मंगलवार, 16 जून 2020

क्या आप भी किश्तों में सुसाइड करते हैं? (Don’t Suicide in Instalments)

अपने शरीर की चेतनता (Consciousness) का स्थायी अंत अपने आप ही करना आत्महत्या है। इसे ‘पूर्ण सुसाइड’ (आत्महत्या)  कहते हैं, लेकिन इसी जीवन में जीवित रहते हुए भी कुछ लोग किस्तों में भी सुसाइड करते हैं। तो एक प्रश्न यह भी उठता है कि मानव जीवन क्या है? मानव जीवन समाज को उनके द्वारा दिए गए सकारात्मक और सृजनात्मक योगदान की अवधि को कहते हैं, जैसे गैलेलियो आज भी जीवित है। बाकी जीवन और पशुवत जीवन में कोई अन्तर नहीं है। एक अनुमान के अनुसार आबादी का एक अच्छा हिस्सा प्रति वर्ष “पूर्ण आत्महत्या” कर लेता है। इसमे शरीर का ही पूर्ण नाश कर लिया जाता है और इसिलिए उसकी प्रतिभायोग्यताविद्वताकौशल, सार्थकता और भविष्य की संभाव्यता का भी नाश हो जाता है। प्रकृति के सभी जीवन की यह प्रवृति होती है कि वह अपनी चेतनता को हर संकट में बचाए रखेंचाहे वह जीव जन्तु हो या वनस्पति हो।

जीवन जीने का नाम है, एक दिन तो सभी को समाप्त होना ही है, यानि मृत्यु को प्राप्त होना ही है। जिसका भी जन्म होता हैउसकी मृत्यु भी होना निश्चित हैभले उसका जीवन अवधि अलग अलग निर्धारित है। जब हर जन्तु और हर वनस्पति अपना जीवन यानि अपनी चेतनता बचाए रखना चाहता है, तो किसी मानव द्वारा अपने जीवन का पूर्ण समापन (अंत) करना या किश्तों में समापन करना किसी भी प्राकृतिक नियमों के अनुरुप नहीं  है। सभी जीवों को जीवन एक ही बार मिलता है, बाकि सब बहम यानि भ्रम है, चाहे आप कोई भी धार्मिक सांस्कृतिक व्याख्या अपने पक्ष में कर लीजिए|

जीवन में बहुत से उतार चढ़ाव आते हैंदुख के बाद सुख और सुख के बाद दुख। ‘अनित्यवाद’ का सिद्धांत भी कहता है कि इस ब्रह्माण्ड में कुछ भी नित्य नहीं है, सब कुछ बदलता रहता है| यहाँ तक कि आपका सुख भी नित्य नहीं है, और इसीलिए आपका दुख भी नित्य यानि स्थायी नहीं हो सकता है; उस “दुःख” को भी बदल जाना निश्चित ही है| इस ‘सुख’ एवं ‘दुःख’ की मात्रा भी हमारी आपकी ज्ञान एवं समझ आधारित समझदारी के अनुसार बदलती बदलती हुई हो सकती है। इसीलिए सुसाइड करने पर एक गंभीर विमर्श किया ही जाना चाहिए|  शारीरिक जीवन का अंत करना संपूर्ण जीवन का अंत हो जाता है, क्योँकि आत्म (Self, not Soul), मन (Mind), चेतना (Consciousness) और अधिचेतना (Super Consciousness) भी शरीर में ही निवास करता है। आप यहाँ “आत्म” (Self) एव “आत्मा” (Soul) में अंतर को लेकर स्पष्ट रहें|

इस सुसाइड यानि आत्महत्या से अलग किश्तों में सुसाइड भी होता है। इसकी संख्या पूर्ण सुसाइड की तुलना में बहुत ज्यादा है, पर ऐसे सुसाइड करने वाले को भी अहसास नहीं है कि वे किश्तों में सुसाइड कर रहे हैं। आज युवाओं की वर्तमान कार्य क्षमता देखिए एवं उनकी भविष्य की संभाव्यता देखिए और उनकी वर्तमान गतिविधियों को देखिए। वे अपने मूल एवं मौलिक प्राथमिक कार्यों से विमुख होकर दूर बज रहे किसी नगाड़े की ताल पर उछल कूद कर रहे हैं। वे थोड़ा भी अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं करना चाहते। इसका मुख्य कारण यह है कि उनमे किसी भी चीज को सम्पूर्णता में समझने की क्षमता एवं योग्यता नहीं है, क्योंकि उनमे आलोचनात्मक विश्लेषण एवं मूल्याङ्कन की योग्यता एवं क्षमता को सजगतापूर्वक विकसित नहीं किया गया है| यदि आपकी ऊर्जा रचनात्मक और सृजनात्मक कार्यों में नहीं लगा है, तो आपके जीवन की सार्थकता क्या है? यदि आप अपने और अपने समाज में सुखशान्तिसंतुष्टि और समृद्धि के निर्माण में योगदान नहीं दे रहे हैं, तो आप किश्तों में सुसाइड कर रहे हैं। 

