(The ‘Dark’ Psychology to Rule)
आज मैं आपको ‘शासन करने के “डार्क मनोविज्ञान” (The Dark Psychology to Rule)’ को
बताना समझाना चाहता हूँ| मैंने यहाँ अंग्रेजी शब्द ‘डार्क’ (Dark) का कोई हिंदी समानार्थी शब्द नहीं
दिया है, क्योंकि कोई हिंदी शब्द यहाँ इसके लिए और उपयुक्त
नहीं लगता है| किसी शब्दों के सही और सम्यक अर्थ वही होते हैं, जिसे
सामान्य बहुसंख्यक जिस भावार्थ में उस शब्द से जो अर्थ संप्रेषित करते हैं| अंग्रेजी
के ‘डार्क’ (Dark) का अर्थ ‘गहरा रंग’,
‘साँवला’, या वह ‘अँधेरा’ जो अपने अँधेरे में बहुत कुछ छुपाये हुए है, या ऐसा
ही कुछ और हो सकता है, लेकिन यह सब सही होते हुए भी इस
सन्दर्भ में हिंदी का कोई भी शब्द यहाँ सही एवं सम्यक नहीं है| इसीलिए ‘डार्क’ शब्द का वही
भावार्थ रखने के लिए इसे हिंदी भाषा में भी ‘डार्क’ ही रहने दिया गया है| दरअसल यह ‘डार्क’ इसलिए है, क्योंकि इसकी यह क्रियाविधि (Mechanism) या प्रणाली
व्यवस्था (Action System) ‘लक्षित सन्दर्भ’ के लिए गुप्त रहता है, यानि यह उस सब को अँधेरे में
रख कर किया जाता है, यानि यह प्रणाली या व्यवस्था ‘डार्क’ जैसा होता है|
किसी भी शासन में मनोविज्ञान का बहुत ही
महत्वपूर्ण स्थान है| लेकिन यहाँ शासन करने के अर्थ में सिर्फ राजनीतिक
शासन को ही शामिल नहीं समझा जाय| यहाँ शासन का विस्तृत एवं
व्यापक अर्थ में इसकी संरचना एवं निहित आशय समझा जाय| इसमें
पारिवारिक शासन, सामाजिक शासन, सांस्कृतिक
शासन, राजनीतिक शासन, आर्थिक शासन सहित
अन्य शासन के स्वरुप समाहित किए जा सकते हैं| मैं नहीं जानता
कि भारत में इस शासन विधा को कितने लोग या कितने समूह समुचित ढंग से जानते हैं|
परन्तु यह तो निश्चित है कि यह “डार्क
मनोविज्ञान” शासन करने का मूल, प्राथमिक,
मौलिक एवं आवश्यक आवश्यकता है, यानि इसे हरेक ‘कुशल’
शासक जानता है| हालाँकि यह ‘डार्क
मनोविज्ञान’ मानवीय मनोविज्ञान का नकारात्मक पक्ष माना
जा सकता है, अर्थात यह सामन्ती स्वरुप, यानि असमानता के व्यवस्था में, यानि अमानवीय शासन
तंत्र के लिए अनिवार्य होता है| कोई इस ‘डार्क’मनोविज्ञान
का सदुपयोग कर अपने समाज एवं देश को एक सशक्त राष्ट्र भी बना देता है|
आप भी जानते होंगे कि शासन करने के लिए ज्ञान के
तीन ही अनिवार्य आधार स्तम्भ - दर्शन शास्त्र (Philosophy), इतिहास (History), और मनोविज्ञान (Psychology)
होते हैं| अर्थात जो समाज या वर्ग इन तीन विषयों में मौलिक (Fundamental) एवं प्राथमिक (Primary) चिंतन एवं मनन मंथन कर “अपने सन्दर्भ में” नवाचारी (Innovative) निष्कर्ष नहीं निकाल सकता, वह शासन कर ही नहीं सकता,
चाहे वह कितना भी संगठित और क्रान्तिकारी हो| यह
