रविवार, 19 जुलाई 2020

इतिहास क्यों?

 (Why History?)

आजकल सामान्य समाज में यह प्रश्न अक्सर कौंधता रहता है कि आज के वर्तमान एवं आधुनिक युग में इतिहास के अध्ययन या अवलोकन की क्या अनिवार्यता है? अर्थात इतिहास क्यों पढ़ना चाहिए? हमें आगे देखना चाहिए, या पीछे देखना चाहिए? दरअसल ऐसे लोग इतिहास को जानते समझते ही नहीं है? ऐसे लोगों में तथाकथित बुद्धिजीवियों की संख्या कम नहीं है|

यदि एक शिकारी हिरणों का शिकार करता हैयदि इन घटनाओं पर इतिहास लिखा जाना हो, तो इतिहास लिखने वाले तीन तरह के जीव होंगे - पहला लेखक स्वयं शिकारी वर्ग हो सकता हैदूसरा लेखक स्वयं हिरण वर्ग ही हो सकता है, और तीसरा कोई प्रकृति संरक्षक, या कोई अन्य तथाकथित तटस्थकहे जाने वाला लेखक हो सकता है| शिकारी के इतिहास लेखन में शिकारियों का शौर्यगाथाहिरणों की मूर्खता, हिरणों के मांस की उपयोगिता और उसके लजीज स्वाद का विषद वर्णन रहता है, या रह सकता हैहिरणों को तो अपनी बौद्धिकता के अभाव में अपना इतिहास लिखना ही नहीं आताकुछ हिरणों ने तो इस दिशा में थोडा प्रयास भी किया है, जिन्होंने शिकारियोंके इतिहास रचना के पन्नों से कुछ अपने पक्ष की सामग्री समझ कर इतिहास लिख दिया है| ऐसे हिरणउन्हीं शिकारियोंके संरचनात्मक ढांचे में उलझ कर और इसके परिणाम एवं प्रभाव जाने बिना सारे भारत में और विदेशों में घूम घूम कर इतिहासपर व्याख्यान देते हुए वस्तुत: मूर्खतापूर्ण नृत्य कर रहे हैंतटस्थ दिखने वाले प्रकृति संरक्षकया अन्यके इतिहास पर भी टिप्पणी जरुरी हैये प्रकृति संरक्षकया अन्यहैं भी तो आखिर शिकारियों के ही परिवार से हीये प्रकृति संरक्षकया अन्यलेखक भी शिकारियों को अपराधी तो घोषित कर नहीं सकते, चूँकि उनमे इतनी हिम्मत है ही नहीं| स्पष्ट है कि हिरणों को अपने मनन और मंथन से, खुद के स्वविवेक से, और उन शिकारियों के संरचनात्मक ढांचेके बहार अपने इतिहास की रचना करनी है|

तो प्रश्न यह है कि इतिहास क्या है?  इतिहास क्यों जरुरी हैइतिहास कैसे लिखा जाता हैइतिहास व्यक्ति कोपरिवार को,  समाज कोराष्ट्र कोऔर मानवता को क्या देता हैइतिहास इन सबों को चेतनअचेतनअवचेतन और अधिचेतन पर कैसे संचालित, नियंत्रित, नियमित और प्रभावित करता है, या करता रहता हैक्या इतिहास आधुनिकता की नींव है और आधुनिकता को स्वरुप देता हैकुल मिलकर इतिहासको पढ़ना और समझना क्यों जरुरी है? इन सभी को समझने और जानने के लिए ही यह आलेख है|

इतिहास क्या है?

