शिवाजी
के व्यक्तित्व का मूल्यांकन करना आज भी एक प्रेरणादायक उद्धरण है।
मैं यहाँ शिवाजी के व्यक्तित्व मूल्याङ्कन के लिए एक सच्चे प्रसंग की प्रस्तुति कर
रहा हूँ। यह घटना शिवाजी के ऐतिहासिक प्रत्यक्ष प्रभाव क्षेत्र की है। एक बार
महाराष्ट्र के एक प्रमुख नगर में धार्मिक दंगा हो गया। विधि व्यवस्था को सामान्य
करने के लिए प्रशासन को उस नगर में कर्फ्यू लगाना पड़ा। इस प्रशासनिक प्रयास के
साथ बहुत जल्द ही उस नगर का जनजीवन फिर से सामान्य हो गया। पुन: सभी कार्यालय,
शिक्षण संस्थान, व्यवसायिक प्रतिष्ठान एवं साधारण
जन जीवन सामान्य हो गया| विश्व विद्यालय के भी कार्यालय सामान्य एवं दैनिक कार्यो
के लिए संचालित होने लगे।
सामान्य
अवस्था आने के बाद मुस्लिम सम्प्रदाय की एक लडकी विश्व विद्यालय में परीक्षा संबंधित
कार्य के लिए आवेदन प्रपत्र जमा करने गयी हुई थी। उसी समय उस नगर में फिर से दंगा
भड़क गया। प्रशासन ने उपचारात्मक प्रयास में एक बार फिर से तत्काल उस नगर में
कर्फ्यू लगा दिया। उस विश्व विद्यालय की अवस्थिति नगर के एक बाहरी किनारे पर थी और
उस लड़की का घर उस नगर के दूसरे किनारे पर था। चूंकि उस लडकी का घर उस विश्व
विद्यालय से बहुत दूर था, इसलिए उस कर्फ्यू में उस
लडकी का तत्काल अपने घर लौट पाना संभव नहीं था।
विश्व
विद्यालीय क्षेत्र चूंकि नगर के बाहरी क्षेत्र में था,
इसलिए वह क्षेत्र बहुत घना बसा हुआ नहीं था। वह लडकी शाम तक निकटस्थ
झाडियों में छिपी रही। शाम का अधेरा घिर आया। लम्बी रात में सुरक्षा के साथ साथ
भूख प्यास भी सताने लगी। कर्फ्यू के सन्नाटे अब उसे डराने लग गयी थी। घरों की खिड़कियाँ
एवं दरवाजे बंद थे, क्योंकि कर्फ्यू में खिड़कियों और
दरवाजों को खोले रखने की अनुमति नहीं होती है। डरी, घबरायी और
सहमी हुई उस लडकी को आगे कुछ सूझ नहीं रहा था। वह बचते बचाते निकटस्थ आवासीय
मकानों के पास पहुँच गयी| वह विद्यार्थियों के लिए किराये पर उपलब्ध सामान्य निजी
मकान थे, जिन्हें सामान्यत: लौज कहते हैं|
उन्हीं
लौजों के एक बन्द खिड़की से कुछ आवाज आ रही थी। उसने हिम्मत करके एक बन्द खिडकी के
एक सुराख से अन्दर कमरे में झांकी। वह कुछ विद्यार्थियों का आवासीय लौज था। उस
कमरे के एक सरसरी मुआयने में उसने पाया कि उस कमरे में महान हृदय सम्राट शिवाजी
की एक शानदार फ्रेम्ड फोटो लगी हुई थी। वह लडकी तुरन्त समझ गयी कि उस कमरे में
रहने वाले छात्रों की टोली शिवाजी के आदर्शो पर चलने वाले लोगों की है। अब वह
संतुष्ट हो गयी कि वह सही जगह पहुँच गयी है। जिन लोगों का जीवन आदर्श शिवाजी
हों, वे लोग असाधारण राष्ट्रीय भावना के
लोग होते हैं, ऐसी उस लडकी धारणा थी।
उस लडकी ने उसके दरवाजे को एक बड़ी आशा के साथ खटखटायी।
दरवाजा
खुला। उन विद्यार्थियों ने उस लडकी को तुरन्त दरवाजे के अन्दर ले लिया गया,
क्योंकि बाहर कर्फ्यू में रात्रि का सन्नाटा था और दरवाजे खोलने की
