रविवार, 19 जुलाई 2020

इतिहास क्यों? (Why History)

इतिहास क्यों?

(Why History)

एक शिकारी हिरणों का शिकार करता है| इन घटनाओं पर इतिहास लिखा जाना है| इतिहास लिखने वाले तीन तरह के जीव हैं- पहला शिकारी, दूसरा हिरण और तीसरा प्रकृति संरक्षक| शिकारी के इतिहास में शिकारियों का शौर्यगाथा, हिरणों की मुर्खता और हिरणों के मांस की उपयोगिता और उसके लजीज स्वाद का विषद वर्णन रहता है| हिरणों को  तो अपना  इतिहास लिखना ही नहीं आता, कुछ हिरणों ने तो इस दिशा में थोडा प्रयास किया है; शिकारियों के इतिहास के पन्नों से कुछ अपने पक्ष की सामग्री समझ कर इतिहास लिख दिया और इसके परिणाम एवं प्रभाव जाने बिना सारे भारत में और विदेशों में घूम घूम कर वस्तुत: नाच रहे हैं| तटस्थ दिखने वाले प्रकृति संरक्षक के इतिहास पर भी टिप्पणी जरुरी है| ये हैं तो आखिर शिकारियों के ही परिवार से | ये शिकारियों को अपराधी तो घोषित कर नहीं सकते| स्पष्ट है कि हिरणों को अपने मनन और मंथन से खुद के स्वविवेक से अपने इतिहास की रचना करनी है|

इतिहास क्या है?  इतिहास क्यों जरुरी है? इतिहास कैसे लिखा जाता है? इतिहास व्यक्ति को, परिवार को,  समाज को, राष्ट्र को, और मानवता को क्या देता है? इतिहास इनको चेतन, अचेतन, अवचेतन और अधिचेतन पर कैसे संचालित और प्रभावित करता है? क्या इतिहास आधुनिकता की नींव है और आधुनिकता को स्वरुप देता है? इनको समझने और जानने के लिए ही यह आलेख है|

इतिहास क्या है?

 इस विषय पर प्रो० एडवर्ड हैलेट कार (ई० एच० कार) की पुस्तक “इतिहास क्या है?” (What is History?) से अधिक और जानने की आवश्यकता नहीं हैउन्होंने ऐक्टन को उद्धृत करते हुए कहा है कि – “हम अपनी जीवन में अंतिम इतिहास नहीं लिख सकते लेकिन हम परम्परागत इतिहास को रद्द कर सकते हैं|” सभी ऐतिहासिक अवधारणाएं व्यक्तियों तथा दृष्टिकोणों के माध्यम बनती है| वस्तुत: ऐतिहासिक सत्य जैसी कोई चीज नहीं होती यदि इतिहास का उपस्थापन वैज्ञानिक तथ्यों और प्रविधियों पर नहीं होऐतिहासिक तथ्य इतिहास के लिए कच्चा मॉल नहीं होता, बल्कि ये इतिहासकार के लिए कच्चा मॉल होता है जो इतिहासकार के ऐतिहासिक रचना को, उनकी  संस्कृतियों और उनके पूर्वाग्रहों से निर्धारित और सम्पादित करता है|