इस विषय पर प्रो० एडवर्ड हैलेट कार (ई० एच० कार) की पुस्तक इतिहास क्या है?” (What is History?) से अधिक और जानने की आवश्यकता नहीं हैउन्होंने ऐक्टन को उद्धृत करते हुए कहा है कि – हम अपने जीवन में कोई अंतिम इतिहास नहीं लिख सकते, लेकिन हम परम्परागत इतिहास को अवश्य ही रद्द कर सकते हैं|” सभी ऐतिहासिक अवधारणाएं व्यक्तियों यानि लेखकों तथा उनके दृष्टिकोणों के माध्यम बनती हैवस्तुत: ऐतिहासिक सत्य जैसी कोई चीज नहीं होती, क्योंकि कोई भी इतिहास का उपस्थापन वैज्ञानिक तथ्यों और प्रविधियों पर नहीं करता है, या नहीं कर सकता है| और विज्ञानके आधार के बदलते रहने से भी इतिहासको बदल जाना पड़ता है, और विज्ञान नित्य नूतन होता रहता हैऐतिहासिक तथ्य’ ‘इतिहासके लिए कच्चा मॉलनहीं होताबल्कि ये इतिहासकारके लिए कच्चा मॉलहोता है, जो ऐतिहासिक तथ्यको इतिहासकार के संस्कृतियों, परिस्थितियों, मूल्यों और उनके पूर्वाग्रहों से निर्धारित, व्याख्यापित और सम्पादित करता है|

जनता या जनमत के मंतव्यों, रायों, अवधारणाओं  और विचारों को प्रभावित करने का सबसे असरदार तरीका यह है, कि वह इतिहासकार अपने इतिहास लेखन से जो प्रभाव जनता में उत्पन्न करना चाहता है, उन्हीं आवश्यकताओं के अनुरूप ही उन ऐतिहासिक तथ्यों’ का उपस्थापन और व्याख्या उन उपलब्ध तथ्यों के नाम पर करेंवे ऐतिहासिक तथ्य भी वही बोलता है, जो वह इतिहासकार उन तथ्यों से बोलवाना चाहता है| यह उपस्थापन एवं व्याख्या भी अधिकतर  उस देश और काल की व्यवस्था के अनुकूल ही होता हैकिसी भी उपस्थापन एवं व्याख्या को व्यवस्था के अनुकूल होना ही होता है, यानि यथास्थितिवादीहोना ही होता है| प्राचीन काल के इतिहास में कई अंतराल खंड अन्धकारसे भरे पड़े है, जिनकी व्याख्या यथास्थितिवादी इतिहासकारअपने पक्ष में ही करते रहे हैंकार अपनी इस पुस्तक में लिखते हैं, कि प्राचीन और मध्य काल के  इतिहास के तथ्य के रूप में हमें जो कुछ मिलता हैउनका चुनाव ऐसे इतिहासकारों की पीढ़ियों द्वारा किया गया था, जिनके लिए धर्म का सिद्धांत और व्यवहार एक पेशा था और आज भी है| मध्यकालीन धार्मिक तस्वीर जो आज हमें तथ्य के रूप में प्राप्त हैंहमारे लिए उसका चुनाव बहुत पहले ऐसे लोगों द्वारा किया गया, जो उस धार्मिक बनावट में विश्वास रखते थे और चाहते थे कि दुसरे भी उसमे विश्वास करेंउन ऐतिहासिक तथ्यों का एक बहुत बड़ा भागजिनमे इनकी मान्यताओं एवं विश्वासो के विरोधी प्रमाण थेनष्ट हो चुका है, या सांस्कृतिक धार्मिक सामंतवादियोंद्वारा नष्ट किए जा चुके हैं, और जिन्हें पुन: कभी नहीं पाया जा सकताभारत में तो इन साक्ष्यों को नष्ट करने वाले सामंतवादियोंने तो इस बदलाव का भी धार्मिककरणकर अपनी पहचान को बचा लेने का प्रयास किया हैपर यह अब सब खुलने लगा है|        

