(How
India become the Economy of 5 Trillion Dollar in Year 2025?)
(25 दिसम्बर 2019 को नई दिल्ली के तालकटोरा इनडोर स्टेडियम में
एक सामाजिक संस्था – “पैगाम” के अधिवेशन में विषय - ‘‘सामाजिक नवनिर्माण से ही देश का विकास संभव
है।’’ पर मेरे (आचार्य निरंजन सिन्हा) सम्बोधन पर आधारित है, इसीलिए इसे वर्ष 2019 के सन्दर्भ में ही समझा जाना चाहिए|)
समाजिक- सांस्कृतिक नवनिर्माण से ही देश का विकास संभव है। माननीय
प्रधानमंत्री का लक्ष्य है कि भारत की वर्त्तमान अर्थव्यवस्था 2.70 ट्रिलीयन डॉलर से वर्ष 2024 तक 5.0 ट्रिलीयन डॉलर की अर्थव्यवस्था बना दी जाय। मेरा दावा है कि सामाजिक-
सांस्कृतिक नवनिर्माण से वर्ष 2025 तक भारत की
अर्थव्यवस्था 5 नहीं; 10 ट्रिलीयन डॉलर की अर्थव्यवस्था आसानी से बनाया जा सकता है। इसी कारण भारत
में सामाजिक- सांस्कृतिक नवनिर्माण की अनिवार्यता है।
इस लक्ष्य में बाधा क्या है? इसे जानने के लिए
हमें वैसे देशों की अर्थव्यवस्था का अध्ययन करना चाहिए, जिनकी अर्थव्यवस्था हमसे
बडी है, या प्रतिव्यक्ति आय में हमसे बेहतर है, या जो
अर्थव्यवस्था अपने नागरिकों को गरिमामयी जीवन
जीने की सुविधाएं उपलब्ध करा रही है। उन देशों में सामान्य (Common) क्या है? उन सभी देशों में एक ही
चीज सामान्य है,
और वह है उनकी सांस्कृतिक बनावट| तो किसी देश
या समाज की संस्कृति क्या होती है, या सांस्कृतिक बनावट क्या
होती है और उसकी क्रियाविधि (Mechanism) कैसी है?
किसी
देश या समाज की संस्कृति उस देश या समाज की सामूहिक मानसिकता (Mentality) या अभिवृति (Attitude)
होता है, जो उसकी रचनात्मकता या उत्पादकता के
परिणाम में अभिव्यक्त होती है| इस संस्कति का सृजन या विकास
उस समाज या देश के “इतिहास बोध” (Perception of
History) से होता है, अर्थात वह समाज या
देश अपने इतिहास को कैसे देखता एवं समझता है? यह स्पष्ट है कि उन विकसित देशों यानि उन
लोगों का ‘इतिहास बोध’ मध्ययुगीन उत्पन्न एवं विकसित सामंतवाद
के प्रभाव से मुक्त है और इसलिए ही उनकी संस्कृति रचनात्मक और उत्पादक है।
हमारी भारतीय संस्कृति ऋणात्मक (Negative) है
एवं रुढिवादी (Conservative) है, अर्थात
‘यथास्थितिवादी’ (Status Quo) समर्थक
है। इसका एकमात्र एवं प्रभावी कारण हमारा दूषित इतिहास बोध है, जिसे मध्य युग में सामन्तवाद की आवश्यकताओं के अनुरूप बना दिया गया है,
जिसका कोई प्रमाणिक एवं पुरातात्विक साक्ष्य नहीं है| हमने अपने सामंतवादी इतिहास को ऐतिहासिक
बताया है, पौराणिक एवं गौरवमयी बताया है, सभ्यता के उदय काल तक पुरातन भी बताया है। इस पर गम्भीर विमर्श कर इतिहास
का संशोधन करना होगा।
इतिहास की वैज्ञानिक
व्याख्या उत्पादन, वितरण, विनिमय एवं उपभोग के साधनों और उनके शक्तियों
के अंतर संबंधों के आधार पर की जा सकती है, जो ऐतिहासिक
साक्ष्यों से समर्थित होता है, तार्किक होता है, एवं वैज्ञानिक प्रविधियों पर आधारित होता है। और इसीलिए यह व्याख्या वैज्ञानिक
