावनाओं को
नियंत्रित करना होता है| इन्होंने संवेदनात्मक यानि
भावनात्मक बुद्धिमता को समझने के लिए इसे पाँच भागों में समझाया है| इसमे आत्म-
जागरूकता (Self- Awareness), भावनाओं यानि संवेदनाओं का
प्रबंधन (Managing Emotions or Self – Regulation), स्व- अंत:प्रेरणा (Self- Inspiration). समानुभूति
(Empathy), और अन्तर संबंधों का व्यवहार (Handling
Relationship or Social Skill) आता है| इन्होंने
खुद को जानने एवं समझने को आत्म- जागरूकता
बताया है| आपकी कमजोरी क्या है, आपकी शक्ति क्या है, आपका लक्ष्य क्या है, आपकी
भावनाएं कब भड़क जाती है, दुसरे के संवेगों
के प्रति आपके मन में क्या क्या होता है, इत्यादि को जानना ही आत्म- जागरूकता है|
दुसरे के संवेगों को जानना एवं समझना और उसके अनुसार तथा उसके अनुकूल अपने व्यवहार
को सम्हालना ही संवेगात्मक या भावनात्मक प्रबंधन
है| इसे आत्म- नियंत्रण भी कहा जा सकता है| दुसरे के अनुसार अपने व्यवहार को
अनुकूलित करने के लिए अपने संवेगों को नियंत्रित करना और दुसरे के अनुकूल अपनी
संवेदनाओं को व्यक्त करना ही भावनात्मक प्रबंधन है| ऐसे लोग अपनी विपरीत
परिस्थितियों एवं संकट से अपने को कुशलता से और आसानी से निकाल लेता है| ऐसे लोग
हमेशा अपने लिए स्व- अंत:प्रेरणा पैदा
करते हैं या स्वत अंत: प्रेरित करते रहते है या आत्म प्रेरित रहते हैं|
आपकी जैसी संवेगात्मक स्थिति होती है, आप
वैसी ही संवेदनाओं का प्रसार करते हैं| आप प्रसन्नचित्त है तो सामने वाला भी
प्रसन्नचित्त महसूस करने लगता है| यदि आप डरे हुए है, तो आपके पास का व्यक्ति भी
डरा हुआ महसूस करने लगता है| समानुभूति
में आपको दुसरे की संवेदनाओं और व्यवहार को समझ कर उससे गहरी संवेदना व्यक्त करना
और साथ देना होता है| समानुभूति मे आप अपने आप को सामने वाले की स्थिति में रख कर
उसकी भावनाओं को समझने का प्रयास करते है| उपरोक्त बातों को समझ कर आपसी संबंधों
को स्थापित करना ही अंतर संबंधों का व्यवहार
है| इसे सामाजिक कुशलता भी कह सकते
हैं| ऐसे लोग सफल नेतृत्वकर्ता होते है और लोग उनको काफी पसंद करते है| ऐसे लोग
व्यतिगत जीवन में काफी सफल होते हैं| आप बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग के सार में यही पाएँगे|
ध्यान दें कि बुद्धिमता
कोई जन्मजात गुण नहीं होता है और यह न ही योग्यता है, यह तो कुशलता है जो सीखी
जाती है| सामाजिक बुद्धिमता में जागरूकता
(Awareness) होता है जो यह बताता है कि आपके अन्दर
क्या चल रहा है| सामाजिक बुद्धिमता के दुसरे हिस्से में समस्वरता (Attunements) होता है जो दूसरों का अवलोकन करने और उसकी समानुभुतिक
व्याख्या करने से सम्बधित है| सामाजिक बुद्धिमता में अनुकुलनता (Adaptibility) भी होता है जिसमे पहले दोनों भागों (सामान्य बुद्धिमता एवं
भावनात्मक बुद्धिमता) का रचनात्मक एवं
उत्पादक प्रयोग करना होता है| कार्ल अल्ब्रेच ने “सामाजिक
बुद्धिमता” (Social Intelligence) नाम की एक किताब लिखी जिसे सफलता का नया विज्ञान (The New Science of Success)
बताया| इसमे भी जागरूकता, स्पष्टता, समानुभूति, समस्वरता और अनुकुलनता को ही बताया