जनता की मंतव्य, रायों , अवधारणाओं  और विचारों को प्रभावित करने का सबसे असरदार तरीका यह है कि वह जो प्रभाव उत्पन्न करना चाहता है उनके अनुरूप ही उपलब्ध तथ्यों का उपस्थापन और व्याख्या करेंतथ्य वही बोलता है जो इतिहासकार उन तथ्यों से बोलवाना चाहता है| यह अधिकतर  उस देश और काल के व्यवस्था के अनुकूल होता हैव्यवस्था के अनुकूल होना यानि यथास्थितिवादी होना है| प्राचीन काल के इतिहास में कई अंतराल भरे पड़े है जिनकी व्याख्या यथास्थितिवादी अपने पक्ष में करते रहे हैंकार अपनी इस पुस्तक में लिखते हैं कि प्राचीन और मध्य काल के  इतिहास के तथ्य के रूप में हमें जो कुछ मिलता है, उनका चुनाव ऐसे इतिहासकारों की पीढ़ियों द्वारा किया गया था जिनके लिए धर्म का सिद्धांत और व्यवहार एक पेशा था और आज भी है| मध्यकालीन धार्मिक तस्वीर जो आज हमें तथ्य के रूप में प्राप्त हैं, हमारे लिए उसका चुनाव बहुत पहले ऐसे लोगों द्वारा किया गया जो उस धार्मिक बनावट में विश्वास रखते थे और चाहते थे कि दुसरे भी उसमे विश्वास करें| तथ्य का एक बहुत बड़ा भाग, जिनमे इनके विरोधी प्रमाण थे, नष्ट हो चूका है या सामंतवादियों द्वारा नष्ट किए जा चुके हैं और उसे पुन: कभी नहीं पाया जा सकता| भारत में तो इन साक्ष्यों को नष्ट करने वाले सामंतवादियों ने तो इसका भी धार्मिककरण कर अपने को पहचान से भी बचा लेने का प्रयास किया है; पर यह अब खुलने लगा है|        

इतिहासकार के लिए पहली आवश्यकता लोगों की अज्ञानता होती है| लोग यदि अशिक्षित हो, और आर्थिक रूप से इतने कमजोर हो कि उनको जीवन बनाए रखने के अतिरिक्त समय नहीं हो तो इतिहासकार के लिए नई और मनमानी इतिहास बनाने में आसानी होती है| मध्यकाल में सामंतवाद के समय लोगों को अशिक्षित बनाने के लिए भारत में संस्कृत की उत्पत्ति हुई और इसे देवभाषा घोषित कर दिया गया| पढ़ना समाज के पुरोहित वर्ग के लिए आरक्षित कर दिया गया और सामान्य जनों को इससे वंचित कर दिया गया| ऐसा नए इतिहास को लिखने और उसकी मान्यता को सर्वमान्य एवं सर्वग्राह्य बनाने के लिए अनिवार्य हो गया था| पहले का साक्ष्य या तो नष्ट कर दिया गया या जला दिया गया ताकि सक्ष्यात्मक विरोध की कोई गुंजाईश नहीं रहेइतिहास के तथ्य कभी शुद्ध रूप में नहीं रहते क्योंकि वह निरपेक्ष नहीं होते और ये तथ्य इतिहासकारों के विचारों के रंग में रंजित होकर ही निकलते हैं| प्रो० कार स्पष्ट करते हैं कि जब आप इतिहास की कोई पुस्तक पढ़ते हैं तो हमेशा कान लगाकर उसके पीछे की आवाज सुनें| अगर आपको कोई आवाज नहीं सुनाई देती है तो इसका एक अर्थ यह है कि आप एकदम बहरे हैं या आपका इतिहासबोध शून्य है| इतिहासकार जिस प्रकार के तथ्यों की खोज कर रहा है उसी प्रकार के तथ्यों को पाएगाइतिहास का अर्थ है तथ्यों की व्याख्या जो उसने समझा है या जो वह बताना या समझाना चाहता है| इतिहासकार अपने युग के साथ अपने मानवीय अस्तित्व की शर्तों पर जुड़ा  होता है| इतिहासकार को वर्तमान को समझाने के लिए उसे अतीत के अध्ययन में दक्षता होनी चाहिए|   