होता है, सत्य (True) भी होता है,
और सही (Correct/ Appropriate) भी होता है। भारत में कृषि और पशुपालन के स्थिर एवं स्थायी
होने के बाद काँस्य एवं लौह तकनीक का उदय हुआ| इसके साथ ही कृषि क्षेत्र में अतिरिक्त उत्पादन (Surplus Production) होना
शुरु हो गया है, जिसका परिवहन, भंडारण
और संरक्षण किया जाने लगा। यह नागरीय समाजों और
राज्यों के उदय की पूर्व की शर्त थी। इस नए समाज और नई संस्था ‘राज्य’ के सम्यक संचालन के लिए एक सम्यक दर्शन
की आवश्यकता थी, जिसके प्रतिपादन में कई दार्शनिक प्रयासरत
थे। इनका लक्ष्य समाज में न्याय, समानता, स्वतंत्रता, और बन्धुत्व पर आधारित सुख, शान्ति और समृद्धि स्थापित करना था। इसी कारण ऐसा दर्शन सभी विकसित देशों
की आज की भी संस्कृति का आधार है। यह अलग बात है कि किसी ने इस दर्शन को धर्म के
रुप में लिया।
इतिहास
की बदलती हुई शक्तियों एवं साधनों के अनुरूप बदलती वैश्विक स्थिति के अनुरुप
मध्यकाल में भारत में भी सामंतवाद का उदय एवं स्थापना हुआ| भले ही भारत में इस
सामन्तवाद की स्थिति भारत के स्थितियों -परिस्थितियों के अलग होने के कारण यूरोपीय
देशों के सामन्तवाद से थोडा अलग हुआ। यही
सामंतवाद आज भी हमारी संस्कृति पर हावी है, और अपने धार्मिक सांस्कृतिक आवरण में हमें
नियमित एवं संचालित कर रहा है। इसे समझना होगा।
अहम् सवाल यह है कि नवनिर्माण
के लिए सामाजिक- सांस्कृतिक रुपांतरण (Social- Cultural Transformation) कैसे
होगा? जीवन में नए तथा आधुनिक एवं वैज्ञानिक तकनीकों के कारण समाज में काफी
रुपांतरण हो रहा है। हमारे समाज में नए वैज्ञानिक एवं डिजीटल क्रान्ति के साथ साथ जनांनकीय ढाँचा (Demographic Composition Framework) का रुपांतरण हुआ है। सरकारी आँकडों के अनुसार 35 वर्ष से कम आयु का हिस्सा सम्पूर्ण आबादी का 60 प्रतिशत से अधिक है।
इस
बदली हुर्इ स्थिति में केलौग स्कूल ऑफ मैनेजमेंट के मार्केटिंग मैनेजमेंट के
प्रोफेसर फिलिप कोटलर ने अपनी 2017 में प्रकाशित
पुस्तक - ‘मार्केटिंग- 4’ में विचारों एवं नीतियों के
मार्केटिंग की रणनीतियाँ बतायी है। उन्होंने इसके लिए युवाओं, महिलाओं, और नेटीजनों पर केंद्रित होने कहा है। नेटीजन (Netizan) वे
सिटीजन (Citizan) हैं, जो इन्टरनेट पर
रचनात्मक रुप में सक्रिय होते हैं। ये राष्ट्रीय सीमाओं से परे हैं। महिलाओं की भागीदारी जीवन के
प्रत्येक क्षेत्र में बढती जा रही है, क्योंकि ये घरों के
दरवाजे से बाहर निकलने लगी है। विस्तारित परिवार के एकाकी परिवार में बदलने से और बढते आय के कारण युवा मुखर होते जा रहे हैं। तार्किकता समझने और
वैज्ञानिकता अपनाने में वे बुजुर्गो से बेहतर हैं। इस रुप में ये नयी बातों को
बेहतर ढंग से समझते हैं। वे अपने सामाजिक परिवेश के सूचना प्रदाता (Informer), सूचना निर्माता (Information Creator) और सूचना प्रसारक (Information Broadcaster ) हैं। इस रुप में इन्हें गेम चेन्जर (Game Changer) भी कहा जाता है। ये स्मार्ट