एक वैश्विक एवं सर्वकालिक सत्य है| अर्थात हर शासक वर्ग इसे बखूबी
जानता है, समझता है, और इसका सदुपयोग
या दुरूपयोग करता है| इसी के आधार पर कई राष्ट्र अन्य दूसरे
राष्ट्रों पर भी शासन करते हैं| कुछ बड़ी आबादी के राष्ट्रों की
वैश्विक पूछ उसकी बड़ी आबादी के खाने एवं पचाने की क्षमता , यानि बाजारू उपभोग की
क्षमता के कारण होती है, जिसे शायद वह समझना भी नहीं चाहता है|
दर्शन शास्त्र (Philosophy) एक
ऐसा विषय है, जो मानव के अस्तित्व, ज्ञान, तर्क, मूल्य, चेतना, आत्म, नैतिकता, नीति एवं अभिव्यक्ति जैसे विषयों से सम्बन्धित मौलिक प्रश्नों को दृष्टि
देता है| यह इस विषयों का आलोचनात्मक विश्लेषण एवं
मूल्याङ्कन कर सर्वव्यापक एवं सर्वकालिक निष्कर्ष “उस समाज के विशिष्ट
सन्दर्भ” में निकाल कर शासन एवं समाज को दृष्टि देता है| यह
शास्त्र उस काल में, उस समाज में, और
उस परिस्थिति में समाज एवं शासन को वह तर्कसंगत एवं आलोचनात्मक दृष्टि (Vision)
देता है, कि वह समय एवं समाज के पार यानि बहुत
आगे का भविष्य देख सकता है, या देखता है| ‘दर्शन’ का सरल एवं साधारण अर्थ ‘सम्यक रूप में देखना’ ही होता है|
इतिहास (History) की धारणा यानि अवबोध ही हमारी
संस्कृति (Culture) का निर्माण करती है, और हमारी संस्कृति ही हमें चेतन, अचेतन एवं अधिचेतन
स्तर पर सदैव संचालित, नियंत्रित, नियमित,
निर्धारित एवं प्रभावित करती रहती है| इस तरह
इतिहास वर्तमान को समझने में सहायता करती है, और भविष्य के
निर्माण को भी नियंत्रित करती है| स्पष्ट है कि हमारा इतिहास
बोध (Perception of History) ही हमारी संस्कृति का निर्माण
करती है| इतिहास सामाजिक सांस्कृतिक रूपांतरण का
क्रमानुसार विश्लेष्णात्मक मूल्यांकन विवरण होता है|
और मनोविज्ञान (Psychology) वह विषय है, जो मानसिक प्रक्रियाओं, अनुभवों, एवं विभिन्न संदर्भो में व्यवहारों का
अध्ययन करता है| मनोवज्ञान मानव के विकास सहित जगत
के उद्दीपक (Stimulus) एवं अवाधानिक प्रक्रियाओं (Attentional
Procedures) तथा प्रत्याक्षिक प्रक्रियाओं (Perceptual
Procedures) को समझाता है| इसमें मानव में
अधिगम (Learning), स्मृति (Memory), चिंतन
(Thinking), अभिप्रेरणा एवं संवेग (Motivation n
Emotion) और अभिवृति एवं सामाजिक संज्ञान (Attitude n Social
Cognition) आदि की प्रक्रियाओं को बताता एवं समझाता है| इससे हमें मानव एवं उसके समूह समाज पर किये जाने वाली प्रक्रियायों को
समझने में सहायता करती है|
स्पष्ट है कि उपरोक्त तीनों विषय में पारंगत और
चिन्तनशील हुए बिना कोई भी स्थायी शासक नहीं बन सकता है| हाँ, एक बात याद रखिएगा कि रट्टू डिग्रीधारी तथाकथित हवाई बुद्धिजीविओं से कोई उम्मीद भी नहीं रखियेगा,