जबतक आप इतिहासकार का मंतव्य नहीं समझ लें तबतक आप उस इतिहास को नहीं समझ सकते हैं| यह इतिहासकार कौन है और उसकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि क्या है? क्या इतिहासकार सामंतवादी पृष्ठभूमि से है और उसकी सामंतवाद के बारे में चेतन और अचेतन स्तर पर क्या निर्धारित है – यह जानना भी बहुत महत्वपूर्ण है| क्या वह व्यवस्था को यथास्थिति में बनाए रखना चाहता है या वह देश एवं समाज हित में रूपांतरण करना चाहता है? हमें इतिहासकार का उस सन्दर्भ का तात्पर्य समझ लेना आवश्यक होता है| किसी तथ्य या प्रस्तुतीकरण अपने आप में इतिहास नहीं बन जाते है जबतक कि ये मानव के सामाजिक विकास की गाथा में प्रासंगिक नहीं बन जातेक्रोशे ने घोषणा की कि सभी इतिहास ‘समसामयिक इतिहास’ होते हैं| इसका स्पष्ट अर्थ हुआ कि इतिहास का लेखन ही वर्तमान की समस्यायों को सुलझाने के लिए ही अतीत को देखना हैइतिहासकार का मुख्य कार्य विवरण देना नहीं अपितु मूल्याङ्कन करना है और जनता को अपनी मनोवांछित इच्छा से सहमत कराना होता है| इतिहास वही है जो इतिहासकार बनाता हैइतिहासकार अतीत में जाकर वर्तमान और भविष्य को बनाता है और निर्धारित करता है| अतीत आधार है जिस पर वर्तमान – भविष्य का अधिसंरचना खड़ा किया जाता है| इतिहास को  तथ्य एवं तथ्यों की व्याख्या का संयुक्त स्वरुप माना जाता है| इतिहासकार वर्तमान में होता है जबकि उसके तथ्य अतीत के होते हैं| तथ्यों के बिना इतिहासकार बेकार है और इतिहासकार के बिना तथ्य मृत एवं अर्थहीन होता है| इतिहास इतिहासकार और उसके तथ्यों की क्रिया- प्रतिक्रिया है जो जारी रहेगायह हमेशा ध्यान में रहना चाहिए कि इतिहासकार स्वयं इतिहास का उत्पाद होता है|

इतिहास क्यों जरुरी है?

 चूँकि इतिहास अब तक का बीत गया काल से सम्बद्ध है, और इसीलिए इतिहास अब तक के बीत गए कालों में मानव ने जो सिखा, अर्जित किया, जो समझा है; उसका सारांश है| इतिहास हमें सोचने, व्यवहार करने, कार्य करने और अपने एवं समाज के प्रति जो नजरिया  है ; उसकी उत्पति, विकास और भविष्य के बारे में क्रिया विधि समझाता हैअपने आपको,  परिवार को, अपने समाज को, अपने राष्ट्र को और मानवता को समझने और समझाने का उपकरण का नाम ही इतिहास है| सामाजिक व्यवस्था, सांस्कृतिक विन्यास, प्रशासनिक शासन, सामंती  विचार एवं दृष्टिकोण, सामाजिक प्रतिमान ; इन सभी को सम्यक ढंग से समझने और समझाने के लिए इतिहास का  सम्यक अध्ययन आवश्यक है| इसे विस्तारित  किया जा सकता है, पर यहाँ विस्तारित नहीं किया जा रहा है|

संस्कृति समाज का सॉफ्टवेयर है यदि सभ्यता समाज का हार्डवेयर है| किसी भी समाज, राष्ट्र और मानवता के विकास सिर्फ हार्डवेयर के विकसित होने से नहीं हो जाती अर्थात इनके भौतिक स्वरुप के विकास ही सभ्यता का विकास है जैसे सड़क, भवन, बाँध, नहरे, विद्यालय, अस्पताल आदि आदि| इसके साथ ही इनके सॉफ्टवेयर का समुचित होना जरुरी हैव्यक्ति, समाज, राष्ट्र का इतिहास बोध (Perception of History) ही उनकी संस्कृति का निर्माण करता है| उस देश और समाज को उसकी संस्कृति ही हर स्तर- चेतन, अचेतन, अवचेतन और अधिचेतन संचालित कराती रहती है| बिना सम्यक के इतिहास के किसी भी देश और समाज का सम्यक विकास नहीं हो सकता है|  

इतिहास कैसे लिखा जा सकता है?