यथास्थितिवादी इतिहासकारोंके लिए पहली आवश्यकता लोगों की अज्ञानता होती हैलोग यदि अशिक्षित होउनमे आलोचनात्मक चिंतनभी नहीं हो और ये लोग आर्थिक रूप से इतने कमजोर भी हो, कि उनको जीवन बनाए रखने के ही लिए अतिरिक्त समय नहीं बचता हो, तो ऐसी स्थिति में ऐसे इतिहासकारों के लिए नई और मनमानी इतिहास बनाने में और आसानी होती है| मध्यकाल में राजनीतिक एवं सांस्कृतिक सामंतवाद के समय लोगों को अशिक्षित बनाने के लिए ही भारत की एक भाषा पालि को संस्कारित’ कर संस्कृत भाषा को विकसित किया गया, और इसे प्रश्नों से बचाने के लिए देवभाषा भी घोषित कर दिया गयापढ़ना- लिखना समाज के पुरोहित एवं संस्कारक वर्ग के लिए आरक्षित कर दिया गया और सामान्य जनों को इस शिक्षा से वंचित कर दिया गयानए इतिहास को लिखने और उसकी मान्यता को सर्वमान्य एवं सर्वग्राह्य बनाने के लिए ऐसा करना अनिवार्य हो गया थापहले का ऐतिहासिक एवं लिखित साक्ष्य या तो नष्ट कर दिया गया, या जला दिया गया, ताकि सक्ष्यात्मक विरोध की कोई गुंजाईश ही नहीं रहेइतिहास के तथ्य कभी शुद्ध रूप में निष्पक्ष नहीं रहते, क्योंकि वह निरपेक्ष नहीं होते और ये तथ्य इतिहासकारों के विचारों के रंग में रंजित होकर ही निकलते हैं| प्रो० कार स्पष्ट करते हैं, कि जब आप इतिहास की कोई पुस्तक पढ़ते हैं, तो आप हमेशा अपनी कान को उस इतिहासकार के पीछे लगाकर उसकी आवाज सुनेंअगर आपको इतिहासकार के इतिहास रचना में कोई आवाज नहीं सुनाई देती है, तो इसका एक अर्थ यह है कि आप या तो एकदम बहरे हैं, या आपका इतिहासबोध ही शून्य है| इतिहासकार जिस प्रकार के तथ्यों की खोज कर रहा है, या करता है, वह इतिहास में उसी प्रकार के तथ्यों को ही पाएगाइतिहास का अर्थ ही होता है, उन ऐतिहासिक तथ्यों की व्याख्या, जो उस इतिहासकार ने समझा है, या जो वह बताना या समझाना चाहता है|इतिहासकार अपने युग के साथ अपने मानवीय शारीरिक अस्तित्व की शर्तों पर जुड़ा  होता हैइतिहासकार के द्वारा प्रस्तुत इतिहास को समझने के लिए उस इतिहासकार के अध्ययन की भी दक्षता होनी चाहिए|   

जबतक आप इतिहासकार की मानसिकता, यानि इतिहास लेखन का उद्देश्य नहीं समझ लें, तबतक आप उस इतिहास को नहीं समझ सकते हैंयह इतिहासकार कौन है और उसकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि क्या हैक्या वह इतिहासकार किसी प्रकार के सामंतवादी पृष्ठभूमि से है और उसकी सामंतवाद के बारे में चेतन और अचेतन स्तर पर क्या निर्धारित है – यह जानना भी बहुत महत्वपूर्ण हैक्या वह सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक व्यवस्था को यथास्थिति में बनाए रखना चाहता है, या वह देश एवं समाज हित में सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक रूपांतरण भी करना चाहता हैहमें इतिहासकार का उस सन्दर्भ यानि पृष्ठभूमि का तात्पर्य समझ लेना आवश्यक होता हैकिसी तथ्य या प्रस्तुतीकरण अपने आप में इतिहास नहीं बन जाते है, जबतक कि ये मानव के सामाजिक विकास की गाथा में प्रासंगिक नहीं बन जातेक्रोशे ने घोषणा की, कि सभी इतिहास ‘समसामयिक इतिहास’ होते हैंइसका स्पष्ट अर्थ यह हुआ कि इतिहास का लेखन ही वर्तमान की समस्यायों को सुलझाने के लिए ही अतीत की जड़ों को देखना है| एक वैज्ञानिक एवं आधुनिक इतिहासकार का मुख्य कार्य समय काल में विवरण देना नहीं होता है, अपितु उस काल का मूल्याङ्कन करना होता है और जनता को अपनी मनोवांछित इच्छा से सहमत कराना भी होता हैइतिहास वही होता है, जो इतिहासकार बनाता हैइतिहासकार अतीत में जाकर वर्तमान और भविष्य को गढ़ता है, बनाता है और निर्धारित करता है| अतीत आधार है, जिस पर वर्तमान –भविष्य का अधिसंरचना खड़ा किया जाता है| ‘इतिहासको  ‘तथ्यएवं तथ्यों की व्याख्याका संयुक्त स्वरुप माना जाता हैइतिहासकार वर्तमान में होता है, जबकि उसके तथ्य अतीत के होते हैं, और उसकी व्याख्याएँ वर्तमानएवं भविष्यके लिए होती हैतथ्यों के बिना इतिहासकार बेकार है और इतिहासकार के बिना तथ्य मृत एवं अर्थहीन होता हैइतिहास इतिहासकार और उसके तथ्यों की क्रिया- प्रतिक्रिया है, जो सदैव जारी रहेगायह हमेशा ध्यान में रहना चाहिए, कि इतिहासकार स्वयं इतिहास का उत्पाद होता है|

इतिहास क्यों जरुरी है?