क्योंकि ये रट्टू बुद्धिजीवी कदापि चिन्तनशील नहीं होते हैं|
किताबी कीड़ा होना और चिन्तनशील होना, ये दोनों अलग अलग पक्ष होता
है| और इसीलिए एक रट्टू (किताबी कीड़ा) सृजनात्मक एवं सकारात्मक
नहीं होते हैं|
लेकिन जहाँ और जिस सामाजिक तंत्र में या सामाजिक
पारितंत्र (Social
Ecosystem) में वास्तविक लोकतान्त्रिक व्यवस्था नहीं होती है,
यानि मात्र दिखावटी राजनीतिक लोकतंत्र होता है, वहीं शासन करने के लिए मनोविज्ञान का नकारात्मक उपयोग की आवश्यकता होती है| सामान्यत: मनोविज्ञान के नकारात्मक उपयोग को ही “डार्क
मनोविज्ञान” (Dark Psychology) कहते हैं| इसका
ही उपयोग कर इतिहास, और इसीलिए संस्कृति को भी मनमाना स्वरुप
दिया जाता है| इसमें मानवीय मनोविज्ञान का वह हिस्सा शामिल
है, जिसके द्वारा कोई भी दूसरों के विचार, अनुभव एवं व्यवहार को अपने अनुसार बहा ले जाता है, या
बहते रहते देना चाहता है| इसे नकारात्मक दिशा में
चेतना यानि मन (Mind) को नियंत्रित करने का विज्ञान एवं कला
का संयुक्त या समन्वित विधा (Mode) कह सकते हैं| यह ‘शक्ति की गत्यात्मकता’ (Power Dynamics) को
समझ कर अपने लक्षित व्यक्ति या वर्ग को क्षति पहुंचा कर अपना लक्ष्य प्राप्त करता
है, अर्थात इसके द्वारा किसी ख़ास समूह या वर्ग के तुच्छ लाभ
को अन्य वर्ग को हानि पहुंचा कर प्राप्त किया जाता है| जब किसी सामाजिक सांस्कृतिक परितंत्र में लोकतान्त्रिक व्यवस्था किसी
यथास्थितिवादी लाभार्थी समूह या वर्ग की अनुचित लाभ की निरन्तरता को नहीं रहने
देता है, तो ऐसी स्थिति में यथास्थितिवादी लाभार्थी समूह या
वर्ग ही मनोविज्ञान का नकारात्मक उपयोग करता है, जिसे ही “डार्क मनोविज्ञान” कहते हैं|
“डार्क मनोविज्ञान” (Dark
Psychology) के उपयोग में हेरफेर (Manipulation) एवं समझाने (Persuasion) के तकनीकों एवं रहस्यों पर
आपको बाजार में कई पुस्तकें मिल जायगी, जो इस विषय को समझने
में आपकी सहायता करेगी| इसे आप भावनात्मक बुद्धिमत्ता (Emotional
Intelligence) और सामाजिक बुद्धिमत्ता (Social Intelligence)
का दुरूपयोग या नकारात्मक क्षेत्र भी समझ सकते हैं| इस मनोवैज्ञानिक हेरफेर
एवं मानाने तथा दबाब बनाने में एक मिथकीय यानि
काल्पनिक या अर्ध काल्पनिक प्रसंग या कथानक गढ़ा जाता है, जिसका
उद्देश्य गुप्त या भ्रामक रणनीति के द्वारा दूसरों के व्यवहार या धारणा को बदल
देना या यथास्थिति में बनाये रखना या और मजबूत करना होता है| यह ‘डार्क मनोविज्ञान’ सामान्य
जनों के विचार,
अनुभव एवं व्यवहार बदल देता है और इसमें अप्रत्यक्ष, धोखा या अन्य युक्ति लगाया जाता है| इसके द्वारा
लोगो के उस विचार, अनुभव एवं व्यवहार में वह बदलाव किया जाता