 खासकर हिरणों का इतिहास हिरणों के लिएसारे विश्व के वैज्ञानिक यह मानते हैं कि वैज्ञानिक आविष्कार (Invention) करते हैं और नया ज्ञान प्राप्त करते हैं लेकिन इसके लिए वे सूक्षम एवं युक्तियुक्त नियमों की स्थापना नहीं करते बल्कि ऐसी कल्पनाओं अथवा अनुमानों का प्रतिपादन करते है जिनसे सम्भावनाओं के नए आयाम खुलते जाते हैं| प्रत्येक प्रकार के चिंतन प्रक्रिया में हमें कुछ पूर्व धारणाएं बनाना और स्वीकार करना पड़ता है| ये अवधारणायें (Postulation) वैज्ञानिक प्रक्रिया में तभी सहायक होती है, जब इनका आधार अवलोकन और पर्यवेक्षण (Observation n Supervision) हो| इसमे संशोधन और सुधार की पुरी संभावना रहनी चाहिए| यदि ये अवधारणाएं हमें नई अंतर्दृष्टि देने और हमारा ज्ञान बढ़ने में सहायक या समर्थ है तो ये ये अवधारणाएँ सही एवं सम्यक है| इसे सामान्य जन के भविष्य को सुधारने वाला सूत्र बनने की क्षमता होनी चाहिए| इससे वर्तमान की समस्यायों को सुलझाने की क्षमता होनी चाहिए| विज्ञान की सापेक्षता के सिद्धांत की तरह इतिहास भी सापेक्ष होता है अर्थात इतिहासकार के व्यक्तित्व और उनके लक्ष्य के अनुरूप होता है|  इन हिरणों को अपने ऊपर विश्वास ही नहीं है कि वे अपना इतिहास लिख भी सकते हैं और यही इनकी सबसे बड़ी समस्या है|      

शिकारी अपने इतिहास लेखन में कुछ ऐसा लिख डालते हैं कि जिससे हिरणों को लगता है कि उन्हें उनका सूत्र मिल गया और वे अपना सम्यक इतिहास लिख लेंगे; वस्तुत: हिरणों के प्रत्यक्ष समर्थन में दिखता सामग्री उनकी हितों के विरुद्ध अचेतन और अधिचेतन स्तर कैसे सफलतापूर्वक काम कर रहा है, उनके समझ के परे होता है| वस्तुत: यह उनके विरुद्ध काम भी कर रहा है, इसका अहसास ही उन्हें नहीं होता है| ये इतिहास लिखते हैं, परन्तु उसके प्रभावों का मूल्यांकन बहुत दूर तक नहीं कर पाते हैं और इसीलिए उन्हें अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाताआइंस्टीन ने एक बार पागलपन की परिभाषा दिया था| उसने कहा कि “एक ही काम को एक ही तरीके से रोज रोज करना और उसके परिणाम की आशा एक नए ढंग से करना ही पागलपन है|” इन हिरणों की समस्या का समाधान इसीलिए तो नहीं मिल रहा क्योंकि वे समस्याओं की जड़ तक पहुँच नहीं पा रहे हैं| इनका सम्यक इतिहास एक नए तरीके से लिखना तो दूर है; क्योंकि किसी भी इतिहास का एक लक्ष्य और एक दर्शन होता है| इनके लक्ष्य तो इन्हें पता है, पर मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि इनको इनका इतिहास-दर्शन का पता नहीं है| मैं इनके सम्यक दर्शन की बात नहीं कर रहा; सम्यक या अनुचित दर्शन की बात तो दूर है, इन्होंने अपना दर्शन ही नहीं तय किया है जिस पर उनको अपना इतिहास लिखना हैइतिहास लेखन के लिए किसी सम्यक दर्शन की आवश्यकता होती है; इन हिरणों ने कभी इस दिशा में सोचा ही नहीं है और इसीलिए उन्हें मेरी ये बातें अटपटी लग सकती भी है| पर मैं अति गंभीर बात कर रहा हूँ| यही कारण है कि भारत इतनी बड़ी आबादी के देश होने के बावजूद  विकासशील देश बनने के दौड़ में शामिल होना चाहता है और मानव-विकास के सूचकांक पर बहुत नीचे है| समाज के सामंतवादी मानसिकता यथास्थिति बनाए रखना चाहते हैं और राष्ट्र का विकास उन सामंतवादियों तक सीमित रखना चाहते हैं| आप समझ सकते हैं कि मानव- विकास के सूचकांक में पिछड़ने का राष्ट्रीय दर्द कैसा होता है| आप से ही तो समाज और राष्ट्र को उम्मीद भी है|     

