(Traders of Pain and its Remedies)
परीक्षा में फेल होने के डर से बचने के लिए किसी को बाजार के "दर्द के सौदागर" या "डर के सौदागर" द्वारा अंगूठी या ताबीज देना, मन्त्र देना, ईश्वर की सहायता उपलब्ध कराना आदि कई तरीके किये जाते हैं| गरीबी या बिमारी या पारिवारिक अशांति आदि कई झोलों से बचने के लिए किसी को स्वर्ग में स्थान सुरक्षित करा देना भी गरीबी या बीमारी या पारिवारिक अशांति आदि के दर्द से बचाने के स्थायी उपाय है|
ऐसे सौदागर किसी जाति या जाति समूह के लोग को यह बताते, जताते या समझाते हैं कि कोई दुसरा जाति समुदाय या जातियों के समूह उन पर हावी होते जा रहे हैं, और उसे जल्द ही बर्बाद करने वाले हैं। ये सौदागर इन जाति समुदायों या जाति समूहों के दर्द यानि डर का खूब राजनीतिक उपयोग करते हैं| इसी तरह, कोई चतुर सौदागर किसी खास धर्म के लोग को यह बताते, जताते या समझाते हैं कि अब जल्दी ही उनके धर्म को निगल जाने वाले हैं, या उनके धर्म का वजूद ही मिट जाने वाला हैं, के दर्द या डर का बखूबी उपयोग करते हैं| ऐसे कई उदहारण आप अपने आसपास देख सकते हैं| इन दर्द या डर के व्यापार के स्वरूपों एवं क्रियाविधियों को समझना चाहिए| इन सभी का समाधान आसानी से पाया जा सकता है, परन्तु इसे यदि दर्द या डर को मिटा ही दिया जायगा, तो ये सौदागर व्यापार किसका करेंगें? यही विचारणीय सवाल है|
आइए, अब दर्द और सौदागर की प्रवृत्ति और प्रकृति को समझते है। दर्द (Pain) को पीड़ा, व्यथा, वेदना, कष्ट, हूक, और अन्य कई नामों से भी जाना जाता है| दर्द यानि पीड़ा एक अप्रिय अनुभव होता है। अर्थात
यह एक अनुभव है और इस अनुभव को अच्छा नहीं होना चाहिए|
किसी अनुभव को कोई भी अपने न्यूरोन के द्वारा अपने मस्तिष्क एवं चेतना को सम्बन्धित संकेत (सिगनल)
भेजने से प्राप्त करता है| यानि किसी का भी अनुभव उसके अपने अवबोध (Perception) से
ही आता है, चाहे वह काल्पनिक हो या वास्तविक हो| अर्थात दर्द को अनुभव कराने वाला कोई वास्तविकता हो सकता है, या
कोई काल्पनिक वास्तविकता (Imaginary Reality) हो सकता है, या महज कोई कल्पना मात्र ही हो सकता है|
‘अंतर्राष्ट्रीय पीड़ा अनुसंधान संघ’ द्वारा दी गई परिभाषा के अनुसार "एक अप्रिय संवेदी और भावनात्मक
अनुभव जो वास्तविक या संभावित ऊतक-हानि से संबंधित होता है; या
ऐसी हानि के सन्दर्भ से वर्णित किया जा सके, पीड़ा कहलाता है"| इसका अनुभव कई
बार किसी चोट, ठोकर लगने, किसी के
मारने, किसी घाव में नमक या अन्य रसायन आदि लगने से भी होता है। यह विवरण मात्र शारीरिक दर्द के बारे है, जबकि दर्द मानसिक भी होता है| इस
तरह यह परिभाषा पूर्ण नहीं है| दर्द की परिभाषा में शारीरिक एवं मानसिक दर्द
दोनों के स्वरुप को समाहित होने चाहिए|
चूंकि
दर्द न्यूरान्स तंत्र में असहज और अप्रिय संकेत या सूचना है, इसलिए इसका स्रोत वास्तविक और काल्पनिक दोनों स्थापित हैं। चूंकि दर्द एक