है, जो सामान्यत: उन जनों मे अपने आप नहीं होता| इसमें व्यक्ति के तथाकथित अहम् (Ego) की रक्षा करने
का प्रयास दिखाया जाता है, जिसे आप सिगमंड फ्रायड का “रक्षात्मक
क्रियाविधि” (Defence Mechanism) समझ
सकते हैं|
अब डार्क मनोविज्ञान के उपयोग
करने के तरीके कुछ उदाहरण के साथ देखें, तो इसे बेहतर ढंग से
समझा जा सकता है| इसे सत्ता पाने में, या
इसे यथावत बनाये रखने में किया गया उपयोग ज्यादा चर्चित होता है| इसके सामान्य तकनीकों को
निम्न रूप एवं व्यापकता में व्यक्त किया जा सकता है -
अपनापन की बरसात (Rain of Affinity/
Closeness) –
इसमें सबसे पहले लक्षित समूह (Targeted Group), यानि जिन पर 'डार्क मनोविज्ञान' का प्रयोग किया जाना है, उन पर ‘अपनेपन की बरसात’ की जाती है| इसमें
प्रयोगकर्ता यानि शासक वर्ग लक्षित समूह से अपनापन दिखाता है| किसी
के भी प्रति अपनापन दिखाने या अहसास कराने के लिए क्षेत्रीयता, भाषाई, नस्लीय, जातीय (भारत
में), धार्मिक या अन्य आधार को भावनात्मक बनाया जाता है| इस सभी में अपनापन का भावनात्मक अपील रहता है| ‘दिमाग’ हमेशा ही ‘दिल’ से हार जाता है, यानि तर्क बुद्धि सदैव भावना से
परास्त होता है| यदि इनमे कोई भी आधार उपयुक्त नहीं भी रहता है,
तो किसी और को प्रतिद्वंद्वी बनाकर या बताकर शेष से अपनापन जताया
जाता है| जैसे जहाँ ‘जाति’ एक प्रमुख एवं वास्तविक विभाजनकारी आधार होता है, और
यदि यह बड़े समूह (तथाकथित हिन्दू) को एकत्रित करने के लिए उपयुक्त नहीं है,
तो वहां ‘धर्म’ को
अपनापन का आधार बताया जाता है| इसके लिए अपेक्षाकृत कम आबादी
के अन्य धर्म (इस्लाम या ईसाई) का काल्पनिक हौवा खड़ा कर लक्षित समूह को अपना बनाया
जाता है| इसके लिए इतिहास के नाम पर अनगिनत मिथक एवं कथानक
रचे या गढ़े जाते हैं, या विरूपित (बिगाड़ना/ Distortion)
किए जाते हैं| चूँकि ऐसे समूहों को
बुद्धिजीवियों, मीडिया एवं व्यवस्था का समर्थन होता है,
इसलिए इनका ‘डार्क मनोविज्ञान’ बहुत कम प्रयास में भी काफी प्रभावकारी हो जाता है|
अज्ञानता का साम्राज्य
(Empire of Fools)
-
अज्ञानता को ही मूर्खता
कहा जाता है,
यानि एक अज्ञानी ही मूर्ख है| जब व्यवस्था ही ‘डार्क मनोविज्ञान’ का उपयोग करने लगती है, तो शासन अपने व्यवस्था के द्वारा अज्ञानता का भी प्रसार करता है, यानि उस ‘अज्ञानता के साम्राज्य’ मे स्थायित्व देता है| इसीलिए शिक्षण संस्थाओं की स्थापना एवं सञ्चालन के अलावे शासन अन्य गैर
शैक्षणिक कार्यों को ही प्रमुखता देता रहता है| किसी भी धुंध (Mist) में
किसी को भी मनचाही यानि कल्पित चीज वास्तविक दिखने लगती है, या उन्हें आसानी से
दिखाया जा सकता है| अज्ञानता भी एक ऐसा ही धुंध होता
है, जो लोगों की आलोचनात्मक, विश्लेषणात्मक