आप में यदि आलोचनात्मक विश्लेषण एवं मूल्याङ्कन की क्षमता परिस्थितियों के सापेक्ष नहीं हैयदि आप अपने परिवार और समाज को विकसित नहीं कर सकते हैं| तो इसका स्पष्ट अर्थ यह हुआ कि आप किश्तों में सुसाइड कर रहे हैं। सुजननकी (Eugenics – Science of Better Offspring) के अनुसार प्रत्येक मानव के व्यक्तित्व (Personality) के निर्माण में एक तिहाई हिस्सा उसके माता पिता से प्राप्त उत्परिवर्तित जीन- Mutated Gene एवं सामान्य जीन का होता है| अन्य एक तिहाई हिस्सा उस अध्ययन एवं समझ का होता है, जिसे उसे अपने अवलोकन में पाया है या दुनियाँ के प्रति उसने जो अपना बोध (Perception ) में विकसित कर पाया है|और अंतिम एक तिहाई हिस्सा उसके पर्यावरण (Environment) एवं पारिस्थितिकी (Ecology) का होता है, जिससे वह घिरा है या जिसका वह एक भाग है, की भूमिका होती है। हालाँकि मानव गतिशील प्राणी होने के कारण अपने पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी को बदल भी सकता है, और बदली हुई पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी का चुनाव (चयन) भी कर सकता है|

इतना कहने का यह अर्थ है कि आज के युवाओं में वर्तमान की अपेक्षा एक तिहाई अधिक सुधरा हुआ और संवर्धित उन्नत जीन है, अर्थात आज के युवा आनुवांशकी में (Genetically – जीनीय संरचना/ बनावट  में) वर्तमान की अपेक्षा एक तिहाई ज्यादा तेज (Intelligent) हैं या आगे (Forward) हैं। उनका पर्यावरण (तकनीकीमानसिकसामाजिकआर्थिकवैज्ञानिक) आज से पचास साल पहले की दुनियाँ की तुलना में कई कई गुणा कई रूपों से बहुत आगे है। इसलिए ये युवा आज बहुत क्रियाशील और काफी तेज गति के मानव हैं। गति तो तेज है जो ठीक हैपरन्तु उन्हें होश की भी ज्यादा जरुरत है। अब बहुत से भारतीय युवा गहन अध्ययन करना नहीं चाहते, और इसीलिए ये वैश्विक प्रतिद्वंदियों की तुलना में सैद्धांतिक नवाचार (Theoretical Innovation) में काफी पीछे हो गए है|। सामान्य युवाओं में सामान्यत: अवलोकन बोध (Perception of Observation)  विश्लेषणात्मक और तार्किक नहीं है। यह सामान्य युवाओं की बात है। ऐसे परिस्थिति में कई तत्व इन्हें  भावनात्मक रुप से बहला लेने में सफल हो जा रहे हैं। उनकी उर्जाउनका ज्ञानउनकी प्रतिभाउनके समर्पण का दुरुपयोग किया जाने लगा है। ऐसे लोगों को जब समझ  आता हैपर तब बहुत देर हो चुकी होती है।     