अनुमति नहीं थी। अन्दर आते ही लडकी ने राहत की सांस ली। उस दिनों इंटरनेट का उपयोग
सामान्य नहीं हुआ था और मोबाईल के संचार में खर्च ज्यादा होने से यह भी सामान्य
मध्यम वर्ग के लिए महंगा था| उन दिनों मोबाईल में आउटगोईंग काल के साथ ही इनकमिंग
काल पर भी समय के सेकंड के अनुसार रुपए लगता था। उस लड़की को वहाँ कर्फ्यू के
समाप्त होने तक लगातार रुकना पड़ा। तीन दिनों का समय कट गया। कर्फ्यू समाप्त होने
के साथ उस लडकी को रिक्शा पर बैठाकर उसके घर ले जाया गया।
बेटी
को सुरक्षित और संरक्षित देख कर उसका परिवार और समाज भाव विह्वल था। उसने अपनी
पूरी कहानी परिवार को सुनायीं, जो मीडिया के माध्यम
हमलोगों तक आया।
जिस व्यक्तित्व का चित्र मात्र किसी के लिए जीवनदायिनी
हो सकता है, तब उनके वास्तविक
साम्राज्य के समय शासन के विभिन्न आयामों
को भी देखा, समझा और अनुभव किया जा सकता हैं।
वह किसी के लिए मात्र एक चित्र हो सकता है, लेकिन
वह चित्र मात्र अपने विचारों, आदर्शों एवं ऐतिहासिक विरासत के सन्देश को अविरल प्रवाहित
करता होता है। शिवाजी का चित्र मात्र ही समाज में एक विश्वास, आदर्श और मानवीय
मूल्यों के प्रति आस्था जगाता होता है| उस व्यक्तित्व ने अपना जीवन उस महान
आदर्शो के साथ जिया है, जिस यथार्थता को वहाँ के सभी समाज ने
भी नजदीकी से अनुभव किया एवं समझा है। ऐसा व्यक्तित्व तो सभी महान समाजों के लिए आदर्श
और अनुकरणीय होता है। शिवाजी का वह चित्र उनके सम्पूर्ण जीवन चरित्र की ‘संरचनात्मक’तत्वों
के ढाँचे’ (Frame work of Structural elements) की अभिव्यक्ति है, जिसे प्रसिद्ध
भाषाविद फर्डीनांड डी सौसुरे ने “संरचनावाद” (Constructionism) में समझाया है| एक शब्द,
एक वाक्य, एक चित्र, एक मूर्ति एवं एक प्रतीक भी अपने संरचनात्मक ढाँचे की
अभिव्यक्ति होता है, जो एक ही साथ बहुत कुछ कहता होता है|
किसी
भी समाज एवं राष्ट्र की मानसिकता, यानि उसके नजरिए (Attitude) निर्धारण एवं
निर्माण ऐसे ही होता है| यही मानसिकता
यानि नजरिया ही उसके संस्कृति (Culture) का निर्माण और संस्कृति में
परिवर्तन करता रहता है। शिवाजी के शासन काल की अनुभूतियों के वर्णन एवं विवरण ही
किसी समाज में मिथक और इतिहास के रूप में मौजूद रहता है| यही मिथक और इतिहास कालांतर
में संस्कृति को आकार (Shape) देता है, ढालता है। आम समाज के “सामूहिक
अवचेतन” (Collective Un consciousness) में शिवाजी के विचार एवं कार्य स्थापित
है। इस “सामूहिक अवचेतन” की अवधारणा को प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक कार्ल जुंग ने
दिया| अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार विजेता प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक डेनियल
कुह्नमैन ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "थिंकिंग फास्ट एंड स्लो"
में इसे ही “सिस्टम एक” (System One) कहा है, जो