एवं मूल्याङ्कन कम या सीमित कर देता है, या उसे समाप्त कर
देता है| शिक्षा को महंगा बना देने से यथास्थितिवादियों के
बच्चे तो पढ़ लेते हैं, क्योंकि वे पहले से ही समृद्ध होते
हैं| परन्तु सामान्य एवं गरीब के बच्चे अज्ञानी ही रह जाते
हैं| इसी अज्ञानता के कारण उन्हें अपने हित एवं अहित का अंतर
नहीं समझ पाते हैं और धूर्त की कोई भी बात आसानी से मान लेते हैं| इसी आधार पर भीड़ एवं भेड़ों
को हांकना आसान हो जाता है| स्पष्ट है कि ‘साक्षरता’ (Literacy) और ज्ञान (Wisdom) अलग अलग चीज है| ईश्वर, आत्मा,
परमात्मा, पुनर्जन्म, स्वर्ग-
नरक, आदि अवधारणा एवं उपयोग इसी अज्ञानता के उपकरण हैं|
निष्क्रिय आक्रामक
व्यवहार (Inert Aggressive Action) –
इसमें शासन या व्यवस्था
अपने विरोधियों के बीच ऐसे ऐसे मुद्दे फेंकता रहता है, जिस पर
तथाकथित हवाई बुद्धिजीवी अपनी सारी बुद्धिमत्ता निकालते रहते हैं| यानि उसी मुद्दों के बीच तैरते रहते हैं, परन्तु
शासन या व्यवस्था के मूल, मौलिक एवं प्राथमिक गलती या कमजोरी
की ओर ध्यान नहीं दे पाते हैं, जिस पर प्रहार किये जाने से
वह ध्वस्त हो सकता है| ये सभी तथाकथित हवाई बुद्धिजीवी
तालियों की गडगडाहट सुनकर मस्त रहते हैं और सामान्य जन को भी अपने स्तर का एक हवाई
क्रान्तिकारी नेता मिल जाता है| गंभीर चिंतन में तो
सन्नाटा छा जाता है| इसीलिए समस्या जस का तस रहता है, और समय गुजरता रहता है| विरोधी एवं सामान्य शक्तियां
ऐसे ही बकवास आन्दोलन में अपने समर्थकों के समय, संसाधन,
उर्जा, ध्यान एवं उत्साह खींचे रखते हैं,
और इसीलिए व्यवस्था भी उन्हें क्षति नहीं पहुंचती है| वैसे हर
समाज में पके हुए, थके हुए, एवं बिके
हुए लोग होते हैं, जिनकी बात मैं नहीं कर रहा हूँ|
इसका एक सुस्पष्ट उदाहरण “मूल
निवासी” का आन्दोलन है| मूलत: यह आन्दोलन बहुसंख्यक
आबादी के विरुद्ध नियोजित ‘डार्क’ मनोविज्ञान
का उदाहरण है| इन आन्दोलन कर्ताओं का मानना है कि इनकी जातीय
जीनीय संरचना अपनी शुद्धता में हजारो वर्षों से यथावत बनी हुई है, और इसीलिए ये अभी तक यहाँ के ‘मूल निवासी’ का प्रतिनिधित्व करते हैं|
अर्थात इनकी जातीय कार्यों की कुशलता
एवं विशेषज्ञता की जीनीय संरचना एवं गुण हजारों वर्षों से यथावत संरक्षित बनी हुई
है| इसीलिए ये जातियां अपने समाज और राष्ट्र को उसी कार्य क्षेत्र में
महत्तम दे सकते हैं, जिनमें उनकी जीनीय विशेषज्ञता है, और हजारों वर्षों का अनुभव हो। कुछ शासन इनके हजारों वर्षों
की जातीय कुशलता एवं विशेषज्ञता में और निखार लाने के लिए संस्थागत प्रयास भी कर
रही है| बाद में जो ‘जाति’ ‘शिक्षा एवं शासन’ की विशेषज्ञता एवं कुशलता की जीनीय
शुद्धता हजारो वर्षो से यथावत रखे हुए हैं, उनके लिए