गया है जो बुद्ध के सामाजिक सिद्धांतो का ही सार है|
यदि आप बुद्ध की सामाजिक
बुद्धिमता और संवेदनात्मक यानि भावनात्मक बुद्धिमता की शिक्षाओं का अध्ययन करते
हैं तो पाते हैं कि बुद्ध ने इन बातों को बहुत बढ़िया ढंग से समझाया है| विपश्यना आत्म- अवलोकन करने एवं आत्म- जागरूकता को जानने समझने की ही प्रविधि है| इससे
आप अपने को बहुत गहराई से जानने और समझने लगते हैं| यह आत्म- जागरूकता का अब
सर्वमान्य तकनीक है| सम्यक दृष्टि रखना भी
आत्म- जागरूकता है| जहाँ तक अपने संवेगों का समुचित प्रबंधन करने का
प्रश्न है, बुद्ध ने सम्यक कर्मान्त और सम्यक वाणी का सिद्धांत दिया था| सम्यक कर्मान्त
में दुसरे की संवेदनाओं और भावनाओं का ही ख्याल रख कर ही काम या व्यवहार करने की
शिक्षा दी गयी है| सम्यक व्यायाम और सम्यक
आजीविका करने वाला व्यक्ति हमेशा ही स्वत- प्रेरित रहता है|
इसके साथ सम्यक दृष्टि भी होता है जिससे वह विपरित परिस्थितियों में भी हताश या
उदास नहीं होता और कभी अवसाद की स्थिति में नहीं जा पाता है| समानुभूति (Empathy)
उस व्यक्ति में होता है जो प्रज्ञावान होता है, जो शीलवान होता है, जिसमे प्रेम
एवं करुणा होता है, जिसमे मैत्री होता है और जिसमे समानता का भाव होता है| सम्यक
वाणी और सम्यक कर्मान्त व्यक्तिगत एवं सामाजिक संबंधों का मुलभुत आधार होता है| इस
तरह स्पष्ट है कि बुद्ध ने भावनात्मक बुद्धिमता के सूत्र या संकेत ही नही दिए
अपितु स्पष्ट सिद्धांत भी दिए हैं|
बुद्ध ने जीवन
मार्ग को सुगम बनाने के लिए कई सूत्र दिए| उन्होंने
बताया कि प्रत्येक को शुभ कार्य करना चाहिए और पाप कर्म से बचना चाहिए| इसे
समझाते हुए कहा कि जिस काम को करने के बाद आदमी को पछताना नहीं पड़े और जिसके फल को
वह आनंदित मन से भोग सके, वही कार्य शुभ है| कामुकता से दुःख पैदा होता है
और कामुकता से भय भी पैदा होता है| उन्होंने लोभ एवं तृष्णा से बचने को कहा|
जिन्हें किसी से आसक्ति नहीं हो और जिन्हें किसी से घृणा नहीं हो,
वे बंधन मुक्त हैं| किसी को वाणी एवं व्यवहार से क्लेश मत दो और किसी से द्वेष
मत रखें| शत्रुता को मैत्री से जीतों| क्रोध नहीं किया जाए| सबसे बड़ा दुर्गुण अविद्या है| बुद्धिमान को इस
बारे में सचेत रहना चाहिए कि वह कोई ऐसा अवसर किसी को नहीं दे कि कोई दूसरा उसे कोई
अनावश्यक बात कहे| उन्होंने न्यायशील बनने को कहा|
उन्होंने संगति का महत्त्व समझाते हुए
कहा कि किसी को भी अपनी संगति अच्छे व्यक्तियों के साथ रखना चाहिए| जो व्यक्ति
जैसा संगति रखता है, वह भी वैसा ही बन जाता है| कहा जाता है कि एक तरह के पंछी एक
साथ रहते और उड़ते हैं| यदि किसी आदमी को अपने से श्रेष्ट या अपने समान साथी
नहीं मिले तो उसे अकेले ही जीवन पथ पर आगे बढ़ना चाहिए| मुर्ख की संगति देर तक
कष्ट देती है| एक मुर्ख की संगति में उसकी मुर्खता कब दुसरे पर हावी हो जाती है और उसे संचालित
करने लगाती है; उसे पता ही नहीं चलता| एक बुद्धिमान व्यक्ति के पास सत्य होता है,
शील होता है, करुणा होता है, संयम होता है, शुद्धि होता है और बुद्धि होता है|
