बुधवार, 5 अगस्त 2020

एक प्रासंगिक दर्शन।

विचारों के युवाओं से ........
एक प्रासंगिक दर्शन।
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एक कहावत है कि भेड़ को हथियाने से पहले गड़ेरिया को संदर्भ से बाहर निकलना होगा। अन्यथा उसके रक्षक कुत्ते भौंकते हैं, दौड़ाते हैं, काटते हैं और आपको भगा भी देते हैं। गड़ेरिया आपका दुश्मन बना, जो अतिरिक्त है।

उपाय क्या है?

यदि नेतृत्वकर्ता का समुदाय है या गिरोह है और उसके संगठन के पास कोई आदर्श या दर्शन नहीं है, एवं उसकी कहानी उसी तक है तो उस गड़ेरिए और उसमें अन्तर नहीं है।

पर यदि संगठन (organisation) कोई संस्था (institute) है और उसका कोई आदर्श या दर्शन है जिसे स्थापित करना, या मजबूत करना, या फैलाना ही प्राथमिकता में है, तो उसे कैसे परास्त किया जा सकता है? एक अहम सवाल?

ऐसे संस्था का नेतृत्वकर्ता अहम नहीं होता, आदर्श और दर्शन महत्वपूर्ण होता है। ऐसे संस्था के सैकड़ों कार्यरत एवं सक्रिय अंग होते हैं। वे मुद्दे बनाते हैं और आप उसमें उलझते जातें हैं। आपको लगता है कि आपका तर्क और तथ्य मजबूत और कारगर है एवं आप फतह के निकट है। पर फिर मुद्दा ही बदल जाता है। आप एक संसाधन सम्पन्न सक्षम सक्रिय के सामने असहाय है। फिलिप कोटलर कहते हैं कि आज का युग सूचनाओं को शेयर करने का है। और उनका तंत्र प्रतिभाशाली और सशक्त है।
इसका नायक का महत्व गड़ेरिए का नहीं है। वह आदर्श और दर्शन महत्वपूर्ण है जिसके लिए वह संस्था स्थापित और कार्यरत हैं।

परन्तु यदि उसका आदर्श और दर्शन ही शून्य (बकवास, निरर्थक, संदर्भविहिन) हो जाए तो?

तब वह संस्था ही शून्य  हो जाएगा।
सारा खेल समाप्त।

विचार करें।
गंभीर विचार करें।
सादर।
निरंजन सिन्हा
व्यवस्था विश्लेषक एवं चिंतक।

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