मंगलवार, 10 सितंबर 2024

‘मूर्ख दिखना’ एक कलात्मक विज्ञान है|

                   ‘मूर्ख दिखना’ एक कलात्मक विज्ञान है| ‘मूर्ख दिखना’ और ‘मूर्ख होना’, दोनों अलग अलग एवं विपरीत  विषय है|मूर्ख होना’ अच्छी बात नहीं है, लेकिन ‘मूर्ख दिखना’ एक उत्कृष्ट कला भी है, और उच्च स्तरीय मनोविज्ञान भी है| किसी के द्वारा अपने को 'मूर्ख दिखाना' ही दूसरों को "मूर्ख बनाना" होता है। यह जीवन के हर क्षेत्र में लागू होता है और यह सभी परिस्थितियों  के लिए सत्य भी है| इसी ‘मूर्ख दिखने की कला’ को कुछ विद्वान् ‘भावनात्मक बुद्धिमत्ता’ (Emotional Intelligence) एवं ‘सामाजिक बुद्धिमत्ता’ (Social Intelligence) भी कहते हैं।

| ‘भ     भावनात्मक बुद्धिमता’ में सामने वाले की भावना को समझ लेना और उसी के अनुकूल एवं अनुरूप अपनी भावना को ढाल कर उसी के अनुकूल एवं अनुरूप अपनी भावना, विचार एवं व्यवहार को व्यक्त करना होता है| इसी को समानुभूति (Empathy, not Sympathy) दिखाना भी कहते हैं| अर्थात मूर्ख लोगों के साथ स्वयं को उसी स्तर का दिखाना, ताकि वे भी आपको अपना ही समझ सकें, मान सके| जब आपकी मूर्खता दिखाने में आपका सन्दर्भ बिन्दु समाज होता है, तब ऐसी बुद्धिमत्ता को सामाजिक बुद्धिमत्ता कहते हैं| डेनियल गोलमन की "भावनात्मक बुद्धिमत्ता" एवं कार्ल अल्ब्रेच की "सामाजिक बुद्धिमत्ता" का आप अलग से अवलोकन कर सकते है|

                 यहाँ सबसे बड़ा सवाल यह है कि ‘मूर्खता’ क्या है? स्पष्ट है कि यह ‘मूर्खता’ ‘अज्ञानता’ की अभिव्यक्ति है, उपज है| इसके ही साथ यह भी स्पष्ट है कि इस ‘अज्ञानता’ के साथ उसके पास विवेक एवं संवेदना भी नहीं होगी| तो ‘अज्ञानता’ क्या है? स्पष्ट है कि ‘अज्ञानता’ में सत्य एवं सही सूचनाओं का अभाव का होना और उसके विश्लेषण एवं आलोचनात्मक मूल्याङ्कन क्षमता का स्तरीय नहीं होना महत्वपूर्ण है| इसके साथ ही अज्ञानता में विज्ञान एवं संवेदना आधारित तार्किकता एवं ‘कार्य- कारण’ का स्पष्ट सम्बन्ध नहीं होना भी प्रमुख है| अर्थात उपरोक्त ये लक्षण ही ‘मूर्ख’ होने के लिए काफी है| कहने का तात्पर्य यह है कि एक ‘ज्ञानी’ वह व्यक्ति है, जिसके पास पर्याप्त सुचना हो, उसके आलोचनात्मक विश्लेषण करने एवं मूल्याङ्कन करने की क्षमता हो और पर्याप्र विवेकशील तथा संवेदनायुक्त हो|