चूँकि इतिहास अब तक का बीत गया काल से सम्बद्ध हैऔर इसीलिए इतिहास अब तक के बीत गए कालों में मानव ने जो सीखाअर्जित कियाजो समझा हैउसका सारांश में वृतांत हैइतिहास हमें सोचनेव्यवहार करनेकार्य करने और अपने एवं समाज के प्रति जो नजरिया  हैउसकी उत्पतिविकास और भविष्य के बारे में क्रिया विधि समझाता हैअपने आपको,  परिवार कोअपने समाज कोअपने राष्ट्र को और मानवता को समझने और समझाने के उपकरण का नाम ही इतिहास है| सामाजिक व्यवस्थासांस्कृतिक विन्यासप्रशासनिक शासनसामंती विचार एवं दृष्टिकोणसामाजिक प्रतिमानइन सभी को सम्यक ढंग से समझने और समझाने के लिए इतिहास का  सम्यक अध्ययन आवश्यक हैइसे विस्तारित किया जा सकता हैपर यहाँ स्थानाभाव में विस्तारित नहीं किया जा रहा है|

संस्कृतिसमाज का सॉफ्टवेयर है, यदि सभ्यतासमाज का हार्डवेयर हैकिसी भी समाजराष्ट्र और मानवता के विकास सिर्फ हार्डवेयर के विकसित होने से नहीं हो जाती अर्थात इनके भौतिक स्वरुप के विकास ही सभ्यता का विकास है जैसे सड़कभवनबाँधनहरेविद्यालयअस्पताल आदि आदिइसके साथ ही इनके विकास के लिए इनके सॉफ्टवेयर का समुचित होना जरुरी हैव्यक्तिसमाजराष्ट्र का इतिहास बोध (Perception of History) ही, यानि उस इतिहास के प्रति जो अवधारणा बनी, वही उनकी संस्कृति का निर्माण करता है| उस देश और समाज को उसकी संस्कृति ही हर स्तर- चेतनअचेतनअवचेतन और अधिचेतन संचालित कराती रहती हैबिना सम्यक के इतिहास के किसी भी देश और समाज की संस्कृति में संशोधन एवं संवर्धन नहीं किया जा सकता है, और इसी कारण इसके बिना यानि नए इतिहास के बिना उसका सम्यक विकास भी नहीं हो सकता है|  

इतिहास कैसे लिखा जा सकता है?

 खासकर हिरणों का इतिहास हिरणों के लिएसारे विश्व के वैज्ञानिक यह मानते हैं कि वैज्ञानिक आविष्कार (Invention) करते हैं, और नया ज्ञान प्राप्त करते हैंलेकिन विज्ञान इस नए ज्ञान के लिए वे किसी सूक्षम एवं युक्तियुक्त नियमों की स्थापना नहीं करते; बल्कि ऐसी कल्पनाओं अथवा अनुमानों का प्रतिपादन करते है, जिनसे सम्भावनाओं के नए आयाम खुलते जाते हैं| प्रत्येक प्रकार के चिंतन प्रक्रिया में हमें कुछ पूर्व धारणाएं बनाना और स्वीकार करना पड़ता हैवैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि अज्ञात को ज्ञात से कभी नहीं जान जा सकता है|’ ये अवधारणायें (Postulation) वैज्ञानिक प्रक्रिया में तभी ही सहायक होती हैजब इनका आधार अनुमान के अतिरिक्त अवलोकन और पर्यवेक्षण (Observation n Supervision) भी होइसमे संशोधन और सुधार की पुरी संभावना रहनी चाहिएयदि ये अवधारणाएं हमें नई अंतर्दृष्टि देने और हमारा ज्ञान बढ़ने में सहायक या समर्थ है, तो ये अवधारणाएँ सही एवं सम्यक हैइनमे सामान्य जन के भविष्य को सुधारने वाला सूत्र बनने की क्षमता होनी चाहिएइससे वर्तमान की समस्यायों को सुलझाने की क्षमता होनी चाहिएविज्ञान की सापेक्षता के सिद्धांत की तरह ही इतिहास भी सापेक्ष होता है, अर्थात कोई भी इतिहास उस इतिहासकार के व्यक्तित्व और उनके लक्ष्य के अनुरूप ही होता है|  इन हिरणों को अपने ऊपर विश्वास ही नहीं है, कि वे अपना कोई इतिहास भी लिख सकते हैं, और इसीलिए ये अपने शिकारियों के रचित इतिहास के संरचनात्मक ढांचे में ही उलझे हुए होते हैं; यही इनकी सबसे बड़ी समस्या है|      