अहसास है, इसलिए इसका वास्तविक होना आवश्यक नहीं है और यह
मनोवैज्ञानिक ज्यादा है। इसी विशेषता के कारण "भावनाओं के सौदागर" इसका
उपयोग और दुरुपयोग करते हैं। वैसे सौदागर शब्द में सौदा के लिए "लाभ"
अंतर्निहित होता है, इसलिए इनके यहां इन भावनाओं का उपयोग कम
और दुरुपयोग ज्यादा ही होता है।
अब आप सहमत होंगे कि दर्द किसी नुकसान या किसी अप्रिय स्थिति आ जाने का “डर” (Fear) की मनोवैज्ञानिक स्थिति है, एक भावना है| इस तरह डर भी दर्द का पर्यायर्वाची हो जाता है| जब कोई इस “दर्द” एवं “डर” का सौदा करने में ही उपयोग करता है, तो उसे 'दर्द का सौदागर' कहते हैं| वैसे एक सौदागर कोई भी सौदा किसी लाभ के लिए ही करता है| अब यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि कोई भी सौदागर अपने सौदा किए जाने वाले किसी भी वस्तु (Things) को, चाहे वह कोई माल (Goods) हो, कोई सेवा (Services) हो, कोई विचार (Ideas/ Thoughts) हो, या कोई आदर्श (Ideals) हो, को नष्ट यानि बर्बाद करना नहीं चाहेगा| एक सौदागर के लिए सौदा किए जाने वस्तु बहुत ही महत्त्वपूर्ण होती है, जिसे वह सुरक्षित (Conservation) एवं संरक्षित (Preservation) रखना चाहेगा| यानि इस डर को सदैव जीवित रखा जाएगा, ताकि इसके सौदागर इसका सौदा करता रहे।
मैंने
शीर्षक में मरहम शब्द का प्रयोग किया है| वैसे मरहम एक लेप होता है, जो दर्द को
मिटाता है या कम करता है। इसी कारण मरहम को मलहम भी कहा जाता है। यदि मरहम को दर्द
मिटने का उपाय मान लिया जाय, तो मरहम में व्यायाम, सेकाई
(Warming / Heating), अन्य थेरापी, अन्य
दवाइयां और अन्य उपाय भी शामिल हो जाते हैं| लेकिन
दर्द के सौदागर मरहम नहीं देते हैं, मरहम बेचने का नाटक भले ही कर सकते हैं|
यदि वे दर्द को मिटा ही देंगे, तो किन भावनाओं का
व्यापार करेंगे? इस तरह दर्द को बरक़रार रहना यानि रखना सौदागर की नैतिकता है, आदर्श है| इसे समझना चाहिए|
स्पष्ट
है कि दर्द शारीरिक हो, या मानसिक हो, या आध्यात्मिक हो,
यह एक अनुभव ही है| जब यह अनुभव ही है, तो यह वास्तविक हो सकता है
या काल्पनिक हो सकता हैं, जैसा ऊपर भी लिखा गया है। लेकिन दर्द की दुनिया में काल्पनिक
का हिस्सा या भागीदारी बहुत ज्यादा है। इसका वास्तविक
निदान यानि समाधान यानि इसे निपटने का उपाय "ज्ञान" ही है। ज्ञान
दोनों तरह के - वास्तविक और काल्पनिक - दर्द को मिटाता है या कम करता है। लेकिन
व्यवस्था यानि सौदागर कभी भी इसका समाधान नहीं होने देता|
इन सभी दर्दों को शारीरिक दर्द से ही जोड़ दिया जाता है, यानि सभी प्रकार के दर्द का अंतिम परिणाम शारीर को ही नुकसान के रूप में दिखाया जाता है| आपको मानसिक या आध्यात्मिक दर्द भी होता है, परन्तु वह भी भविष्य के किसी शारीरिक नुकसान के ही रूप में लिया जाता है| यह किसी के शारीरिक अस्तित्व के अन्त या समापन के रूप में भी हो सकता है| दर्द के सौदागर किसी के जाति, धर्म, अमीरी, बिमारी और इनसे जुड़ी कई खतरों के दर्द