हमें प्रत्येक कार्य करते समय जागरुक रहना चाहिए| बुद्ध ने स्पष्ट कहा कि हम जो कुछ हैं, यह सब कुछ हमारे विचारों का ही परिणाम है;
यह हमारे विचारों पर ही आधारित है, यह हमारे ही विचारों से निर्मित है| विचार की
निरंतरता ही समय के साथ वस्तु बन जाती है| यदि हम अपने को बदलना चाहते हैं तो हमें
आज से ही अपने विचारों को बदल देना चाहिए|
उन्होंने भूख और गरीबी को
सबसे बड़ा रोग बताया| गरीबी से दुःख
पैदा होता है लेकिन यह आवश्यक नहीं कि गरीबी दूर हो जाने से ही आदमी सुखी भी हो ही
जाए| सुख का आधार ऊँचा जीवन- स्तर नहीं है अपितु ऊँचा आचरण का स्तर होना चाहिए| स्वास्थ्य
सबसे बड़ा लाभ है, संतोष सबसे बड़ा धन है, विश्वास सबसे बड़ा रिश्तेदार है और निर्वाण
सबसे बड़ा सुख है| ढोंग से बचना चाहिए क्योंकि
यह लम्बे समय में छवि ख़राब कर देता है| सर्वश्रेष्ट मार्ग माध्यम मार्ग
ही है| किसी दूसरों की आलोचना से विचलित नहीं होना चाहिए क्योंकि आलोचक अपने
नजरिये से ही किसी का मूल्यांकन करता है परन्तु उनमे कोई सुधारात्मक सुझाव
दिखे तो अनुपालन भी होना चाहिए| किसी भी सफलता का
कोई छोटा मार्ग नहीं होता और व्यक्ति को इसके लिए स्वयं प्रयास करना होता है; दूसरा
कोई भी सिर्फ मार्ग दर्शक ही हो सकता है|
आज के शोधों से स्पष्ट है कि किसी
की सामाजिक सफलता या व्यक्तिगत सफलता में उनके सामान्य बुद्धिमता का हिस्सा 20% तक
होता है तथा संवेदनात्मक या भावनात्मक बुद्धिमता का हिस्सा 80% तक होता है| व्यक्तिगत
सफलता भी समाज में ही मिलती है क्योंकि व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है| आज के
शिक्षा पद्धति के अनुसार सामान्य बुद्धिमता का अर्थ होता है सामान्य शिक्षा जो आज
के विद्यालयों और महाविद्यालयों में पढाया जाता है| इसमे ज्यादा अंक लाने वाले को
नौकरियां मिलती है और शैक्षणिक उपाधियां भी मिलती है| भारत
में वर्तमान शिक्षा पद्धति में “क्या” (What) पढाया जाता है जो सिर्फ सूचनाओं एवं
जानकारियों से भरा पड़ा होता है| संवेदनात्मक एवं भावनात्मक बुद्धिमता में “क्यों”
(Why) और “कैसे” (How) पढाया जाता है|
जीवन में सफलता के लिए अन्य दोनों (सामान्य बुद्धिमता एवं भावनात्मक बुद्धिमता) से
महत्वपूर्ण है- सामाजिक बुद्धिमता| सामाजिक
बुद्धिमता समाज की भावनाओं को जानना और समझना है और इसी कारण इसमें सामाजिक
परिवर्तन के अनुसार अनुकूलित करने की क्षमता है|
भावनात्मक बुद्धिमता जहां वर्तमान से संबंधित है, वहीं सामाजिक बुद्धिमता भविष्य से संबंधित है| इनका आष्टाँगिक मार्ग और दस प्रज्ञा
पारमिताएं का अनुपालन ही सामाजिक बुद्धिमता है| आष्टाँगिक मार्ग को अलग से विस्तारपूर्वक बताया गया है जो सामाजिक
बुद्धिमता को रेखांकित करता है| इनके इन
तरीकों को ही आज सामाजिक बुद्धिमता कहा जाता है| इसलिए बुद्ध को सामाजिक बुद्धिमता का प्रथम प्रवर्तक कहा जा
सकता है|
निरंजन सिन्हा
व्यवस्था- विश्लेषक एवं चिन्तक
(निरंजन सिन्हा की प्रकाशनाधीन पुस्तक- “बुद्ध:
दर्शन एवं रूपांतरण” से )
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