शिकारी अपने इतिहास लेखन में कुछ ऐसा लिख डालते हैं, कि जिससे हिरणों को लगता है कि उन्हें उनका उद्धार करने वाला सूत्र मिल गया है और वे अपना सम्यक इतिहास लिख ही लेंगेवस्तुत: हिरणों के प्रत्यक्ष समर्थन में दिखता ऐतिहासिक सामग्री उन हिरणों की हितों के ही विरुद्ध अचेतन और अधिचेतन स्तर कैसे सफलतापूर्वक काम कर रहा हैयह सब उन हिरणों के समझ के परे होता हैवस्तुत: यह उनके विरुद्ध काम भी कर रहा हैइसका अहसास ही उन्हें नहीं होता हैये इतिहास तो लिखते हैंपरन्तु उसके प्रभावों का मूल्यांकन बहुत दूर तक नहीं कर पाते हैं और इसीलिए उन्हें अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पा रहा हैआइंस्टीन ने एक बार पागलपन की परिभाषा दिया था, जिसमे उसने कहा कि एक ही काम को एक ही तरीके से रोज रोज करना और उसके किसी नए परिणाम की आशा करना, ही पागलपन है|” इन हिरणों को उनकी समस्याओं का समाधान इसीलिए नहीं मिल रहा, क्योंकि वे अपनी समस्याओं के मूल जड़ तक पहुँच नहीं पा रहे हैंइनका सम्यक इतिहास एक नए तरीके से लिखना तो दूर की बात हैक्योंकि किसी भी इतिहास लेखन का एक लक्ष्य और एक दर्शन होता हैइनको अपने लक्ष्य का तो इन्हें पता हैपर मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि इनको इनका इतिहास-दर्शन” (Historiography) का पता ही नहीं है| 

मैं इन हिरणोंके सम्यक दर्शनया सम्यक इतिहास दर्शनकी बात नहीं कर रहा हूँक्योंकि इनके सम्यकया अनुचितदर्शन की बात तो दूर की हैइन्होंने अभी तक अपना दर्शन ही नहीं तय किया है, जिस पर उनको अपना इतिहास लिखना हैइतिहास लेखन के लिए किसी सम्यक दर्शन की अनिवार्य आवश्यकता होती है| इन हिरणों ने कभी इस दिशा में सोचा ही नहीं है और इसीलिए उन्हें मेरी ये बातें अटपटी ही लग सकती हैपर मैं अति गंभीर बात कर रहा हूँयही कारण है कि भारत इतनी बड़ी आबादी के देश होने के बावजूद  विकासशील देश बनने के दौड़ में शामिल होना चाहता है और मानव-विकास के सूचकांक पर बहुत नीचे हैभारत की पाँच प्रतिशत की आबादी भी विकसित देशों के नागरिकों के समतुल्य नहीं हैं, अन्यथा यह भारत विश्व का सबसे अग्रणी देश होता| समाज के सामंतवादी मानसिकता यथास्थिति बनाए रखना चाहते हैं और राष्ट्र का विकास उन सामंतवादियों तक सीमित रखना चाहते हैंआप समझ सकते हैं कि मानव- विकास के सूचकांक में पिछड़ने का राष्ट्रीय दर्द कैसा होता हैआप से ही तो समाज और राष्ट्र को उम्मीद भी है|     

इतिहास मानव को क्या देता है?