                   मूर्ख दिखने को साधारणतया एवं अक्सर व्यक्तित्व का एक नकारात्मक या कमजोर पहलू के रूप में देखा जाता है। लेकिन यदि इसे गहराई से समझा जाए, तो मूर्ख दिखने में भी एक कला और विज्ञान छिपा हुआ है। यह एक मानसिक स्थिति ही नहीं है, बल्कि एक व्यवहारिक कौशल भी है, और इसीलिए यह मनोविज्ञान भी है एवं कौशल का कला भी है| मनोविज्ञान मानव मन का विज्ञान है| मनोविज्ञान मानव की भावनाओं, विचारों, व्यवहारों एवं कार्यों का विज्ञान है| ‘मूर्ख दिखने’ का उपयोग एक व्यक्ति अपनी स्थितियों को संभालने, संघर्षों से बचने, समानुभूति उत्पन्न करने और मानसिक शांति बनाए रखने के लिए करता है। ‘मूर्ख दिखने’ की कला एवं विज्ञान का उपयोग एवं प्रयोग कर आप अपने जीवन लक्ष्य को भी आसानी से पा सकते हैं| एक राजनेता (इसमें सामाजिक नेतृत्व का आवरण ओढ़े लोग भी शामिल हैं) इस कला एवं विज्ञान का निपुण प्रयोगकर्ता होता है, और वह इसी कारण बौद्धिकों के साथ बहुमत की सामान्य आबादी को भी एक बौद्धिक की तरह ही प्रतिक्रिया कर उससे भी सम्मान पाता है| कहने का तात्पर्य यह है कि ऐसे नेतृत्व सामान्य बहुमत का मत पाने के लिए उनके साथ सब कुछ समझते हुए भी ‘मूर्ख दिखने’ का सफल एवं कुशल अभिव्यक्ति कर उन पर ‘राज’ करता है|

                ‘मूर्ख दिखने का विज्ञान’ इसलिए कहा गया, क्योंकि मनोविज्ञान आज शरीर पर विचारों, भावनाओं एवं व्यवहारों पर की गयी प्रतिक्रियाओं पर आधुनिक शरीर विज्ञान पर आधारित अध्ययन करता है और इसके सभी अध्ययन आधुनिक संवेदी यंत्रों के सहारे किया जाता है| ‘मूर्ख दिखने का विज्ञान’ तब स्पष्ट होता है, जब यह केवल बाहरी आचरण एवं व्यवहार तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया होती है। इस तरह ‘मूर्ख दिखना’ एक रणनीतिक निर्णय है, जो आपको को तनावपूर्ण या चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में फंसे बिना अपनी प्रतिष्ठा और गरिमा बनाए रखने में सहायता करता है और विजयी भी बनाता है|

                 ‘मूर्ख दिखने की कला’ में  एक व्यक्ति जानबूझकर अपनी बुद्धिमत्ता को छिपाकर दूसरों के मन के अनुकूल होकर उसमें भ्रम पैदा करता है। इस स्थिति में एक व्यक्ति अपनी स्थिति को सम्मानजनक एवं  सुरक्षित बनाए रखता है और दूसरों को असहज किए बिना अपनी समझ और ज्ञान का उपयोग करता है। यह व्यवहारिक कला एक व्यक्ति को अति-संवेदनशील स्थितियों से सम्मानजनक एवं सुरक्षित बाहर निकालने में मदद करती है और उसे अनावश्यक बहस या विवाद से दूर रखती है। इसी कारण, इसे दूसरे शब्दों में कहा जाता है कि किसी की सफलता में उसकी सामान्य बुद्धिमत्ता का 20% योगदान होता है, जबकि ‘भावनात्मक बुद्धिमत्ता’ एवं ‘सामाजिक बुद्धिमत्ता’ का योगदान 80% होता है| ध्यान रहें कि ‘सामाजिक बुद्धिमत्ता’ में साधारण बुद्धिमत्ता के साथ साथ ‘भावनात्मक बुद्धिमत्ता’ भी समाहित होती है| स्पष्ट है कि ‘मूर्ख दिखना’ ही इन बुद्धिमत्ताओं का महत्वपूर्ण खम्भा है, आधार स्तम्भ है|