स्वचालित रूप में तेजी से काम करता है। उस लडकी में उस समाज की “सामूहिक अवचेतन”
में स्थापित धारणा ने उसे ऐसा करने को दिशा निर्देशित किया और स्वीकृति दी| समाज
के इसी “सामूहिक अवचेतन” को उस समाज की संस्कृति कहा जाता है, जिसे कोई उस समाज
में रह कर अवचेतन में सीखता है| उस लड़की ने शिवाजी का चित्र को देख कर अपने “सिस्टम
एक” के साथ शिवाजी के सम्बन्ध में ‘स्वचालित रूप’ में तुरंत निर्णय लिया। इस सबके
पीछे उस समाज की संस्कृति रही, जिसे कोई भी उस समाज में रह कर स्वत: सीखता रहता
है|
प्राचीन
काल एवं मध्य काल में यह राज्य क्षेत्र विभिन्न नामो से जाना गया। सिर्फ एक समय यह
क्षेत्र ‘राष्ट्र’ के नाम ‘राष्ट्रकूट’ से जाना गया, लेकिन पहली बार शिवाजी
के नजरिए ने इस क्षेत्र को एक महान राष्ट्र बनाने की संकल्पना – ‘महाराष्ट्र’ के
साथ आयी| भारत की प्राचीनतम भाषा पालि एवं प्राकृत में इस क्षेत्र को ‘महरट्ठ’
कहा जाता था। संस्कृत भाषा एक सुसंस्कृत, यानि सु संस्कारित भाषा है, जो ‘संस्कृत’
शब्द से स्वत: ही स्पष्ट होता है| यह संस्कृत पालि की संस्कारित भाषा है| शिवाजी
ने अपने साम्राज्य काल में इस प्रभाव क्षेत्र को ‘महाराष्ट्र’,
यानि ‘महान’ ‘राष्ट्र’
कहा। आप समझ सकते हैं कि शिवाजी की भावना अपने राज्य क्षेत्र को एक महान राष्ट्र
के रुप में स्थापित करना था। उनके पचास साल की कम आयु में ही चले जाने के कारण
उनका राज्य क्षेत्र उत्तर के उतुंग हिमालय और दक्षिण में हिन्द महासागर तक नहीं जा
सका,
जो एक महान और दूरदर्शी महाराज शिवाजी का सपना रहा। उनका महान
राष्ट्र का भौगोलिक क्षेत्र वर्तमान महाराष्ट्र के प्रान्तीय क्षेत्र तक ही सिमट
कर रह गया।
यहाँ
यह ध्यान रहे कि एक ‘राष्ट्र’ अपनी संरचनात्मक
गुणवत्ता, प्रकृति, अर्थ एवं स्वरुप में एक ‘देश’, ‘राज्य’ एवं ‘प्रान्त’ से
पूर्णतया भिन्न होता है| यह भी ध्यान रहे कि
भारतीय संविधान की उद्देशिका (Preamble) में ‘राष्ट्र’ (Nation) की एकता एवं
अखंडता की बात की गयी है, किसी ‘देश’ (Country), ‘राज्य’ (State) या ‘प्रान्त’ (Province)
की एकता और अखंडता की बात नहीं की गयी है| ‘राष्ट्र “ऐतिहासिक एकापन” (Historical
Oneness) की स्थायी भावना है|’ यह अवधारणा जोसेफ स्टालिन की है| जिस राष्ट्रीयता
की भावना के महत्त्व को भारतीय संविधान सभा ने बीसवीं सदी में समझा, उसे
शिवाजी ने तीन शताब्दी पहले ही स्थापित करना चाहा था| उनका महान राष्ट्र आज विश्व गुरु होता है, जिसमे सभी को न्याय, समता, स्वतंत्रता, बंधुता, समृद्धि, शांति एवं सुखमय जीवन का परिवेश मिलता होता| इस रूप में भी शिवाजी
महान थे|
उनके
‘हिन्दवी राज्य’ की अवधारणा को लोग और इतिहासकार ढंग से समझ नहीं पाए हैं। इसे ‘हिन्दुओं
के राज्य’ के रुप में व्याख्यापित किया जा रहा है, जबकि उस काल तक ‘हिन्दू’ सिर्फ
एक भौगोलिक शब्दावली थी, और किसी भी रुप में धार्मिक नहीं था|