यानि डर का व्यापार करते हैं| इस व्यापार का सबसे आकर्षक पहलु यह है कि इसे व्यापार के रूप में लिया ही नहीं जाता है| इस व्यापार को सदैव आपके मददगार के रूप में लिया जायेगा या लिया जाता रहा है| ऐसे व्यापारियों का व्यापार सदियों से अबाध गति से जारी है| चूँकि इसका निदान ज्ञान ही है, अत: जब तक अज्ञान रहेगा, तब तक यह जारी ही रहेगा| यदि आप इसे रोकने का प्रयास करेंगे, तो यही अज्ञानी लोग आपको अपना दुश्मन नम्बर एक मान बैठेंगे|
जब इन दर्दों का समाधान एकमात्र सम्यक ज्ञान ही है,
तो हमें इस सम्यक ज्ञान को समझना होगा| जब बात ज्ञान की आती हैं,
इसके स्तर और गुणवत्ता की बात आ जाती है, तो डिग्री और उपाधि को
लेकर कई भ्रम पैदा हो जाते हैं| ज्ञान का होना और उसमें स्तर एवं गुणवत्ता का होना
कई कारणों और कारकों से संचालित, नियंत्रित, और प्रभावित होती है। इन कारकों में समुदाय, समाज,
या राष्ट्र का शैक्षिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, सामाजिक आदि कई कारकों को प्रमुख स्थान
मिला हुआ है। बुद्ध के आष्टांग मार्ग भी सम्यक ज्ञान ही है, जिसमे सभी पहलु समाहित
हैं|
लेकिन
यदि आपको भी दर्द का सौदागर बनना है, तो आपको कई बातों का ध्यान रखना होगा| आप
किसी भी मूर्ख को ज्ञान के उच्चतर श्रेणी में होने के उसके भ्रम को सही मानने का उसे अहसास दिला दीजिए| उनके
मूर्खतापूर्ण निर्णयों में बुद्धि की उत्कृष्टता का बोध उसे करा दीजिये| अपने जाति और
धर्म में अपनापन खोजने के अहसास और दूसरे जाति एवं धर्मों में दुश्मन देखने का
अहसास जगा दीजिए| अपनी जाति एवं धर्म में दर्द का समाधान खोजने में तैरने के
प्रयास की खूब प्रशंसा कर दीजिए| पूर्ण काल्पनिक उड़ानों में जैसे ईश्वरीय शक्ति के
सहयोग का अस्तित्व, आत्मा एवं पुनर्जन्म की क्रिया प्रणाली के उसके मान्यता को सही
मान लेने को बौद्धिक ज्ञान से परिपूर्ण बताइये| आप भले ईश्वर को मत मानिए,
परन्तु दूसरों के सामने उनके शक्ति का गुणगान कीजिए| सिर्फ ध्यान यह रखना है कि
उन्हें वास्तविक यानि सम्यक ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो| यानी यदि कोई विद्यार्थी है, तो उसे पढने के अलावे सारे देश
दुनिया का सरोकार देकर उलझाये रखिये| उसे पढने नहीं दीजिए, सिर्फ उनको
क्रान्तिकारी और प्रबुद्ध बताइए| वे खुश रहेंगे| वे पढेंगे नहीं, तो उनकी विश्लेषण
क्षमता भी नहीं होगी और वे आपकी नापाक इरादों को समझ भी नहीं पाएंगे| तब ही आप
दर्द के सफल सौदागर बनेंगे|
आप 'दर्द के मरहम' के नाम पर उनके लिए आवश्यक ज्ञान उपलब्ध कराने को छोड़कर उसके सभी संसाधन, धन, उर्जा, समय, वैचारिक और जवानी का उपयोग कर सकते है| आपको खूब दान भी मिलेगा, सम्मान भी मिलेगा और खूब जय जयकार भी होगा| आप भी कईयों की तरह दर्द के सफल सौदागर बन सकते हैं| इस पर कभी ठहर कर विचार कीजियेगा।|
आचार्य प्रवर निरंजन
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