ही शिक्षा एवं शासन आरक्षित किया जाना ‘मूल निवासी’ आन्दोलन का अंतिम लक्ष्य होगा| यह अंतिम लक्ष्य इनके
समर्थकों को नहीं दिखता है, क्योंकि इनको शारीरिक आँखे तो
हैं, परन्तु इनकी मानसिक आँखों (Vision) का अहसास शायद इन्हें नहीं हो| यह भी डार्क
मनोविज्ञान का उपयोग है| इस पैरा को दुबारा या कई बार पढ़ा
जाय।
तथ्यों में छेडछाड (Manipulation in Facts)
–
आज सूचनाओं और कृत्रिम
बुद्धिमत्ता (AI)
का युग है, एवं लोगों की व्यस्तता भी बहुत बढ़
गयी है| ऐसी स्थिति में सूचनाओं या तथ्यों में हेरफेर करना यानि छेडछाड
करना या बिगाड़ना बहुत आसान हो गया है| ऐसी सूचनाओं में विडिओ, फोटो,
आवाज, टेक्स्ट आदि मूल स्वरुप को बिगाड़ कर
मनमानी स्वरुप दिया जा रहा है| इसकी सत्यता को जानने के लिए
सामान्य लोगों में विश्लेष्णात्मक मूल्याङ्कन का स्तर नहीं है, और यदि यह स्तर है तो उनके लिए समय नहीं है, और यदि
यह दोनों है भी, तो उनके सत्य उदघाटन को सर्वव्यापक करने को मीडिया का समर्थन नहीं
है| ऐसे में तथ्यों में जो छेड़छाड़ व्यवस्था के समर्थन में
होता है, उसे व्यवस्था का यानि उस नागरिक समाज वर्ग का
समर्थन भी मिलता है और उसके विरुद्ध कुछ नहीं होता है| ऐसे
तत्वों द्वारा प्रिंट, डिजीटल एवं अन्य मीडिया में भ्रामक,
या त्रुटिपूर्ण, या गलत, या विरूपित तथ्य प्रस्तुत किया जाता है| किसी
स्थापित व्यक्ति या सन्दर्भ या घटना को आधार बनाकर गलत तथ्य प्रस्तुत किया जाता है,
जिसके उदाहरण भरे पड़े हैं| ऐसे बिगडे स्वरुप
पर सामान्य साधारण जन आसानी से सहमत होकर ‘डार्क’ मनोविज्ञान के शिकार हो जाते हैं| यदि मीडिया तंत्र
समर्थन में होता है, तो कई गलत, भ्रामक,
विरूपित किया गया काल्पनिक बातें भी बार बार कई माध्यमों से और कई
भिन्न भिन्न तरीकों से प्रस्तुत कर ‘सत्य’ साबित करा दिया जाता है| इसके द्वारा लोगों को ‘डर’ एवं ‘लाभ’ जैसे मनोवैज्ञानिक तत्वों या कारकों का उपयोग कर समाज को भ्रमित किया जाता
है|
इन सभी से कुछ छोटे
समूहों को तो लाभ होता है, परन्तु 'डार्क मनोविज्ञान'
से सम्पूर्ण राष्ट्र एवं मानवता का बहुत बड़ा नुकसान होता है|
इस
“नुकसान” को इतिहास कभी क्षमा नहीं करेगा, और उनकी आगामी पीढ़ी भी ऐसे ‘राष्ट्रद्रोहियों
से तत्वों से अपना सम्बन्ध बताने से भी बचना चाहेगा| मनोविज्ञान
का सकारात्मक उपयोग किया जाना चाहिए, ताकि समाज, राष्ट्र और मानवता सशक्त एवं समृद्ध हो सके| लेकिन सत्ता की जड़ता (Inertia of Power) अपनी गति जारी रखेगी, जबतक कि लोग जागरूक होकर
सावधान नहीं हो जाते|
आपसे अनुरोध है कि आप
इस पर थोडा ठहर विचार विमर्श करेंगे|
आचार्य प्रवर निरंजन
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