मध्य काल में ‘हिन्द’ की अवधारणा एक भौगोलिक वास्तविकता तक और ‘हिन्दू’ की अवधारणा
सिर्फ एक सामाजिक वास्तविकता तक ही सीमित रहा और उसका प्रतिनिधित्व करता रहा। हिन्दुओं
के सामान्य वर्ग पर एक धार्मिक कर – जजिया’ लिया जाता था, लेकिन एक अन्य सामाजिक
वर्ग पर यह नहीं लिया जाता था| स्पष्ट है कि ‘हिन्दू’ शब्द उस समय तक धार्मिक नहीं
था| सन 1893 के शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में किसी भी ‘हिन्दू धर्म’ का
प्रतिनिधित्व नहीं हुआ था। उसमें भारत से सिर्फ ‘ब्राह्मण धर्म’ ही शामिल हो पाया
था, देखें अन्य प्राधिकृत स्रोत। स्वामी विवेकानंद जी को ‘शूद्र वर्ण’ के सदस्य
होने के कारण वहाँ भारत की ओर से कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला। उन्हें श्रीलंका के
बौद्ध धर्म के रुप में प्रतिनिधित्व मिला, जिसने
भारतीय धर्म, यानि भारतीय संस्कृति की वैश्विक डंका बजायी
थी। फिर से स्पष्ट रहे कि उस समय तक ‘हिन्दू’ शब्द धार्मिक अर्थ या अवधारणा ग्रहण
नहीं किया था। हिन्दू शब्द का सफ़र भौगोलिक से शुरु होकर सामाजिक होते हुए बीसवीं
शताब्दी में धार्मिक तक तय किया| इस सफर की कहानी एक अन्य आलेख में उपलब्ध है| अत:
‘हिन्दवी’ शब्द कदापि हिन्दू धर्म से सम्बन्धित नहीं है| ‘हिन्दवी’ शब्द का धार्मिक
उपयोग एवं प्रयोग कुछ स्वार्थी, कुछ नादान और कुछ चतुर लोग करते हैं, कोई भी राष्ट्र
भक्त एवं मानवता के पुजारी नहीं करता है|
अतः
‘हिन्दवी राज्य’ ‘हिन्दू राष्ट्र’ नहीं था, बल्कि
यह ‘हिन्द’ के लोगों का अपना (स्व) राज्य’ था।
सामान्य लोगों और इतिहासकारों में यह अवधारणात्मक त्रुटि इस कारण आती है,
क्योंकि सामान्य लोग और इतिहासकार भी ‘इतिहास के गुरुत्वीय ताल’ (Gravitational
Lensing of History) को नहीं समझते हैं।
इसी
तरह शिवाजी के सम्बन्ध में कई ऐतिहासिक भ्रांतियाँ है, जिसे मैं आगे कभी स्पष्ट
करूँगा|
आचार्य
प्रवर निरंजन जी
दार्शनिक,
शिक्षक एवं लेखक
अध्यक्ष,
भारतीय अध्यात्म एवं संस्कृति संवर्धन संस्थान, बिहटा, पटना, बिहार|
एकदम सही बात कही है आपने, शिवा जी को शातिर लोग हिन्दू मुस्लिम दंगे कराने हेतु प्रयोग कर रहे हैं एक गीत याद आ गया है पहले हम लोग भी सरस्वती शिशु मन्दिरों में बच्चों को सिखाते थे।
जवाब देंहटाएंजागो तो इक बार हिन्दू जागो तो।जागे थे जब वीर शिवाजी भागे सारे मुल्ले काजी मच गई हाहाकार हिन्दू जागो तो।
साहित्य में नायक (Hero,not leader) के जो जो गुण निर्धारित किए गए हैं उनमें से अधिकांश शिवाजी में थे | इस विषय को आपने विस्तृत आयाम देते हुए दूसरे फलक पर विवेचित किया है |बहुत ही सामयिक आलेख है यह |
जवाब देंहटाएंक्या जबरदस्त लिखे हैं सर। शुरुआत बढ़िया भूमिका से कर, हिन्दुत्व और महान राष्ट्र पर इसे फिनिश किए हैं सर। बहुत बढ़िया सर। Keep it up.
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