                  ‘मूर्ख दिखने’ में यह भी महत्वपूर्ण है कि दूसरों की धारणाओं एवं भावनाओं को कैसे नियंत्रित एवं अनुकुलित किया जाए ताकि सामने वाला आपको एक निश्चित दृष्टिकोण से देखें और आपको अपना ख़ास समझे| तब ही आप अपने उद्देश्यों को चुपचाप, शांतिपूर्ण रूप से एवं सम्मान के साथ प्राप्त कर सकते हैं। माना कि आपका ज्ञान उच्च स्तरीय प्रोग्राम्ड है, और आपका समाज निम्न स्तरीय प्रोग्राम्ड हैं, तब स्पष्ट है कि ऐसे समाज के लिए आपको उस हद तक मूर्ख दिखना होगा, जिस हद तक उस समाज का स्तर एवं प्रोग्राम है| तब ही आपकी और उस समाज की दोलन/ कम्पन (Frequency) समान होगी और आप उसकी बातें समझ कर उसको समझा पायेंगें| इसमें भी आपको उस हद तक ‘मूर्ख दिखना’ होगा, अन्यथा आपसी संवाद ही नहीं हो पाएगा|

                   अक्सर आपको अपने समाज में अनेक महत्वपूर्ण मोड़ पर अनेक विवादों से बचने के लिए आपको ‘मूर्ख दिखना’ पड़ता है| आप अपने को मूर्ख दिखा कर समाज में व्याप्त अनेक जटिलताओं और आडंबरों से सम्बन्धित विवादों से बचा सकते हैं और वैसी स्थिति को सम्हाल भी सकते हैं। ऐसे समय में व्यक्ति अपनी मौनता या सरलता से समाज की अपेक्षाओं से बाहर निकलने में सक्षम होता है। बुद्ध भी अक्सर बहुत से प्रश्नों के उत्तर की अपेक्षा किये जाने पर मौन हो जाते थे, या मुस्कुरा देते थे| ऐसी स्थिति में समझने वाले उन्हें मूर्ख या अज्ञानी भी समझ लेते थे, लेकिन बुद्ध उसकी अज्ञानता या मूर्खता पर सिर्फ मुस्कुरा कर रह जाते थे| ‘मूर्ख दिखना’ जीवन जीने का एक वैज्ञानिक एवं कलात्मक तरीका है, जहाँ व्यक्ति अपनी शांति और संतुलन बनाए रखते हुए खुद को उन विवास्पद चीज़ों से अलग रखता है| यह आपकी मानसिक शांति को बनाए रखने के लिए अनिवार्य है|

                  स्पष्ट है कि ‘मूर्ख दिखना’ वास्तव में एक कलात्मक विज्ञान है। "मूर्ख दिखना" अपने फायदे के लिए आवश्यक होता है, भले ही इससे दूसरों का समय, संसाधन, ऊर्जा, धन, उत्साह, वैचारिक और जवानी बरबाद हो जाता है। यह उन सभी व्यक्तियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो जीवन की कठिनाइयों से निपटने में माहिर होना चाहते हैं| ऐसे व्यक्तियों के लिए यह ‘मूर्ख दिखने’ का कौशल उनकी जीवन यात्रा को अनावश्यक संघर्षों से दूर रखकर सरल, सुगम और रोचक बनाती है।

    आचार्य प्रवर निरंजन 

3 टिप्‍पणियां:

  1. नयी और अद्भुत जानकारी के लिए आभारी हूँ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर व्याख्या आचार्य जी

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर व्याख्या,आपका धन्यवाद।
    कई जगहों पर मुझे भी इस कला से लाभ मिला है।

    जवाब देंहटाएं

महाभारत को अर्जुन ने कैसे जीता?

शिक्षक दिवस पर   .......  भारत में ‘महाभारत’ नाम का एक भयंकर युद्ध हुआ था| ऐसा युद्ध पहले नहीं हुआ था| नाम से भी स्पष्ट है कि इस युद्ध में ...