इतिहास मानव को संस्कृति देता है, जो सामाजिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था में एक सॉफ्टवेयर की तरह मानवपरिवारसमाजराष्ट्र और मानवता को चेतनअचेतनअवचेतन और अधिचेतन पर संचालितनियंत्रित, नियमित, प्रभावित और निर्देशित करता रहता है| चूँकि यह सॉफ्टवेयर है और तंत्र को संचालित करता हैअत: यह विकास को दिशा भी देता है, या अवरुद्ध भी करता हैभारत में विकास के बाधा को समझने के लिए भारत की संस्कृति और उसकी जड़ें को  इतिहास में  जानना और समझना जरुरी है| वर्तमान भारतीय इतिहास को सांस्कृतिक सामन्तवाद के सापेक्ष समझना बहुत जरुरी है| इसी कारण इतिहास आधुनिकता की नींव हैआधार है, जिस पर आधुनिकता का भव्य इमारत खडा होता है|

थोरो ने कहा था कि पेड़ की हर जहरीली पत्तियों और फलों पर प्रहार करते रहने से बेहतर है; कि उस जहरीले पेड़ की जड़ पर ही प्रहार कर उसे ही नष्ट किया जाना बुद्धिमत्ता है|

किसी भी संस्कृति या इतिहास के पेड़ के द्वारा उत्पादित फलों की एक निश्चित विचारधारा या आदर्श होता हैउसके हर जहरीले बात या उत्पाद के जबाव देने या उसे नष्ट करने के प्रयास से बहुत अच्छा है कि उस आदर्शको उत्पन्न करने वाले उस पेड़ को ही नष्ट कर किया जाय| इसके लिए आपको अपना इतिहास लिखना होगासामाजिक संत्रासों या कष्टों या मानसिक गुलामी को दूर करने का एकमात्र यही प्रभावी और समझदारी भरा उपाय है|

इतिहास (लेखन) की सही पद्धति क्या है?

डा० दामोदर धर्मानंद कोसाम्बी ने इतिहास यानि सामाजिक रूपांतरण को “उत्पादन की शक्तियों और उनके अंतर प्रक्रियाओं के अंतर संबंधों के आधार पर समझने और समझाने की प्राविधि बताया है|” भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद् के संस्थापक अध्यक्ष प्रो० रामशरण शर्मा ही  डॉ० कोसाम्बी की इस विधि का बार बार उल्लेख करते रहे हैं| इस प्रक्रियात्मक प्राविधि में मैं एक संशोधन के साथ इसे एक नए स्वरुप में प्रस्तुत करता हूँ – इतिहासयानि सामाजिक रूपांतरण का प्रक्रियात्मक विवरणमानव के उपभोग’, ‘उत्पादन’, ‘वितरण’, एवं विनिमय; के साधनोंएवं शक्तियोंके अंतर्संबंधों के आधार पर आधारित है| इस आधार पर भारत की सभी समस्याओं का समाधान होता है, इतिहास की सभी परतों पर से रहस्य उठ जाता है, और वर्तमान धार्मिक यानि सांस्कृतिक सामंतवाद की पोल खोलता है| यह जातिवादवर्णवादधर्म और सम्प्रदाय के आंतरिक अंतर संबंधों को और उसके उत्त्पत्ति को भी उद्घाटित  करता हैइसके लिए ही इतिहास का नविन अध्ययन एवं लेखन आवश्यक है, परन्तु इसके लेखन के लिए शिकारियों के इतिहासउसके मंतव्यउसके साक्ष्यों को छोड़ कर अपना अवलोकनमननमंथन और चिंतन करना होगायही एकमात्र विकल्प है, बाकि सब तमाशा ही है|

आचार्य निरंजन सिन्हा

स्वैच्छिक सेवानिवृत राज्य कर संयुक्त आयुक्तबिहारपटना|

(भारतीय संस्कृति का ध्वजवाहक)

1 टिप्पणी:

  1. बहुत खूब, आचार्य निरंजन सिन्हा सर। यह लेख पढ़ कर शिकारी एवं हिरण, दोनों का पक्ष से अवगत हो पाया। आप की पैनी नजर के लिए आभार।

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