इतिहास मानव को क्या देता है?

इतिहास मानव को संस्कृति देता है जो सॉफ्टवेयर की तरह मानव, परिवार, समाज, राष्ट्र और मानवता को चेतन, अचेतन, अवचेतन और अधिचेतन पर संचालित और निर्देशित करता रहता है| चूँकि यह सॉफ्टवेयर है और तंत्र को संचालित करता है; यह विकास को दिशा देता है या अवरुद्ध करता है| भारत में विकास के बाधा को समझने के लिए भारत की संस्कृति और उसकी जड़ें को  इतिहास में  जानना और समझना जरुरी है| इसी कारण इतिहास आधुनिकता की नींव है, आधार है जिस पर आधुनिकता का भव्य इमारत खडा होता है|

थोरो ने कहा था कि पेड़ की हर जहरीली पत्तियों और फलों पर प्रहार करते रहने से बेहतर है कि उस पेड़ की जड़ पर ही प्रहार कर उसे ही नष्ट किया जाना बुद्धिमत्ता है|

किसी भी संस्कृति या इतिहास के पेड़ की एक निश्चित विचारधारा या आदर्श होता है| उसके हर जहरीले बात या उत्पाद के जबाव देने या उसे नष्ट करने के प्रयास से बहुत अच्छा है कि उस आदर्श को ही नष्ट किया जाय| इसके लिए आपको अपना इतिहास लिखना होगा| सामाजिक संत्रासों या कष्टों या मानसिक गुलामी को दूर करने का एकमात्र प्रभावी और समझदारी भरा उपाय है|

इतिहास की सही पद्धति क्या है?

डा० दामोदर धर्मानंद कोसाम्बी ने इतिहास यानि सामाजिक रूपांतरण को “उत्पादन की शक्तियों और उनके अंतर प्रक्रियाओं के अंतर संबंधों के आधार पर समझने और समझाने की प्राविधि बताया है| भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद् के संस्थापक अध्यक्ष प्रो० रामशरण शर्मा ही डॉ० कोसाम्बी की इस विधि का बार बार उल्लेख करते रहे हैं| इस आधार पर भारत की सभी समस्याओं का समाधान होता है और वर्तमान धार्मिक सामंतवाद की पोल खोलता है| यह जातिवाद, वर्णवाद, धर्म और सम्प्रदाय के आंतरिक अंतर संबंधों को और उसके उत्त्पत्ति को उद्घाटित  करता है| इसके लिए ही इतिहास का अध्ययन एवं लेखन आवश्यक है| इसके लेखन के लिए शिकारियों के इतिहास, उसके मंतव्य, उसके साक्ष्यों को छोड़ कर अपना अवलोकन, मनन, मंथन और चिंतन करना होगा|

निरंजन सिन्हा

स्वैच्छिक सेवानिवृत राज्य कर संयुक्त आयुक्त,

बिहार, पटना|

 

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

चुनाव कौन जीतता है?

अहम् सवाल है चुनाव कौन जीतता है, या चुनाव कैसे जीता जाता है? जीतता तो कोई एक ही है, यानि उन लोगों का प्रतिनिधित्व कोई एक ही करता है| तो वह क...