ऐसे लोगों की पहचान कैसे की जा सकती है, जो किश्तों में सुसाइड कर रहे हैं? ऐसे लोगों को पहचानने का एक साधारण सा तरीका है। उनके सामने कोई राजनीतिक या/ और धार्मिक बातें कीजिएयदि वे बातें उनके मनोनुकूल होगी, तो उन्हें बहुत ही बढ़िया लगेगा, और फिर यदि ये बातें उनके मनोनुकूल नहीं होकर उनके विचारों के विपरीत है, तो उन्हें बहुत बुरा लगेगा। ऐसे व्यक्ति अपने विवेक की तुलना में भावनाओं से ज्यादा और जल्दी प्रभावित हो जाते हैं। ऐसे व्यक्ति राजनीतिक और धार्मिक बातों पर अपनी प्रतिक्रिया तुरन्त एवं तीखे तेवरों से देते हैं। ऐसे प्रतिक्रिया को ही जीवविज्ञानी ‘रिफ्लेक्स एक्सन’ (Reflex Action स्वत स्फूर्त क्रिया) कहते हैं| इन्हीं स्पष्ट स्वत स्फूर्त भावनाओं के कारण ही कुछ चतुर चालाक लोग इनको इनके सृजनात्मक और रचनात्मक क्षमताओं की पूर्ण अभिव्यक्ति से भटका देते हैं। उनके उत्पादक क्षमताओं की अभिव्यक्ति नहीं हो पाती है। यह उन्हें समझना होगा। अपनी संभावित क्षमताओंयोग्यताओं और प्रतिभाओं का समुचित अभिव्यक्ति नही होने देना ही किश्तों में आत्महत्या है, क्योंकि उनका शरीर तो जीवित रहता है, परन्तु उत्पादक उप्लब्धि न्युनतर होती है। 

 जीहाँ। किश्तों में आत्महत्या के आँकड़े ज्यादा भयावह है। इसकी संख्या ज्यादा हैइससे नुकसान अनुमान के कई गुणक में है और लोगों को इसका पता भी नहीं है। खुद किश्तों में सुसाइड करने वाले लोगों को भी पता नहीं कि वे किसी किस्म का सुसाइड कर रहे हैं। प्रसंगवश एक छोटी कहानी कहना चाहता हूँ। एक चिड़िया (एक छोटी पक्षी) थी, जो पाँच भाषाएँ बोल सकती थी। एक पक्षीपालक को इस पक्षी के बारे में पता चला। उसने उस पक्षी को खरीद कर घर भेजवा दिया। शाम में वह जब घर पहुँचा तो उसने उस पक्षी को खोजते हुए अपनी पत्नी से पुछा कि वह खास पक्षी कहाँ हैउसकी पत्नी ने बताया कि वह कढ़ाही (सब्जी बनने का वर्तन) में है, अर्थात उसने उस पक्षी को खाने के लिए पका दिया था। जब उसके पति ने दुख के साथ उसकी पाँच भाषाओं की क्षमता और प्रतिभा के बारे में बताया, तो पत्नी का जबाव था कि वह पक्षी ऐसा बोलता तो वह ज्ञान और प्रतिभा को जान पाती।  पक्षी के समय पर नहीं बोलने के कारण ही, यानि उसकी योग्यता एवं क्षमता के उपयुक्त समय पर अभिव्यक्त नहीं होने के कारण ही उसकी मृत्यु हो गयी। अत: सभी को अपनी याग्यताओं, प्रतिभाओं को समय पर जरुर अभिव्यक्त कर देना चाहिए। परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि कोई भी आपकी  भावनाओं में बहका कर आपकी प्रतिभाओं को गलत दिशा में मोड़ दे। वैज्ञानिक मानसिकता रखिएअंध आस्थावान नहीं बनिए।  तर्कशील बनिएऔर अपने जीवन जीवन को स्थिरता दीजिए।   

आज संभावनाओं और संसाधनों से पूर्ण विश्व में युवाओं की संभावित सृजनात्मकसकारात्मक और रचनात्मक क्षमताओं को देखते हुए उनके परिवार और समाज के प्रति दिए जाने वाले योगदान को देखने पर ऐसा सोचने को बाध्य हूँ। लगता है कि युवा वर्ग अपनी सृजनात्मक क्षमता कारचनात्मक योगदान का और सामाजिक उपयोगिता का आंशिक हिस्सा का ही उपयोग कर पा रहे हैं, या अपने क्षमता के किसी भी हिस्सा का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। अर्थात अपने पूर्ण जीवन के जीने के बदले किश्तों में ही जीवन जी रहे हैं, अर्थात किश्तों में अपने जीवन का सुसाइड कर रहे हैं।

मेरी नजरों में अपनी क्षमता का महत्तम अभिव्यक्ति नहीं करना ही किश्तों में आत्महत्या करना है।  इस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। सभी से अनुरोध हैखासकर युवाओं से कि वे अपनी संभावनाओं की पूर्ण अभिव्यक्ति होने दें। समाज और राष्ट्र को आपकी पुरी जरुरत है।

ई० निरंजन सिन्हा

स्वैच्छिक सेवानिवृत राज्य कर संयुक्त आयुक्तबिहारपटना।

 

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