फोन के साथ पहले की तुलना में ज्यादा स्मार्ट हो गए हैं।
उपरोक्त कारणों से ही ये युवा, महिला और नेटीजन सामाजिक
नवनिर्माण में प्रमुख भूमिका में हैं। मेरे अनुसार युवाओं के मनोविज्ञान में
आज युवाओं को दो ही चीज आकर्षित करती है - एक, सुनिश्चित एवं स्थायी
पर्याप्त आय, और दूसरा, राष्ट्र
निर्माण में उनकी भागीदारी की अहम् (Ego) की संतुष्टि। एप्पल कम्प्यूटर के संस्थापक स्टीव जॉब्स ने एकबार कहा था कि आज तक परम्परागत तकनीक के कारण जितने सामाजिक परिवर्त्तन विगत पाँच हजार
साल में हुए हैं, उससे कई गुणा ज्यादा सामाजिक
परिवर्त्तन अगामी कुछ दशकों में नयी तकनीकों के कारण होगा।
इस सामाजिक- सांस्कृतिक परिवर्त्तन या रुपांतरण के लिए पाँच सुत्री अभियान प्रभावी होगा जो निम्न है --
उद्यमिता,
वित्तीय साक्षरता,
सामाजिक अंकेक्षण,
संस्कृति की क्रियाविधि , एवं
प्रेरणा का विज्ञान
आज
सरकारी नौकरिया कम होती जा रही हैं। उद्यमिता रोजगार प्रदाता होता है। आज सरकारी तंत्र में
उद्यमिता (Enterpreneurship) का प्रशिक्षण वे दे रहे हैं,
जो खुद नौकर हैं और दूसरों को मालिक बनने
की प्रेरणा दे रहे हैं। यह एक विचारणीय विषय है। वित्तीय साक्षरता (Financial Literacy) के
कारण ही धन से धन बनता है और धन का सदुपयोग होता
है। इसकी आवश्यकता हर व्यक्ति को है जिसे गम्भीरता से नही लिया जाता है। 'सामाजिक अंकेक्षण' (Social Audit) शासन में
भ्रष्टाचार समाप्त करता है। यह सूचना के अधिकार अधिनियम पर आधारित है। संस्कृति की
क्रियाविधि को जानने एवं समझने से ही स्वस्थ संस्कृति का निर्माण हो सकता है। इससे
समाज और संस्कृति के तत्वों को गहराई से समझने में सहयता मिलती है। प्रेरणा (Inspiration n Motivation) का
विज्ञान लोगों की अभिवृति, लगन, समर्पण और उत्साह का विज्ञान है। इसका निचोड डा0 भीमराव आम्बेडकर के आह्वान - शिक्षित बनों, मनन (मंथन) करों, संगठित रहों (Educate, Agitate, Organise) में है। ध्यान रहे, संघर्ष करों (Struggle) शब्द बाबा साहेब के
नहीं हैं|
मुझे
दस मिनट का ही समय आबंटित है और समय के अभाव में इसे और विस्तार से बताना सम्भव
नहीं है। अन्त में मैं बहुत मजबुती के साथ कहता हूँ कि इन्हीं उपरोक्त विषयों के आधार पर सामाजिक
सांस्कृतिक नवनिर्माण हो सकता है और भारत के हर व्यक्ति के महत्वपूर्ण संसाधन बनने
के साथ ही भारत वर्ष 2025 तक 10 ट्रिलीयन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन सकता है।
आचार्य निरंजन सिन्हा
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जवाब देंहटाएंआपके लिखावट का फोन्ट रोमन लिपि है जो अपठनीय भी है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लेख
जवाब देंहटाएंबहुत ही सही सुझाव, आज के परिपेक्ष्य में।
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार सर, ये लेख आँखे खोलने वाली एवं आपके सुझाव भारत को सक्षम राष्ट्र बनाने का गम्भीर प्रयास है।
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